- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 534
*हाईकू*
सहज बच्चों की जाते मान,
गुरु और भगवान् ।।स्थापना।।
‘के निधि निज तकूँ,
तुम पाँवों में दृग् जल रखूँ ।।जलं।।
‘के होड़ मृग थकूँ,
तुम पाँवों में चन्दन रखूँ ।।चन्दनं।।
‘के स्वानुभव चखूँ,
तुम पाँवों में अक्षत रखूँ ।।अक्षतं।।
मस्तूल ‘कि आ निरखूँ,
तुम पाँवों में फूल रखूँ ।।पुष्पं।।
‘के रस-रस छकूँ,
तुम पाँवों में नैवेद्य रखूँ ।।नैवेद्यं।।
आ ‘के शिखर पे दिखूँ,
तुम पाँवों में दीप रखूँ ।।दीपं।।
बाद लखने के लिखूँ,
तुम पाँवों में धूप रखूँ ।।धूपं।।
पाँव भीतर रखूँ,
तुम पाँवों में श्रीफल रखूँ ।।फलं।।
‘के मग अघ विसरूँ,
तुम पाँवों में अर्घ रखूँ ।।अर्घ्यं।।
*हाईकू*
सुलझा देता है उलझन,
गुरु का सुमरण
।।जयमाला।।
अनकहा भी,
जान लिया तुमने
बड़ा अहसान किया तुमने
था अजनबी
फिर भी
तोहफा ए मुस्कान दिया तुमने
बड़ा अहसान किया तुमने
आ के मेरी जिन्दगी में
हर खुशी ला के मेरी जिन्दगी में
मेरी मुट्ठी में दो जहान किया तुमने
बड़ा अहसान किया तुमने
अनकहा भी,
जान लिया तुमने
बड़ा अहसान किया तुमने
था अजनबी
फिर भी
तोहफा ए मुस्कान दिया तुमने
बड़ा अहसान किया तुमने
आके मेरी जिन्दगी में
रोशनी लाके मेरी जिन्दगी में
हर खुशी लाके मेरी जिन्दगी में
मेरी मुट्ठी में दो जहान किया तुमने
बड़ा अहसान किया तुमने
अनकहा भी,
जान लिया तुमने
बड़ा अहसान किया तुमने
था अजनबी
फिर भी
तोहफा ए मुस्कान दिया तुमने
बड़ा अहसान किया तुमने
।।जयमाला पूर्णार्घं ।।
*हाईकू*
न बर्तें गुरु राई,
कड़े लोगों के सँग कड़ाई
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