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Uncategorized  ·  मुनि श्री १०८ अजय सागर जी महाराज

गर्भावस्था में ऐसी भूल न करें

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

एक सेठजी के चार लड़के थे । उनकी पत्नि शीलवती एवं गुणवती थी । एक दिन सेठ जी ने कहा ये बेटे मेरे नहीं है । सेठानी ने अनसुना कर दिया लेकिन सेठ जी ने दो तीन बार यह बात दुहराई । सेठानी ने सोचा मुझे इनकी परीक्षा लेनी चाहिये । एक दिन उसने बड़े बेटे से कहा – बेटा तुम्हारे पिता ने मुझे बहुत पीटा ।
बडा बेटा – माँ आपने कोई गलती की होगी, उनकी आज्ञा का उल्लंघन किया होगा अन्यथा पिता जी आपको अकारण कभी नहीं पीट सकते ।
दूसरे बेटे से कहा – बेटा तुम्हारे पिता ने मुझे पीटा, बहुत पीटा ।
बेटे ने कहा – माँ पिता जी कहाँ है, उनकी ये मजाल कि उन्होंने मेरे रहते आपको कैसे मारा ? मैं अभी जूते चप्पल से पिटाई करके, उनकी चमड़ी उतारता हूँ ।
तीसरे बेटे से कहा – बेटा तेरे पिता ने मुझे पीटा, बहुत मारा ।
तीसरे बेटे ने कहा – माँ कहाँ गया मेरा बाप, जिसने आपको मारा, मैं अभी उसकी ऐसी हालत करता हूँ जैसी कसाई पशुओं की करता है । आने दो उसको । थोडी देर बाद सेठानी ने चौथे बेटे से कहा – बेटा तेरे पिता ने मुझे बहुत पीटा ।
चौथे बेटे ने कहा – माँ कहाँ गया वह नालायक, अभी देखता हूँ , मार मार‌कर कचूमर निकालता हूँ ।
सेठानी ने चारों बेटों की चेष्टा देखकर पूर्व में बीती बातों का स्मरण किया जब वे गर्भ में थे । पहला बेटा जब गर्भ में आने के समय सास ने M.C. /(VIP)/ अशुध्दि की अवस्था में घर से बाहर नहीं जाने दिया । चौथे दिन स्नान कर सेठ का मुख देखा । अत: वह सेठ के समान, विनयवान गुणवान धर्मात्मा निकला ।
दूसरा बेटा जब गर्भ मे आने के पूर्व समय था तब मैं M.C. /(VIP)/ अशुध्दि के समय – मैं चप्पल खरीदने मोची के यहाँ चली गई थी, अतः दूसरा बेटा चमार (मोची) जैसी प्रकृति का निकला ।
तीसरा बेटा जब गर्भ मे आने के पूर्व समय था तब मैं MC/ (VIP)/ अशुध्दि के समय बाजार ऊन खरीदने के लिए गई । अचानक वर्षा आ जाने के कारण, बचने का कहीं स्थान न मिलने के कारण मैं कसाई के घर घुस गई और उन लोगो से बात करने लगी । अतः तीसरा बेटा कसाई के समान क्रूर परिणाम वाला निकला ।
चौथा बेटा जब, गर्भ मे आने के पूर्व समय – था तब मैं MC/ (VIP)/ अशुध्दि के समय मैं तेल लेने के लिए (खरीदने) तेली के यहाँ चली गई । इसलिए चौथा बेटा तेली के समान, निर्दय दुष्ट परिणाम वाला बन गया । जो सेठजी कह रहें हैं बिल्कुल सच है । अशुध्दि के समय का प्रभाव आने वाले बच्चे पर पड़ जाते हैं । संतान के ऊपर, गर्भावस्था में जो अच्छे बुरे संस्कार पड़ जाते हैं । जिन्दगी भर साथ रहा करते हैं ।
आ. शांतिसागर, आ. विद्यासागर, जिनकी माँ को दोहला हुआ और गर्भावस्था मे स्वाध्याय सुना । आ. ज्ञानमति माताजी ने गर्भावस्था में पद्मनंदी पंचविशति का स्वाध्याय सुना । अभिमन्यु ने गर्भावस्था में चक्रव्यूह में घूसना सीखा । माँ के सोने के कारण चक्रव्यूह से निकलना न सीख पाया ।
हमें शिक्षा लेनी चाहिये कि संतान पर गर्भावस्था में संतान पर ऐसे संस्कार न पड़े
कि जिससे संतान संस्कार विहीन हो जावे। संतान के आचरण बिलकुल परिवर्तित हो जाते हैं ।
जैसे जाके बाप मताई, ताके वैसे लड़का ।
जाके जैसे नदिया नाले, ताके बसे भरका ॥

अतः माता पिता को चाहिये, ध्यान देना चाहिये कि आने वाली संतान सुयोग्य, चारित्रवान हो ।
“रजस्वला अवस्था कृत कार्य महा अनर्थ कारी”
इस समय में कुछ महिलायें पुराने पेण्डिंग कार्य करती हैं, कई दिनों के कपड़े धोना, बर्तन मांजना, एकट्ठा करना, जमाना, फ्रिज आदि की साफ सफाई करना । जिनेन्द्र भगवान ने व्रत पालने वाली स्त्री वर्गों को चार प्रकारका सूतक बताया गया है ।
(१) मासिक धर्म, (२) प्रसूति, (३) मृत्यु से होने वाला,
(४) तीनों के संस्कारों से होने वाला ।
पहला सूतक स्त्रीयों को । रजो धर्म – यह रज असंख्यात जीवों से भरा रहता है । हिंसा का मूल कारण हैं । आजकल पढे लिखे उच्चवर्ग, एकाकी परिवार वाले इनको नहीं मानते, कहते हैं ये प्राकृतिक है सब चलता है ।
“हे माताओं बहिनों तुम ऋतु धर्मीदि में , ऐसा कोई काम न करो ।
देव शास्त्र गुर के दर्शनादि से , अपने आपको बचाये रखो ॥
इन दिनो में दान धर्म दर्शनादि करना, महा पाप बंध का कारण है ।
भव भव मे हमको यह रूलाये , ऐसा जिन शासन का मत है ॥”
मासिक धर्म में सूतक तीन दिन, चौथे दिन मात्र पति को भोजन, पाँचवे दिन पूर्ण शुध्दि । बार बार मासिक धर्म आने पर पात्रदान, पूजा, धार्मिक क्रिया करने का अधिकार नहीं । मासिक धर्म के समय आहार बनाने, देने से क्या फल होता है आगम मे कथा –

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