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निरंजन शतक

निरंजन शतक

‘जयतु जयतु जय शतक-निरंजन’

सिद्ध-अनन्ता ।
बुध-अरिहन्ता ।
श्रुत, निर्ग्रन्था, सविनय वन्दन ।
जयतु जयतु जय शतक-निरंजन ।।१।।

विद जग सारा ।
रग दुध धारा ।
नुति, गुण-कारा, गुण अभिनन्दन ।
जयतु जयतु जय शतक-निरंजन ।।२।।

दीप दिखाया ।
अचित् पराया ।
मृणमय काया, चिन्मय चेतन ।
जयतु जयतु जय शतक-निरंजन ।।३।।

होने सुखिया ।
तुम पद जरिया ।
धनिक नजरिया, चाहे निर्धन ।
जयतु जयतु जय शतक-निरंजन ।।४।।

जला काम द्रुम ।
शिवा नाम तुम ।
दुख तमाम गुम, रम तुम कीर्तन ।
जयतु जयतु जय शतक-निरंजन ।।५।।

दृग् द्वय न्यारे ।
द्वय नय थारे ।
हों भय सारे क्षय, नुति चरणन ।
जयतु जयतु जय शतक-निरंजन ।।६।।

अमि विष-अन्दर ।
मनु जल चन्दर ।
प्रकट जिनन्दर, मम अन्तर् मन ।
जयतु जयतु जय शतक-निरंजन ।।७।।

सिंह गज मारे ।
नखन सहारे ।
कर्म विडारे, त्यों तुम संस्तवन ।
जयतु जयतु जय शतक-निरंजन ।।८।।

सरसुति बोली ।
मुनि धुनि ओ’ री ।
तव थव रोली, माथ न जन-जन ।
जयतु जयतु जय शतक-निरंजन ।।९।।

सनेह समता ।
न देह ममता ।
न मोह तम तः, स्वर्णाभा तन ।
जयतु जयतु जय शतक-निरंजन ।।१०।।

कलिजुग शरणा ।
तुम युग चरणा ।
हित, रवि किरणा, भवि गुल विकसन ।
जयतु जयतु जय शतक-निरंजन ।।११।।

लोहा सोना ।
तो क्या टोना ? ।
मोहा खोना, बढ़ पारस मण ।
जयतु जयतु जय शतक-निरंजन ।।१२।।

सरगम नाते ।
गम खो जाते ।
तुमको ध्याते, पाते सद्-गुण ।
जयतु जयतु जय शतक-निरंजन ।।१३।।

नत गणेश हैं ।
ये न केश हैं ।
राग द्वेष हैं, धूम्र तप अगन ।
जयतु जयतु जय शतक-निरंजन ।।१४।।

नखतन राजा ।
नखन विराजा ।
मुकत जहाजा, हित अघ भंजन ।
जयतु जयतु जय शतक-निरंजन ।।१५।।

कविता थारी ।
दुरिता हारी ।
सविता भारी, भले तम सघन ।
जयतु जयतु जय शतक-निरंजन ।।१६।।

मुख चन्दा सा ।
पर, मन प्यासा ।
तब तुम भासा, भला निज रमन ।
जयतु जयतु जय शतक-निरंजन ।।१७।।

मुस्कां मन्दा ।
मनु मन सिन्धा ।
उमड़े नन्दा, लहरें क्षण क्षण ।
जयतु जयतु जय शतक-निरंजन ।।१८।।

आप ज्ञान दृग ।
अणु समान जग ।
आसमान रिख, जैसे अनगिन ।
जयतु जयतु जय शतक-निरंजन ।।१९।।

तुम जग ज्ञाता ।
व्यय, उत्पादा ।
ध्रौव्य, विधाता ! सम ‘सर’ लहरन ।
जयतु जयतु जय शतक-निरंजन ।।२०।।

कर थुति तोरी ।
सुख यति झोरी ।
स्वपन न ओ’री, वह गुरु सुरगन ।
जयतु जयतु जय शतक-निरंजन ।।२१।।

गुम ‘मैं’ प्राणी ।
तुम मय ध्यानी ।
सम पय पानी, मिल चर्चित जन ।
जयतु जयतु जय शतक-निरंजन ।।२२।।

धनि ! सम-रसता ।
तुम्हें निरखता ।
‘दृग जल’ रिसता, मन शशि छव मण ।
जयतु जयतु जय शतक-निरंजन ।।२३।।

द्रोह न नाता ।
मोह विघाता !
लोहा खाता, जंग न स्वर्णन ।
जयतु जयतु जय शतक-निरंजन ।।२४।।

यदपि सुमति जश ।
मत न कुमति वश ।
दिखे पीत शश, पीलिया नयन ।
जयतु जयतु जय शतक-निरंजन ।।२५।।

जगत न भाये ।
लख क्या आये ।
तुम दृग छाये, जागृत क्षण क्षण ।
जयतु जयतु जय शतक-निरंजन ।।२६।।

हृदय बिठाई ।
भवि तुम घॉंई ।
दूध ललाई, पद्म राग मण ।
जयतु जयतु जय शतक-निरंजन ।।२७।।

धन मत हंसा ।
साध अहिंसा ।
पूरण मंशा, सार्थक सा’धन ।
जयतु जयतु जय शतक-निरंजन ।।२८।।

रवि ! तुम ‘जै’ से ।
भवि तुम जैसे ।
जड़ हैं वैसे, परमुदार तन ।
जयतु जयतु जय शतक-निरंजन ।।२९।।

द्रुम से नाते ।
गुण क्या पाते ।
तुम नम जाते, प्रति स्व चेतनन ।
जयतु जयतु जय शतक-निरंजन ।।३०।।

स्वर्णिम काया ।
विभव न भाया ।
वैभव माया, तुम अगम धरण ।
जयतु जयतु जय शतक-निरंजन ।।३१।।

यथा कहानी ।
सुमति दिवानी ।
कब शश रानी ?, आच्छादित घन ।
जयतु जयतु जय शतक-निरंजन ।।३२।।

लख घन पाँती ।
मयूर भाँती ।
प्रमोद थाती, रख तुम अंखियन ।
जयतु जयतु जय शतक-निरंजन ।।३३।।

उड़ी पतंगा ।
पा तुम संगा ।
“सुखी निसंगा”, फिरती सूक्तिन ।
जयतु जयतु जय शतक-निरंजन ।।३४।।

भाग न दौड़ा ।
आग न गोला ।
जाग अमोला, आप सूर्य अन ।
जयतु जयतु जय शतक-निरंजन ।।३५।।

झूठ मंगाया ।
अचिंत्य पाया ।
दर जिन-राया, बढ़ चिंता मण ।
जयतु जयतु जय शतक-निरंजन ।।३६।।

गा जश थारा ।
पारस न्यारा ।
मावस काला, मानस कंचन ।
जयतु जयतु जय शतक-निरंजन ।।३७।।

जले, जलाता ।
हा ! जल ताता ।
किन्तु न नाता, स्वप्न तुम जलन ।
जयतु जयतु जय शतक-निरंजन ।।३८।।

तिया गुणावल ।
कीरति उज्जवल ।
कैसे सति पर ? स्वछंद विचरण ।
जयतु जयतु जय शतक-निरंजन ।।३९।।

सागर सरिता ।
समाती तथा ।
समाता तथा, तुझमें मुझ मन ।
जयतु जयतु जय शतक-निरंजन ।।४०।।

नयना मोरे ।
माफिक भौंरे ।
चरणा तोरे, संस्पर्शे धन ! ।
जयतु जयतु जय शतक-निरंजन ।।४१।।

दव, वन-कर्मा ।
घन मद-घर्मा ।
हन भय धर्मा, ‘करिन’ वश-करण ।
जयतु जयतु जय शतक-निरंजन ।।४२।।

ज्वल तप नाना ।
वायु समाना ।
हित कल’याना, नुति मन, वच, तन ।
जयतु जयतु जय शतक-निरंजन ।।४३।।

मेघा पांती ।
वायु उड़ाती ।
अघ परिपाटी, विहर तव थवन ।
जयतु जयतु जय शतक-निरंजन ।।४४।।

तुम नख मुक्ता ।
सबूत पुख़्ता ।
हंसा भक्ता, मानस चरणन ।
जयतु जयतु जय शतक-निरंजन ।।४५।।

माँ की गोदी ।
छूटी रो दी ।
त्यों मम बोधि, शरण तुम चरण ।
जयतु जयतु जय शतक-निरंजन ।।४६।।

सुख निर्बाधा ।
मद पग बॉंधा ।
हित शिव राधा, साधा अर्चन ।
जयतु जयतु जय शतक-निरंजन ।।४७।।

श्रुत अनुगामी ।
क्षय वय स्वामी ।
अय ! शिव धामी, कहां तुम सदन ।
जयतु जयतु जय शतक-निरंजन ।।४८।।

तुम रवि गगना ।
रोशन भुवना ।
निसरे अगना, मम तप रवि मण ।
जयतु जयतु जय शतक-निरंजन ।।५९।।

कीजे करुणा ।
लीजे शरणा ।
दीजे चरणा, जगह हृद करुण ।
जयतु जयतु जय शतक-निरंजन ।।५०।।

अहो ! विरागी ।
हूँ मैं रागी ।
पर बड़भागी, तुम गृह मम मन ।
जयतु जयतु जय शतक-निरंजन ।।५१।।

विद जग तीना ।
यूँ निज लीना ।
साधु प्रवीणा वृत्ति अगम धन ! ।
जयतु जयतु जय शतक-निरंजन ।।५२।।

श्रुति दिन राती ।
दर्पण भांती ।
झलकन थाती, युगपत् कण कण ।
जयतु जयतु जय शतक-निरंजन ।।५३।।

कफ रत माखी ।
अलि न कदापि ।
राह न नापी, तुमने विषयन ।
जयतु जयतु जय शतक-निरंजन ।।५४।।

जड़ तुम वाणी ।
बढ़ बुध मानी ।
सृष्टि समानी, उर तुम कारण ।
जयतु जयतु जय शतक-निरंजन ।।५५।।

प्रद निर्वाणा ।
दृग व्रत ज्ञाना ।
प्रद सुख नाना अगर अपूरण ।
जयतु जयतु जय शतक-निरंजन ।।५६।।

भक्ता तोरा ।
दो कब बोला ? ।
गोताखोरा, कब यॉंचे मण ।
जयतु जयतु जय शतक-निरंजन ।।५७।।

तन अविकारी ।
फिर मन खाली ।
पीछे लाली, हटे धान तृण ।
जयतु जयतु जय शतक-निरंजन ।।५८।।

जग यम भय-त: ।
परिग्रह रखता ।
हेत अभय-ता, तुम आराधन ।
जयतु जयतु जय शतक-निरंजन ।।५९।।

खो संबन्धा ।
गोरख-धन्धा ।
औ’ आनन्दा, लख तुम आनन ।
जयतु जयतु जय शतक-निरंजन ।।६०।।

सिन्ध अधीरा ।
लख शशि वीरा !
आप गभीरा, च्युत न नन्त गुण ।
जयतु जयतु जय शतक-निरंजन ।।६१।।

बिन व्रत बाना ।
पद शिव पाना ।
स्वप्न समाना, फल न बीज बिन ।
जयतु जयतु जय शतक-निरंजन ।।६२।।

प्रीति आप ना ।
मोक्ष साधना ।
निज विराधना, जप तपश्चरण ।
जयतु जयतु जय शतक-निरंजन ।।६३।।

शशि छव-हारी ।
जश पे भारी ।
सन्निधि थारी, सुखद दुख हरण ।
जयतु जयतु जय शतक-निरंजन ।।६४।।

निरत समाधी ।
तुम गत आधि ।
लख यति आदी, सुरत निज रमण ।
जयतु जयतु जय शतक-निरंजन ।।६५।।

वज अघ पर्वत ।
दव वन दुर्मत ।
अर्हत शासन, जयन्त निशि दिन ।
जयतु जयतु जय शतक-निरंजन ।।६६।।

भव जल शोषक ।
भवि ! संपोषक ।
जित सहजो अख ! पुञ्ज पुण्य अन ।
जयतु जयतु जय शतक-निरंजन ।।६७।।

मम मति थुति सर ।
तव मन्मथ ‘सर’ ।
भांति बेअसर, सागर विष कण ।
जयतु जयतु जय शतक-निरंजन ।।६८।।

मत में थारे ।
अनमत खारे ।
मधुरिम न्यारे, नमकवत् अशन ।
जयतु जयतु जय शतक-निरंजन ।।६९।।

अभिजित अक्षा ।
तुम थुति पक्षा ।
भीतर कक्षा, ‘सहजो’ विचरण ।
जयतु जयतु जय शतक-निरंजन ।।७०।।

कटु कह उगली ।
खीर स-मिसरी ।
ज्वर प्रभाव ‘री, अरुचि जिन वचन ।
जयतु जयतु जय शतक-निरंजन ।।७१।।

छन्द रचाई ।
‘कवि’ कहलाई ।
पर ठकुराई, मम स्व अनुभवन ।
जयतु जयतु जय शतक-निरंजन ।।७२।।

विद परमातम ।
सुविद स्व आतम ।
मत तर्कागम, धुआ ‘अनु’ अगन ।
जयतु जयतु जय शतक-निरंजन ।।७३।।

आप अलावा ।
शरण न बाबा ।
पंछी नावा, फुर… फिरे गगन ।
जयतु जयतु जय शतक-निरंजन ।।७४।।

तुम थुति किरणें ।
निवसें उर में ।
सछिद्र घर में, यथा रवि किरण ।
जयतु जयतु जय शतक-निरंजन ।।७५।।

थुति मन पागा ।
मन्मथ भागा ।
लाग न लागा, वगैर कारण ।
जयतु जयतु जय शतक-निरंजन ।।७६।।

रुचि विलीन तुम ।
फल विहीन द्रुम ।
नेत्र हीन जिम, विरथा दर्पण ।
जयतु जयतु जय शतक-निरंजन ।।७७।।

मधु धुनि थारी ।
दुर्जन खारी ।
बरसा वारि, विष मुख नागन ।
जयतु जयतु जय शतक-निरंजन ।।७८।।

रच तुम छन्दा ।
परमानन्दा ।
झिरे न चन्दा, तथा अमृत कण ।
जयतु जयतु जय शतक-निरंजन ।।७९।।

तुम थुति ठाने ।
वैभव पाने ।
राख बनाने, रोपे चन्दन ।
जयतु जयतु जय शतक-निरंजन ।।८०।।

मोह न तन का ।
अर्थ अशन क्या ? ।
अर्थ वसन क्या ? पड़ा चित् मदन ।
जयतु जयतु जय शतक-निरंजन ।।८१।।

अंगुली पांचा ।
घृत, हित छाछा ।
करना वांछा, ‘इन’द्रिय विषयन ।
जयतु जयतु जय शतक-निरंजन ।।८२।।

हम लहरों से ।
ओ सिन्धो से ।
आप भरोसे, लो अर्जी सुन ।
जयतु जयतु जय शतक-निरंजन ।।८३।।

साथ निर्जरा ।
कर्म बॅंध चला ।
थवन तुम जुड़ा, ‘धन-दा’ ले धन ।
जयतु जयतु जय शतक-निरंजन ।।८४।।

अबकी ठाना ।
नाक बचाना ।
नाक टिकाना, हुआ तब नयन ।
जयतु जयतु जय शतक-निरंजन ।।८५।।

काम दग्ध कर ।
नाम रुद्र हर ।
विष्णु विश्व भर, अणु जो मम मन ।
जयतु जयतु जय शतक-निरंजन ।।८६।।

आत्म राम रम ।
आप्त राम तुम ।
पुरु पुरुषोत्तम, गुरु गुरूर हन ।
जयतु जयतु जय शतक-निरंजन ।।८७।।

सुखी न ध्याया ।
पा दुख आया ।
हित तुम छाया, चांद चकोरन ।
जयतु जयतु जय शतक-निरंजन ।।८८।।

अभय विधाना ।
धाता ! माना ।
विधि संधाना, सो तुम भगवन् ।
जयतु जयतु जय शतक-निरंजन ।।८९।।

कच ये तोरे ।
मनु प्रभु मोरे ।
डोलें भौंरे, प्रफुल्ल कंजन ।
जयतु जयतु जय शतक-निरंजन ।।९०।।

दीप तले तम ।
वृक्ष कल्प द्रुम ।
तुम जैसे तुम, कड़वा चन्दन ।
जयतु जयतु जय शतक-निरंजन ।।९१।।

और न अधिक ।
चाहूँ सिर्फ इक ।
गर्दभ माफ़िक, न ढ़ोउॅं जड़ तन ।
जयतु जयतु जय शतक-निरंजन ।।९२।।

न ज्ञान केवल ।
सु-ज्ञान के बल ।
नभ झलके जल, धन ! तुम मैं धन ! ।
जयतु जयतु जय शतक-निरंजन ।।९३।।

‘जगत’ न भाया ।
सिर तुम छाया ।
क्या कर पाया, अदन्त विष फण ।
जयतु जयतु जय शतक-निरंजन ।।९४।।

सुखी विरागी ।
परिणत जागी ।
दुखिया रागी, आत्म ज्ञान बिन ।
जयतु जयतु जय शतक-निरंजन ।।९५।।

काल अपारा ।
ज्ञान हमारा ।
सम धुनि धारा, अगम तुम शरण ।
जयतु जयतु जय शतक-निरंजन ।।९६।।

निज अवगाहूँ ।
तब तक चाहूँ ।
और न काहू, शरण तुम चरण ।
जयतु जयतु जय शतक-निरंजन ।।९७।।

पद चल तुम मग ।
धन ! नुति मस्तक ।
लख तुम धन ! दृग्, जुबां संस्तवन ।
जयतु जयतु जय शतक-निरंजन ।।९८।।

यदपि अखर जड़ ।
तदपि तुम अखर ।
जोड़ अखर स्वर, रचा तुम थवन ।
जयतु जयतु जय शतक-निरंजन ।।९९।।

तजूँ अविद्या ।
चाहूँ सद्या ।
अमृत सुविद्या, सागर ज्ञानन ।
जयतु जयतु जय शतक-निरंजन ।।१००।।

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