- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 606
=हाईकू=
हृदयाँगन सूनो म्हारो,
गुरु जी, आओ पधारो ।।स्थापना।।
भेंटूँ जल के घड़े,
होने आप से दिल के बड़े ।।जलं।।
भेंटूँ चन्दन घड़े,
होने आप से सज्जन निरे ।।चन्दनं।।
भेंटूँ अक्षत निरे,
होने आप से भास्वत खरे ।।अक्षतं।।
भेंटूँ सुमन निरे,
होने आप से सगुण अरे ।।पुष्पं।।
भेंटूँ चरु घी भरे,
होने आप से तरु ‘जी’ भरे ।।नैवेद्यं।।
भेंटूँ दिये घी भरे,
होने आप से हिये ‘भी’ भरे ।।दीपं।।
भेंटूँ सुगंध घडे़,
खोने आप से नन्त दुखड़े ।।धूप।।
भेंटूँ श्री फल बड़े,
होने आप से साफ सुथरे ।।फल।।
भेंटूँ दरब निरे,
खोने आप से अघ सबरे ।।अर्घ्यं।।
=हाईकू=
उलझन छू-मन्तर,
छू वन्दन श्री गुरुवर
जयमाला
तेरी जिन्दगी की किताब में
चार पन्ने खुशिंयों के और जुड़ जायें
गम, आ रहे, जो तेरे पास में
है आ रहे जहाँ से, उस ही ओर मुड़ जायें
तेरे होंठों पे छाई रहे मुस्कान यूँ ही
किस्मत रहे तेरी तुझपे मेहरवान यूँ ही
तेरी जिन्दगी की किताब में
चार पन्ने खुशिंयों के और जुड़ जायें
गम, आ रहे, जो तेरे पास में
है आ रहे जहाँ से, उस ही ओर मुड़ जायें
तेरे बढ़ते रहे कदम
मंजिल की तरफ हरदम
तेरे ये नैन कभी
पल-पलक भी न हो नम
तेरी जिन्दगी की किताब में
चार पन्ने खुशिंयों के और जुड़ जायें
गम, आ रहे, जो तेरे पास में
है आ रहे जहाँ से, उस ही ओर मुड़ जायें
अपने पंजे उठाये
हाथ आगे बढ़ाये
खुदा करे, और तू
पा आसमाँ जाये
तेरी जिन्दगी की किताब में
चार पन्ने खुशिंयों के और जुड़ जायें
गम, आ रहे, जो तेरे पास में
है आ रहे जहाँ से, उस ही ओर मुड़ जायें
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।
=हाईकू=
करें परेशाँ द्वन्द हमें,
‘जि डुबो लो आनन्द में
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