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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 54

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रमांक – 54

शुभ दिन शरद पूर्णिमा ।
जनमे वर्तमाँ वर्धमाँ ।।
मनाये उत्सव सदलगा ।
आँगना श्री मन्त माँ ।।
जनमे वर्तमाँ वर्धमाँ ।।स्थापना।।

जल के कलशे लाये हम ।
मर हम बन पायें मरहम ।।
और न बडे़-बडे़ अरमाँ ।
जयतु जय वर्तमाँ वर्धमाँ ।।जलं।।

घिस चन्दन घट भर लाये ।
शिव स्यन्दन मन को भाये ।।
और न बडे़-बडे़ अरमाँ ।
जयतु जय वर्तमाँ वर्धमाँ ।।चन्दनं।।

थाली धाँ अक्षत शाली ।
मने ‘कि अबकी दीवाली ।।
और न बडे़-बडे़ अरमाँ ।
जयतु जय वर्तमाँ वर्धमाँ ।।अक्षतं।।

पुष्प सुकोमन वन नन्दन ।
टूक-टूक हों भय-बन्धन ।।
और न बडे़-बडे़ अरमाँ ।
जयतु जय वर्तमाँ वर्धमाँ ।।पुष्पं।।

हाथ अमृत घृत पकवाना ।
खो चाले आना जाना ।।
और न बडे़-बडे़ अरमाँ ।
जयतु जय वर्तमाँ वर्धमाँ ।।नेवैद्यं।।

लाये घृत दीवा माला ।
विहँसे तृष्णा अंधियारा ।।
और न बडे़-बडे़ अरमाँ ।
जयतु जय वर्तमाँ वर्धमाँ ।।दीप॑।।

धूप सुगंधित घट लाये ।
डूब निराकुल हित आये ॥
और न बडे़-बडे़ अरमाँ ।
जयतु जय वर्तमाँ वर्धमाँ ।।धूपं।।

फल पिटार छव रतनारी ।
जीतूँ पारी इस बारी ।।
और न बडे़-बडे़ अरमाँ ।
जयतु जय वर्तमाँ वर्धमाँ ।।फल॑।।

द्रव्य दिव्य ये हाथों में।
सिर्फ राख लो आँखों में ।।
और न बडे़-बडे़ अरमाँ ।
जयतु जय वर्तमाँ वर्धमाँ ।।अर्घं।।

दोहा=
करुणा धन धारक नहीं ,
जिनसा जगत् मँँझार ।
गुरु विद्या वन्दन तिन्हें,
सविनय बारम्बार ॥

“जयमाला”

मोति सीप आखों में ।
ले लो दीप हाथों में ।।
उतारो आरती आओ,
आओ गुरु के गुण गाओ ।।

मां श्री मन्ती हाथ पूर्ण, चन्द्रमा लागा ।
सदलगा इक ग्राम पुण्य, सातिशाय जागा ।
श्रद्धा भक्ति प्रकटाओ ।
उतारो आरती आओ,
आओ गुरु के गुण गाओ ।।१।।

प्रतिमा ब्रह्म-चर्य गोम्म-टेश स-विधी ।
दीक्षा दिगम्बर सूरि, ज्ञान सन्निधी ।।
गुरु नाम ज्योति जगाओ ।
उतारो आरती आओ,
आओ गुरु के गुण गाओ ।।२।।

दीक्षा श्रमण-अर्जिका, एलक-क्षुल्लक ।
पीछे छूटी अंगुलियाँ, गिनती है मुलक ।।
अपूरब पुण्य कमाओ ।
उतारो आरती आओ,
आओ गुरु के गुण गाओ ।।३।।

जनहित गोशाला पूर्णायु, प्रतिभा स्थली ।
शान्ति दुग्ध-धारा प्रतिभा, प्रतिक्षा खुली ।।
सक्रिय समदर्शन पाओ ।
उतारो आरती आओ,
आओ गुरु के गुण गाओ ।।४।।

गा दूॅं गुण दो-चार कैसे ? गिन लूॅं सितारे ।
आशा सुख निराकुल ले, समपर्ण तुम द्वारे ।।
दोहा
जग जाहिर गुरु आपको,
भारी बड़ो जहाज ।
भार म्हार कम, ले चलो,
शिव तक, राखो लाज ।।५।।

“दोहा”

कहाँ हुआ गुरुवर अभी,
बड़ा ना छोड़ो साथ ।
जहाँ जा रहे ले चलो,
ले हाथों में हाथ ॥

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