*सुनहरी डायरी*
*भैय्या !
आपकी दुकान में
जो सबसे सुन्दर डायरी हो
वो दे दीजिये
भैय्या !
इसमें पेज कम हैं
भैय्या !
ये कुछ ज्यादा ही हैवी है
दूसरी दिखाइये
भैय्या !
L कार्नर नहीं
U कार्नर वाली चाहिये
भैय्या !
इससे थोड़ा छोटा साईज दिखाइये
भैय्या !
इसकी लाईने कुछ ज्यादा ही छोटी हैं
ये नहीं,
भैय्या वो, सुनहली
हाँ.. हाँ यही भैय्या,
कितने की है ?
कुछ तीखे तेवर में
दुकानदार बोला
५०० रुपये की
दीदी ने कहा
ये लीजिये भैया
दुकानदार ने पूछा
दीदी ग्वालियर से आई हो ?
यदि मैं इस छोटी सी डायरी के
१००० रुपये माँगता
तो क्या आप दे देतीं मुझे ?
हाँ भैय्या,
इस खूबसूरत डायरी के
मैं आपको १००० रूपये तो क्या
१०,००० रुपये भी दे देती
मैं किसी को बेहद चाहती हूँ
और आज उसका जन्मदिन है
वो मेरा भाई है
दुकानदार बोला
दीदी
ये लीजिये वापिस
आपके ३०० रुपये
यह डायरी सिर्फ २०० रुपये की ही है
दीदी कहतीं हैं भैय्या
आप ही रख लीजिये ना,
बच्चों के लिये
उनकी अपनी मुँहबोली बुआ की तरफ से मिठाई घर पर ले जाइयेगा
दुकानदार बोला
दीदी क्षमा कीजिये
मैं भी किसी को बेहद चाहता हूँ
उसे जाकर के क्या जबाद दूँगा
वो मेरा साँई है
अलबिदा कहते वक्त
दोनों की आँखों में आँशु थे*
* गहरी बात*
*मन्दिर जी में
प्रवेश करने के लिये
एक सुन्दर से
बच्चे ने बड़े फायदे के साथ
अपने पैर धोये
एड़िंयों पर भी डाला पानी उसने
उस बच्चे ने
पात्र जिससे पानी पैरों पर
डाल रहा था वह बच्चा
उसने उसे बड़े पानी के पात्र में
ऊपर से ही
छप की आवाज करते हुये
नहीं छोड़ा
बल्कि बड़े आहिस्ते से
नीचे हाथ करके रक्खा
यह सब कुछ
पास के ही एक कमरे में
विराजमान गुरु बाबा
झरोखे से देख रहे थे
उन्होंने बच्चे को
हाथ के इशारे से
अपने पास कर बुलाया
बच्चा बड़े अदब के साथ आ करके
बाबा के चरणों में
निगाहें टिका करके बैठ गया
बाबा ने पूछा
क्या नाम है तुम्हारा
बच्चे ने कहा
सहजू
बाबा बोलते हैं
बड़ा अच्छा नाम है
तो अब देखो
जन्म के समय
जैसे सीधे सच्चे रहते हैं
वैसे ही नाम के अनुरूप रहना
सुनो,
एक हाईकू सुनाता हूँ
‘सुन लीजिये,
फास्ट-फूड या स्वास्थ्य
चुन लीजिये’
बेटा
तुम तो नहीं खाते हो ना फास्ट-फूड,
यदि खाते हो तो
जब तक मैं तुम्हारे गाँव में
रुका हुआ हूँ
तब तक के लिए
उन फास्ट-फूड का
त्याग कर सकते हो क्या ?
बच्चे ने कहा
जी बाबा जी
फिर ?
फिर क्या,
रोज सहजू आता
गुरु बाबा का ढ़ेर सारा स्नेह पाता
आज बाबा के
विहार का दिन आ गया
बाबा पास के ही
एक गांव जाकर के
ठहर गए हैं
सहजू छोड़ने गया है
सहजू का दोस्त भी साथ में है
करीब १० किलोमीटर का
विहार करके
दोनों को भूख सताने लगी है
दोस्त ने कहा
‘रे सहजू चल
मैगी खा करके आते हैं
तेरा नियम तो
गुरु बाबा जब तक अपने गांव में थे
तब तक का था ना
सो पूरा हुआ
चल जोरों की भूख सता रही है मुझे तो
अब सहजू ने
जो जवाब दिया
वह बड़े मायने रखता है
सहजू बोलता है
गुरु बाबा अपने गांव से
भले निकल करके
दूसरे गांव में आ गए हैं
पर मेरे दिल से
नहीं निकल पाए हैं
और मरते दम तक
कभी भी
मैं उन्हें निकलने भी नहीं दूँगा
मेरा आज से
फास्ट फूड का
आजीवन के लिए त्याग है
बाबा दूर खड़े सब बातें सुन रहे थे
बाबा के मुख से
अनायास निकल पड़ा
‘धन्य घड़ी धन्यभाग’*
*एफ आई आर इ’यानि फायर*
*शोरूम से अभी के अभी
न्यू चमचमाती कार खरीद करके,
कहीं और नहीं,
शोरूम के बाहर ही खड़ी की हुई थी
‘कि एक मनचले लड़के ने
आकरके अपनी कार
उससे ठोक दी
हा ! चमचमाती कार
स्क्रेच खा चली
जिस बहिन की
वह कार थी
वह बोली
भाई नशे में है क्या आप ?
क्यूँ,
क्या आपको
कार चलानी नहीं आती है
आपने ये क्या कर दिया,
अभी तो मैं
अपने सभी दोस्तों तक
इस ख़ुशी के लिये
शेयर भी नहीं कर पाई हूँ
और आपने ये क्या कर दिया
चलिये शोरूम वह रहा
ठीक करवाईये मेरी कार
मुआफी की बात तो छोड़िए
वह लड़का
कार वाली बहन के ऊपर
बरस पड़ा
‘कि गलती आपकी ही है
आपने कार रस्ते पर
क्यों खड़ी कर रखी है
बहिन कहती
वाह भाई वाह
‘उल्टा चोर कोतवाल को डाटे’
धीरे धीरे बात बढ़ चली
वह लड़का अभी कार चलाना
सीख ही रहा था
उसका ड्रायवर लाइसेंस भी नहीं था
जेब मे सिर्फ ५०० रुपये का नोट था इन्जीनियरिंग कर रहा था
लोगों ने कहा
बहिन जी
F.I.R. कर दीजिये
इस लड़के की
सारी हेकड़ी भूल चलेगा
बहिन बोलती है
नहीं नहीं
मेरे गुरु बाबा कहते हैं
एफ आई आर इ’यानि फायर
बुझाते-बुझाते ही
बहुत कुछ
जला के खाक कर डालती है
क्षमा कीजिये
मैं बाबा को क्या मुँह दिखाऊँगी
मैं ऐसा निर्णय न ले पाऊँगी
कार पर तो
कलर हो सकता है फिर से
लेकिन इसकी जिन्दगी तो
बेकार ही हो जायेगी
वह लड़का सुन रहा था
सभी बातें
उसने बहिन के पास जाकर
उसने माफी माँगी
और अपने पापा के लिये
फोन लगाया
‘के पापा
मेरा एक्सिडेंट
बस इतना ही बोल पाया था वह
‘के उस कार वाली बहिन ने
उससे फोन छीन लिया
और लड़के के पापा से कहा
‘कि अंकल
कोई एक्सीडेंट बेक्सीडेंट नहीं हुआ है
आपका बच्चा कार से
जा रहा था
मेरी कार से टकरा गया
मेरी कार पर कुछ स्क्रैच आए हैं
मैं ठीक करा लूँगी
आपका बच्चा सही सलामत है
आप बिल्कुल मत घबराइए
अल्बिदा कहते वक्त
दोनों की आँखों में आँसू थे*
*अटूट विश्वास*
*एक बड़े पहुँचे हुये वैद्य थे
वन्य औषधी पौधों की
खोजबीन में ही
उनका ज्यादा से ज्यादा समय
व्यतीत होता था
अकेले ही
प्रत्यूष बेला में निकल पड़ते थे
जंगल की ओर
थे उनके दो साथी थे
पहला
नाक पर चढ़ा चश्मा
और दूसरा
लाठी
एक बार की बात है
एक ऐसा रोग आया
जिसमें रहती तो सर्दी थी
लेकिन सर दर्द
नाक में दम कर के रखता था
रहती तो खाँसी थी
पर हालत अच्छी खासी
खस्ता हो चलती थी
दो व्यक्ति चूँकि दोस्त थे
इस बीमारी की
चपेट में आ जाते हैं
इन्हीं वैद्य के यहाँ
आते हैं दवा कराने के लिये
इत्तफाक से
दवा काम नहीं कर रही थी
रामबाण होने के बाद भी
वैद्यराज जी के सामने ही
उनमें से, एक दोस्त बोला
मैं तो आज से
किसी दूसरे
अच्छे वैद्य को दिखाऊंँगा
बस इतना
सुना ही था
‘कि दूसरा दोस्त
जिसका नाम सहजू था,
वह बोल पड़ा
‘रे पागल हो चला है क्या ?
दुनिया भर के लोग तो
इन बाबा वैद्य के यहाँ
आकरके चौखट गीली करते हैं
भले कहावत में
आन गांव के सिद्ध होंगे
लेकिन
यह तो अपने ही गाँव में प्रसिद्ध हैं
तुझे जाना है जा,
मैं तो इस की शरण में हूँ
जिलायें
या जलायें
मुझे तो यही प्रमाण हैं
इतना कहकरके
दोनों रोगी चले हो गये
लेकिन सहजू
बाबा वैद्य के हृदय में
घर कर चला
बाबा वैद्य की आँखें
आज निद्रा माई की गोद में
जाने से मना कर रही हैं
बार-बार उनके जेहन में
सहजू का विश्वास
रह रह करके दस्तक दे रहा है
बाबा वैद्य ध्यान में बैठ
गहरे उतर
पैठ चले
और उन्होंने जोड़े तोड़ करके
अमृतौषधी नाम से
एक नुस्खा तैयार किया,
और बाबा आज
जंगल की तरफ न जाकरके
सहजू के घर की ओर निकल पड़े
आप पहली बार
बाबा ने
माँ का किरदार अदा किया
सहजू के लिए
अपने मंत्रित हाथों से
दवाई खिलाई
चुटकिंयों में
सहजू का नाम
चरितार्थ हो चला
अलविदा कहते वक्त
दोनों की आँखों में आँसू थे*
‘भ… ला’
‘ला… भ’
*बेटा सहजू !
जा बेटा,
बाजार से ताजी सब्जी तो ले आ
माँ ने आवाज लगाई
तभी दादी माँ बोलीं,
बेटा सहजू !
जर्रा मेरा चश्मा तो देख दे
मैं बड़ी देर से खोज रही हूँ
मिल नहीं रहा है
बेटा सहजू !
मेरी गुटनिया रक्खी है
दरवाजे के पीछे
जर्रा उठाकरके तो दे दे मुझे
दादा जी ने
बड़े प्यार है कहा
तभी चाची बोल पड़तीं हैं
बेटा सहजू !
देखो तो दरवाजे पर शायद
दूध वाले भईय्या के
आने का समय हो चला है
सहजू नाम के अनुरूप
सहज रहने वाला है
किसी को ना नहीं कहता है
सिर्फ नाना के लिए छोड़ करके
लेकिन उसको
अपनी नैना नाम
‘बड़ी दी’ के पास रहना
बड़ा अच्छा लगता है
जन्म से ही आँखें जो नहीं है
उसकी बहिन की
चूँकि सहजू को दी
प्रत्येक आवाज
‘बड़ी दी’ से जुदाई की
‘पाती’ लिए होती है
सो सहजू
एक बार तो कहता ही है
‘अरे यार’
और जैसे ही ‘बड़ी दी’ सुनतीं हैं
वह सहजू को
बड़े स्नेह के साथ समझातीं हैं
‘कि देख भाई
तू कीमती ही नहीं
बड़ा बेशकीमती भी है
औरों के काम
तेरे बिना पूरे नहीं होते हैं
गुरु बाबा कहते हैं
अधूरे काम पूरे करना
भगवान् का काम है
तो सुनो,
बिना’ अरे यार’ कहे
काम आना चाहिए दूसरों के हमें
तभी नाम सहजू सार्थक होगा
देखो ना
गुरु बाबा ने
उस दिन कहा था ना
‘भ… ला’
अक्षर पलटते ही
‘ला… भ’
हाथ लग चला है
हा ! हाय !
मैं तो किसी के
काम ही नहीं आ सकती हूँ
मुझे ही सहारे की आवश्यकता पड़ती है
सो सुन,
रे सहजू
जब तू भगवान् के घर जायेगा
भगवान् जो अपने हमशक्ल से
मिलने के लिए
बड़े ही बेकरार हो रहे होंगे
तब मेरी भी
श्री भगवान् से
पहचान करा देना
‘कि यह मेरी बहिन है
इसको भी पार लगा दो ना
सहजू ‘हओ’ कहते हुये
झट-पट चल दिया
नेकी के रास्ते पर*
*काँ…टा
टाँ…का*
*एक बाबा थे
नाम था सहजू दा
अहिंसक सूती कपड़े पहने
माथे पर एक बड़ा तिलक लगाये
उपनय ही रहते थे
जिस लक्ष्य के साथ
घर से निकलते थे
उसमें लगता है
बाधक जो हैं यह पादत्राण
इसलिये
बगैर चरण पादुका के ही
आना जाना करते थे वह
किसी भी व्यक्ति ने
उन्हें सीधी कम्मर नहीं देखा
रास्ते पर काँटे कंकर-पत्थर
उठाते ही देखा है
जब कभी देखा तब
झल्लाहट कभी स्वप्न में भी
उनकी साथी बनी हो
उन्हें क्या ?
श्री राम जी को भी खबर नहीं होगी
एक सहजो मुस्कान
उनके चेहरे पर हमेशा
खेलती नज़र आती थी
खूब जानते थे वह
पैर यदि काँटों-कंकरों पर
धीरे से जमा करके
रक्खे जाते हैं तो
बस चुभ करके
रह जाते हैं
जख्म या फिर नासूर
नहीं बन पाते हैं
सो
आँखों के साथ-साथ
पैर भी मन का चश्मा लगाकर
खोजबीन में जी-तोड़ मेहनती
कहनाने में कोई कसर नहीं छोड़ते थे
प्राय: कर मौन रहते थे वह
लोग पूछते थे सहजू दा
क्यूँ करते रहते हो यह सब
पर वह किसी को
कोई भी जवाब न देकर
बस एक मुस्कान
जो सचमुच लाजवाब होती थी
जरूर देते थे
पर आज उनके
एक साथी
जो अपने नौजवान बच्चे की
एक एक्सीडेंट में मृत्यु हो
जाने के बाद सन्त हो गये थे
घूमते-घूमते
आज
अपने गाँव से निकल रहे थे
उन्होंने जब यह देखा
‘कि सहजू ये क्या काम कर रहा है
तो उनसे रहा न गया
उन्होंने पूछा भाई
यह क्या लीला है
तब सहजू दा
जो जवाब देते हैं
वह बड़ा लाजवाब है
‘के मित्र
आप तो घर संसार से
निकाल करके महन्त हो चले हो
पर मैं तो मकड़ी के जाले में फँसा हूँ
जो मैंने स्वयं
अपने ही हाथों से बुना है
जिससे बाहर निकल पाना
मुश्किल सा लग रहा है
और वृद्धावस्था
वायु सी गति लिए
बढ़ती चली आ रही है
तब जर्जर शरीर हो चलेगा
जिन्दगी रूपी राह में
ढेरों काँटे-कंकर
आँख तरेर करके देखेंगे
तब पहली आश
आखरी विश्वास
जो पिता परमेश्वर हैं
उनसे कम से कम
कह तो सकूँगा
‘के भगवान्
मैंने दूसरों के रास्ते साफ रखे
काँटे-कंकर बीन बीन करके फेंके
मेरे प्रभो
तू भी जर्रा दया करके
अपनी रहमत बरसा
मेरे जीवन की राहें आसान बना दे
मेरे काँटे तू फेंक दे उठाकर,
उठा करके तू मुझे
अपनी गोद में ले ले
ताकि जिन्दगी का आखरी पड़ाव भी
चुटकिंयों में आगे बढ़ चले
और तेरा सुमरण करते-करते
सु-मरण रूप मंजिल हाथ लग चले
सो उधड़ चले
जिन्दगी रूपी वस्त्रों में
टाँका लगवाने की सोच रहा हूँ
न कि किसी के रास्ते के काँटे-कंकर
निकाल कर बाहर फेंक रहा हूँ
ये सब घटना
चूँकि रास्ते पर ही घटित जो
हो रही थी
सभी घेर के खड़े हुये थे
और सहजू दा के लिए
झुक करके सजदा
प्रेसित कर रहे थे*
*बॉल… बोल*
*एक बड़े शहर की बात है
मन्दिर थोड़ी दूर था
लेकिन प्रतिदिन एक परिवार
पैदल ही सुबह सुबह चल देता था
भगवान् से मिलने
आज भी बाल सूर्य को
पलक भर निहार चल पड़ा वह
‘सहजो परवार’
बच्चे के पापा
किसी से बात करने लगे
थोड़े से दो कदम पीछे हो चले
तभी उन्हें
सड़क के किनारे
एक सुन्दर सी बॉल पड़ी दिखाई दी
बच्चे के पापा ने कहा
बॉल की तरफ इशारा करते हुए
देख सहजू यहाँ
यह बॉल पड़ी है
छोटा-सा होनहार
नौनिहाल उनका
थोड़े से आगे चल रहा था
वह पलट कर पीछे आया
मन ही मन सोचने लगी
मम्मी उस बच्चे की
जो उसके साथ चल रही थी
अरे अभी बच्चा उस बॉल को उठा लेगा
और चोरी का दोष लग चलेगा
क्यों बता दिया इन्होंने इसे
तभी बच्चा
पीछे से फिर आ गया
तब बच्चे के पापा ने बच्चे से कहा
क्यूँ ‘रे सहजू आ गया
वह बच्चा बोलता है हाँ पापा
मैं उस बॉल को देख कर आ गया
बड़ी सुन्दर बॉल है पापा वह
तब पापा बोलते हैं
बेटा आपका मन
उसे उठा कर लाने के लिए
नहीं कह रहा था
अब सहजू जो कहता है
सच बड़े मार्के की बात है वह
पापा बॉल उठाने का मन तो कर रहा था
पर मन के लिए
उसी समय माँ के बोल भी
याद आ चले थे
जो मुझे सोने से पहले
सिखलाये थे कल रात उन्होंने
‘के किसी की गिरी हुई
रखी हुई
भूली हुई चीज
उसकी आज्ञा के बिना
उठा लेना तो दूर
उस चीज को छूना भी चोरी है
अब मुझे खेद हो रहा है
‘के मैंने आँखों से उसे छुआ क्यों
प्रायश्चित स्वरूप
एक कायोत्सर्ग कर लूँ माँ
बच्चा पूछता है अपनी माँ से
ऐसा सुन
मम्मी पापा दोनों की
आँखों से मोती झल पड़े*
*साध-पंक्ति
लाजवंती*
*एक सुन्दर सी बच्ची थी
जाने भगवान्
किस यहाँ वहाँ के काम में
मशगूल थे
‘के बच्ची की आँखें न बना पाये थे
और जन्म ले चली बच्ची
अभी तक तो पालने में थी
सब ठीक ठाक चल रहा था
पर आज
घुटने के बल जो चलने लगी थी
यहां वहां टकरा जाती थी वह
कई बार तो गहरी चोट लग के कारण
बहुत रोती थी वह
और भाई बहिन खूब मस्ती करते थे
परन्तु यह गुमसुम बैठी रहती थी
लोगबाग कहा करते थे
कुछ उल्टा सीधा कर लेगी कभी
ज्यादा थोड़े ही जीते हैं
ऐसे बच्चे
आग है
पानी है
सीढ़ी है
सब मौत के कुएं ही दूसरे
पर आज
लाजो
इस बच्ची को
प्यार से पुकारती है इसकी माँ
आठ बरस की हो जाने पर
उसकी माँ उसे मंदिर में लाई है
शक्ति विधान कराया है
उसकी माँ ने उसे
सुनते हैं
भगवान् जिन्हें दो आँखे
नसीब नहीं करते हैं
उन्हें दूसरी ही आँख दे करके
भुल सुधार करते हैं
माँ हर दिन सुनाती जो थी इसे विधान
धीरे-धीरे इसने
सारा शान्ति विधान
कण्ठस्थ कर लिया था
सभी लोगों ने
अपने दाँतों तले अँगुलिंयाँ दाबीं
आज लाजवंती
सोलह साल की हुई
माँ ने
सिद्ध चक्र मण्डल विधान रचाया
कण्ठस्थ कर लिया था
उस लाजो ने यह विधान भी
माँ ने इसे
सिद्ध चक्र मण्डल विधान के बाद
अनन्त मति की कहानी सुनाई
जिसने अष्टानिका पर्व में
माँ पिताजी के साथ
ब्रह्मचर्य व्रत लिया था
सीमा चूँकि नहीं बाँधी थी
गुरु महाराज के सामने
ऐसा कह करके
आजीवन व्रती
हो चाली थी वह अनन्त मति
आज इस लाजो ने भी
उस अनन्त मति के रास्ते पर
आगे कदम बढ़ाने चाहे
जिन्हें कोई वास्ता नहीं था
उन लोगों ने सवालात उठाये
माँ जानती थी
एक उठा लो
दो उठा लो
सवा-लात उठाना
उसके क्या
किसी के भी बस की बात नहीं है
फिर भी उठाता रहता है
सवालात
जमाना
हा ! जमा… ना
आज भगवान् भी रो रहे हैं
सोच रहे हैं
इस देवी के लिए
आँख न देकर
मैंने बहुत बड़ी भूल की है
इसके प्रायश्चित में मुझे
इसकी लाठी बनना चाहिये
और अब से भगवान्
उसका हाथ
अपने हाथों में लेकरके रखते हैं हमेशा
और ऐसे वैसे नहीं
अपनी आँखों में पानी भी रखते हैं
लोगों की भविष्यवाणिंयाँ
झूठी निकलीं
आज
सार्थ नाम लाजवंती
१२० वीं वर्षगांठ मनाने चली है
मंदिर में समोशरण विधान
रचने की पूर्ण तैयारी के साथ
यहाँ विधान पूरा हुआ नहीं
‘के समाधि साध करके बैठ चली
इच्छा-मृत्यु की भावना के साथ
सुनते हैं
देव आये हैं लेने
अपने अधिपति के लिए
मर्त्य भूमि से
ले चलने अमर भूमि
एक व्रति के लिए*
पापा
एक दम्पति थे,
जो पहले-पहल छोरा हुआ था,
आज उसकी वर्षगांठ का अवसर था ।
सारे मेहमान चुके थे,
केक पर हंसी खुशी एक साल गुजर जाने की पताका स्वरूप,
एक मोमबत्ती जगमगा रही थी
तभी पापा को अर्जेन्ट कॉल आया पापा
उत्सव-हॉल से बाहर आये,
‘कि तभी बच्चा मोमबत्ती पर झूमने लगा
माँ ने देखते ही उससे कहा
हा ! हा ! ताता…, दूर हटो
चिक जाओगे वरना
बच्चा बड़ा नटखट था
पापा लौट कर के जैसे ही उत्सव-हॉल में आकर, बच्चे के रूबरू होते हैं ।
‘कि बच्चा मम्मी के हाव-भाब चेहरे पर
लाकर बोलता पापा
हा ! हा !
बस इतना सुनते ही दम्पति के कानों में ये
शब्द झंकृत होने लगे
पाप…हा ! हा !
पापा…हा ! हा !
पाप…हा ! हा !
चुक चली थी निंदिया आज
कानों में हन्हीं शब्दों का रौथन चल रहा था
पो फटते ही
कुल दीपक को कुल के हवाले करके
स्वयं दोनों ने गुरुकुल की शरण ले ली,
साहू शरणं पव्वज्जामि कहते हुए ।
गाँठ
एक नौजबाँ की मँगनी हो चुकी थी,
रह चले थे कुछ ही दिन शेष शादी के लिये
‘के अपने ही एक जिगरी दोस्त की
शादी में आया था ।
वरमाला हो चुकी थी,
बाद की शेष रश्मे अदा की जा रहीं थीं ।
एक ‘रश्म’ जिसमें ननद-बुआ लोग मिलकर वर-वधु के हाथ में जो कलावा बांधती हैं,
उसमें वधु के लिये पाँच गाँठ वाला और
वर के लिये सात गाँठ वाला
पतला सा कलावा
जिसकी गाँठे खोलना आसान न हो
और हाँ… याद रहे,
वधु दोनों हाथ से खोल सकती है,
लेकिन वर के लिये विशेष सख्ती है
‘कि दूसरा हाथ न लगने पावे
दाँत-बाँत तो दूर की बात
सो ला कलावा कलाई पर रक्खा गया
एक के बाद एक गाँठ दी जा रही हैं
अब सुनिये,
ये को नौजवां,
जिसकी मंगनी, हाल के हाल हुई थी
वह गॉंठें खोलने में थोड़ा कच्चा था,
वर वधु एक दूसरे को छकाने में लगे थे
ननद लोग खिंचाई में लगी हुई थी
तभी इस नौजवां के मन में, एक एक गॉंठ
एक के ऊपर एक रखी गॉंठ
यानि ‘कि गठरी सी मुशीबत लग रही थी,
समय ठण्डी का था,
फिर भी वह पसीने पसीने हो रहा था
और धागा महीन जो था
‘के गाँठें खुल पडे़ मशक्कत भी माँगा रहा था, इस नौजवां से देखा न गया
वह तुरन्त पाण्डाल से बाहर निकला
और घर न गया,
गुरुवर के पास गया और
परिग्रह पोर उतार फेंकी उसने
साहू शरणं पव्वज्जामि कहते हुए ।
कॉल क्या, अर्जेन्ट काल
बड़ी धूमधाम से बारात निकल रही थी,
पानी के जैसा, बहाया जा रहा तथा पैसा
बच्चा जितना पढ़ा लिखा,
उतनी ही पढ़ी लिखी बच्ची थी ।
बच्ची हूर, तो बच्चा लाखो में एक,
बच्चे के आगे लगता कहाँ कोहनूर
वरमाला का अवसर आया
हंसी-खुशी चल भी दिया ।
एक के एक रश्म छुई रही थी
‘के कोई अनछुई न रहे,
यह देखने ‘शादीलाल’ जैसे शख्स भी मौजूद थे ।
आखरी रश्म के रूप में,
फेरे जो अग्नि की साक्षी पूर्वक,
लिये जाते हैं, शुरु हुये
पंडित जी साब ने मंत्रोच्चार किया,
अद्भुद स्पष्ट उच्चारण था उनका,
पहला फेरा फिरा,
दूजा फेरा दूसरा ही था
सारा पाण्डाल अथक, अरुक
पुष्पों की बरसा कर रहा था ।
फेरा छटा भी छटा अपनी बिखर चुका था ।
पंडित जी साब ने कहा अभी भी वक्त है,
किसी को इस शादी से ऐतराज़ हो तो कहे ?
शादी अभी तक सादी सी थी
सांतवा फेरा हुआ नहीं,
‘कि ये दोनों साथी हो जायेंगे,
‘के अचानक तभी,
मोबाइल बाईब्रेट हुआ,
शोर इतना था
‘कि कान देकर भी सुनाई न दी आवाज,
शायद ढ़ोल-धमाके बहुरिया के पक्ष में थे ।
तभी स्क्रीन पे आये कुछ फोटोज्
जिसमें होने जा रहा जाना पहचाना साथी था और एक अनजाला शख्स,
और मेसेज आया,
‘के मेरा इस लकड़ी के साथ ‘अ…फेयर’ चलता है यानि ‘कि रफ चलता है
लड़के ने मोबाइल लड़की को थमाया
लड़की की नजरें झुक देख,
वरमाला फेंक
लड़का सीधा गुरुकुल आ गया
रचने इतिहास नया
साहू शरणं पव्वज्जामि कहते हुए ।
खिलौने, …खेलो नैं
मुस्कान लेता,
एक ग्रामीण परिवार था,
बड़े बच्चे की शादी, सादी न हुई,
बड़ी धूम-धाम से की बुजुर्गों ने,
राज घराना जो रहा,
‘अटारी वाले’ बजते थे,
सुनते हैं,
किसी जमाने में,
सारे गाँव में यही एक इनका मकान था,
जहाँ मंजिंलों की गिनती थी,
और तो सभी घर छप्पर के हुआ करते थे ।
साल भर ही नहीं हुआ,
‘के बहरिया के पाँव भारी हो चले
कह चलीं दाईंयाँ,
छोने हैं, भीतर पेट में,
जरूर जुड़वा बच्चे जनेगी बहुरानी ।
तुरन्त बलाएं लेती हुई,
सासू माँ तिनके तोड़ती है ।
ई के बाद,
ए आया
सादें सादी न मनी
शायद ही ऐसी कहीं और हों मनी
मनी पानी के माफिक बह चली
समय हाथों से फिसला
ये क्या ?
जो पहला नवजात शिशु,
माँ के पेट से निकला
उसके हाथ अनुपात से कुछ छोटे हैं,
और दूसरे के अनुपात से कुछ छोटे हैं पॉंव,
क्यों री दाई तू तो बोले भो
होते तिल लेंगे ये तो निकले खिलौने
नवजात शिशुओं के दादू बोले
क्यों ‘री दाई तू तो कहती थी
छोड़ने निकलेंगे, ये तो निकले खिलौने
बस खिलौने… खिलौने…ये शब्द,
शादी की ही उम्र के हो चले,
छोटे बच्चे के कान में गूॅंजते रहे
‘के तभी मन ने कही,
काय ऐसो नई हो सके, जो खेल खेलो नै
न रहे बॉंस, न बाजे बॉंसुरी
चालो धर लेवे गैल दूसरी
सो के ई बाद ए
फिर ‘ओ’ आया
यानि ‘कि
शादी…
फिर सादे…
अब पीछे ओ लग कर के शब्द बना
साधो
सो वह गुरु देव समीप जा पहुंचा
साहू शरणं पव्वज्जामि कहते हुए ।
साईं…कल
बात दक्षिण के एक परिवार की है ।
भरा पूरा परिवार है
दादी-दादू , चाची-चाचू, ताई-ताऊ सभी हैं ।
बड़ा धार्मिक परिवार है ।
‘के अचानक घर का बड़ा लड़का,
जो विदेशी कंपनी में काम करता है
उसकी कंपनी अब,
अपने देश को लौट के जा रही है
और उसे विशेष ऑफर के साथ
अपने साथ ले जाने की जिद पर अड़े हैं,
कंपनी के चेयर मैन साहब ।
सो वह जिसकी अभी अभी शादी हुई है,
अपनी बहुरिया को अकेले नहीं
अपने वंश अंश के साथ छोड़कर
खूब पैसे कमाने चल दिया है
उसकी धर्मपत्नी संस्कारों से ओत-प्रोत है
अपने साथ क…बीता
जब… तब लिखती रहती है
यानि ‘कि कवि कोविद् है
समय ने पर लगाये
एक प्यारा सा चाँद का टुकड़ा
उसकी गोद मे आया
झुलाया
लोरी अपने शब्दों में बनाकर
उसने उसे सुलाया
‘तुम कल के भगवान् हो
दया धर्म की शान हो
करुणा, क्षमा निधान हो
तुम कल के भगवान् हो’
बच्चा
सर्वगुण के साथ कई दर्जे पार कर चुका है
आज उसका मौजी बंधन है
और उसके पिता जी भी विदेश से आ करके
उसके सामने ही खड़े हैं
पापा ने गिफ्ट खोली,
बच्चे की आँख अभी बन्द थी
पापा ने कहा
‘कि बेटा देख
साईकल
बच्चा कुछ गहरे उतर चला
‘के माँ कहती थी
‘तुम कल के भगवान् हो’
और पिता जी ने भी आकर के यही कहा
साईं… कल
बस बच्चा मौजी बंधन गुरुजी के साथ हो चला
आंखें जो उसकीं खुल चलीं
साहू शरणं पव्वज्जामि कहते हुए ।
नो…नो…नो
एक बड़ा प्यारा सा बेबी था
खूब नटखट,
कुछ मिला नहीं ‘कि मुँह में डाल लेना
उसे सिखाना न पड़ा था
आहार, मैथुन, भय और परिग्रह
संज्ञाएँ ये चारों को चारों अनादि काल से
जन्म जन्मानों से, जो पीछे लगीं आ रहीं हैं
था छोटा सा ही,
जैसे ही मम्मी देखती
‘कि बस मिट्टी उठाने ही वाला है अब,
वह कहती थी No…No…No…
बच्चा चतुरा था, वह मिट्टी लिए लिए ही
अंगुली पेंडुलम जैसी हिलाया जैदी एम्की हिलाया करता था जैसे मम्मी हिलाया करती थी अब बच्चा धीरे-धीरे बोलना सीख चला है
मम्मी जैसे ही कहती No…No…No…
वह भी तुतलाकर कहता No…No…No…
मुस्कान के साथ
बड़ा फबता था, यह कहते हुए वह
‘के No…No…No…
अब बच्चा कुछ अच्छे के बोलने लगा है
आज उसकी बड़ी मम्मी घर पर आईं हैं
जो कविताएं करतीं हैं
यानि ‘कि सोच कुछ हटकर रखतीं हैं
उन्होंने कहा
बेटा में तुम्हारी बड़ी मम्मी हूॅं
बच्चे ने मुस्कान देते हुए कहा… बड़ी मम्मी
सभी को बड़ा मीठा लगा,
तभी ठण्डी का समय था
बच्चा अपने सिर पर बँधी जो,
वो टोपी खींचने लगा,
मम्मी कहती है बेटा No…No…No…
वह भी कहता है मम्मी No…No…No…
बड़ी मम्मी को बच्चे की ये स्टाईल बड़ी पसंद आई
अब बड़ी मम्मी उसके साथ खेलने लगीं
अंगुली हिलाकर के बोली
No…No…No…
तभी बच्चा भी बोला
बड़ी मम…मी No…No…No…
ये शब्द जैसे ही अलग-अलग,
बड़ी मम्मी के कान के रस्ते दिल में पहुंचे,
तो कुछ गहरी ही डूब ली उन्होंने
कवि कोविद् जो ठहरीं
बड़ी के बाद अल्प विराम लिया उन्होंने मन ही मन सोचा ‘कि बच्चा मुझसे कह रहा है
ओ’ बड़ी कहलाती हो
और मम यानि ‘कि
ममकार, अहंकार करती रहती हो
इंग्लिश में ‘मी’ यानि ‘कि तेरा-मेरा
भी साथ में करती रहती हो
बड़ी मम…मी No…No…No…
बड़ी मम…मी No…No…No…
बड़ी मम…मी No…No…No…
बस फिर क्या था बड़ी मम्मी घर न गईं
बड़े पापा के साथ,
छोटे बाबा के पास गईं
साहू शरणं पव्वज्जामि कहते हुए ।
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