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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 58

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रमांक 58

था मैं अजनबी भले ।।
माँगने से ही पहले,
दिया तुमने मुझे,
ज्यादा ही कुछ फरिश्तों से ।।
मतलबी रिश्तों से ।
दोनों आँखों से ।
दोनों हाथों से ।।
बिन गिनती कर,
झोली भर भर,
जाने किस जन्म के मेरे पुण्य फले ।।स्थापना।।

जीवन जीना सहज आपने
सिखलाया स्वामिन् ।
तन भी नहीं हमारा फिर क्यों,
आकुल-व्याकुल मन ॥
मिट चाले आकुलता, चरणन
जल घट लाये हैं ।
भव कानन में भ्रमे आज तक,
अब व्रत भाये हैं ।।जलं।।

कभी क्रोध से मिटा क्रोध ना,
यह तेरी वाणी ।
भभकाये अगनी ईंधन कब,
कहो न मनमानी ॥
क्षमा नीर रख अभिलाषा हम,
चन्दन लाये हैं ।
भव कानन में भ्रमे आज तक,
अब व्रत भाये हैं ।। चन्दनं।।

आप बताते झुकते जाना,
कभी अकड़ना ना ।
बाढ़ समय वृक्षों का देखा,
कहो उखड़ना ना ॥
बनने नम्र विनीत बेल से,
अक्षत लाये हैं ।
भव कानन में भ्रमे आज तक,
अब व्रत भाये हैं ।।अक्षतं।।

‘कहते आप’ न काम भगाना,
निष्प्रमादी होवो ।
लाठी लेने भागो मत, तम,
दीप जला खोवो ॥
बनने पहर-पहर जागृत हम,
फुल-गुल लाये हैं ।
भव कानन में भ्रमे आज तक,
अब व्रत भाये हैं ।।पुष्पं।।

आप देशना लोभ कौन सा,
पाप न करवाये ।
हल्की रहे पालड़ी देखो ‘ना’
ऊपर जाये ॥
बनने आप समान निस्पृही,
अरु चरु लाये हैं ।
भव कानन में भ्रमे आज तक,
अब व्रत भाये हैं ।।नेवेद्यं।।

‘तव प्रवचन’ न कदम उठाओ,
सुध-बुध विसराई ।
शुभ भावन करते कृषि श्रावक,
उत्तम कहलाई ॥
मति मराल सी पाने मणिमय,
दीपक लाये हैं ।
भव कानन में भ्रमे आज तक,
अब व्रत भाये हैं ।।दीपं।।

‘आप कहा करते’ जो अपना,
सो अन्दर अपने ।
खोज बहिर कस्तूरी मृग ने,
कब पूरे सपने ॥
धवल धूप निज निलय निवासी,
होने लाये हैं ।
भव कानन में भ्रमे आज तक,
अब व्रत भाये हैं ।।धूपं।।

राग-द्वेष बिन करना जो सो,
कर लो कहते तुम ।
बिन चिकनाई चिपकी रज कब,
कहो न क्यों गुमसुम ॥
राग विसरने वैशाखी का,
श्री-फल लाये हैं ।
भव कानन में भ्रमे आज तक,
अब व्रत भाये हैं ।।फलं।।

अहो दूसरी शाला के ओ,
विद्या-रथि गुरुवर ।
अहो ! अहो ! ओ ! कलजुग शिव-रथ,
इक सारथि गुरुवर ॥
सच सच कहें आप से ही हम,
बनने आये हैं ।
भव कानन में भ्रमे आज तक,
अब व्रत भाये हैं ।।अर्घं।।

“दोहा”

जग के जो कुछ भी सही,
मेरे धड़कन साज ।
रहो विराजे दिल मिरे,
यूँ ही गुरु महाराज ॥

“जयमाला”

जग से न्यारा ।
सद्-गुरु द्वारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।।
एक सहारा ।
तारणहारा ।।
सबसे प्यारा ।
जग से न्यारा ।
सद्-गुरु द्वारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।।

पंख जटायू ।
सुवर्ण जादू ।।
लगा जरा तू ।
आ, इक बारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।।

जग से न्यारा ।
सद्-गुरु द्वारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।।
एक सहारा ।
तारणहारा ।।
सबसे प्यारा ।
जग से न्यारा ।
सद्-गुरु द्वारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।।

भोला भाला ।
बाला ग्वाला ।।
साँचा साधू ।
लगा जरा तू ।
जोरों वाला।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।।

जग से न्यारा ।
सद्-गुरु द्वारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।।
एक सहारा ।
तारणहारा ।।
सबसे प्यारा ।
जग से न्यारा ।
सद्-गुरु द्वारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।।

धी-वर न्यारा ।
इक मछवारा ।।
झष तज याहू।
लगा जरा तू ।।
पुनः करारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।।

जग से न्यारा ।
सद्-गुरु द्वारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।।
एक सहारा ।
तारणहारा ।।
सबसे प्यारा ।
जग से न्यारा ।
सद्-गुरु द्वारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।।

“दोहा”

धन धन करुणा आपकी,
गुरुवर अगम अपार ।
विमोहान्ध मति मन्द मैं,
कर दीजो उद्धार ॥

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