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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 311

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

पूजन क्रंमाक 311

==हाईकू==

दृग्-रस्ते गुरु जी आइजो ।
आ ‘जि आ
समा जाइजो ।।स्थापना।।

मुस्कुरा-एक बार दो,
जल लाये हैं, स्वीकार लो ।।जलं।।

दृग् उठा एक बार दो,
गंध लाये है, स्वीकार लो ।।चन्दनं।।

चित् बिठा एक बार लो,
सुधाँ लाये हैं, स्वीकार लो ।।अक्षतंं।।

उतार पाप भार दो,
पुष्प लाये हैं, स्वीकार लो ।।पुष्पं।।

कर लो ‘मैंनेु’ बात दो,
चरु लाये हैं, स्वीकार लो ।।नैवेद्यं।।

सर पे रख हाथ दो,
दीप लाये हैं, स्वीकार लो ।।दीपं।।

सितारे झोली डाल दो,
धूप लाये हैं, स्वीकार लो ।।धूपं।।

रिझा द्यु-शिव-नार दो,
फल लाये हैं, स्वीकार तो ।।फलं।।

उतार दूजे पार दो,
अर्घ्य लाये हैं, स्वीकार लो ।।अर्घ्यं।।

==हाईकू==

गुरु भीतर
वैसे ही बाहर
है जग-जाहिर

जयमाला

न स्वप्न भर में
‘जि न स्वप्न भर में
‘कि आज हैं पधारे गुरु जी
साक्षात् घर में,
न स्वप्न भर में
‘कि आज है पधारे गुरु जी
साक्षात् घर में ।
फूला न समाऊँ मै,
फूल बरसाऊँ में,
सारे नगर में ।

न स्वप्न भर में,
‘जि न स्वप्न भर में
‘कि आज हैं पधारे गुरु जी,
साक्षात् घर में,
पलक न झपाऊँ मैं,
पलकें बिछाऊँ मैं,
सारे नगर में ।

न स्वप्न भर में,
‘जि न स्वप्न भर में
‘कि आज हैं पधारे गुरु जी
साक्षात् घर में।
मोती दृग् झिराऊँ मैं,
ज्योति घृत जगाऊँ मैं
सारे नगर में ।

न स्वप्न भर में,
‘जि न स्वप्न भर में
‘कि आज है पधारे गुरु जी
साक्षात् पर में ।।
॥ जयमाला पूर्णार्घं॥

==हाईकू==

दुकाँ स्थाई न मकाँ
दे दीजे गुरु-राई जी मुस्काँ

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