घाट किनार ।
तीर्थ विहार ।
शिखर पहाड़ ।
चढ़ते चढ़ते गिरनार ।
निकलें प्राण, दो वरदान ।।
जपते जपते नवकार ।
निकलें प्राण, दो वरदान ।।
दया निधान !
शरण प्रधान !
भक्त गुमान ! हे भगवान् !
लेते लेते तुम नाम,
निकलें प्राण, दो वरदान ।।
सुनते सुनते जिनवाण ।
निकलें प्राण, दो वरदान ।।
केश उखाड़ ।
तज घर-बार ।
दीक्षा धार ।
जपते जपते नवकार ।
निकलें प्राण, दो वरदान ।।
लेते लेते तुम नाम,
निकलें प्राण, दो वरदान ।
सिद्ध अनन्त ।
श्री अरिहन्त ।
साधु जयन्त ।
रटते-रटते गुरु मंत्र ।
निकलें प्राण, दो वरदान ।।
बारिश घाम ।
सुबहो शाम ।
बस निष्काम ।
लेते लेते तुम नाम,
निकलें प्राण, दो वरदान ।।स्थापना।।
रखत विवेक ।
सुमरत एक ।
भगवत् देख ।
करते करते अभिषेक ।
निकलें प्राण, दो वरदान ।
भगवा रंग ।
साधुन संग ।
साथ उमंग ।
भेंटत-भेंटत जल-गंग ।
निकलें प्राण, दो वरदान ।।जलं।।
खेवत खेव ।
जगत सदैव ।
रत श्रुत देव ।
तकते-तकते जिनदेव ।
निकलें प्राण, दो वरदान ।
दूर घमण्ड ।
नूर अखण्ड ।
शूर प्रचण्ड ।
भेंटत-भेंटत घट-गंध ।
निकलें प्राण, दो वरदान ।।चन्दनं।।
सुन छहढ़ाल ।
हन जंजाल ।
अणु व्रत पाल ।
पढ़ते पढ़ते जयमाल ।
निकलें प्राण, दो वरदान ।
भारत आन ।
स्वागत वान ।
राखत शान ।
भेंटत-भेंटत दिव-धान ।
निकलें प्राण, दो वरदान ।।अक्षतं।।
ढ़ोरत चौंर ।
खोवत दौड़ ।
लौ सिर-मौर ।
मरते-मरते हित-और ।
निकलें प्राण, दो वरदान ।।
पाप कबूल ।
जाप अमूल ।
माफी भूल ।
भेंटत-भेंटत वन-फूल ।
निकलें प्राण, दो वरदान ।।पुष्पं।।
पढ़त पुराण ।
माँ सम्मान ।
क्षमा प्रदान ।
करते-करते धन दान ।
निकलें प्राण, दो वरदान ।।
मुड़ संयोग ।
जुड़ नीरोग ।
बिछड़न शोग ।
भेंटत-भेंटत घृत-भोग
निकलें प्राण, दो वरदान ।।नैवेद्यं।।
अछत चिराग ।
उपरत राग ।
सुमरत जाग ।
करते-करते तप त्याग ।
निकलें प्राण, दो वरदान ।।
वजनी सीप ।
रजनी चीप ।
मुनी समीप ।
भेंटत-भेंटत घृत-दीप ।
निकलें प्राण, दो वरदान ।।दीपं।।
क्रोध विसार ।
शोध विचार ।
बोध सुधार ।
करते-करते उपकार ।
निकलें प्राण, दो वरदान ।।
पूर ततूर ।
चूर गुरूर ।
क्रूर सुदूर ।
भेंटत-भेंटत कस्तूर ।
निकलें प्राण, दो वरदान ।।धूपं।।
प्रीत विवेक ।
अनीत फेंक ।
विनीत एक ।
रखते-रखते डग देख ।
निकलें प्राण, दो वरदान ।।
मनुआ बाल ।
कछुआ ख्याल ।
दरिया चाल ।
भेंटत-भेंटत फल-थाल ।
निकलें प्राण, दो वरदान ।।फलं।।
खोवत ताव ।
सोऽहम् भाव ।
जो’वन ठाव ।
बैठे-बैठे गुरु छाँव ।
निकलें प्राण, दो वरदान ।।
मुक्ती घाट ।
भुक्ती छांट ।
भक्ति पाठ ।
भेंटत-भेंटत द्रव-आठ ।
निकलें प्राण, दो वरदान ।।अर्घ्य।।
पाद-मूल में आपके,
छूटे अंतिम श्वास ।
बड़ी और कोई नहीं,
छोटी सी अभिलाष ।।१।।
जिह्वा पर नर्तन करे,
महामंत्र नवकार ।
आ-रोते, रोते गया,
लूँ अब भूल सुधार ।।२।।
गला न पाया जल मुझे,
जला न पाई आग ।
देह बदलना बस मुझे,
मैं शाश्वत बड़भाग ।।३।।
वनिता बनता साथ दे,
बिटिया धन-घर-और ।
लड़के लकड़ी दे चलें,
मरघट तक तन दौड़ ।।४।।
निद्रा ना फुसला चले,
पछताया खरगोश ।
क…छुआ भीतर पूछ ना,
रखूँ जोश, रख होश ।।५।।
मांगूँ चलकर खुद क्षमा,
वैर भाव कर गौण ।
करूँ हृदय गदगद क्षमा,
धुला दूध का कौन ? ।।६।।
सुमरूँ भोगे भोग ना,
वमन चाट ले श्वान ।
शब्द विष’य में विष भरा,
चेतूँ बनूँ सुजान ।।७।।
भोजन तज, पानी तजूँ,
कर चालूँ कृश काय ।
मन्द मन्दतर कर चलूँ,
पहले सभी कषाय ।।८।।
आधि पहुँच मन तक रही,
व्याधि पहुँच बस देह ।
क्यों न लगा समाधि मैं,
रह लूँ देह विदेह ।।९।।
कायरता कुछ और ना,
काय…रता प्रतिबिम्ब ।
पीर, तीर उस जा लगे,
लिया स्वात्म अवलंब ।।१०।।
विधि धारा में बह चलूँ,
वस्तु स्वरूप विचार ।
पाल बांध भी पनडुबी,
‘सहज निराकुल’ पार ।।११।।
हूँ अमर, न मरता मैं ।
जाने क्यूँ डरता मैं ।
बस मुझे बदलना तन,
पर कहाँ समझता मैं ।।
चल सकी न मनमानी ।
हारा मुझसे पानी ।।
मैं गला नहीं ।
मैं जला नहीं ।
जा आग दमकता मैं ।
हूँ रतन, न जलता मैं ।
गलाये, न गलता मैं ।
कह रहा ‘निधन’ मैं धन,
पर कहाँ समझता मैं ।
जाने क्यूँ डरता मैं ।
हूँ अमर, न मरता मैं ।।१।।
पनडूब न पार हुई ।
शस्त्रों की हार हुई ।
मैं कटा नहीं ।
मैं घटा नहीं ।
चढ़ शान चमकता मैं ।
हूँ वज्र, न घटता मैं ।
काटे ना कटता मैं ।
तन जड़, मैं चित् चेतन ।
कह रहा ‘निधन’ मैं धन,
पर कहाँ समझता मैं ।
जाने क्यूँ डरता मैं ।
हूँ अमर, न मरता मैं ।।२।।
ला सकी न बर्बादी ।
पुरजोर चली आँधी ।
मैं झिरा नहीं ।
मैं गिरा नहीं ।
हूँ मेरु, न गिरता मैं ।
झिराये, न झिरता मैं ।
हूँ निरा…कुल, ज्ञान घन ।
तन जड़, मैं चित् चेतन ।
कह रहा ‘निधन’ मैं धन,
पर कहाँ समझता मैं ।
जाने क्यूँ डरता मैं ।
हूँ अमर, न मरता मैं ।।
बस मुझे बदलना तन,
पर कहाँ समझता मैं ।।३।।
हो मेरा मरण समाधी ।
कहती रहती मॉं दादी ।।
बस यही भावना मेरी,
आदिम तीर्थंकर आदी ।।
हो मेरा मरण समाधी ।।
बड़ता व्यामोह घटाऊँ ।
धर समता सब सह जाऊँ ।।
रटना नवकार लगाऊँ ।
हो सीप बराबर चांदी ।।
आदिम तीर्थंकर आदी ।
बस यही भावना मेरी,
हो मेरा मरण समाधी ।।१।।
रोगों का दुख न मनाऊँ ।
भोगों को सिर न चढ़ाऊँ ।
लोगों का लौटा आऊँ ।
धर पाऊँ धरा उपाधी ।।
आदिम तीर्थंकर आदी ।
बस यही भावना मेरी,
हो मेरा मरण समाधी ।।२।।
बेसुध मृग भांत न दौडूँ ।
‘मैं हूँ ना’ कहना छोडूँ ।
खुद रेत घरौंदा फोडूँ ।
बढ़ तोडूँ गहल अनादी ।
आदिम तीर्थंकर आदी ।
बस यही भावना मेरी,
हो मेरा मरण समाधी ।।३।।
बनती कोशिश गम खाऊँ ।
गट-गट गुस्सा पी जाऊँ ।
तरु भांत ‘सफल’ झुक जाऊँ ।
दूँ चीर चादरा खादी ।।
आदिम तीर्थंकर आदी ।
बस यही भावना मेरी,
हो मेरा मरण समाधी ।।४।।
लख आपद ‘पद’ लौटाऊँ ।
कद कांधे चढ़ न बढ़ाऊँ ।
मद मादकता विघटाऊँ ।
मिस काल न बनूँ प्रमादी ।
आदिम तीर्थंकर आदी ।
बस यही भावना मेरी,
हो मेरा मरण समाधी ।।५।।
दो वर ।
हो भर सु…मरण, तुम दर ।
ईश्वर !
सन्मत !
नुति पद सुनते, चुनते श्रुति पद ।
तरणा !
करुणा भज के, तज के घिरिणा ।
ना घिर,
ना गिर सोचा, बोझा ना सिर ।
थोड़ा,
जोड़ा छोडूँ, जोडूँ डोरा ।
रिश्ता,
रिसता कापूँ, नापूँ रस्ता ।
अपना,
सपना साधूँ, साधू होकर ।
दो वर ।
हो भर सु…मरण, तुम दर ।
ईश्वर !
मन मरण समाधि जोडूँ ।
बाना दैगम्बर ओढूँ ।।
वनिता बनता रो लेगी ।
बिटिया चिठिया खोलेगी ।।
बेटा सजायगा अर्थी,
सच बड़ी स्वार्थी दुनिया ।
क्यों न इससे मुख मोडूँ ।
मन मरण समाधि जोडूँ ।।१।।
चर्चित ही बगुला भगती ।
लड़ते भाई हित धरती ।
तन भखे श्यलिनी बन मॉं,
बाना दैगम्बर ओढूँ ।
सच बड़ी स्वार्थी दुनिया ।।
क्यों न इससे मुख मोडूँ ।
मन मरण समाधि जोडूँ ।।२।।
लख श्वान श्वान गुर्राना ।
मछली का मछली खाना ।।
घर काकी ‘छोरे’ कोयल,
नारियल कहे ‘गिरि’ छोडूँ ।
सच बड़ी स्वार्थी दुनिया ।।
क्यों न इससे मुख मोडूँ ।
मन मरण समाधि जोडूँ ।।३।।
कब देखे कीचड़ आंखें ।
लें जान भ्रमर, गुल पांखें ।।
लौ झुलसे ‘पर’ परवाने,
है पीठ, वहॉं मुख मोडूँ ।
सच बड़ी स्वार्थी दुनिया ।।
क्यों न इससे मुख मोडूँ ।
मन मरण समाधि जोडूँ ।।४।।
शिशु बिल्ली मुख उस चूहा ।
छू जा पर लगते चूज़ा ।।
तम दाबे दुम परछाई,
बढ़ रेत घरौंदा फोडूँ ।
सच बड़ी स्वार्थी दुनिया ।।
क्यों न इससे मुख मोडूँ ।
मन मरण समाधि जोडूँ ।।५।।
मुख नागिन अपने बच्चे ।
गुलदस्ते कांटे गुच्छे ।।
बस नाम ‘कृपा-ना’ धरती ।
सुन हिल’ना अब ना दौडूँ ।।
सच बड़ी स्वार्थी दुनिया ।।
क्यों न इससे मुख मोडूँ ।
मन मरण समाधि जोडूँ ।।६।।
तुम्हें न भूलूँ ।
अम्बर छू लूँ ।
देहांत के समय ।
सिर्फ इतनी विनय ।
सिर्फ इतनी विनय ।।
समता भज के ।
ममता तज के ।।
करूँ इन्द्रिय विजय ।
तुम्हें न भूलूँ ।
अम्बर छू लूँ ।
देहांत के समय ।।१।।
नवकार भजूँ ।
सिर भार तजूँ ।
रखूँ करुणा हृदय ।
तुम्हें न भूलूँ ।
अम्बर छू लूँ ।
देहांत के समय ।।२।।
सब कुछ सह लूँ ।
विधिवत् रह लूँ ।
रखूँ लाज दृग द्वय ।
तुम्हें न भूलूँ ।
अम्बर छू लूँ ।
देहांत के समय ।।३।।
तन है मृणमय ।
धन ! मैं चिन्मय ।
रह पाऊँ निर्भय ।
तुम्हें न भूलूँ ।
अम्बर छू लूँ ।
देहांत के समय ।।४।।
केत अहिंसा ।
जागे हंसा-
बोध पानीय पय ।
तुम्हें न भूलूँ ।
अम्बर छू लूँ ।
देहांत के समय ।।५।।
बच आदि कहे ।
बस याद रहे ।
सुख ‘निराकुल’ निलय ।
तुम्हें न भूलूँ ।
अम्बर छू लूँ ।
देहांत के समय ।
सिर्फ इतनी विनय ।
सिर्फ इतनी विनय ।।६।।
जब इस जग से जाऊँ ।
प्रभु तुमको न भुलाऊँ ।।
कर दूँ क्षमा सभी को ।
अपने सगे सभी तो ।
मांगूँ क्षमा सभी से,
कह किसे गैर आऊँ ।
प्रभु तुमको न भुलाऊँ ।।
जब इस जग से जाऊँ ।।१।।
पीड़ा न कहूँ, सह लूँ ।
जल भिन्न कमल रह लूँ ।।
तन जो मुझे बदलना,
ना डरूँ, न घबराऊँ ।
प्रभु तुमको न भुलाऊँ ।।
जब इस जग से जाऊँ ।।२।।
तज अन्न, तजूँ पानी ।
छक पीऊँ जिनवाणी ।।
सत्संग करूँ निश दिन,
रट अरिहन्त लगाऊँ ।
प्रभु तुमको न भुलाऊँ ।।
जब इस जग से जाऊँ ।।३।।
मन की तरंग मारूँ ।
मुनि भेष, जाग धारूँ ।।
तज द्वेष, राग त्यागूँ,
भोगे न भोग ध्याऊँ ।
प्रभु तुमको न भुलाऊँ ।।
जब इस जग से जाऊँ ।।४।।
बेटे को न दुलारूँ ।
बिटिया को न पुकारूँ ।।
न संभालूँ वनिता को,
दीप अपना जगाऊँ ।
प्रभु तुमको न भुलाऊँ ।।
जब इस जग से जाऊँ ।
प्रभु तुमको न भुलाऊँ ।।५।।
यह वर पाऊँ ।
तुम को ध्याउँ ।
जाते-जाते,
इस दुनिया से, जाते-जाते ।
ना भय खाऊँ ।
ना घबड़ाऊँ ।
जाते-जाते,
इस दुनिया से, जाते-जाते ।
रूठे माया ।
छूटे काया ।
जाते-जाते,
इस दुनिया से, जाते-जाते ।
आते-आते,
इस दुनिया में, आते-आते ।
क्या था लाया ।
खाली आया ।
कफन सजाऊँ ।
दृग् न भिंजाऊँ ।
जाते-जाते,
इस दुनिया से, जाते-जाते ।।१।।
कर गुरु सेवा ।
तर अरु खेवा ।
गाते-गाते गुण पुरु देवा ।।
चिर सो जाऊँ ।
कफन सजाऊँ ।
दृग् न भिंजाऊँ ।
जाते-जाते,
इस दुनिया से, जाते-जाते ।
आते-आते,
इस दुनिया में, आते-आते ।
क्या था लाया ।
खाली आया ।।२।।
लाँघ न रेखा ।
जगा विवेका ।
लाते-लाते जल अभिषेका ।।
जग से जाऊँ ।
कफन सजाऊँ ।
दृग् न भिंजाऊँ ।
जाते-जाते,
इस दुनिया से, जाते-जाते ।
आते-आते,
इस दुनिया में, आते-आते ।
क्या था लाया ।
खाली आया ।।३।।
ठुकरा जड़ को ।
विसरा घर को ।
छाते-छाते तरु से पर को ।।
प्राण गवाऊँ ।
कफन सजाऊँ ।
दृग् न भिंजाऊँ ।
जाते-जाते,
इस दुनिया से, जाते-जाते ।
आते-आते,
इस दुनिया में, आते-आते ।
क्या था लाया ।
खाली आया ।।४।।
नमकर जिन को ।
हरकर तम को ।
खाते-खाते मन भर गम को ।।
श्वास सिराऊँ ।
कफन सजाऊँ ।
दृग् न भिंजाऊँ ।
जाते-जाते,
इस दुनिया से, जाते-जाते ।
आते-आते,
इस दुनिया में, आते-आते ।
क्या था लाया ।
खाली आया ।।५।।
करते धारा ।
कहते हारा ।
भाते-भाते भावन भारा ।।
शून समाऊँ ।
कफन सजाऊँ ।
दृग् न भिंजाऊँ ।
जाते-जाते,
इस दुनिया से, जाते-जाते ।
आते-आते,
इस दुनिया में, आते-आते ।
क्या था लाया ।
खाली आया ।।६।।
पार परीक्षा ।
पढ़ अर कक्षा ।
पाते पाते जैनी दीक्षा ।।
यम टकराऊँ ।
कफन सजाऊँ ।
दृग् न भिंजाऊँ ।
जाते-जाते,
इस दुनिया से, जाते-जाते ।
आते-आते,
इस दुनिया में, आते-आते ।
क्या था लाया ।
खाली आया ।।७।।
यम न माने बिन ले जाये ।
श्वास जब रुक रुक के आये ।।
डाल दूँ अस्त्र शस्त्र सारे ।
धार बह लगूँ उस किनारे ।।१।।
क्रोध पीलूँ गम खाऊँ मैं ।
भोग भोगे न ध्याऊँ मैं ।।
लगा नवकार मंत्र रटना,
आग दरिया तर आऊँ मैं ।।२।।
जुडूँ ना जोडूँ, तज जोड़ा ।
बने धो लूँ चीवर ओढ़ा ।
विसारूँ होड़ बैल तेली,
दौड़ मरु-भू मृग दम तोड़ा ।।३।।
उठी क्या मन तरंग मारूँ ।
हृदय में सप्त भंग धारूँ ।
पराये कहां कर्म अपने,
क्यों न इस बार जंग हारूँ ।।४।।
कषायों का तोडूँ घेरा ।
कह सकूँ, मेरा भी तेरा ।
रात सपना, न प्रात अपना,
मुंदी आंखें, उजड़े मेला ।
यम न माने बिन ले जाये ।
श्वास जब रुक रुक के आये ।।
डाल दूँ अस्त्र शस्त्र सारे ।
धार बह लगूँ उस किनारे ।।५।।
भगवन् आदी ओ !
मेरे भगवन् आदी ओ !
तेरे पादमूल में मेरा,
मरण समाधी हो ।
और न बस इतनी करुणा की,
बरषा कर दीजो ।।
वन्दन नन्त निरंजन चाहूँ ।
दया पन्थ अभिनन्दन चाहूँ ।
सन्त चरण रज चन्दन चाहूँ ।
तब जब लाये मृत्यु देवता,
अंधी आंधी को ।
तेरे पादमूल में मेरा,
मरण समाधी हो ।
भगवन् आदी ओ !
मेरे भगवन् आदी ओ !
और न बस इतनी करुणा की,
बरषा कर दीजो ।।१।।
रटना मैं नवकार लगाऊँ ।
बनता में सिर भार हटाऊँ ।
पर नामे दृग् धार बहाऊँ ।
जीवन रेखा शून बनाये,
यम जब गादी को ।
तेरे पादमूल में मेरा,
मरण समाधी हो ।
भगवन् आदी ओ !
मेरे भगवन् आदी ओ !
और न बस इतनी करुणा की,
बरषा कर दीजो ।।२।।
धार न भोगे भोग बहूँ मैं ।
धार धैर्य, अत-रोग सहूँ मैं ।
ध्यान अग्नि संजोग दहूँ मैं ।
जब आ धमके काल लूटने,
संयम चांदी को ।
तेरे पादमूल में मेरा,
मरण समाधी हो ।
भगवन् आदी ओ !
मेरे भगवन् आदी ओ !
और न बस इतनी करुणा की,
बरषा कर दीजो ।।३।।
नम जाऊँ, रिश्ता सी आऊँ ।
गम खाऊँ, गुस्सा पी जाऊँ ।
रम जाऊँ किस्सा ‘भी’ पाऊँ ।
जब आ मौत चीरना चाहे,
जीवन खादी को ।
तेरे पादमूल में मेरा,
मरण समाधी हो ।
भगवन् आदी ओ !
मेरे भगवन् आदी ओ !
और न बस इतनी करुणा की,
बरषा कर दीजो ।।४।।
करूँ क्षमा, सज लोचन पानी ।
करूँ क्षमा, भज मोहन वाणी ।
रहूँ क्षमा, तज भोजन पानी ।
यम जब करे चार खाने चित्,
तन फौलादी को ।
तेरे पादमूल में मेरा,
मरण समाधी हो ।
भगवन् आदी ओ !
मेरे भगवन् आदी ओ !
और न बस इतनी करुणा की,
बरषा कर दीजो ।।५।।
मैदान छोड़ ना भागूँ ।
जब जग से जाने लागूँ ।।
ललकार सकूँ मैं यम को ।
दो इतना साहस हमको ।।१।।
सह चलूँ अत्त रोगों के ।
सुमरूँ ना सुख भोगों के ।।
सर झुका क्षमा मांगूँ मैं,
दिल दुखे अगर लोगों के ।।२।।
बिछुड़ी वधु मुक्ति खबर लूँ ।
सीढ़ी शिव भक्ति डगर लूँ ।।
संस्कार साथ जाते हैं,
बनता नवकार सुमर लूँ ।।३।।
ना अपनी ‘नारी’ मानी ।
धन औरन बिटिया रानी ।।
मरते ही फौरन बेटा-
फूंके, काया जल जानी ।।४।।
ले दो चममक ना रगडूँ ।
उखड़ा बरगद ना अकडूँ ।।
सिध नेक मटर गस्ती बिन,
दूँ जगह और, मैं सिकडूँ ।।५।।
ना डरूँ, परिक्षा दूँ मैं ।
जैनेश्वरि दीक्षा लूँ मैं ।।
ली शिक्षा, दूजी कक्षा,
मुझ और भले सिर घूमें ।।६।।
सब उतार चेहरे चेहरा ।
अब पहरी बन, दूँ पहरा ।।
आ धमके काल अचानक,
कब सुनता, थोड़ा बहरा ।।७।।
बह लूँ धन ! विधि धारा में ।
रह लूँ सन्निधि बारा में ।।
गल-’हार’ जीत अपनों से,
कह लूँ सुन ! विधि, हारा मैं ।।
मैदान छोड़ ना भागूँ ।
जब जग से जाने लागूँ ।।
ललकार सकूँ मैं यम को ।
दो इतना साहस हमको ।।८।।
काल सजा लाये जब डोला ।
ना भय खाऊँ ।
ना घबडाऊँ ।।
राजी खुशी उतारूँ चोला ।।
जला न सका मुझे अंगारा ।
गला न सकी मुझे जलधारा ।।
चले न मुझपे जादू काला ।
अचिन्त्य मेरा, वैभव-न्यारा ।
अजर अमर मैं,
अविनश्वर मैं ।
राज सभी ग्रन्थों ने खोला ।
मुझे अछर सन्तों ने बोला ।।
काल सजा लाये जब डोला ।
ना भय खाऊँ ।
ना घबडाऊँ ।।
राजी खुशी उतारूँ चोला ।।१।।
उड़ा न पाई मुझको आंधी ।
तोते उड़ा न पाई व्याधि ।।
मन को धमका पाई आधि ।
अचिन्त्य मेरा, वैभव-न्यारा ।
नासा निरखी लगी समाधि ।।२।।
वज्र प्रहार, गया न चूरा ।
समुद्र हारा, मैं ना डूबा ।।
आया घेरे, जिसने घूरा ।।
अचिन्त्य मेरा, वैभव-न्यारा ।
अहा ! ज्ञान घन, मैं न अधूरा ।।३।।
मुझे कतरनी कतर न पाई ।
अस्त्र शस्त्र ने मुंह की खाई ।।
चली न विष ने भली चलाई ।।
अचिन्त्य मेरा, वैभव-न्यारा ।
दूर न गुण अनन्त ठकुराई ।
चले न मुझपे जादू काला ।
अचिन्त्य मेरा, वैभव-न्यारा ।
अजर अमर मैं,
अविनश्वर मैं ।
राज सभी ग्रन्थों ने खोला ।
मुझे अछर सन्तों ने बोला ।।
काल सजा लाये जब डोला ।
ना भय खाऊँ ।
ना घबडाऊँ ।।
राजी खुशी उतारूँ चोला ।।४।।
हो समाधि पूर्वक अवसान ।
बस इतना दे दो वरदान ।।
मुक्त-पुरी का ताज न चाहूँ ।
चक्रवर्ती साम्राज्य न चाहूँ ।।
ना चाहूँ मैं स्वर्ग विमान ।
बस इतना दे दो वरदान ।
हो समाधि पूर्वक अवसान ।।१।।
चाहूँ अरहन पादमूल हो ।
चाहूँ सन्तन पाद धूल हो ।।
गूंजे सद्-ग्रन्थन स्वर कान ।
बस इतना दे दो वरदान ।
हो समाधि पूर्वक अवसान ।।२।।
नूर आसमानी ना चाहूँ ।
लासानी कुहनूर ना चाहूँ ।।
ना चाहूँ कस्तूर प्रधान ।
बस इतना दे दो वरदान ।
हो समाधि पूर्वक अवसान ।।३।।
चाहूँ नित नवकार सुमरना ।
चाहूँ हो सिर भार उतरना ।।
हो अब सके स्वपर पहचान ।
बस इतना दे दो वरदान ।
हो समाधि पूर्वक अवसान ।।४।।
मैं जा-दुई चिराग ना चाहूँ ।
मैना सुन्दर भाग ना चाहूँ ।।
ना चाहूँ मैं नन्द बगान ।
बस इतना दे दो वरदान ।
हो समाधि पूर्वक अवसान ।।५।।
चाहूँ क्षमा माँग पाऊँ मैं ।
गोली गुमां दाग पाऊँ मैं ।।
कर दूँ क्षमा भूल नादान ।
बस इतना दे दो वरदान ।
हो समाधि पूर्वक अवसान ।।६।।
चिंता मणी रतन न चाहूँ ।
पारस मणी सुपन ना चाहूँ ।।
ना चाहूँ निधि अछत खदान ।
बस इतना दे दो वरदान ।
हो समाधि पूर्वक अवसान ।।७।।
चाहूँ भोगे भोग न ध्याऊँ ।
पीड़ा रोग सहन कर जाऊँ ।।
हैं संयोग दुखद लूँ जान ।
बस इतना दे दो वरदान ।
हो समाधि पूर्वक अवसान ।।८।।
विदिश् रु-दिश् हो जश ना चाहूँ ।
मनस् मनस् हो वश ना चाहूँ ।।
ना चाहूँ सिर छत्र वितान ।
बस इतना दे दो वरदान ।
हो समाधि पूर्वक अवसान ।।९।।
चाहूँ बनता त्याग अराधूँ ।
बनती कोशिश राग विराधूँ ।।
है सार्थक सु…मरण दूँ ध्यान ।
बस इतना दे दो वरदान ।
हो समाधि पूर्वक अवसान ।।१०।।
और न, बस यह अभिलाषा ।
जब निकले अंतिम श्वासा ।।
अभिवन्दन सद्-ग्रन्थों का ।
दर्शन हो अरिहन्तों का ।
हो सम्बोधन सन्तों का ।
करूँ सार्थ ‘मन्-दर’ वासा ।।
और न बस यह अभिलाषा ।
जब निकले अंतिम श्वासा ।।१।।
लीला विसरूँ भोगों की ।
पीड़ा सह लूँ रोगों की ।
प्रीति तजूँ संयोगों की ।
भरा न भरूँ गर्त आशा ।।
और न बस यह अभिलाषा ।
जब निकले अंतिम श्वासा ।।२।।
साध अखर अन्तस् पैठूँ ।
बांध कमर कसकर बैठूँ ।
तोते उड़े न यूँ लेटूँ ।
दृष्टि टिका रक्खूँ नासा ।।
और न बस यह अभिलाषा ।
जब निकले अंतिम श्वासा ।।३।।
कर दूँ त्याग अन्न जल का ।
तज दूँ बोझ, बनूँ हल्का ।
रमूँ ज्ञान केवल झलका ।
रहूँ न बन इन्द्रिय दासा ।।
और न बस यह अभिलाषा ।
जब निकले अंतिम श्वासा ।।४।।
कर हूँ क्षमा, क्षमा मांगूँ ।
तज दूँ गुमां, सदा जागूँ ।
न भाग लूँ, ना रण भागूँ ।
समझूँ सु…मरण परिभाषा ।।
और न बस यह अभिलाषा ।।५।।
आ कोई, दे सुना कान में ।
जाने से पहले मसान में ।।
महामंत्र नवकार ।
मानूँगा उपकार ।
उसका मानूँगा उपकार ।।
झुलसे नाग नागिनी कारे ।
राजकुंवर पारस ने तारे ।।
सुना मंत्र नवकार ।
था माना उपकार ।
उनने था माना उपकार ।।
आ उपसर्ग निवार ।
उनने था माना उपकार ।।१।।
देख बैल अंतिम पल आया ।
सेठ पद्म रुचि ने सहलाया ।।
सुना मंत्र नवकार ।
था माना उपकार ।
उसने था माना उपकार ।।
ला सीता इस पार ।
उसने था माना उपकार ।।२।।
पड़ा श्वान खा मार करारी ।
जीवंधर ने दुगर्ति टाली ।।
सुना मंत्र नवकार ।
था माना उपकार ।
उसने था माना उपकार ।।
घेरे कूप निकाल ।
उसने था माना उपकार ।।३।।
बकरा होते देख हलाला ।
चारुदत्त ने ‘भाग’ संभाला ।।
सुना मंत्र नवकार ।
था माना उपकार ।
उसने था माना उपकार ।।
देख विघन बन ढ़ाल ।
उसने था माना उपकार ।।४।।
आ कोई, दे सुना कान में ।
जाने से पहले मसान में ।।
महामंत्र नवकार ।
मानूँगा उपकार ।
उसका मानूँगा उपकार ।।
ओ ! दया छमा अवतारी ।
ओ ! गुण अनंत भण्डारी ।।
बस यही भावना म्हारी,
हो मरण समाधि मेरा ।
नटखट या भोला भाला ।
मन का गोरा या काला ।।
हंसा या बगुला चेरा ।
हूँ जैसा अपना तेरा ।।
व्यामोह घटाऊँ घर से ।
व्यामोह मिटाऊँ पर से ।
मैं द्रोह हटाऊँ जड़ से ।
हो उर से दूर अंधेरा ।
बस यही भावना म्हारी,
हो मरण समाधि मेरा ।।१।।
खनखन पैसों की भूलूँ ।
अनबन जैसे हो भूलूँ ।
सुमिरन जैसो ना भूलूँ ।
ना भूलूँ, उजड़े मेला ।
बस यही भावना म्हारी,
हो मरण समाधि मेरा ।।२।।
कुछ कहूँ न, सब कुछ सह लूँ ।
विधि राखे विधि उस रह लूँ ।
तट बीच सिन्धु तक बह लूँ ।
कह लूँ मेरा सो तेरा ।
बस यही भावना म्हारी,
हो मरण समाधि मेरा ।।३।।
चंचलता पास न भटकूँ ।
उत्सुकता दामन झटकूँ ।
अमि झरता माहन गटकूँ ।
हटकूँ मन नव-नव फेरा ।
बस यही भावना म्हारी,
हो मरण समाधि मेरा ।।४।।
वनिता घर-बार भुलाऊँ ।
मन का व्यापार घटाऊँ ।
रटना नवकार लगाऊँ ।
ध्याऊँ निज आत्म घनेरा ।
बस यही भावना म्हारी,
हो मरण समाधि मेरा ।
नटखट या भोला भाला ।
मन का गोरा या काला ।।
हंसा या बगुला चेरा ।
हूँ जैसा अपना तेरा ।।५।।
मुझको न जला पाई आगी ।
पानी न गला, मैं बड़-भागी ।।
अद्भुत सा हूँ,
मैं खुद सा हूँ,
अब तक न लाग दुश्मन लागी ।।१।।
आये लेने जब यमराजा ।
उठ स्वयं खोल दूँ दरवाजा ।।
ना घबड़ाऊँ,
ना भय खाऊँ,
चल दूँ, कह तू पीछे आ जा ।।२।।
मैं जेब बदलता सिक्कों सा ।
मैं अजर अमर हूँ सिद्धों सा ।।
बदलूँ तन मैं,
हूँ चेतन मैं,
मैं देह विदेही सन्तों सा ।।३।।
मुख अगनी दे सुत, परिपाटी ।
बेटी घर और चली जाती ।।
सपने भर हैं,
अपने पर हैं,
पत्नी घर देहरी तक साथी ।।४।।
मॉं कूख दुशाला तन ओढ़ा ।
कब अपना, रह जाना जोड़ा ।।
खाली जाता,
क्या लाया था,
विरथा दौड़ाऊँ मन घोड़ा ।।५।।
भू धर्म बीज सत्कृत बोये ।
हित स्वयं न, जो परहित रोये ।।
गुल मुस्काये,
तरु फल पाये,
वे प्राप्त न, चिर निद्रा सोये ।।६।।
जो बोया, वह मैं काटूँगा ।
खुश रहने, खुशियॉं बाटूँगा ।।
पिछला भूलूँ,
अगली सुध लूँ,
कल दुष्कृत खाई पाटूँगा ।।।।
आये लेने जब यमराजा ।
उठ स्वयं खोल दूँ दरवाजा ।।
ना घबड़ाऊँ,
ना भय खाऊँ,
चल दूँ, कह तू पीछे आ जा ।।७।।
भगवान् ! न तुम्हें भुलाऊँ ।
मैं मरण समाधि पाऊँ ।।
जुड़ पाऊँ मैं शिव मग से ।
जाते जाते इस जग से ।।
भगवान् ! न तुम्हें भुलाऊँ ।
बस यही भावना भाऊँ ।।१।।
बन सके करूँ कृश काया ।
पहले कृश करूँ कषाया ।।
अघ शत्रु कतार बिठाऊँ ।
बस यही भावना भाऊँ ।।२।।
कर भूल क्षमा भूलों की ।
लूँ माँग क्षमा भूलों की ।।
रट ‘सिद्धम् नमः’ लगाऊँ ।
बस यही भावना भाऊँ ।।३।।
विध रखे, रहूँ उस विधि मैं ।
सुध रखूँ, लखूँ निज निधि मैं ।।
ज्ञायक बस नाम न पाऊँ ।
बस यही भावना भाऊँ ।।४।।
हट संयोगों से रह लूँ ।
संकट रोगों के सह लूँ ।।
मन भोगे भोग हटाऊँ ।
बस यही भावना भाऊँ ।।५।।
कुछ लखने लायक लिख लूँ ।
लिख और न अब कुछ लख लूँ ।।
लिक्खा मन स्लेट मिटाऊँ ।
बस यही भावना भाऊँ ।।६।।
तन मृणमय मिट्टी गारा ।
मैं चिन्मय चेतन न्यारा ।।
यह दृढ श्रद्धान जमाऊँ ।
बस यही भावना भाऊँ ।।७।।
पा प्रणय-पाति गहलों की ।
ओढूँ चूनर पलकों की ।।
परिणत मत हंस रिझाऊँ ।
बस यही भावना भाऊँ ।।८।।
‘कल’ छूटे, छोड़ न दूँ क्यों ।
‘गिरि’ कहे, जोड़ रक्खूँ क्यों ।।
सुख सहज ‘निरा-कुल’ पाऊँ ।।
बस यही भावना भाऊँ ।।९।।
यह वर दो भगवन् ।
तेरा सुमरण करते-करते, हो मेरा सु’मरण ।
दया पन्थ पद रखते-रखते ।
महा-मंत्र पद जपते-जपते ।।
करते करते गुम तरंग मन,
हो मेरा सु’मरण ।
यह वर दो भगवन् ।।१।।
भीतर और उतारता जाऊँ ।
भीतर आ मैं भी-तर आऊँ ।।
ले रटना सोऽम् अवलंबन ।
यह वर दो भगवन् ।
तेरा सुमरण करते-करते,
हो मेरा सु’मरण ।।२।।
कलशा धारें करते-करते ।
कलशा धारें चलते-चलते ।।
करते-करते कल सा जीवन ।
हो मेरा सु’मरण ।
यह वर दो भगवन् ।।३।।
मागूँ क्षमा कान पकडूँ मैं ।
कर दूँ क्षमा मान बिछडूँ मैं ।
ना अकडूँ लख हस्र दशानन ।
यह वर दो भगवन् ।
तेरा सुमरण करते-करते,
हो मेरा सु’मरण ।।४।।
मोती-पन्ने भजते-भजते ।
मोती-पन्ने तजते-तजते ।।
करते-करते मोती अर्पण ।
हो मेरा सु’मरण ।
यह वर दो भगवन् ।।५।।
‘अर जी’ की मर्जी से रह लूँ ।
पीड़ा, दर्द, वेदना सह लूँ ।।
दहलूँ लेख देख दुख नरकन ।
यह वर दो भगवन् ।
तेरा सुमरण करते-करते,
हो मेरा सु’मरण ।।६।।
पीर पराई हरते-हरते ।
धीर सगाई करते-करते ।।
पढ़ते-पढ़ते वीर संस्-तवन ।
हो मेरा सु’मरण ।
यह वर दो भगवन् ।।७।।
बीज बपे अब डरना क्या है ? ।
कीचड़ स्वर्ण बिगड़ना क्या है ? ।।
करूँ मृत्यु का बढ़ आलिंगन ।
यह वर दो भगवन् ।
तेरा सुमरण करते-करते,
हो मेरा सु’मरण ।।८।।
और न, बस इतना कर देना ।
काल पुकारे ।
खड़ा दुवारे ।
खबर हमारी तब ले लेना ।।१।।
सोने सा दिन चाँदी रैना ।
छोरे, साथिन तारे नैना ।।
हो अफसोस न जब ये छूटें,
और न, बस इतना कर देना ।
काल पुकारे ।
खड़ा दुवारे ।
खबर हमारी तब ले लेना ।।२।।
आते जब हम, खाली आते ।
जाते तब, हम खाली जाते ।।
छूटी माया, यहीं कमाया ।।
जाने किसका रंज मनाते ।।३।।
कोई नई घटे कब घटना ? ।
हुआ न क्या इति’हास पलटना ।।
नाम ‘सराय’ न रहे राय जग,
हम तो छुट-पुट कोई भट ना ।।४।।
अब तक बूझ न सका पहेली ।
यूँ मेरी मति-हंस सहेली ।।
जा फिर मुझे यही आ जाना,
मुझे बदलना देह अकेली ।।५।।
तुम सिमरन ।
समय मरण ।।
कर पाऊँ ।
वर पाऊँ ।।
बस अर्जी ।
तुम मर्जी ।।
रह पाऊँ ।
सह पाऊँ ।।
रोगों को ।
भोगों को ।।
सुमरूँ ना ।
सिहरूँ ना ।।
लख मृत्यू ।
अक्षर हूँ ।।
सोचूँ मैं ।
पोछूँ मैं ।।
दृग-धारा ।
क्षयकारा ।।
जयकारा ।
दे थारा ।।
हे भगवन् ! ।
तुम सिमरन ।
समय मरण ।।
कर पाऊँ ।
वर पाऊँ ।।
बस अर्जी ।
ज्ञाता तीन जहान !
दाता दीन महान !
आदिनाथ भगवान्, मेरे आदिनाथ भगवान् !
गोद तुम्हारी, सिर हो मेरा,
और नीसरे प्राण ।।
मनके णमोकार फेरूँ मैं ।
मनके पाप भाव फेरूँ मैं ।
वन के जोवन दूँ फेरूँ मैं ।
छोड़ छाड़ के नाम चाम से,
जुड़ी हुई पहचान ।
गोद तुम्हारी, सिर हो मेरा,
और नीसरे प्राण ।।१।।
भोगे भोग न रह रह ध्याऊँ ।
पीड़ा रोग सहन कर जाऊँ ।
दुखद जान संजोग भुलाऊँ ।
दृग न भिजाऊँ जाते जाते,
जागृत करूँ प्रयाण ।
गोद तुम्हारी, सिर हो मेरा,
और नीसरे प्राण ।।२।।
कर दूँ क्षमा भूल भूलों की ।
करूँ कबूल क्षमा भूलों की ।
संगति और न कर गहलों की ।
धार अनोखी पैठूँ भीतर,
छेड़ स्वानुभव तान ।
गोद तुम्हारी, सिर हो मेरा,
और नीसरे प्राण ।।३।।
बने करूँ कृश भाव कषाया ।
बने करूँ कृश हा ! मन काया ।
बने रहूँ ऋषि सन्तन छाया ।
ग्रन्थन आया करूँ जुगाली,
साध आत्म कल्याण ।
गोद तुम्हारी, सिर हो मेरा,
और नीसरे प्राण ।।४।।
बस अपना चिद्रूप निहारूँ ।
धिया कूप मण्डूक बिसारूँ ।
सदैव वस्तु स्वरूप विचारूँ ।
और लिबास देह मैं बदलूँ,
जन्मूँ स्वर्ग विमान ।
गोद तुम्हारी, सिर हो मेरा,
और नीसरे प्राण ।।५।।
ज्ञाता तीन जहान !
दाता दीन महान !
आदिनाथ भगवान्, मेरे आदिनाथ भगवान् !
गोद तुम्हारी, सिर हो मेरा,
और नीसरे प्राण ।।
अहसान करो इतना भगवन् ।
है भावना, हो समाधि मरण ।।
घर से निकला लेटे लेटे ।
उल्टी साँसे लेते लेते ।।
जन्मा रोते, रोते न मरूँ,
अबकी निकलूँ बैठे-बैठे ।।१।।
बनती कोशिश नवकार चुनूँ ।
रात्रि क्या दिवस नवकार गुनूँ ।।
रह जगत जगत्, जाते जाते,
गिनती ना बस, नवकार धुनूँ ।।२।।
तन रोम रोम में रोग कई ।
मैं चिन्मय, चेतन, सौख-मयी ।।
मैं मन न लगाऊँ रोगों में,
तब रीझेगी वधु मोख कहीं ।।३।।
घर और अमानत है बिटिया ।
देहरी तक देती साथ तिया ।।
धिक् सार्थ नाम रिश्ते रिसते,
बढ़ के लड़के ने दाग दिया ।।४।।
ये महल अटारी चौबारे ।
रह जाना पड़े यहीं सारे ।।
आया, जायेगा बस हंसा,
ले किये कर्म गोरे-काले ।।५।।
अगनी न जला, न गला पानी ।
मैं पंक स्वर्ण सोला बानी ।।
है देह बदलना सिर्फ मुझे,
मैं मृत्युंजय, समरस-सानी ।।६।।
पंछी संध्या तरु आते हैं ।
दिवाली फाग मनाते हैं ।।
फुर सुबहो, परदेशी ठहरे,
गुल मना मना रह जाते हैं ।।७।।
था थमना कस्तूरी पाने ।
हिल’ना था नाम रखा मॉं ने ।।
नासमझ दौड़ चाला हिरणा,
किसको ठग चाला ना जाने ।।८।।
अहसान करो इतना भगवन् ।
है भावना, हो समाधि मरण ।।
धमकाये ।
यम आये ।
तब रख लेना ख्याल ।
कृपया दीन-दयाल ! ।।
दृग् नीरा ।
दे पीरा ।
रोग करें बेहाल ।
तब रख लेना ख्याल ।
कृपया दीन-दयाल ! ।।१।।
जप तज के ।
गप भज के ।
जुबाँ बने वाचाल ।
तब रख लेना ख्याल ।
कृपया दीन-दयाल ! ।।२।।
अरि ना’री ।
अ’रि नाड़ी ।
फंसूँ बुने खुद जाल ।
तब रख लेना ख्याल ।
कृपया दीन-दयाल ! ।।३।।
देख गलत ।
नेक हटत ।
हृदय उठे भूचाल ।
तब रख लेना ख्याल ।
कृपया दीन-दयाल ! ।।४।।
कांटे मग ।
लौटा पग ।
मन हो चले निढ़ाल ।
तब रख लेना ख्याल ।
कृपया दीन-दयाल ! ।।५।।
धमकाये ।
यम आये ।
तब रख लेना ख्याल ।
कृपया दीन-दयाल !
जब सार्थ नाम काला ।
आये बन विष प्याला ।।
तब दृष्टि उठा देना ।
विष अमृत बना लेना ।।
तन घोड़ा रूठ चले ।
धन जोड़ा छूट चले ।।
जब भिंगा चलूँ नैना ।
रख द्रव्य-दृष्टि कहना ।।
जो बाहर वो सपना ।
वो भीतर जो अपना ।।
तब दृष्टि उठा देना ।
जड़-बुद्धि मिटा देना ।।१।।
वनिता बनता रोये ।
‘मोरा’ आपा खोये ।।
डट खड़ी मोह सेना ।
रख द्रव्य-दृष्टि कहना ।।
जो बाहर वो सपना ।
वो भीतर जो अपना ।।
तब दृष्टि उठा देना ।
मति हंस जगा देना ।।२।।
आ रोग न बाद मुड़े ।
मन भोगे भोग जुड़े ।।
डूबे प्रमाद रैना ।
रख द्रव्य-दृष्टि कहना ।
भीतर कछु…आ रहना ।।
आये बन विष प्याला ।
जब सार्थ नाम काला ।।
तब दृष्टि उठा देना ।
विष अमृत बना लेना ।।३।।
नवकार सुना दें सन्त मुझे,
प्रभु भूल न जाऊँ अन्त तुझे ।।
सन्मृत्यु वरण कर पाऊँ मैं ।
उन्मुक्त चरण न उठाऊँ मैं ।।
भूलों की भूलें करूँ क्षमा ।
भूलों भी भूलें, कहूँ क्षमा ।।
परिणाम निकलने से पहले,
क्यूँ मिला न लूँ फिर खर्च जमा ।।१।।
कृश करूँ कषाय बने जितना ।
कृश करूँ काय मैं तप अपना ।।
तन को दे दूँ सार्थक ‘तन-ख्वा’,
मन गर्त हो सका कब भरना ? ।।२।।
ना भुक्त भोग फिर याद करूँ ।
ना स्वर्ग भोग फ़रियाद करूँ ।।
फिर लगा गले फण सर्प भोग,
ना भव मानव बर्बाद करूँ ।।३।।
रोगों की पीड़ा सह लूँ मैं ।
धारा विधि नीरा बह लूँ मैं ।।
तन मृणमय मैं चेतन चिन्मय,
मुझ भिन्न शरीरा कह लूँ मैं ।।४।।
हूँ अमर न जल से गलता मैं ।
अक्षर, न अग्नि से जलता मैं ।।
क्यूँ भय खाऊँ, क्यूँ घबराऊँ,
बस नश्वर देह बदलता मैं ।।५।।
सन्मृत्यु वरण कर पाऊँ मैं ।
उन्मुक्त चरण न उठाऊँ मैं ।।
नवकार सुना दें सन्त मुझे,
प्रभु ! अन्त तुझे न भूलाऊँ मैं ।।
थारी गोदी, सिर म्हारा हो ।
म्हारे सिर, हाथ तिहारा हो ।।
जब यम ने आ ललकारा हो ।
अरहन्त सिद्ध जयकारा हो ।।
कृश करता जाऊँ कषाय मैं ।
कृश करूँ काय श्रुत विधाय मैं ।।
अब चलूँ रह लिये सराय में,
इतना कहना इस बारा हो ।।१।।
अपराध क्षमा कर दूँ औरन ।
अपराध क्षमा माँगूँ फौरन ।।
लख पीछे कागा मुख कौरन,
बनिता बेड़ी, घर कारा हो ।।२।।
परिषह रोगों के सह लूँ मैं ।
राखे विधि विधि उस रह लूँ मैं ।।
शाश्वत, न सांस वत् कह लूँ मैं,
निर्मल चिंतन की धारा हो ।।३।।
जब यम ने आ ललकारा हो ।
अरहन्त सिद्ध जयकारा हो ।।
मेरा सिर, हो तेरी गोदी,
मेरे सिर, हाथ तुम्हारा हो ।।४।।
भगवन् और न यह वर चाहूँ ।
अंतिम समय न तुम्हें भुलाऊँ,
सुन कछु…आ भीतर अवगाहूँ ।।
सिद्धम्-सिद्धम् रटता जाऊँ ।।
जयकारा अरिहन्त लगाऊँ ।
जो’वन सार्थ बने घर निकले,
मुनि मुख तिन संबोधन पाऊँ ।।
भगवन् और न यह वर चाहूँ ।
अंतिम समय न तुम्हें भुलाऊँ,
सुन कछु…आ भीतर अवगाहूँ ।।१।।
‘पाल’ ज्ञान ‘केवल’ बह पाऊँ ।
रोगों की पीड़ा सह पाऊँ ।।
फिर फिर भोगे भोग न फेरूँ,
बन ज्ञाता-दृष्टा रह पाऊँ ।।
भगवन् और न यह वर चाहूँ ।
अंतिम समय न तुम्हें भुलाऊँ,
सुन कछु…आ भीतर अवगाहूँ ।।२।।
आपा ना खोऊँ, गम खाऊँ ।
पलटे म-द, द-म ले, थम जाऊँ ।।
सुनूँ ‘कि-रोध’, कपट ना साधूँ,
बन लोभी सुर’भी रम जाऊँ ।।
भगवन् और न यह वर चाहूँ ।
अंतिम समय न तुम्हें भुलाऊँ,
सुन कछु…आ भीतर अवगाहूँ ।।३।।
सिर पर रखी गांठ सरकाऊँ ।
धागे गांठ न दूँ, कतराऊँ ।
सरक-फूंद भी गांठ चलाकर,
दृग गीली, ढ़ीली कर पाऊँ ।।
भगवन् और न यह वर चाहूँ ।
अंतिम समय न तुम्हें भुलाऊँ,
सुन कछु…आ भीतर अवगाहूँ ।।४।।
दम दे, यम जब आ धमकाये ।
बिना लिवाये रोग न जाये ।।
कृपया कृपा बनाये रखना ।
कहना, ‘मैं हूँ ना’ क्या डरना ?
भोग भोगने टूट पड़े मन ।
मुड़ मुड़ भोगे भोग जुड़े मन ।
करने बंध-निदान बढ़े मन ।
आंख दिखा हा ! मा ! धिक कहना ।
कृपया कृपा बनाये रखना ।।
श्वान भांति क्यूँ उगल निकलना ।
बाद न, पूर्व वि’षय विष तकना ।
आंख दिखा हा ! मा ! धिक कहना ।
कृपया कृपा बनाये रखना ।।१।।
भिन्न देह इक ना’री बोले ।
मोरा सॅंग मरने विष घोले ।
मोरी चक्कर खाने डोले ।
कहना सकरी गली संभलना ।
कृपया कृपा बनाये रखना ।।
कोई सगा न कोई अपना ।
तोते उड़ें ‘कि तोते उड़ना ।
कहना सकरी गली संभलना ।
कृपया कृपा बनाये रखना ।।२।।
कण्ठ मॅंगाते पानी रोवे ।
क्षुधा वेदना सहन न होवे ।
लख कर्मोदय आपा खोवे ।
कहना दृष्टि द्रव्य पे रखना ।।
कृपया कृपा बनाये रखना ।।
नरक वेदना भूल न धरना ।
खाने मृदा, पीव-लहु झरना ।
कहना दृष्टि द्रव्य पे रखना ।।
कृपया कृपा बनाये रखना ।।३।।
दम दे, यम जब आ धमकाये ।
बिना लिवाये रोग न जाये ।।
कृपया कृपा बनाये रखना ।
कहना, ‘मैं हूँ ना’ क्या डरना ?
जीव कहीं, तन यहीं रह गया ।
सिद्ध नाम सत्य है कह गया ।।
रंग उड़ा, मणि जड़ा रह गया ।
जगत् खड़ा देखता रह गया ।।
सिद्ध नाम सत्य है कह गया ।।१।।
कह रहा शब्द निधन आप ही ।
चल दिया अभी अभी धन कहीं ।।
स्वर्ग सिधारे खबर उड़ चली ।
रहा धरा धरा, सकरी गली ।।२।।
तलक अब शान था गगन जमीं ।
हुआ अवसान खल रही कमी ।।
कह चले लोग मृत शरीर को ।
यानि अमृत आँख जिस नीर हो ।।३।।
थी बड़ी सन्धि, देख ना सका ।
कब थमा, भाग-भाग मृग थका ।।
सार्थ नाम गुल सुगन्धा कहीं ।
खड़ा वृक्ष, उड़ा परिन्दा कहीं ।।४।।
बस नाम के अमर देवता ।
माल मुरझा चली दे बता ।।
सिर्फ ललकार सकी आ…तमा ।
दीप मणि तले कब टिका तमा ।।५।।
रंग उड़ा, मणि जड़ा रह गया ।
जगत् खड़ा देखता रह गया ।।
जीव कहीं, तन यहीं रह गया ।
सिद्ध नाम सत्य है कह गया ।।६।।
क्रूर बेरहम ।
आ धमके यम ।
दो वर, ईश्वर ।
भय ना खाऊँ ।
ना घबड़ाऊँ ।
बढ़ाऊँ कदम ।।१।।
सह लूँ पीड़ा ।
रह लूँ नीरा ।
कह लूँ लीला ।
पूर्व कृत करम ।
सर…गम सरगम ।।
क्रूर बेरहम ।
आ धमके यम ।
दो वर, ईश्वर ।
भय ना खाऊँ ।
ना घबड़ाऊँ ।
बढ़ाऊँ कदम ।।२।।
ले लूँ माफी ।
दे दूँ माफी ।
हावी हांफी ।
क्यूँ न चलूँ थम ।
ले अखियाँ नम ।।
क्रूर बेरहम ।
आ धमके यम ।
दो वर, ईश्वर ।
भय ना खाऊँ ।
ना घबड़ाऊँ ।
बढ़ाऊँ कदम ।।३।।
गला न धारा ।
जला ना ज्वाला ।
बला न हारा ।
हूँ मैं सत्यम् ।
शिवम् सुन्दरम् ।।
क्रूर बेरहम ।
आ धमके यम ।
दो वर, ईश्वर ।
भय ना खाऊँ ।
ना घबड़ाऊँ ।
बढ़ाऊँ कदम ।।४।।
यम एक बात न माने ।
अड़ चले साथ ले जाने ।।
इतना साहस भर देना ।
बढ़ स्वयं नाव हो खेना ।।१।।
आपा ना खोऊँ ।
कॅंप उठूँ न रोऊँ ।
खोऊँ निज में दिन रैना ।
इतना साहस भर देना ।।२।।
रोगों को सह लूँ ।
ठग, भोला कह लूँ ।
हो विधि धारा में बहना ।
इतना साहस भर देना ।।३।।
कृष करूँ कषाया ।
तन कहूँ पराया ।
लूँ बजा बांसुरी चैना ।
इतना साहस भर देना ।।४।।
रट ओम् लगाऊँ ।
पट व्योम बनाऊँ ।
लहरा पाऊँ ध्वज जैना ।
इतना साहस भर देना ।।५।।
जोडूँ बढ़ आगे ।
टूटे मण धागे ।
ले वयना मिसरी मैना ।
इतना साहस भर देना ।।६।।
‘वन था कुछ’ वनिता ।
थी कहे न सुनता ।
लूँ जीत मोह सेना ।
इतना साहस भर देना ।।७।।
श्वास रुक रुक आने लागे ।
तब स्वयं मैं बढ़कर आगे ।।
हाथ दे दूँ यम हाथों में ।।
नाथ ! तुमको रख आंखों में ।
क्या कहे काय…र.ता समझूँ,
न आऊँ जग की बातों में ।
श्वास जब रुक आने लागे ।
तब स्वयं मैं बढ़कर आगे ।।
नाथ ! तुमको रख आंखों में ।
हाथ दे दूँ यम हाथों में ।।१।।
गला पाया न मुझे पानी ।
आग की चली न मनमानी ।।
जंग खाता होगा लोहा,
स्वर्ण हूँ मैं सोला वानी ।।२।।
पहुंच तन तक ही रोगों की ।
पहुँच मन तक ही भोगों की ।।
अनोखी है महिमा मेरी,
पिटारी में गुण रत्नों की ।।३।।
यहां क्या लेके था आया ।
साथ किसके जाती माया ।।
करूँ अफ़सोस कहो किसका,
अंधेरे छोड़ चला साया ।।४।।
तिया देहरी तक छोड़ेगी ।
सुता निज घर मुख मुड़ेगी ।
नाम सार्थक लड़…के रहते,
चिता तक दुनिया दौड़ेगी ।।५।।
परिंदे आ तरु रह जाते ।
रात भर हँसते बतियाते ।।
बिछुड़ उड़ते सुबहो-सुबहो,
घर न जग, सराय कह जाते ।।६।।
पढूँ नवकार, मौन खोलूँ ।
मंत्र नवकार पुनः बोलूँ ।।
रगों में घोलूँ नवकारा,
जुबां नवकार फिर भिंजोलूँ ।।७।।
क्षमा मांगूँ मैं सब जन से ।
क्षमा कर दूँ सबको मन से ।।
शब्द ‘सक्षम’ क्या कहे सुनूँ,
जुडूँ निज निन्दन गर्हण से ।।८।।
शरण अरिहंत सिद्ध नन्ता ।
तरण सद्-ग्रन्थ दया पन्था ।।
भावना भाऊँ, मैं पाऊँ,
चरण सन्निधि साधु सन्ता ।।
क्या कहे काय…र.ता समझूँ,
न आऊँ जग की बातों में ।
श्वास जब रुक आने लागे ।
तब स्वयं मैं बढ़कर आगे ।।
नाथ ! तुमको रख आंखों में ।
हाथ दे दूँ यम हाथों में ।।९।।
मंत्र जपते जपते नवकार ।
निकलें प्राण ।
दो वरदान ।।
हाथ में ले झारी रतनार ।
माथ श्रीजी ऊपर कर धार ।
अर्घ दे, कर श्री जी प्रक्षाल ।
सिंहासन फिर वेदिका बिठाल ।
सविधि पूजन कर, पढ़ जयमाल ।।
निकलें प्राण ।
दो वरदान ।।
मंत्र जपते जपते नवकार ।
निकलें प्राण ।
दो वरदान ।।१।।
हाथ श्री फल नत मस्तक भाल ।
भक्ति नवधा पडगाहन द्वार ।
अश्रु जल चरणा सन्त पखार ।
साथ मनुहार करा आहार ।
पीछि दे, ले कमण्डलु विहार ।।
निकलें प्राण ।
दो वरदान ।।
मंत्र जपते जपते नवकार ।
निकलें प्राण ।
दो वरदान ।।२।।
हाथ से अपने केश उखाड़ ।
छोड़ घर, भेष दिगम्बर धार ।
खड़े तरु बारिश मूसल धार ।
शीत ऋत धीरज ओढ़ दुशाल ।
सूर सम्मुख चढ़ ग्रीष्म पहाड़ ।
निकलें प्राण ।
दो वरदान ।।
मंत्र जपते जपते नवकार ।
निकलें प्राण ।
दो वरदान ।।३।।
क्रोध तज लालच, मायाचार ।
पाँच पापों से पल्ला झाड़ ।
धर्म दश सबके सभी संभार ।
आत्म निन्दन गर्हण स्वीकार ।
‘निरा-कुल’ वस्तु स्वरूप विचार ।
निकलें प्राण ।
दो वरदान ।।
मंत्र जपते जपते नवकार ।
निकलें प्राण ।
दो वरदान ।।४।।
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