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आरती

आचार्य श्री आरती-9

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

==आरती==

आरतिया आरतिया
विद्यागुरु की आरतिया, उतारें आओ ।
विद्यागुरु की मूरतिया, निहारें आओ ।।

चीर चीर ये निकले घर से ।
पीर पराई लख दृग् बरसे ।।
सूरज, चांद न तारे इनसे ।
लख गुणियों को परणति हरसे ।।
ज्योति जगाओ ।
विद्यागुरु की आरतिया, उतारें आओ ।
विद्यागुरु की मूरतिया, निहारें आओ ।।१।।

ज्ञान ध्यान संलीन सदा ही ।
बनने सुदृढ़ प्रतिज्ञ सुराही ।।
भाव अलस ना करें कदापि ।
कलजुग शिव राधा वर शाही ।।
दीप सजाओ ।
ज्योति जगाओ ।
विद्यागुरु की आरतिया, उतारें आओ ।
विद्यागुरु की मूरतिया, निहारें आओ ।।२।।

खुद में मगन दृष्टि रख नासा ।
आश प्रथम, अंतिम विश्वासा ।।
चल दी आशा-विषय उदासा ।
सहज-निरा-कुल सुख अभिलाषा ।।
शीष झुकाओ ।
दीप सजाओ ।
ज्योति जगाओ ।
विद्यागुरु की आरतिया, उतारें आओ ।
विद्यागुरु की मूरतिया, निहारें आओ ।।३।।

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