- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रमांक526
=हाईकू=
नाम झपने का न ले पलक,
पा तेरी झलक ।।स्थापना।।
दो टूक हो ‘कि लौं-फरस,
भेंटते जल-कलश ।।जलं।।
दो टूक हो ‘कि भौ-बन्धन,
भेंटते घट-चन्दन ।।चन्दनं।।
दो टूक हो ‘कि पाप-मत,
भेंटते थाल अक्षत ।।अक्षतं।।
दो टूक हों ‘कि पुष्प-बाण,
भेंटते पुष्प-बागान ।।पुष्पं।।
दो टूक हो ‘कि क्षुध् मुराद,
भेंटते चरु-परात ।।नैवेद्यं।।
दो टूक हो ‘कि मौत-डर,
भेंटते ज्योत-अखर ।।दीपं।।
दो टूक हो ‘कि द्वन्द-रट,
भेंटते सुगंध-घट ।।धूपं।।
दो टूक हो ‘कि ‘ही’ जंजाल,
भेंटते श्रीफल-थाल ।।फलं।।
दो टूक हों ‘कि डर-सब,
भेंटते सब-दरब ।।अर्घ्यं।।
=हाईकू=
गाँठ सरक-फूँद भी न लगाते,
‘गुरु’ बताते
।।जयमाला।।
कल, आज और कल दिया
मैंने तुम्हें अपना दिल दिया
धड़कनों से तेरी सदा
अब आती है रात-दिन
बिन साँसों के जी सकता हूँ
नहीं जी सकता मैं तेरे बिन
रह-रह अश्रु जल दिया,
मैंने तुम्हें अपना दिल दिया
कल, आज और कल दिया
मैंने तुम्हें अपना दिल दिया
तेरा नाम बस जुबां,
गुनगुनाती है रात दिन
बिन साँसों के जी सकता हूँ
नहीं जी सकता मैं तेरे बिन
तू सलामत रहे बस दुआ,
दिल से आती है रात-दिन
बिन साँसों के जी सकता हूँ
नहीं जी सकता मैं तेरे बिन
।।जयमाला पूर्णार्घं।।
=हाईकू =
हैं हम तेरे,
सुनने तरसे हैं ये कान मेरे
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