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आरती

आचार्य श्री आरती-24

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

==आरती==

आओ करे आरती आओ ।
थाल सजाओ, दीप जगाओ ।।
आओ करे आरती आओ ।।

नरक भयभीत चले वन को ।
छोड़ घर-बार कुटुम धन को ।।
सुख निरा-कुल रख अभिलाषा,
दृष्टि नासा, वशि कर मन को ।।
पग थिरकाओ, ढ़ोल बजाओ ।
आओ करे आरती आओ ।
थाल सजाओ, दीप जगाओ ।।
आओ करे आरती आओ ।।१।।

खड़े आ चौराहे जाड़े ।
लू लपट पर्वत आ ठाड़े ।।
सहज आ खड़े वृक्ष नीचे,
देख बिजुरी बदरा काले ।।
गुलाल लाओ, रंग उड़ाओ ।
आओ करे आरती आओ ।
थाल सजाओ, दीप जगाओ ।।
आओ करे आरती आओ ।।२।।

जगत् भर से मैत्री रखते ।
दीन लख नैन बरस पड़ते ।।
प्रेम उमड़े गुणिजन देखे,
अत्त दुर्जनन क्षमा करते ।।
पुण्य कमाओ, भव्य कहाओ ।।
आओ करे आरती आओ ।
थाल सजाओ, दीप जगाओ ।।
आओ करे आरती आओ ।।३।।

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