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आरती

आरती-संभवनाथ

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

संभवनाथ
आरती

आरती संभव जिन ।
मैं उतारूँ निश-दिन ।

बाती कपूर वाली ।
मण रत्नों की थाली ।।
दीप सजा के अनगिन ।
आरती संभव जिन ।
मै उताऊँ निश-दिन ।

रतन बरसे नभ से ।
सपन लख माँ हरषे ।।
सेव देवी छप्पन ।
सातिशय पुन धन-धन ।
आरती संभव जिन ।
मैं उतारूँ निश-दिन ।

मेरे गिर अभिषेका ।
दृग्-सहस अभिलेखा ।।
नाम ताण्डव नर्तन ।
सातिशय पुन धन-धन ।
आरती संभव जिन ।
मैं उतारूँ निश-दिन ।

उतारे, पट फेंके ।
उखाड़े कच, देखे ।।
दिव, पठा धुन धन-धन ।
सातिशय पुन धन-धन ।
आरती संभव जिन ।
मैं उतारूँ निश-दिन ।

वैर तज सिंह, हिरणा ।
आ थमे, सम शरणा ।।
मूल गुण षट् अर ‘मन’ |
सातिशय पुन धन-धन ।
आरती संभव जिन ।
मैं उतारूँ निश-दिन ।

समय बस इक लागा ।
भाग शिव पुर जागा ।।
सुख निरा’कुल क्षण-क्षण ।
सातिशय पुन धन-धन ।
आरती संभव जिन ।
मैं उतारूँ निश-दिन ।

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