परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 403हाईकू
गले आफत पड़ी,
कर कृपा, दो बना बिगड़ी ।।स्थापना।।जल समेत मैं झुका रहा शीश
हेत आशीष ।।जलं।।झुकाऊँ शीश,
मैं चन्दन समेत, हेत आशीष ।।चन्दनं।।लाया धाँ बीन-बीन, फेर छत्तीस,
हेत आशीष ।।अक्षतं।।सुमन लिये खड़ा घण्टे चौबीस,
हेत आशीष ।।पुष्पं।।खड़ा ले भोग, छः जुगल पच्चीस
हेत आशीष ।।नैवेद्यं।।आया ले दीप घी ए ! भावी शिरीश,
हेत आशीष ।।दीपं।।समेत धूप-नूप आया, ऋषीश !
हेत आशीष ।।धूपं।।‘सफल’ करूँ सेवा में निशि-दीस,
हेत आशीष ।।फलं।।आया ले आठों ही द्रव्य, ए ! मुनीश !
हेत आशीष ।।अर्घ्यं।।=हाईकू=
‘गुरु-माँ होते’ खुश,
देख बच्चों को बनते कुछजयमाला
यूँ लगा मुझे
जो देखा तुझे
तू है ना अनजाना मुझसे
है कोई रिश्ता पुराना तुझसेसाँसों में बन खुशबू रहता है ।
रग-रग में बन के लहू बहता है ।
तू वही तो है
जो ख्यालों में छाया रहता है ।
कब से,
न कि अब-तब से
मैंने अपना होश है संभाला जब से,बना के दिल में घर रहता है ।
भार मेरा अपने सर सहता है ।।
तू वही तो है
जो ख्वाबों में आया करता है ।।
कब से,
न कि अब-तब से
मैंने अपना होश है संभाला जब से,आंखें तेरी, होते हैं आंसू मेरे ।
गोदी तेरी, क्यूं ठोकर आंख तरेरे ।।
तू वही तो है
ख्यालों में छाया रहता है ।
जो ख्वाबों में आया करता है ।।
कब से,
न कि अब-तब से
मैंने अपना होश है संभाला जब से,
यूँ लगा मुझे
जो देखा तुझे
तू है ना अनजाना मुझसे
है कोई रिश्ता पुराना तुझसे।। जयमाला पूर्णार्घं।।
हाईकू
गुरु से होते ही प्रीत,
दिन-दुख के जाते बीत
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