परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 222
करती झूठे वादे है ।
दुनिया मतलब साधे है ।।
कलि बिन गुरु राई पूजा ।
नहिं शरण-सहाई दूजा ।। स्थापना ।।
बढ़ बन्दर बाँट रहा है ।
नहिं अन्धर हाट कहाँ है ।।
कलि बिन गुरु राई पूजा ।
नहिं शरण-सहाई दूजा ।। जलं ।।
रावण जप-जपते तोते ।
यूँ हवा, ‘कि उड़ते ताते ।।
कलि बिन गुरु राई पूजा ।
नहिं शरण-सहाई दूजा ।। चंदनं ।।
हैं रँगे शियार अभी भी ।
मानों भू भार सभी ही ।।
कलि बिन गुरु राई पूजा ।
नहिं शरण-सहाई दूजा ।। अक्षतम् ।।
फुस्कार दूर, डसते सब ।
हाँ ! रिसते-से रिश्ते सब ।।
कलि बिन गुरु राई पूजा ।
नहिं शरण-सहाई दूजा ।। पुष्पं ।।
भेड़िये भेड़ रखवाले ।
अंधों के न्याय हवाले ।।
कलि बिन गुरु राई पूजा ।
नहिं शरण-सहाई दूजा ।। नैवेद्यं ।।
बगुले सी है चालाकी ।
हावी कोकिल मति काकी ।।
कलि बिन गुरु राई पूजा ।
नहिं शरण-सहाई दूजा ।। दीपं ।।
थित कागा काग-भगोड़े ।
माँ बाना नागिन ओड़े ।।
कलि बिन गुरु राई पूजा ।
नहिं शरण-सहाई दूजा ।। धूपं ।।
आ गये फूल कागज के ।
बन्दर बैठा सिर गज के ।।
कलि बिन गुरु राई पूजा ।
नहिं शरण-सहाई दूजा ।। फलं ।।
सब बन गिरगिट रँग बदलें ।
छुप छू पापों की हद लें ।।
कलि बिन गुरु राई पूजा ।
नहिं शरण-सहाई दूजा ।। अर्घं ।।
**दोहा**
सुन, चरणों में आपके,
मने दिवाली रोज ।
‘धरा’ धरा दें आ गया,
सिर-काँधे का बोझ ।।
।। जयमाला ।।
मेरा कहाँ ये दिया तेरा जीवन ।
रो था रहा वन, अकेले तेरे बिन ।।
तुम जो न मुझको देते सहारा ।
बना स्वप्न रहता पाना किनारा ।
भरे गम से, मातम से होते नयन ।
मेरा कहाँ ये, दिया तेरा जीवन ।।
रो था रहा वन अकेले तेरे बिन ।।
तुम जो न अपना कहके बुलाते ।
लिख थे रहे पानी, माटी न पाते ।।
अरमाँ बना रहता छूना गगन ।
मेरा कहाँ ये दिया तेरा जीवन ।।
रो था रहा वन अकेले तेरे बिन ।।
तुम जो ना सुनते, व्यथा आप बीती ।
रही आती वर्षा में, अँखिया ये तीती ।।
अधूरे रहे आते सारे सपन ।
मेरा कहाँ ये दिशा तेरा जीवन ।।
रो था रहा वन अकेले तेरे बिन ।।
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।
**दोहा**
विनय-नुनय गुरु आपसे,
पहली यही अखीर ।
खींच वज्र से दीजिये,
सुमरण हाथ लकीर ।।
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