सिर्फ न लोक अलोक के,
एक अकेले ईश ।
अनन्य दाता मोक्ष के,
तीर्थंकर चौबीस ।।१।।
भगवन् श्री लोकेश नमो नमः ।
‘वि’ विशेष शुद्धि लिये,
चित चैतन्य प्रकाश ।
ज्योत भक्ति यूॅं ही हिये,
जगी रहे अभिलाष ।।२।।
भगवन् श्री विशुद्ध चेतने नमो नमः ।
कोष दूर अभिमान से,
मोह-मया चकचूर ।
धन जिह्वा गुणगान से,
दृग धन ! लख तुम नूर ।।३।।
भगवन् श्री अमान-माय नमो नमः ।
‘अक’ यानी की पाप धी,
‘अम’ यानी की रोग ।
‘हा’ विनष्ट-कर आप ही,
अकामहा ! नीरोग ! ।।४।।
भगवन् श्री अकाम-हा नमो नमः ।
‘क’ ! यानी परमातमा,
प्रथमा अक्षर ज्ञान ।
अक्षर अपनी आतमा,
पढ़ साधो संधान ।।५।।
भगवन् श्री क: नमो नमः ।
‘प’ यानी जग-पूज जे,
‘न’ यानी रखवार ।
भू, पताल, नभ गूंज जै,
‘प्रभु-नप’ दयावतार ।।६।।
भगवन् श्री नप नमो नमः ।
मन्तर ‘न’ एकाक्षरी,
‘न’ यानी जिनराज ।
वाणी झिरी अनक्षरी,
पर्दा फाश न राज ।।७।
भगवन् श्री न: नमो नमः ।
चर्चित ही है लोक क्या ?
‘इन’ यानी की स्वाम ।
पूछो मत मग मोक्ष क्या ?
साधो सु-मरण शाम ।।८।।
भगवन् श्री इन नमो नमः ।
‘वान्त’ यानी घर अन्तका,
जेते ‘दोष’ समस्त ।
जयकारा अरिहन्त का,
साधो भाव प्रशस्त ।।९।।
भगवन् श्री वान्त दोष नमो नमः ।
भवि यानी हैं भव्य जे,
दूर कहाँ निर्वाण ।
तभी जजूॅं वस द्रव्य ले,
कारण भव-कल…यान ।।१०।।
भगवन् श्री भव नमो नमः ।
‘सु’ यानी कुछ खास ही,
‘मति’-बुद्धि संपन्न ।
मुझे बिठा लो पास ही,
पंक्ती भक्त अनन्य ।।११।।
भगवन् श्री सुमति नमो नमः ।
साधा केवल ज्ञान है,
पढ़ द्वादश सब अंग ।
अगम आप गुणगान है,
छू नहिं सका अनंग ।।१२।।
भगवन् श्री अङ्ग नमो नमः ।
‘काम’ यानि मन-कामना,
‘द’ यानी दातार ।
दाम चाहता नाम ना,
चाहूँ भक्ति तिहार ।।१३।।
भगवन् श्री काम-द नमो नमः ।
‘अन्’ यानी है ही नहीं,
‘एन’ यानि की पाप ।
आग, दाग ना…गिन कहीं,
आप सरीखे आप ।।१४।।
भगवन् श्री अनेन नमो नमः ।
मौन, बाद-दीक्षा रखा,
मुनि-राजन् सरताज ।
निजानन्द अमरित चखा,
दृग् धन लख तुम आज ।।१५।।
भगवन् श्री मुनि-राज-राज नमो नमः ।
‘हर’ यानी हर-पीर के,
इक अनन्य हरतार ।
दर्श करा दो से तीर के,
मैं भटका, तुम पार ।।१६।।
भगवन् श्री हर नमो नमः ।
‘अमन’ यानि चित् चंचला,
सार्थक चित् चउ कोन ।
मन मेरा भी मनचला,
नुति हित भीतर मौन ।।१७।।
भगवन् श्री अमन नमो नमः ।
वि-विशिष्ट जन से रहे,
‘न’ यानी इक पूज ।
कर वन्दन मन से रहे,
सकें पहेली बूझ ।।१८।।
भगवन् श्री विन नमो नमः ।
‘अय’ यानी शुभ रूप हैं,
वैरी-मित्र समान ।
हा ! हम मेंढ़क कूप हैं,
मैं…ढक दो भगवान् ! ।।१९।।
भगवन् श्री अयक नमो नमः ।
जे अठ-दश सब दोष वे,
‘ऊन’-शून सम्पून ।
कर लेवें गुण-कोश वे,
खुश बिच-शूल प्रसून ।।२०।।
भगवन् श्री अशेष दोष नमो नमः ।
‘वि’ यानी विगलित सभी,
भय सप्तक इक साथ ।
समल मोर समकित अभी,
कर लो निर्भय पाँत ।।२१।।
भगवन् श्री विभया नमो नमः ।
‘अ‘ यानी शुरुआत ही,
और शंक घुन-मीत ।
निशंक पाणी-पातरी,
तुम चरणन मम प्रीत ।।२२।।
भगवन् श्री अशंक नमो नमः ।
‘नुत’ यानी नत पांव में,
सम-समान जग तीन ।
रख लो चरणन छांव में,
तुम पानी, मैं मीन ।।२३।।
भगवन् श्री नुत-सम नमो नमः ।
हृश्व हृश्व है, दीर्घ ‘आ’,
बनता चारण भाट ।
करके किरपा शीघ्र आ,
‘म’-बंधन दो काट ।।२४।।
भगवन् श्री अम नमो नमः ।
‘धी’ यानी भीतर धिया,
पावन-पूत-पवित्र ।
हेत ‘दिया’ वन्दन किया,
साधो संगत इत्र ।।२५।।
भगवन् श्री पूत-धी नमो नमः ।
श्रुत-आगम-सद्-ग्रन्थ के,
कृत यानी कृतिकार ।
चरण साध निर्ग्रन्थ के,
भव जल तारणहार ।।२६।।
भगवन् श्री कृतागम नमो नमः ।
करण-इन्द्रियों के विषै,
‘ऊन’-शून यम देश ।
रहना दृग यूँ ही वसे,
सु-मरण तलक जिनेश ।।२७।।
भगवन् श्री करणोन नमो नमः ।
‘ई’ यानी लक्ष्मी रमा,
‘प’ इक पालनहार ।
सकल ज्ञान लक्ष्मी नमः,
मन्तर ‘मन…तर’ पार ।।२८।।
भगवन् श्री ईप नमो नमः ।
प्रद धुनि दिव्य विभूत जे,
मुक्तिद-दाता मोख ।
दुरित न इक वशिभूत वे,
तुम्हें निरन्तर ढ़ोक ।।२९।।
भगवन् श्री दिव्य विद् मुक्तिद नमो नमः ।
‘का’ यानी की कौन है,
दूजा और महान ।
दिवि, भुवि, पताल मौन है,
रत न कौन गुणगान ।।३०।।
भगवन् श्री कामहा नमो नमः ।
मानस जन्मे काम का,
अबकी काम-तमाम ।
दर्शन आतम-राम का,
साध निराकुल शाम ।।३१।।
भगवन् श्री मनोज-हा नमो नमः ।
ऋषि, मुनि, यति, अनगार के
अय ! इक पालनहार ।
आया जग से हार के,
कर दो बेड़ा पार ।।३२।।
भगवन् श्री मुनिपाल नमो नमः ।
‘कम्’ यानी की आतमा,
संगत साध ! कृपाल ।
देर न कर्मन खातमा,
क…छुआ भीतर चाल ।।३३।।
भगवन् श्री कं संगत कृपाल नमो नमः ।
गुरु यानी गुर नेक हैं,
सीखें चलो इकाध ।
माई साई एक हैं,
सँग ले चलें धकात ।।३४।।
भगवन् श्री गुरु नमो नमः ।
‘अक’ यानी की पाप-धी,
अस्त-समस्त विनष्ट ।
तभी भक्ति जिन आप की,
जगत न किसको इष्ट ।।३५।।
भगवन् श्री अकास्त नमो नमः ।
‘अ’ यानी नहिं एक भी,
दंश यानी की दोष ।
प्रकटे हंस विवेक धी,
विघटें रागरु रोष ।।३६।।
भगवन् श्री अदंश नमो नमः ।
‘स्व’ यानी की आपके,
‘प’-रक्षक खुद आप ।
गिरा रही ‘गिर’ पाप के,
वज्र नाम तुम जाप ।।३७।।
भगवन् श्री स्वप नमो नमः ।
‘अ’ यानी अब है नहीं,
मानस-मनस् कषाय ।
मान सकूँ तुमरी कही,
है सराय यह काय ।।३८।।
भगवन् श्री अमानस कषाय नमो नमः ।
धृत यानी धारण किया,
ज्ञाता-दृष्टा भाव ।
‘कृत्य-कृत’ निवारण किया,
भीतर-बाह्य विभाव ।।३९।।
भगवन् श्री धृत भाव नमो नमः ।
वि-विशेष वैभव रहा,
सभा हिरण वनराज ।
सुनें कान दे क्या कहा ?
धवनि-जिन मुकति जहाज ।।४०।।
भगवन् श्री विभो नमो नमः ।
विदित यानी युगपत् तकें,
विश्व चराचर लोक ।
अचरज ! नासा दृग रखें,
अगम सकल आलोक ।।४१।।
भगवन् श्री विदित विश्व नमो नमः ।
निधन कहे धन और ही,
लब्ध यानी की प्राप्त ।
जीते जी तज होड़ दी,
सूक्ति प्राप्त पर्याप्त ।।४२।।
भगवन् श्री लब्ध धन नमो नमः ।
आत्म स्वात्म संलीन जे,
अपने जैसे एक ।
तिहुजग दाता दीन वे,
दृष्टि उठा लें देख ।।४३।।
भगवन् श्री आप्त नमो नमः ।
‘अर’ यानी की और ही,
हैं आचार विचार ।
आर्य श्रमण सिरमौर की,
गूँजे जय जयकार ।।४४।।
भगवन् श्री आर्य नमो नमः ।
‘मुनि’ यानी मानस विजै,
‘प’ रक्षक पत-लाज ।
उन्हें बिठा मानस हृदै,
धन्य ! धन्य ! मैं आज ।।४५।।
भगवन् श्री मुनिप नमो नमः ।
‘अ’ यानि अब है नहीं,
तन औदारिक काय ।
पास आप सी आप ही,
परमौ-दारिक काय ।।४६।।
भगवन् श्री अतनो नमो नमः ।
‘तात’ पूज्य-जन हैं खड़े,
हित पूजन नत-माथ ।
पाद मोक्ष तरफी बढ़े,
चौ-तरफा जयनाद ।।४७।।
भगवन् श्री तात नमो नमः ।
‘देव’ यानी दीप्ती-प्रभा,
बढ़ चढ़ कोटिक भान ।
धन्य ! समव-शरणी सभा,
धन ! धन ! केवल ज्ञान ।।४८।।
भगवन् श्री देव नमो नमः ।
‘योग’ वचन, मन, कायकी,
‘अप’ यानी अपहार ।
चरित्र, ज्ञान, दृग क्षायिका,
नमन त्रियोग संभार ।।४९।।
भगवन् श्री अपयोग नमो नमः ।
लखन जीव उपयोग वो,
‘सम’ यानी समिचीन ।
जन्म, जरा, मृतु रोग जो,
निमिष मात्र छवि क्षीण ।।५०।।
भगवन् श्री समुपयोग नमो नमः ।
‘पत’ लज्जा रखवार हैं,
पति-स्वामी तिहुलोक ।
तारे, झुक तो तार हैं,
बिरछा किया अशोक ।।५१।।
भगवन् श्री पते नमो नमः ।
भू-भृत-गिरि पर्वत समां,
धन ! निष्कंप चरित्र ।
गेह नेह निस्पृह क्षमा,
देह विदेह पवित्र ।।५२।।
भगवन् श्री भू-भृत-अकंप नमो नमः ।
‘स’ यानी भो ! साथ में,
करुणा-दया विशेष ।
हमें ले चलो साथ में,
सिद्धों के उस देश ।।५३।।
भगवन् श्री सदय नमो नमः ।
‘ज’ यानी की जनमना,
‘अ’ यानी अब नाह ।
अग्नि शुक्ल बस प्रकटना,
खुद भव बीज तबाह ।।५४।।
भगवन् श्री अज नमो नमः ।
आखर पलटे ई…श के,
स…ई लग चले हाथ ।
सार्थ ‘भगत’ चौबीस के,
जगत जगत् विख्यात ।।५५।।
भगवन् श्री ईश नमो नमः ।
‘शामित’ यानी बुझ चली,
‘वमे-वाम’ दव-काम ।
और छोड़ जिनवर गली,
साध चलो मन शाम ।।५६।।
भगवन् श्री शामित वाम वमे नमो नमः ।
‘वि’ यानी विरहित रहे,
मानस बगुल कुटेव ।
धर समता परिषह सहे,
नुति सदैव जिन-देव ।।५७।।
भगवन् श्री विमानस नमो नमः ।
हंस सरोवर मानसी,
गुण मोती अभिलाष ।
फूट मिट चले आपसी,
और न बस अरदास ।।५८।।
भगवन् श्री हंसक नमो नमः ।
‘अ’ यानी अब है नहीं,
‘जरा’ मात्र भी काज ।
‘ज’ जन्मा सुख जो वही,
मिले मुझे जिन-राज ।।५९।।
भगवन् श्री अजराज नमो नमः ।
अक्षरशः जग कर रहा,
‘अमल’ आप की बात ।
भीतर अमरित झिर रहा,
बस पसारना हाथ ।।६०।।
भगवन् श्री अमल नमो नमः ।
कर, ना कर सेवा भले,
मॉं मुख झिरे अशीष ।
करुणा-कर देवा अरे !
झुका देर तो शीश ।।६१।।
भगवन् श्री करुणाकर नमो नमः ।
विद् यानी विद्वान है,
आप समान न और ।
पल-पल अपना भान है,
चुक चाली मृग दौड़ ।।६२।।
भगवन् श्री विदीश नमो नमः ।
‘भव’ यानी संसार का,
लगा दीखने छोर ।
ले लो बीड़ा पार का,
यही विनय कर जोड़ ।।६३।।
भगवन् श्री भवहा नमो नमः ।
‘सत’ सज्जन मानस जिन्हें,
देते हैं सम्मान ।
क्यूॅं ना आदर दूॅं उन्हें,
विनय सार्थ कल्-यान ।।६४।।
भगवन् श्री सदादृत नमो नमः ।
संग भेद जुग परिग्रहा,
रखा न तिल-तुष मात्र ।
दूध शेरनी टिक रहा,
केवल सु-वर्ण पात्र ।।६५।।
भगवन् श्री असंग नमो नमः ।
स्वर अक्षर पद साध के,
अक्षर पद आसीन ।
अचरज क्या ? बिन बाध के,
झलक चला जग तीन ।।६६।।
भगवन् श्री ईश्वर नमो नमः ।
‘ख’ इंद्रिय सर, ‘न’ नहीं,
अवगाहन अवकाश ।
अमृत उतरते मृत मही,
ले नि:श्रेयस आश ।।६७।।
भगवन् श्री ख-न-गाहित नमो नमः ।
‘प’ रक्षक रखवार हैं,
‘स्व’ आतम स्वयमेव ।
जितने गगन सितार हैं,
उतने नमन सदैव ।।६८।।
भगवन् श्री स्वकपा नमो नमः ।
अमृत रुप शिव तत्व के,
‘प’ इक राखन-हार ।
कृर्त, भोक्तृ, स्वामित्व के,
कुत्सित भाव निवार ।।६९।।
भगवन् श्री अमृत-पा नमो नमः ।
शुभ्र-धवल सित देशना,
‘शित’ यानी की शान्त ।
जयति राग ना द्वेष ना,
मन प्रशान्त ! अख-दान्त ! ।।७०।।
भगवन् श्री शित नमो नमः ।
निष-निष्-प्रभता छू रही,
क्रिया काय, मन, वाण ।
यूँ विभूति भुवि-द्यु नहीं,
छाना तीन जहान ।।७१।।
भगवन् श्री निष्क्रिय नमो नमः ।
ज्ञान सार्थ ‘केवल’ रहा,
गत-गतमान त्रिलोक ।
खा ललाट ना शल रहा,
बड़ी कृपा तुम, ढ़ोक ।।७२।।
भगवन् श्री केवलंगत नमो नमः ।
सदा यानि की सर्वदा,
गति गति पंचम रूप ।
जीव जुदा पुद्-गल जुदा,
सुविदित वस्तु स्वरूप ।।७३।।
भगवन् श्री सदा-गति नमो नमः ।
अभय यानि निर्भीकता,
गत यानी की प्राप्त
अभय यानी निर्दोषता,
अठ-दश विना न आप्त ।।७४।।
भगवन् श्री अभयंगत नमो नमः ।
वान्त यानि उगला अरे !
‘जिन-होने’ विष मोह ।
आप परस सु-वरण करें,
भले अवध-वध लोह ।।७५।।
भगवन् श्री वान्त विमोह विष नमो नमः ।
अवन-आत्म रक्षक हुये,
सुन ‘जग’ फिरते चोर ।
क्यूँ ललाट श्रम-जल चुके,
छोड़ चुके जब होड़ ।।७६
भगवन् श्री अवन नमो नमः ।
हा ! मा ! धिक् ! से बच बचा,
किया कर्म विधि नाश ।
अपने जैसा दो रचा,
सार्थ नाम इति…हास ।।७७।।
भगवन् श्री विधिहा नमो नमः ।
‘क’ यानी सुख-आतमा,
‘दा’-दाता इक आप ।
रहूँ साथ दिन-रात मॉं,
विनय आप जप जाप ।।७८।।
भगवन् श्री कदा नमो नमः ।
‘इत’ यानी की पा लिया,
शिव धन धन-कल्याण ।
हेत साध वन्दन किया,
कल्याणक निर्वाण ।।७९।।
भगवन् श्री शिव धन इत नमो नमः ।
कहते वृत्त चरित्र को,
इत यानी संप्राप्त ।
माने सम अरि मित्र को,
एक वही जिन ! आप्त ।।८०।।
भगवन् श्री वृत्तकं इत नमो नमः ।
बुध ! सताम्-सज्जन तुम्हें,
मानें अपना इष्ट ।
सिर्फ सुमर ले मन तुम्हें,
बिछड़ चले दुख कष्ट ।।८१।।
भगवन् श्री सतामम् इष्ट नमो नमः ।
वि-विशिष्ट श्रुत धारिया,
विश्रुत पताल स्वर्ग ।
सत्-कल भव-जल तारिया,
पूजूॅं हित अपवर्ग ।।८२।।
भगवन् श्री विश्रुते नमो नमः ।
असह यानी सहते नहीं,
अघ यानी की पाप ।
सब सहते, कहते नहीं,
प्रथम पंक्ति उस आप ।।८३।।
भगवन् श्री अघकासह नमो नमः ।
अज अजन्म आतम उसे,
सुगत लिया पहचान ।
झलका जग संशय किसे,
दर्पण केवल ज्ञान ।।८४।।
भगवन् श्री सुगता-ज नमो नमः ।
नित्य निरत तुम संस्तुती,
भव यानी संसार ।
निर्गत मुख तुम सरसुती,
कण्ठ धार तुम पार ।।८५।।
भगवन् श्री भवस्तुत नमो नमः ।
‘अ’ यानी नहीं अंश भी,
अक-अघ, अदया भाव ।
प्रद स्वभाव धन ! हंस धी,
भाव विभाव अभाव ।।८६।।
भगवन् श्री अनकादय नमो नमः ।
मन तरंग को मार ली,
‘अन-तरंग’ अनवर्थ ।
राह धार बस धार ली,
रखी ना कोई शर्त ।।८७।।
भगवन् श्री मनो नमो नमः ।
वृद्ध यानि वृद्धि लिये,
गुण सार्थक गुणकार ।
हित अनूठ ठंडक हिये,
वन्दन बारम्बार ।।८८।।
भगवन् श्री गुण-वृद्ध नमो नमः ।
विनत साध संस्तुत बुधा,
प्रनुत आर्य-निर्ग्रन्थ ।
लगूॅं पते, लागा पता,
दे दो कोई मन्त्र ।।८९।।
भगवन् श्री नुत-साधु-बुधार्य नमो नमः ।
परम ब्रह्म चैतन्य की,
मृगया यानी खोज ।
प्रभु तुमने सम्पन्न की,
माथ बढ़ चला ओज ।।९०।।
भगवन् श्री मृगयो नमो नमः ।
नत चरणों में झुक खड़े,
सुर विमान के देव ।
हैं कद में सबसे बड़े,
परहित दृग जुग रेव ।।९१।।
भगवन् श्री नत-सुर नमो नमः ।
रण चितवन अभिजेय जै,
जै जै अजित कषाय ।
उपादेय क्या हेय है,
जान सकूॅं जिन-राय ।।९२।।
भगवन् श्री अजित नमो नमः ।
धन ! शम समता भाव के,
कर करतार प्रसिद्ध ।
सपने अपने गांव के,
लिये चलो पुर-सिद्ध ।।९३।।
भगवन् श्री शंकर नमो नमः ।
विधि राखी ता विध रहे,
सह परिषह भरपूर ।
शुक्ल ध्यान दव विधि दहे,
तुम विधातृ नभ तूर ।।९४।।
भगवन् श्री विधे नमो नमः ।
गत यानी चित कोन चौ,
वपु-तन देह शरीर ।
धरनी अब ना जोन नौ,
आंख चार भव तीर ।।९५।।
भगवन् श्री गत-देहक नमो नमः ।
समय यानि सिद्धांत के,
तलस्-पर्शी मर्मज्ञ ।
अग्र-दूत विश्रान्ति के,
जगत ख्यात सर्वज्ञ ।।९६।।
भगवन् श्री समय नमो नमः ।
भव यानी संसार का,
‘अ’ यानी अवसान ।
बीड़ा मम भव पार का,
ले लो कृपा निधान ।।९७।।
भगवन् श्री अभव नमो नमः ।
‘क’ यानी दिव सौख्य के,
‘र’ रचना करतार ।
और न, मेरे मोख के,
एक आप आधार ।।९८।।
भगवन् श्री कर नमो नमः ।
कषाय उपशम मण्डिता,
तात-शिष्य, पा-रक्ष ।
सार्थक केवल पण्डिता,
साध साध अध्यक्ष ।।९९।।
भगवन् श्री शमि-तात-प नमो नमः ।
अब विनाश की बात ना,
झोली सौख्य अबाध ।
एक यही बस प्रार्थना,
पाऊॅं अन्त समाध ।।१००।।
भगवन् श्री अनाशन नमो नमः ।
पलटा आखर शि…व व…श्री,
सौख्य ‘निरा…कुल’ हाथ ।
मिले दर्श तुम इक खुशी,
छिने न वह फरियाद ।।१०१।।
भगवन् श्री शिव नमो नमः ।
Sharing is caring!
© Copyright 2021 . Design & Deployment by : Coder Point
© Copyright 2021 . Design & Deployment by : Coder Point