- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 668
हाईकू
की प्रीति लौटा देते श्री-मुनी,
कर-के कई गुनी ।।स्थापना।।
ले दृष्टि इक अभिलाष,
उदक ले आया पास ।।जलं।।
ले गुणधन अभिलाष,
चन्दन ले आया पास ।।चन्दनं।।
ले भक्ति नौधा अभिलाष,
शालि धाँ ले आया पास ।।अक्षतं।।
ले सु-मरण अभिलाष,
सुमन ले आया पास ।।पुष्पं।।
ले पाँव-रज अभिलाष,
नेवज ले आया पास ।।नैवेद्यं।।
ले स्वानुभूति अभिलाष,
संज्योति ले आया पास ।।दीपं।।
ले गन्धोदक अभिलाष,
सुगंध लें आया पास ।।धूपं।।
ले मुक्ति फल अभिलाष,
श्री फल ले आया पास ।।फलं।।
ले ‘भौ-अनघ’ अभिलाष,
अरघ ले आया पास ।।अर्घ्यं।।
हाईकू
गुरु जी थारी ही रहमत,
छू ‘ कि लत गलत
जयमाला
किसी जमाने में
थे गाये दिवाने बनके
मीरा ने गीत किशन के
अय ! मेरे किशन
गुनगुनाऊँ, क्षण-क्षण
तेरे तराने मैं
मीरा ने गीत मोहन के
किसी जमाने में
मचा धूम
झुक झूम-झूम
थे गाये दिवाने बन के
अय ! मेरे मोहन
अय ! मेरे किशन
इक तारा ले धड़कन
गुनगुनाऊँ, क्षण-क्षण
तेरे तराने मैं
किसी जमाने में
थे गाये दिवाने बनके
मीरा ने गीत किशन के
अय ! मेरे किशन
गुनगुनाऊँ, क्षण-क्षण
तेरे तराने मैं
मीरा ने गीत मोहन के
किसी जमाने में
मचा धूम
झुक झूम-झूम
थे गाये दिवाने बन के
अय ! मेरे मोहन
अय ! मेरे किशन
उड़ा गुलाल
देकर कर-ताल
ले सितारा साँस सरकन
इक तारा ले धड़कन
गुनगुनाऊँ, क्षण-क्षण
तेरे तराने मैं
किसी जमाने में
थे गाये दिवाने बनके
मीरा ने गीत किशन के
अय ! मेरे किशन
गुनगुनाऊँ, क्षण-क्षण
तेरे तराने मैं
।।जयमाला पूर्णार्घं।।
हाईकू
यही कहना,
बिठाये चरणों में यूँ ही रहना
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