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कविता

कविता-चन्दन षष्टी

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

(१)
नजरअंदाज हो चला
बदबू ढ़ोना
हवाएं आज
खुशबू लाईं हैं
चन्दन से मिल करके जो आईं हैं
धन धन
चन्दन

(२)
चन्दन षष्टी मतलब
फूँक-फूँक के क़दम रखना
आज नासूर बन चले
कल के ज़ख्मों पर
मल्हम रखना
ठोकर खाये हुये व्यक्ति के लिए
देख करके
ठाकुर बन चलना
ठोकर खाकर के संभलना
तो बचकना

(३)
चन्दन षष्टी मतलब
काले कारनामों पर रबर फेरना
अपने गिरेबान में झाँकना
प्राय: पना करके चित्त
करना पापों का प्रायश्चित्त
मतलब रखना क़दम
साथ दम-खम

(४)
न सिर्फ पीछे पड़ेंगे
लिपटे रहेंगे भुजंग
किरदार खुश्बूदार
सच एक जंग

(५)
यदि की नहीं मन की सफाई
तो चन्दन षष्टी क्या मनाई
आ मनुआ
करते हैं चन्दन के जैसी
कीरत कमाई

(६)
नेकियाँ
खुशबूदार चन्दन जैसीं हैं
थोड़ी भी बखूब
यदि खूब हैं
फिर तो कहना ही क्या
आसान भीतरी डूब

(७)
शब्द Luck ‘री
और किसी शब्द के आगे
शोभायमान कहाँ
सिवाय चन्दन
सच
खुशबू धन धन

(८)
सभी प्यार करते हैं
चन्दन से किसी ने नफरत नहीं की
सर्प भी यदि चन्दन से
कुण्डली मारकर लिपटे हैं
तो सुरक्षा ही बढ़ाई है उन्होंने

यदि भीलनीं चन्दन जला करके
कोयला या राख बनातीं हैं
तो बर्तन चमकते ही नहीं
साथ साथ महकते भी हैं
सो कीमत बढ़ाई ही है उन्होंने

(९)
कम नहीं चन्दन
माला के मनके चन्दन को छोड़
दूसरे हों
तो सिर्फ तेज से माथ दमकता है
पर
मनके चन्दन फेरने से
माथ तो दमकता ही है
साथ साथ हाथ भी महकता है

(१०)
चन्दन छटी
छटी यानि ‘कि कुछ हटके है
यदि आप पूछते हैं क्या ?
तो जिसके लिये चन्दन जगत प्रसिद्ध है
वो खुशबू
आ मनुआ
खुश्बूदार
अपनायें किरदार
आज का दिन
मानकर शुभ-शगुन

(११)
खुशबू
उड़ती पाताल धरा द्यु
उस चन्दन की खुशबू से
जलने वाला भी
अपने करीब लाते ही चन्दन के लिए
करीबन-करीबन नहीं
पूरण जलन से पीछा छुड़ा लेता है
न कौन कौन
हवाला कोन कोन देता है

(१२)
हर छठ व्रत के
शब्द ‘हर’ के ऊपर भगवान् ने
चन्दन की कटोरी लुढ़काई
‘कि छटी छटाई चन्दन जैसी
छठ करना
चूंकि छठ तो आकर हर पक्ष खड़ी है
और दो पक्ष जुड़े नहीं
‘कि फुर्र श्रद्धा-सबूरी
इसलिए अच्छा है बर्ष में
एक बार आये
खूब श्रद्धा-सुमन पाये

(१३)
जिन हाथों ने चन्दन को घिसा
चन्दन उन हाथो में खुशबू छोड़ चला
सहनशीलता
कब आयेगी भगवन !
मेरे अन्दर भी ऐसी उत्तम क्षमा

(१४)
सार्थक नाम सुमन सु…मन
पर Luck ‘री
सिर्फ चन्दन
नेबाकई खुशबू धन ! धन !

(१५)
चन्दन षष्टी मतलब
No गुरु निंदा
No गुरूर अंधा
No गुरु अपमान
No गुमान
सिर्फ और सिर्फ सहजो-श्रृद्धान

(१६)
दुनिया पे चलाती अपना जादू
गुनगुनाती ख़ुशबू
‘के भीतर-बाहर एक जैसी गो’री
लक ‘री चन्दन
आ मनुआ
आपसी अनबन
मन का मलाल
करते है रफा-दफा
गाँठे मन

(१७)
बड़ा सुन्दर लगता है
गोरे चेहरे पर काला तिल
भले कड़बा चन्दन
पर चुरा न लेना किसका दिल
सच खूबियाँ खूब

(१८)
वैभव गौरवशाली
चन्द न ऐसा
चन्दन जैसा
चन्दन नाम लेते ही
खुश दिशा दिशा
और चन्द्रमा
गुप-चुप, लुप-छुप निकले निशा
ले चेहरा दागदार
आ मनुआ
खुश्बूदार
अपनायें किरदार

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