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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 446

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 
  • परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

पूजन क्रंमाक 446

हाईकू

माँओं की छैय्या जहाँ,
हैं खुशियाँ ही खुशियाँ वहाँ ।।स्थापना।।

स्वीकार कम् ये गुरुदेव,
कर लो सुखी सदैव ।।जलं।।

स्वीकार गंध ये गुरुदेव,
पार दो लगा खेव ।।चन्दनं।।

स्वीकार धाँ ये गुरुदेव,
पुण्य से भर दो जेब ।।अक्षतं।।

स्वीकार पुष्प ये गुरुदेव,
मेंट दीजे कुटेव ।।पुष्पं।।

स्वीकार चरु ये गुरुदेव,
दीजे सुलटा दैव ।।नैवेद्यं।।

स्वीकार दीप ये गुरुदेव
कीजे बिदा फरेब ।।दीपं।।

स्वीकार धूप ये गुरुदेव,
‘मौका दीजिये सेव ।।धूपं।।

स्वीकार फल ये गुरुदेव,
थमा दो ‘दृग्’ कलेव ।।फलं।।

स्वीकार अर्घ्य ये गुरुदेव,
कर दो स’माँ’ रेव ।।अर्घ्यं।।

हाईकू

गुरु दिल से जुड़ा,
गिर-‘गिर’ भी हो जाता खड़ा

जयमाला

रास्ते नजर
सीधे जा के
दिल में मेरे, कर गये हो घर
तुम गुरुवर

खबर भी न लग सकी
लगी हाथ चोरी चित् की
वो भी इक पल के अन्दर
सीधे जा के, दिल में मेरे,
कर गये हो घर
तुम गुरुवर

रास्ते नजर
सीधे जा के
दिल में मेरे, कर गये हो घर
तुम गुरुवर

चौदवीं के चाँद से भी हसीं हो
मेरी जिन्दगी हो
मेरी हर खुशी हो
तुम गुरुवर

रास्ते नजर
सीधे जा के
दिल में मेरे, कर गये हो घर
तुम गुरुवर

मूरत ख़ुदा की ही दूसरी हो
एक रोशनी हो
छाँव वृक्ष की घनी हो
तुम गुरुवर

रास्ते नजर
सीधे जा के
दिल में मेरे, कर गये हो घर
तुम गुरुवर

खबर भी न लग सकी
लगी हाथ चोरी चित् की
वो भी इक पल के अन्दर
सीधे जा के, दिल में मेरे,
कर गये हो घर
तुम गुरुवर

रास्ते नजर
सीधे जा के
दिल में मेरे, कर गये हो घर
तुम गुरुवर
।।जयमाला पूर्णार्घं।।

हाईकू

पढ़ पढ़ के,
गुरु ‘दे बता’ शिष्य बढ़-चढ़ के

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