परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 202
गुरुवर तुम ।
सबसे प्यारे हो ।।
गुरुवर तुम,
जग से न्यारे हो ।।
कीरत द्वारे हो,
गुरुवर तुम ।
तीरथ सारे हो,
गुरुवर तुम ।। स्थापना ।।
लिये नीर आँखन ।
पाने तुम सा मन ।।
मन समान भगवन् ।
शत-शत अभिनंदन ।। जलं ।।
घिस चन्दन वावन ।
पाने तुम सा मन ।।
मन समान भगवन् ।
शत-शत अभिनंदन ।। चंदनं ।।
चुन शाली धाँ कण ।
पाने तुम सा मन ।।
मन समान भगवन् ।
शत-शत अभिनंदन ।। अक्षतम् ।।
चुन गुल-ऋत सावन ।
पाने तुम सा मन ।।
मन समान भगवन् ।
शत-शत अभिनंदन।। पुष्पं ।।
व्यञ्जन मन भावन ।
पाने तुम सा मन ।।
मन समान भगवन् ।
शत-शत अभिनंदन ।। नैवेद्यं ।।
गो घृत दीवा-धन ।
पाने तुम सा मन ।।
मन समान भगवन् ।
शत-शत अभिनंदन ।। दीपं ।।
नूप धूप-पावन ।
पाने तुम सा मन ।।
मन समान भगवन् ।
शत-शत अभिनंदन ।। धूपं ।।
भर ऋत-फल भाजन ।
पाने तुम सा मन ।।
मन समान भगवन् ।
शत-शत अभिनंदन ।। फलं ।।
सरब दरब माहन ।
पाने तुम सा मन ।।
मन समान भगवन् ।
शत-शत अभिनंदन ।। अर्घं ।।
==दोहा==
सीखा जिनसे वृक्ष ने,
पा पाहन फल-दान ।
क्षमावान गुरुदेव सा,
और न तीन जहान ।।
।। जयमाला ।।
घोर चहु ओर अंधियारा है ।
नाम गुरु का इक सहारा है ।।
चाहता था,
इक छोटा सा हो बंगला ।
आया बंगला,
लाया ढ़ेरों साथ बला ।।
तभी परिन्दा ,
चाहता न घर द्वारा है ।
घोर चहु ओर अंधियारा है ।
नाम गुरु का इक सहारा है ।।
चाहता था,
इक सस्ती-सी हो गाड़ी ।
आई गाड़ी,
लाई ढ़ेरों दुश्वारी ।।
तभी बेजुवाँ पन-
गजगामिन् प्यारा है ।
घोर चहु ओर अंधियारा है ।
नाम गुरु का इक सहारा है ।।
चाहता था,
इक नादां सा हो साथी ।
आया साथी,
लाया ढ़ेरों वैशाखी ।।
तभी पवन ने,
पन निसंग श्रृंगारा है ।
घोर चहु ओर अंधियारा है ।
नाम गुरु का इक सहारा है ।।
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।
==दोहा==
यही विनय अनुनय यही,
चरण छूबते व्योम |
नाम जुबाँ पे आप हो,
श्वास कहें जब ओम् ।।
Sharing is caring!