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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 277

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

पूजन क्रंमाक 277

**हाईकू**

मुझ मीरा के श्याम !
‘लो अपना’
दे अपना नाम ।।स्थापना।।

लाया, उदक चढ़ाया,
मैंने कुछ अपूर्व पाया ।।जलं।।

लाया, चन्दन चढ़ाया,
मैंने सुख-अपूर्व पाया ।।चन्दनं।।

लाया, थाल घाँ चढ़ाया,
मैंने स्वप्न अपूर्व पाया ।।अक्षतं।।

लाया, पुष्पों को चढ़ाया,
मैंने ‘दर्श’-अपूर्व पाया ।।पुष्पं।।

लाया, चरु को चढ़ाया,
मैंने पता-अपूर्व पाया ।।नैवेद्यं।।

लाया, प्रदीवा चढ़ाया,
मैंने पुण्य अपूर्व पाया ।।दीपं।।

लाया, धूप को चढ़ाया,
मैंने वर अपूर्व पाया ।।धूपं।।

लाया, श्रीफल चढ़ाया,
मैंने पथ अपूर्व पाया ।।फलं।।

लाया, अरघ चढ़ाया,
मैंने जुग अपूर्व पाया ।।अर्घ्यं।।

**हाईकू**

‘सबसे न्यारे,
गुरु जी सिर्फ तुम्हीं
रब से प्यारे’

…जयमाला…

ए शिल्पी जी !
दृग् रहती भींजी ।
क्या दोगे बना घड़ा ।
होगा उपकार बड़ा ।
होगा उपकार बड़ा ।
जो दोगे बना घड़ा ।

मार कुदाल पड़ेगी,
जी मंजूर मुझे ।
चक्र कुलाल चढ़ेगी,
जी मंजूर मुझे ।

ए शिल्पी जी !
दृग् रहती भींजी ।
क्या दोगे बना घड़ा ।
होगा उपकार बड़ा ।
होगा उपकार बड़ा ।
जो दोगे बना घड़ा ।

पाँव जायेगी रौं दी |
जी मंजूर मुझे ।
ठाँव खोगी गर रो-दी ।।
जी मंजूर मुझे ।

ए शिल्पी जी !
दृग् रहती भींजी ।
क्या दोगे बना घड़ा ।
होगा उपकार बड़ा ।
होगा उपकार बड़ा ।
जो दोगे बना घड़ा ।

होगी अगन परीक्षा |
जी मंजूर मुझे ।
होगी अगण समीक्षा ।।
जी मंजूर मुझे ।

ए शिल्पी जी !
दृग् रहती भींजी ।
क्या दोगे बना घड़ा ।
होगा उपकार बड़ा ।
होगा उपकार बड़ा ।
जो दोगे बना घड़ा ।

**हाईकू**

‘ये दास
रख लो आस पास
और न अरदास’

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