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आरती

आचार्य श्री आरती-19

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

==आरती==

गुरु वरद पुत्र मां शारद ।
कीजे आ-रति निःस्वारथ ।।

चलते रस्ते से लग के ।
पड़ते प्रपंच ना जग के ।।
भज ज्ञान दिवस बढ़ चाला,
कर ध्यान चली निश जग के ।।
भारत गौरव प्रतिभारत ।
गुरु वरद पुत्र मां शारद ।
कीजे आ-रति निःस्वारथ ।।१।।

कीनी किनार वैशाखी ।
पी लिया क्रोध, गम चाखी ।।
वश में रख आँख हमेशा,
पुरु साख, नाक-पुरु राखी ।।
अभिजात मात लाला वत् ।
गुरु वरद पुत्र मां शारद ।
कीजे आ-रति निःस्वारथ ।।२।।

रखते हैं निस्पृह नेहा ।
रह कर भी देह विदेहा ।।
शिव राधा ब्याह तृषातुर,
खुद जैसे निःसंदेहा ।।
सुख सहज निरा-कुल चाहत ।
गुरु वरद पुत्र मां शारद ।
कीजे आ-रति निःस्वारथ ।।३।।

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