- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 369
हाईकू
जो गुरु जी के पीछे लागे,
भाग उनके जागे ।।स्थापना।।
भेंट दृग्-जल
लो देख जरा,
एक बार मुस्कुरा ।।जलं।।
लो स्वीकार,
ये चन्दन घुरा,
एक बार मुस्कुरा ।।चन्दनं।।
लो स्वीकार,
धाँ शाली अक्षरा,
एक बार मुस्कुरा ।।अक्षतं।।
लो स्वीकार,
सु-‘मन-हरा’,
एक बार मुस्कुरा ।।पुष्पं।।
लो स्वीकार,
ये चरु दृग्-हरा,
एक बार मुस्कुरा ।।नैवेद्यं।।
लो स्वीकार,
ये दीप घी भरा,
एक बार मुस्कुरा ।।दीपं।।
लो स्वीकार,
धूप द्यु-धरा,
एक बार मुस्कुरा ।।धूपं।।
लो स्वीकार,
श्री फल ये बड़ा,
एक बार मुस्कुरा ।।फलं।।
लो स्वीकार,
ये अर्घ विरला,
एक बार मुस्कुरा ।।अर्घ्यं।।
हाईकू
माँ भाँत,
खाते बच्चों से मात,
गुरु जी दिन रात
जयमाला
लम्बी भले डगर,
लगता नहीं है डर,
चलने में रात में,
हों गुरुजी जो साथ में,
आ तो गये हैं ‘पर’,
न उड़ पा रहा मगर,
है ना माँ चिड़िया,
क्यूँ बच्चे को करना फिकर,
भले मुश्किलों से भरा सफर,
लगता नहीं है डर,
चलने में रात में,
हों गुरुजी जो साथ में,
लम्बी भले डगर,
लगता नहीं है डर,
चलने में रात में,
हों गुरुजी जो साथ में,
तेज हवा पश्चिमी,
थर-थर काँपे आसमाँ जमीं,
है ना आस-पास बागवाँ
क्यूँ पौधे को करना फिकर
भले मुश्किलों से भरा सफर,
लगता नहीं है डर,
चलने में रात में,
हों गुरुजी जो साथ में,
लम्बी भले डगर,
लगता नहीं है डर,
चलने में रात में,
हों गुरुजी जो साथ में,
ढाये तूफाँ कहर,
जा छुये आसमाँ लहर
है ना छैय्या खिवैय्या
क्यूँ नैय्या को करना फिकर,
भले मुश्किलों से भरा सफर,
लगता नहीं है डर,
चलने में रात में,
हों गुरुजी जो साथ में,
लम्बी भले डगर,
लगता नहीं है डर,
चलने में रात में,
हों गुरुजी जो साथ में,
।।जयमाला पूर्णार्घं।।
हाईकू
दें निकाल, श्री गुरु नाम
‘मन के’
गंदे विचार
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