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आरती

आरती-भक्तामर

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

भक्तामर आरती

अमंगल हर ।
इक मंगल कर ।।
आ उतारें आरति भक्तामर ।।
आदि तीर्थकर यशोगान है ।
भक्तामर अपने समान है ॥

संकट मोचन ।
विघ्न विमोचन ।।
पूरण मंशा ।
तम विध्वंशा ।।
अमंगल हर ।
इक मंगल कर ।‌।
आ उतारें आरति भक्तामर।।

भक्तामर पद छठा छटाया ।
पढ़ा, कण्ठ माँ-सरसुति पाया ।।
आदि तीर्थकर यशोगान है ।
भक्तामर अपने समान है ॥
अमंगल हर ।
इक मंगल कर ।।
आ उतारें आरति भक्तामर ।।
आदि तीर्थकर यशोगान है ।
भक्तामर अपने समान है ॥

पद पन चालीसे लौ-लाई ।
जां-लेवा भी रोग बिदाई ।।
आदि तीर्थकर यशोगान है ।
भक्तामर अपने समान है ॥
अमंगल हर ।
इक मंगल कर ।।
आ उतारें आरति भक्तामर ।।
आदि तीर्थकर यशोगान है ।
भक्तामर अपने समान है ॥

और करिश्मे कई अनुठे ।
मान तुंग मुनि बंधन टूटे ।।
आदि तीर्थकर यशोगान है ।
भक्तामर अपने समान है ॥
अमंगल हर ।
इक मंगल कर ।।
आ उतारें आरति भक्तामर ।।
आदि तीर्थकर यशोगान है ।
भक्तामर अपने समान है ॥

संकट मोचन ।
विघ्न विमोचन ।।
पूरण मंशा ।
तम विध्वंशा ।।
अमंगल हर ।
इक मंगल कर ।।
आ उतारें आरति भक्तामर ।।

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