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आरती

आरती-चन्द्र प्रभ

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

चन्द्र प्रभ
आरती

ऐरा नन्दा ।
बाबा चन्दा ।।
जयतु जयतु जय जयतु जिनन्दा ।।

स्वर्ण सुगंधा ।
पाप निकन्दा ।
जयतु जयतु जय जयतु जिनन्दा ।।

दीप हाथ ले ।
भक्ति साथ ले ।
करूँ आरती मैं सानन्दा ।।

आरती प्रथम गर्भ कल्याणा ।
इन्द्र कुवेर रत्न बरसाना ।।
साँझ साँझ ले भक्ति अमन्दा ।

आरती द्वितिय जन्म कल्याणा ।
मेर न्हवन सौधर्म रचाना ।
ताण्डव करे भक्त बन अंधा ।।

आरती तृतिय त्याग कल्याणा ।
कच लुञ्चल, दैगम्बर बाना ।
छोड़ छाड़ सब गौरख धंधा ।।

आरती तुरिय ज्ञान कल्याणा ।
सींह हिरण समशरण दिखाना ।
बैठे दे कंधे से कंधा ।

आरती और मोक्ष कल्याणा ।
समय मात्र ऋज गति शिव थाना ।
टूट चला वसु कर्मन फंदा ।।

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