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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 438

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 
  • परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

पूजन क्रंमाक 438

हाईकू

मुख में दाना,
‘ला-ला’
कोकिल काकी आहा खिलाना ।।स्थापना।।

कर स्वीकार जल,
नेक-दिल ! दो दिला मंजिल ।।जलं।।

कर स्वीकार चन्दन,
आ-क्रन्दन दो मेंट वन ।।चन्दनं।।

कर स्वीकार तण्डुल,
निराकुल दो भिंटा कुल ।।अक्षतं।।

कर स्वीकार प्रसून,
मंशा-पून भेंटो सुकून ।।पुष्पं।।

कर स्वीकार व्यंजन,
निरंजन ! लो बना मन ।।नैवेद्यं।।

कर स्वीकार दीप,
मुक्ता-सीप लो कर समीप ।।दीपं।।

कर स्वीकार अगर,
इधर दो उठा नजर।।धूपं।।

कर स्वीकार फल,
हा ! मुश्किल कर दो हल ।।फलं।।

कर स्वीकार अरघ,
अनघ दो शिव-सुरग ।।अर्घ्यं।।

हाईकू

गुरु दरख्ते-छाँव वो,
करे मुफ्त छू तनाव जो

जयमाला

घूम-फिर कर
फिर तुम पर
टिक जाती है नजर
फिर तुम पर
घूम-फिर कर
मैं करूँ तो, क्या करूँ गुरुवर

करीब दिल के बहुत
तुम हो ही इतने अद्भुत
सत्य शिव और सुन्दर
मैं करूँ तो क्या करूँ गुरुवर

घूम-फिर कर
फिर तुम पर
टिक जाती है नजर
फिर तुम पर
घूम-फिर कर
मैं करूँ तो, क्या करूँ गुरुवर

न सिर्फ नजर में
ले जाकर
रास्ते नजर
हो रखने के काबिल जिगर में
न सिर्फ पल-पलक, बल्कि उम्र भर
मैं करूँ तो क्या करूँ गुरुवर

घूम-फिर कर
फिर तुम पर
टिक जाती है नजर
फिर तुम पर
घूम-फिर कर
मैं करूँ तो, क्या करूँ गुरुवर
।।जयमाला पूर्णार्घं।।

हाईकू

लो भले डाँट,
मत करो पै बन्द दिल कपाट

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