परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 226
गो शाला से प्यार तुम्हें ।
गो माता ना भार तुम्हें ।।
ओ ! रखवाले गो शाला ।
रखें लाज, आये ग्वाला ।। स्थापना।।
ओ ! माँ श्री मन्ती लाला ।
पय महँगा सस्ती हाला ।।
अब न सोन चिड़िया भारत ।
लेने लोन लगा भारत ।। जलं ।।
पिता मल्लप्पा कुल दीवा ।
अब दर्शन दुर्लभ घी का ।।
अब न सोन चिड़िया भारत ।
लेने लोन लगा भारत ।। चंदनं ।।
ओ ! विख्यात ऊर्ध्वरेता ।
दूध आ गया सपरेटा ।।
अब न सोन चिड़िया भारत ।
लेने लोन लगा भारत ।। अक्षतम् ।।
बसने वाले ख्वाबों में ।
गो-रस शुद्ध किताबों में ।।
अब न सोन चिड़िया भारत ।
लेने लोन लगा भारत ।। पुष्पं ।।
दृग् गुरु-ज्ञान-सिन्धु तारे ।
फिरती गउ मारे-मारे ।।
अब न सोन चिड़िया भारत ।
लेने लोन लगा भारत ।। नैवेद्यं ।।
ग्राम सदलगा गौरव ओ ।
कहीं गया हा ! गो रव खो ।।
अब न सोन चिड़िया भारत ।
लेने लोन लगा भारत ।। दीपं ।।
ओ ! नौ श्रमण संघ खेवा ।
खाद आ गई जॉ लेवा ।।
अब न सोन चिड़िया भारत ।
लेने लोन लगा भारत ।। धूपं ।।
जागृत संध्या तीना ओ ।
हक शेम्पू ने छीना गो ।।
अब न सोन चिड़िया भारत ।
लेने लोन लगा भारत ।। फलं ।।
ओ ! सुनने वाले विनती ।
खुले कत्ल घर अनगिनती ।।
अब न सोन चिड़िया भारत ।
लेने लोन लगा भारत ।। अर्घं ।।
## दोहा ##
तोर दया का है नहीं,
ओर दूर तक छोर ।
गायें पा करुणा गईं,
अब बारी है मोर ॥
॥ जयमाला ॥
गैय्या चाह रही थी छैय्या ।
मिल गुरु विद्या गये खिवैय्या ।।
फिर क्या फिर तो सावन आया ।
शिल्पकार दृग् पाहन पाया ॥
गो खोजे थी राह पार की ।
मिल गुरु विद्या गये सारथी ।
फिर क्या फिर तो मनी दिवाली ।
कण-कण में छाई खुशहाली ॥
थी देखे गो ख्बाव खुशनुमा ।
मिल गुरु विद्या गये रहनुमा ।।
फिर क्या फिर तो मिला खजाना ।
छेड़े कोकिल नया तराना ।।
भूली विसरी थी गो रस्ते ।
मिल गुरु विद्या गये फरिश्ते ।।
फिर क्या फिर तो, छुवा आसमाँ ।।
खोया शिशु आ गया पास माँ ॥
॥ जयमाला पूर्णार्घं ॥
## दोहा ##
साथ-साथ गो प्रार्थना,
मेरी यही अखीर ।
दो उकेर मम हाथ में,
सु-मरण-शरण लकीर ॥
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