परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 196
माँ श्री मन्ति मुस्कान वन्दना ।
‘दा’ मल्लप्पा अरमान वन्दना ।।
गुरु देश-भूषण तारक नयन ।
गुरु ज्ञान नन्दन लख लख नमन ।। स्थापना ।।
शरद पूर्णिमा इन्दु वन्दना ।
खिल वसुन्धरा बन्धु वन्दना ।।
भर लाये जल,
प्रासुक निर्मल ।
कीजे करुणा,
लीजे अपना ।। जलं ।।
जन्म सदलगा ग्राम वन्दना ।
नेक-नेक शुभ नाम वन्दना ।।
लाये चन्दन,
मनहर जन-जन ।
कीजे करुणा,
लीजे अपना ।। चंदनं ।।
अखर ढ़ाई पाठ वन्दना ।
कन्नड़ जुबां मराठ वन्दना ।।
लिये शालि धाँ,
विगत लालिमा ।
कीजे करुणा,
लीजे अपना ।। अक्षतम् ।।
नसिया जी सोनि जी वन्दना ।
दीक्षा-थलि, बिनौलि वन्दना ।।
सुमन सुगन्धित,
सुमन-भिनन्दित ।
कीजे करुणा,
लीजे अपना ।। पुष्पं ।।
संस्थली प्रतिभा नींव वन्दना ।
हत-करघा संजीव वन्दना ।।
नव-नव पकवाँ,
नख-शिख घृत वाँ ।
कीजे करुणा,
लीजे अपना ।। नैवेद्यं ।।
पाहन जिन-गृह, जान वन्दना ।
जुँवा हिन्दी, सम्मान वन्दना ।।
दीवा न्यारे,
घी वाँ सारे ।
कीजे करुणा,
लीजे अपना ।। दीपं ।।
मूक माटि, कृतिकार वन्दना ।
मूक-प्राणि, हितकार वन्दना ।।
धूप अनोखी,
अनूप चोखी ।
कीजे करुणा,
लीजे अपना ।। धूपं ।।
श्रमण संघ सरताज वन्दना ।
सूत्र ग्रंथ विद्-राज वन्दना ।।
फल पिटारियाँ,
अमृत प्यालियाँ ।
कीजे करुणा,
लीजे अपना ।। फलं ।।
सतर-पीर-पर नैन वन्दना ।
जागृत छिन दिन-रैन वन्दना ।।
अलग-अलग सा,
अरघ-सुभग सा ।
कीजे करुणा,
लीजे अपना ।। अर्घं ।।
==दोहा==
सुनते गुरु-गुण-गान से,
सधते सारे काम ।
आ रग-रग लेवें बसा,
श्री गुरु जी का नाम ।।
।। जयमाला ।।
छवि भगवन्त बलिहारी ।
गुरु निर्ग्रन्थ अविकारी ।।
आओ दीप लेके हाथ ।
आ-रति करें मिलके साथ ।।
करुणा दया अवतारी ।
गुरु निर्ग्रन्थ अविकारी ।।१।।
अपने पांव नापें गांव ।
तरु से धूप खा, दें छांव ।।
नदिया से परुपकारी ।
गुरु निर्ग्रन्थ अविकारी ।।२।।
रखते पास ना घर-बार ।
कहते सेठिया सरकार ।।
पीछी कमण्डल धारी ।
गुरु निर्ग्रन्थ अविकारी ।।३।।
रातरि शीत अभ्रवकाश ।
योग विरक्ष मूल चुमास ।।
आतप ग्रीष्म दोपारी ।
गुरु निर्ग्रन्थ अविकारी ।।४।।
अपने हाथ लुंचन केश ।
विरहित राग, विगलित द्वेष ।।
महिमा अगम पविधारी ।
गुरु निर्ग्रन्थ अविकारी ।।५।।
।। जयमाला पूर्णार्घ्य ।।
==दोहा==
धन ! श्रावक जिसने दिये,
श्री गुरु को आहार ।
मैं भी पाऊँ ये खुशी,
जीवन में इक बार ।।
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