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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 605

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 
  • परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

पूजन क्रंमाक 605

हाईकू
हा ! कलि काली रात,
गुरु जी कस थामिजो हाथ ।।स्थापना।।

आज-सुकूने-कल रिझाने,
लाया जल चढ़ाने ।।जलं।।

आज-खुशिंयाँ-कल रिझाने,
लाया गंध चढ़ाने ।।चन्दनं।।

आज-खुशबु-कल रिझाने,
लाया सुधाँ चढ़ाने ।।अक्षतं।।

आज-तराने-कल रिझाने,
लाया पुष्प चढ़ाने ।।पुष्पं।।

आज-सपने-कल रिझाने,
लाया चरु चढ़ाने ।।नैवेद्यं।।

आज-सितारे-कल रिझाने,
लाया दीप चढ़ाने ।।दीपं।।

आज-बखत-कल रिझाने,
लाया धूप चढ़ाने ।।धूपं।।

आज-मिजाजे-कल रिझाने,
लाया फल चढ़ाने ।।फलं।।

आज-साथिया-कल रिझाने,
लाया अर्घ चढ़ाने ।।अर्घ्यं।।

हाईकू
ए ! सर्दीयन धूप गुनगुनी,
लो बना सद्-गुणी

जयमाला
न्यारा, लो बना अपने सा
प्यारा, लो बना सपने सा
न्यारा, लो बना अपने सा

गई रात आधी मूदूँ दृग
रही राज आधी जाऊँ जग
यानी जागृत रहूॅं हमेशा

न्यारा, लो बना अपने सा
प्यारा, लो बना सपने सा
न्यारा, लो बना अपने सा

जाने नहीं जो, बोल रहा है
जानें, नहीं वो, बोल रहा है
बोलूँ क्या, किससे, फिर कैसा

न्यारा, लो बना अपने सा
प्यारा, लो बना सपने सा
न्यारा, लो बना अपने सा

कौन अपना कौन है पराया
देख अंधेरा छू अपना साया
दूॅं चढ़ने ही न सिर-पैसा

न्यारा, लो बना अपने सा
प्यारा, लो बना सपने सा
न्यारा, लो बना अपने सा
।।जयमाला पूर्णार्घं।।

हाईकू
बगुला चाल भाई,
श्री गुरु कीजो मराल-घांई

 

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