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आरती

आचार्य श्री आरती-4

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

==आरती==

आ-रती आओ उतारें ।
पादुका गुरु शीष धारें ।।

गुरु सुरग, गुरु चार तीरथ ।
मोक्ष गुरु, गुरु शुभ-मुहूरत ।।
फिर न भव मानव संवारे ।
आ-रती आओ उतारें ।
पादुका गुरु शीष धारें ।।१।।

गुरु हि ब्रह्मा, गुरु हि विष्णू ।
रुद्र गुरु, गुरु बुद्ध जिष्णू ।।
सुध धरें अब, कल विसारें ।
आ-रती आओ उतारें ।
पादुका गुरु शीष धारें ।।२।।

जल, पवन, भू, गगन, अगनी ।
मां, पिता, गुरु, भ्रात, भगनी ।।
कष्ट, दुख, आरत संहारे ।
आ-रती आओ उतारें ।
पादुका गुरु शीष धारें ।।३।।

सोम, मंगल, बुध, बृहस्पत ।
शनैश्चर, गुरु, शुक्र, दिनपत
समय हित सु-मरण निकारें ।
आ-रती आओ उतारें ।
पादुका गुरु शीष धारें ।।४।।

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