- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 481
=हाईकू=
सकल सन्तों को,
नमो-ऽस्तु कल के भगवन्तों को ।।स्थापना।।
भेंटूॅं जल मैं,
लगाम रक्खूँ, होऊँ जो उतार में ।।जलं।।
भेंटूॅं चन्दन मैं,
आने महकते किरदार में ।।चन्दनं।।
भेंटूॅं अक्षत मैं,
जन्मने फिर न संसार में ।।अक्षतं।।
भेंटूॅं पुष्प मैं,
नहीं खोजता फिरूँ ‘सार-मार’ मैं ।।पुष्पं।।
भेंटूॅं चरु मैं,
साँझ साँझ पाट लूँ क्षुध्-दरार मैं ।।नैवेद्यं।।
भेंटूॅं दीप मैं,
आने सीप-मराल-धी कतार में ।।दीपं।।
भेंटूॅं धूप मैं,
पतझड़ भुलाऊँ न बहार में ।।धूपं।।
भेंटूॅं फल मैं,
दूँ बदल न खींच स्प्रिंग तार में ।।फलं।।
भेंटूॅं अर्घ मैं,
अबकी बार रोऊँ न फुहार में ।।अर्घ्यं।।
=हाईकू =
जागता कौन सोता,
सब गुरु जी को पता होता
जयमाला
आधे से आधे से भी आधा
सुना जिन्होंने
अपना तुम्हें
चुना जिन्होंने
पा गये वो सोचने से भी ज्यादा
हो के भी नाँदां
पा गये वो, दो जहाँ से भी ज्यादा
गगन के तारे
जैसे गिन के भी गिन न सकें
वैसे गिन के भी गिन न सकें
शगुन गुण तुम्हारे
अय ! भगवन म्हारे,
आधे से आधे से भी आधा
सुना जिन्होंने
अपना तुम्हें
चुना जिन्होंने
पा गये वो सोचने से भी ज्यादा
हो के भी नाँदां
पा गये वो, दो जहाँ से भी ज्यादा
विरद तुम्हारा
माफिक पारा
चुटकी भर भी, चुटकी में भर न सकें
मिलकर भी अंगुलियाँ अँगूठे थकें
अद्भुत तुम हो ही न्यारे ।
अय ! भगवन म्हारे
आधे से आधे से भी आधा
सुना जिन्होंने
अपना तुम्हें
चुना जिन्होंने
पा गये वो सोचने से भी ज्यादा
हो के भी नाँदां
पा गये वो, दो जहाँ से भी ज्यादा
।।जयमाला पूर्णार्घं।।
=हाईकू=
चलते दिखो तिमर,
गुरु ने ली उठा नजर
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