परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रमांक 66
अकारण शिव साथिया । 
जगे तुम नाम का दिया, मेरे मन मन्दिर में । 
अय ! निर्झर दया । 
सिन्धु विद्या, 
जगे तुम नाम का दिया, मेरे मन मंदिर में ।। 
अकारण शिव साथिया । 
जगे तुम नाम का दिया, मेरे मन मन्दिर में ॥ 
।।स्थापना।।
दृग् से जल धारा बरसे ।
जल से भर लाया कलशे ।।
भेंट हेत सम्यक् श्रृद्धा । 
भगवन् मिरे सिन्धु विद्या ।।
अय ! निर्झर दया ।
अकारण शिव साथिया । 
जगे तुम नाम का दिया, मेरे मन मन्दिर में, ।।जलं।।
दृग् से जल धारा बरसे ।
भर लाया चन्दन कलशे ।। 
भेंट हेत सम्यक् श्रृद्धा । 
भगवन् मिरे सिन्धु विद्या ।।
अय ! निर्झर दया ।
अकारण शिव साथिया । 
जगे तुम नाम का दिया, मेरे मन मन्दिर में ।
।।चन्दनं।।
दृग् से जल धारा बरसे ।
धाँ-शाल बड़े सुन्दर से ।। 
भेंट हेत सम्यक् श्रृद्धा । 
भगवन् मिरे सिन्धु विद्या ।।
अय ! निर्झर दया ।
अकारण शिव साथिया । 
जगे तुम नाम का दिया, मेरे मन मन्दिर में, ।।अक्षतं।।
दृग् से जल धारा बरसे ।
लाया गुल नन्दन वन से ।। 
भेंट हेत सम्यक् श्रृद्धा । 
भगवन् मिरे सिन्धु विद्या ।।
अय ! निर्झर दया ।
अकारण शिव साथिया । 
जगे तुम नाम का दिया, मेरे मन मन्दिर में ।
।। पुष्पं।।
दृग् से जल धारा बरसे ।
चर तरबतर इतर रस से ।। 
भेंट हेत सम्यक् श्रृद्धा । 
भगवन् मिरे सिन्धु विद्या ।।
अय ! निर्झर दया ।
अकारण शिव साथिया । 
जगे तुम नाम का दिया, मेरे मन मन्दिर में ।
।।नेवैद्यं।।
दृग् से जल धारा बरसे ।
दीप लबालब घृत-गिर से ।। 
भेंट हेत सम्यक् श्रृद्धा । 
भगवन् मिरे सिन्धु विद्या ।।
अय ! निर्झर दया ।
अकारण शिव साथिया । 
जगे तुम नाम का दिया, मेरे मन मन्दिर में ।
।। दीप॑।।
दृग् से जल धारा बरसे ।
लाया धूप स्वर्ग-पुर से ।। 
भेंट हेत सम्यक् श्रृद्धा । 
भगवन् मिरे सिन्धु विद्या ।।
अय ! निर्झर दया ।
अकारण शिव साथिया । 
जगे तुम नाम का दिया, मेरे मन मन्दिर में ।
।। धूपं।।
दृग् से जल धारा बरसे ।
स्वर्ण पिटार भरे फल से ।। 
भेंट हेत सम्यक् श्रृद्धा । 
भगवन् मिरे सिन्धु विद्या ।।
अय ! निर्झर दया ।
अकारण शिव साथिया । 
जगे तुम नाम का दिया, मेरे मन मन्दिर में ।
।।फल॑।।
दृग् से जल धारा बरसे ।
विरले द्रव्य जगत् भर से ।। 
भेंट हेत सम्यक् श्रृद्धा । 
भगवन् मिरे सिन्धु विद्या ।।
अय ! निर्झर दया ।
अकारण शिव साथिया । 
जगे तुम नाम का दिया, मेरे मन मन्दिर में ।
।। अर्घं।।
“दोहा”
निरख गेह अपने जिन्हें,
नाँचे भवि मन मोर ।
गुरु विद्या सविनय तिन्हें, 
नमन प्रीत दृढ़ जोड़ ॥
“जयमाला”
शिख ज्ञान-सिन्ध । 
छव कुन्द-कुन्द ।। 
हित ‘सहज-पन्थ’ । 
वन्दन, अनन्त ।।
प्रद सौख्य दून । 
छव दाग सून ।। 
चन्द्रमा पून । 
श्री मत प्रसून ।।
शिख ज्ञान-सिन्ध । 
छव कुन्द-कुन्द ।। 
हित ‘सहज-पन्थ’ । 
वन्दन, अनन्त ।।
सुन्दर अतीव । 
मल्लप्प दीव ।। 
जागृत सदीव । 
मंजिल करीब ।
शिख ज्ञान-सिन्ध । 
छव कुन्द-कुन्द ।। 
हित ‘सहज-पन्थ’ । 
वन्दन, अनन्त ।।
पन पाप दूर । 
अनुकम्प पूर ।। 
सदलगा नूर । 
जिन धर्म सूर ।।
शिख ज्ञान-सिन्ध । 
छव कुन्द-कुन्द ।। 
हित ‘सहज-पन्थ’ । 
वन्दन, अनन्त ।।जयमाला पूर्णार्घं।।
“दोहा”
नम्र प्रार्थना आपसे, 
गद-गद-उर, तर-नैन ।
घुटनों के बल चल रहा, 
रहें साथ दिन-रैन ॥
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