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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 401

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 
  • परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

पूजन क्रंमाक 401

हाईकू

धूल ही मैं,
क्या रही भूल,
‘चन्दन’ कर दी धूल ।।स्थापना।।

अनबन दो विघटा,
जल भरा लिये कलशा ।।जलं।।

फनाफन दो विहँसा,
घिस लाया चन्दन निरा ।।चन्दनं।।

दर्पण दो बना जरा,
परात-धाँ लिये खड़ा ।।अक्षतं।।

बचपन दो फिर ला,
थाल-पुष्प भेंटूँ ये भरा ।।पुष्पं।।

गुण धनवाँ दो बना,
भेंटूँ घी-गो व्यञ्जन नाना ।।नैवेद्यं।।

तीजे नयन दो प्रकटा,
दीप घी-गो रहा भिंटा ।।दीपं।।

बन्धन-भौ दो विनशा,
धूप-घट भेंटूँ हरषा ।।धूपं।।

कञ्चन दो बना खरा,
लाया श्री फल विरला ।।फलं।।

उलझन दो सुलझा,
द्रव्य लाया थाल में सजा ।।अर्घ्यं।।

हाईकू

हमें झुकना बस,
आते ही देने गुरु दरश

जयमाला

हैं गगन में जितने तारे ।
तुम्हें उतने नमन हमारे ।
गुरुजी… गुरुजी… गुरुजी….

सागर में जल-कण जितने
अभिलाष अमर-क्षण जितने
समय चक्र में जितने आरे
तुम्हें उतने नमन हमारे ।
हैं गगन में जितने तारे ।
तुम्हें उतने नमन हमारे ।
गुरुजी… गुरुजी… गुरुजी….

रतन रत्नाकार जितने ।
अमृत-कण निशाकर जितने ।।
स्वप्न जवाँ जितने सारे ।
तुम्हें उतने नमन हमारे ।
हैं गगन में जितने तारे ।
तुम्हें उतने नमन हमारे ।
गुरुजी… गुरुजी… गुरुजी….

मौर आम्र-तर जितने
महल-आकाश थर जितने
जितने जा पहुँचे निज द्वारे
तुम्हें उतने नमन हमारे ।
हैं गगन में जितने तारे ।
तुम्हें उतने नमन हमारे ।
गुरुजी… गुरुजी… गुरुजी….
।।जयमाला पूर्णार्घं।।

हाईकू

मुस्कुरा दिया,
‘आपने’
प्रेम-धागे से बाँध लिया

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