गोम्मटेश के श्री चरणों में,
कोटि कोटि वन्दन ।
चम्पक पुष्प सरीखी नासा ।
दृग जुग पत्र नील पद्मा सा ।।
पून चन्द्रमा मुखड़ा प्यारा,
तन टुकड़ा चन्दन ।
गोम्मटेश के श्री चरणों में,
कोटि कोटि वन्दन ।।१।।
कर्ण लोल छूते से कांधे ।
भुज घमण्ड गज तुण्ड विराधे ।।
मणि जल कान्त कपोल गोल ‘रे,
स्वच्छ, छाँव बिन धन ।
गोम्मटेश के श्री चरणों में,
कोटि कोटि वन्दन ।।२।।
लख छव कण्ठ शंख दृग नीचे ।
काँधे तुंग, हिमालय पीछे ।।
अपलक दर्शनीय निश्चल कटि,
सिंह घमण्ड खण्डन ।
गोम्मटेश के श्री चरणों में,
कोटि कोटि वन्दन ।।३।।
जश विंध्याचल अक्ष विजेता ।
बीच सुचेता ऊरध रेता ।।
मनु संतोष सुधा बिखराये,
शश पूनम अनु-क्षण ।
गोम्मटेश के श्री चरणों में,
कोटि कोटि वन्दन ।।४।।
घेर लताओं ने ली काया ।
हाथ भव्य कल्पद्-द्रुम आया ।।
विनत चरण सौधर्म पुष्प ले,
स्वर्ग बाग नन्दन ।
गोम्मटेश के श्री चरणों में,
कोटि कोटि वन्दन ।।५।।
आ विषधर करते अठखेली ।
बाल न बांका, क्षमा सहेली ।।
इक निर्भीक, खड़े हैं आगे,
पंक्ती निर्-ग्रन्थन ।
गोम्मटेश के श्री चरणों में,
कोटि कोटि वन्दन ।।६।।
सर सम्यक्-दर्शन अवगाहा ।
दूर स्वर्ग, सुख मोक्ष न चाहा ।।
हुए निशल्य भरत प्रति, भंजन-
राग-द्वेष अंजन ।
गोम्मटेश के श्री चरणों में,
कोटि कोटि वन्दन ।।७।।
विगत उपाध, विरत धन धामा ।
निरत समाध, विरद जिन शामा ।।
साध उपास ‘निराकुल’ ठाड़े,
बर्षिक पर्यन्तन ।
गोम्मटेश के श्री चरणों में,
कोटि कोटि वन्दन ।।८।।
गोग्मटेश के श्री चरणों में,
सादर वन्दना ।।
चम्पक पुष्प नासिका न्यारी ।
नील कमल नैना बलिहारी ।।
मुखड़ा सत् शिव सुन्दर ऐसा,
जैसा चन्द ना ।
गोग्मटेश के श्री चरणों में,
सादर वन्दना ।।१।।
कर्णों का कांधों तक आना ।
बाहुदण्ड गज-तुण्ड समाना ।।
भवि ! कपोल छवि ऐसी जैसी,
मण जल कन्त ना ।
गोग्मटेश के श्री चरणों में,
सादर वन्दना ।।२।।
कांधे तुंग हिमालय दूजे ।
मध अध, उर्ध्व न मुख मुख गूंजे ।।
कण्ठ लिये आर्वत अनोखे,
ऐसा शंख ना ।
गोग्मटेश के श्री चरणों में,
सादर वन्दना ।।३।।
गिर विंध्याचल आन विराजे ।
विनत खड़े राजे महराजे ।।
पूर्ण चद्रंमा बांटे ऐसा,
अमतृ नन्द ना ।
गोग्मटेश के श्री चरणों में,
सादर वन्दना ।।४।।
महा देह ली घेर लता ने ।
कल्पतरु पाया जनता ने ।।
नाग-नरेंद्र कहां सुख ऐसा,
सुख अहमिन्द ना ।
गोग्मटेश के श्री चरणों में,
सादर वन्दना ।।५।।
करें नाग नागिन अठखेली ।
मूर्छा तजी, न वस्त्र अकेली ।।
बिन आडम्बर यद्पि दिगम्बर,
पर भयवन्त ना ।
गोग्मटेश के श्री चरणों में,
सादर वन्दना ।।६।।
स्वर्ग सुदूर न शिव अभिलाषा ।
अपलक टिका रखी दृग नासा ।।
भ्रात भरत प्रति मन अपने शल,
रक्खी रन्च ना ।
गोग्मटेश के श्री चरणों में,
सादर वन्दना ।।७।।
धन परित्यागी, रहित उपाधी ।
परिणत जागी, निरत समाधी ।।
एक वर्ष तक अडिग, लिया मुख-
पानी अन्न न ।
गोग्मटेश के श्री चरणों में,
सादर वन्दना ।।८।।
गोम्मटेश के श्री चरणों में,
सविनय वन्दन मेरा ।।
फुल्ल कमल दल आंखें नीली ।
चपंक पुष्प घ्राण अलबेली ।।
मुखड़ा पूर्ण चन्द्रमा जिसने,
विघटा जगत् अंधेरा ।
गोम्मटेश के श्री चरणों में,
सविनय वन्दन मेरा ।।१।।
बाहुदण्ड गज-तुण्ड समाँ ‘रे ।
मण जल कान्त कपोल निराले ।।
सुन्दर कर्ण पार्श्व भागों ने,
आ काँधों को छेड़ा ।
गोम्मटेश के श्री चरणों में,
सविनय वन्दन मेरा ।।२।।
कांधे तुंग हिमालय बौना ।
दर्शनीय मध भाग सलोना ।।
दिव्य शंख आवर्तों ने आ,
कीना कण्ठ बसेरा ।
गोम्मटेश के श्री चरणों में,
सविनय वन्दन मेरा ।।३।।
शशि संतोष सुधा वरदाता ।
विबुध-बुद्ध जन भाग विधाता ।।
जश दिश् दश मनु विंध्याचल का,
पूरव पुण्य घनेरा ।
गोम्मटेश के श्री चरणों में,
सविनय वन्दन मेरा ।।४।।
भव्य कल्पतरु पा हरषाये ।
पूजन ठान स्वर्ग सुर आये ।।
महा शरीर लताओं ने आ,
नख से शिख तक घेरा ।
गोम्मटेश के श्री चरणों में,
सविनय वन्दन मेरा ।।५।।
कब भयभीत दिगम्बर ठाड़े ।
जन्तु करें अठखेली सारे ।।
मुड़कर फिर विषयन न देखा,
है जब से मुंह फेरा ।
गोम्मटेश के श्री चरणों में,
सविनय वन्दन मेरा ।।६।।
सरवर स्वच्छ-दृष्टि अवगाहा ।
स्वर्ग न चाहा, मोक्ष न चाहा ।।
हुये निशल्य भरत भाई प्रति,
छोड़ा तेरा मेरा ।
गोम्मटेश के श्री चरणों में,
सविनय वन्दन मेरा ।।७।।
मुक्त उपाध धाम, धन त्यागी ।
युक्त समाध, आत्म अनुरागी ।।
वर्ष एक उपवास साध के,
द्वार ‘निराकुल’ हेरा ।
गोम्मटेश के श्री चरणों में,
सविनय वन्दन मेरा ।।८।।
।। गोम्मट देव प्रणाम ।।
चम्पक जैसी नासिका,
मुख चन्दा अभिराम ।।
अंखियां पंकज पाँखुडी,
गोम्मट देव प्रणाम ।।१।।
कर्ण भुजा तक झूमते,
भुज गज-तुण्ड ललाम ।।
मण जल-कान्त कपोल ‘रे,
गोम्मट देव प्रणाम ।।२।।
कण्ठ हूबहू शंख सा,
मध्य भाग दृग ठाम ।
कांधे गिरि-हिम श्रृंग से,
गोम्मट देव प्रणाम ।।३।।
विंध्याचल कीरत ध्वजा,
बुध इक तीरथ धाम ।
दातृ अमृत शश पूर्णिमा,
गोम्मट देव प्रणाम ।।४।।
देह लताओं से घिरी,
सुर तरु भविजन नाम ।।
विनत खड़े आ देवता,
गोम्मट देव प्रणाम ।।५।।
निर्भय यदपि दिगम्बरा,
सुरत निजातम राम,
अविचल, पर्सित विषधरा,
गोम्मट देव प्रणाम ।।६।।
निशल भरत, अन्तर्मना,
स्वच्छ-दृष्टि कृत्-काम ।
स्वर्ग दूर, शिव चाह ना,
गोम्मट देव प्रणाम ।।७।।
साध वर्ष इक अनशना,
मृग मन दौड़ विराम ।
हाथ ‘निराकुल’ सुख लगा,
गोम्मट देव प्रणाम ।।८।।
गोम्मटेश-गोम्मटेश ।
जय जिनेश, गोम्मटेश ।।
चम्प नाक ।
पद्म आंख ।
शश कलेश, ‘मुख’ अशेष ।।
जय जिनेश, गोम्मटेश ।।१।।
मण कपोल ।
भुज सुडोल ।
कंध देश, कन प्रदेश ।।
जय जिनेश, गोम्मटेश ।।२।।
शंख कण्ठ ।
मेरु कंध ।
मध-प्रदेश, कद विशेष ।।
जय जिनेश, गोम्मटेश ।।३।।
विरद विंध्य ।
विबुध वन्द्य ।
देश देश, सदुपदेश ।।
जय जिनेश, गोम्मटेश ।।४।।
लता देह ।
जन-विदेह ।
तरु विदेश, नत सुरेश ।।
जय जिनेश, गोम्मटेश ।।५।।
अचल किन्त ।
पर्श जन्त ।
भय न शेष, नगन भेष ।।
जय जिनेश, गोम्मटेश ।।६।।
भरत भ्रात ।
शल्य घात ।
विगत द्वेष, रत निशेष ।।
जय जिनेश, गोम्मटेश ।।७।।
बर-सुपास ।
प्रशम रास ।
जय महेश, दुख न लेश ।।
जय जिनेश, गोम्मटेश ।।८।।
।। देव गोम्मटेश जय ।।
पुष्प चम्प नासिका ।
वक्त्र चन्द्रमा सखा ।।
नील कमल नेत्र द्वय ।
देव गोम्मटेश जय ।।१।।
गाल नीर कांत मण ।
पर्श बाहु पार्श्व कन ।।
बाहुदण्ड तुण्ड गय ।
देव गोम्मटेश जय ।।२।।
कण्ठ शंख दूसरा ।
मध्य भाग मनहरा ।।
कंध तुंग हिमालय ।
देव गोम्मटेश जय ।।३।।
पूर्ण चन्द प्रद सुधा ।
शिखामण सभा बुधा ।।
मुक्ति वन्द्य विंध्य तय ।
देव गोम्मटेश जय ।।४।।
महा-तन लता घिरा ।
स्वर्ग आ चरण खड़ा ।।
कल्प-वृक्ष भव्य अय ! ।
देव गोम्मटेश जय ।।५।।
अचल पर्श विषधरा ।
मन विशुद्ध दृढ़तरा ।।
देह नग्न, भग्न भय ।
देव गोम्मटेश जय ।।६।।
स्वर्ण मोक्ष सुख तजा ।
स्वच्छ दृष्टि इक भजा ।।
भ्रात भरत शल्य क्षय ।
देव गोम्मटेश जय ।।७।।
रख उपास वर्ष इक ।
खड़े ‘निराकुल’ अडिग ।।
छोड़-छाड़, मोह मय ।
देव गोम्मटेश जय ।।८।।
।। जयतु गोम्मटेश ।।
पुष्प चंप घ्राण ।
वक्त्र शश समान ।।
दृग कमल जिनेश !
जयतु गोम्मटेश ।।१।।
भुज गजेन्द्र तुण्ड ।
कर्ण पार्श्व कन्ध ।।
गाल मण विशेष ।
जयतु गोम्मटेश ।।२।।
कण्ठ और शंख ।
कंध मेरु श्रृंग ।।
चारु मध्य देश ।
जयतु गोम्मटेश ।।३।।
अखर विंध्य कीर्त ।
विबुद्ध वन्द्य तीर्थ ।।
‘जगत्’ सदुपदेश ।
जयतु गोम्मटेश ।।४।।
लता लिप्त देह ।
कल्पतर ‘विदेह’ ।।
नत विनत सुरेश ।
जयतु गोम्मटेश ।।५।।
पर्श अहि अकंप ।
विसुध सानु-कंप ।।
अभय नगन भेष ।
जयतु गोम्मटेश ।।६।।
दोष मूल घात ।
निशल भरत भ्रात ।।
विगत राग-द्वेष ।
जयतु गोम्मटेश ।।७।।
बर्ष इक उपास ।
मोह मद विनाश ।।
‘निराकुल’ स्वदेश ।
जयतु गोम्मटेश ।।८।।
।। गोम्मटेश वन्दन ।।
मुख पूनम चन्दा ।
दृग दल अरविन्दा ।।
घ्राण चम्पक सुमन ।
गोम्मटेश वन्दन ।।१।।
कर्ण छुयें कंधा ।
भुज गजेन्द्र तुण्डा ।।
गाल जल कान्त मण ।
गोम्मटेश वन्दन ।।२।।
कण्ठ शंख जैसा ।
कन्ध मेरु वैसा ।।
मध छोर चोर मन ।
गोम्मटेश वन्दन ।।३।।
प्रद अमृत चन्द्रमा ।
विंध्याचल सुषमा ।।
शिखामणी बुधजन ।
गोम्मटेश वन्दन ।।४।।
भव्य कल्प विरछा ।
निरत सुर समर्चा ।।
लतावन घिरा तन ।
गोम्मटेश वन्दन ।।५।।
नग्न तदपि निर्भय ।
सदय विशुद्ध हृदय ।।
अडिग पर्श नागन ।
गोम्मटेश वन्दन ।।६।।
विगत आश त्राता ।
निशल भरत भ्राता ।।
स्वच्छ दृग निरंजन ।
गोम्मटेश वन्दन ।।७।।
वर्ष इक उपासा ।
खड़े दृष्टि नासा ।।
सुख ‘निराकुल’ लगन ।
गोम्मटेश वन्दन ।।८।।
।। गोम्मटेश वन्दना ।।
आंख पद्म पाँखरी ।
चम्प पुष्प नाक ‘री ।।
मुख समान चन्द्र ना ।
गोम्मटेश वन्दना ।।१।।
गाल जल मणी सखे ! ।
कर्ण कंध छू रखे ।।
भुज, गजेन्द्र तुण्ड ना ।
गोम्मटेश वन्दना ।।२।।
कंध हिमालय निरा ।
मध्य भाग मनहरा ।।
कण्ठ भाँत शंख ना ।
गोम्मटेश वन्दना ।।३।।
पूर्ण चंद्र प्रद सुधा ।
सभा शिखा-मण बुधा ।।
विंध्य और पुण्य ना ।
गोम्मटेश वन्दना ।।४।।
घिरा महा-तन लता ।
भव्य कल्प पादपा ।।
चरण सुमन नन्दना ।
गोम्मटेश वन्दना ।।५।।
अडिग पर्श विषधरा ।
मन विशुद्ध-तर दृढ़ा ।।
नगन भीति वन्त ना ।
गोम्मटेश वन्दना ।।६।।
स्वर्ग मोक्ष सुख तजा ।
‘निशल भरत’ इक भजा ।।
राग-द्वेष सन्ध ना ।
गोम्मटेश वन्दना ।।७।।
मोह मद विनाशिया ।
सौख्य ‘निराकुल’ हिया ।।
मुख सालिक अन्न ना ।
गोम्मटेश वन्दना ।।८।।
।। कोटि वन्दन गोम्मट देवा ।।
पुष्प चम्पक जैसी नासा ।
चन्द्रमा मुख इक परिभाषा ।।
दल कमल दृग धारा रेवा ।
कोटि वन्दन गोम्मट देवा ।।१।।
बाहु पर्यन्त कर्ण प्यारे ।
तुण्ड गज बाहुदण्ड न्यारे ।।
गाल मिस मण-जल रत सेवा ।
कोटि वन्दन गोम्मट देवा ।।२।।
कण्ठ शंखावर्तों वाला ।
हिमालय कांधे, कद न्यारा ।।
चारु मध पूर्व पुण्य जेबा ।
कोटि वन्दन गोम्मट देवा ।।३।।
अमृत संतोष इक प्रदाता ।
शिखा-मण बुध त्रिभुवन त्राता ।।
विंध्य जश दिश् दश स्वयमेवा ।
कोटि वन्दन गोम्मट देवा ।।४।।
लताएं खड़ी देह घेरे ।
मान सुर-तर दें भवि फेरे ।।
जजें सुर ले गुल, फल, मेवा ।
कोटि वन्दन गोम्मट देवा ।।५।।
भीत कब भले नगन ठाड़े ।
पट निरासक्त मनस् वाले ।।
सांप परसें, न कांप लेवा ।।
कोटि वन्दन गोम्मट देवा ।।६।।
चाह सुख स्वर्ग मोक्ष त्यागी ।
भरत प्रति निशल्य वैरागी ।।
सजग, रख नाक दृग सदैवा ।
कोटि वन्दन गोम्मट देवा ।।७।।
छोड़ धन, धाम उपाध सभी ।
‘निराकुल’ लगी समाध तभी ।।
वर्ष उपवास पार खेवा ।
कोटि वन्दन गोम्मट देवा ।।८।।
पूरब भरत कर्म दली ।
जय-जय जयत बाहुबली ।।
दृग दल कमल नील समान ।
मुख क्षत पूर्ण चन्द्र गुमान ।।
चम्पक नासिका विरली ।
जय-जय जयत बाहुबली ।।१।।
दोलित कर्ण छूते कंध ।
जुग भुज-दण्ड सुण्ड गयंद ।।
मण जल गल्ल, छत बदली ।
जय-जय जयत बाहुबली ।।२।।
काँधे गिरि हिमालय कूट ।
शंखावर्त कण्ठ अनूठ ।।
मनहर केशरी कमरी ।
जय-जय जयत बाहुबली ।।३।।
प्रतिकृति अक्-कृतिम जिन बिम्ब ।
सुर नर नाग इक अवलम्ब ।।
विंध्याचल अचल पगड़ी ।
जय-जय जयत बाहुबली ।।४।।
तन से बेल लिपटी आन ।
अनुचर बने देव विमान ।।
दूजी कल्पतर छव ‘री ।
जय-जय जयत बाहुबली ।।५।।
दृढ़ निष्कंप पर्सित नाग ।
मन परिशुद्ध मण्डित जाग ।।
भीती रह नगन विसरी ।
जय-जय जयत बाहुबली ।।६।।
गत सुख आश, दृग बेदाग ।
उपरत दोष मूल, विराग ।।
शल ना भरत प्रति अब ‘री ।
जय-जय जयत बाहुबली ।।७।।
विरत उपाध, गत धन-धाम ।
निरत समाध, सुध परिणाम ।।
अनशन साल भर सबरी ।
जय-जय जयत बाहुबली ।।८।।
।। जय जयतु गोम्मटेशा ।।
दल नील कमल लोचन ।
मुख चन्दा मन मोहन ।।
नासा, चम्पक ऐसा ।
जय जयतु गोम्मटेशा ।।१।।
धन ! कर्ण कंध छूते ।
गज-तुण्ड भुज अनूठे ।।
जल मण कपोल वैसा ।
जय जयतु गोम्मटेशा ।।२।।
हिमगिर उतुंग कांधे ।
मध दृग-दृग पग बांधे ।।
कलकण्ठ शंख जैसा ।
जय जयतु गोम्मटेशा ।।३।।
संतोष अमृत दाता ।
जश विन्ध्य अमिट त्राता ! ।।
शिरमौर बुध, जिनेशा ! ।
जय जयतु गोम्मटेशा ।।४।।
परि-व्याप्त लता काया ।
भवि ! कल्प-वृक्ष पाया ।।
कर-बद्ध नत सुरेशा ।
जय जयतु गोम्मटेशा ।।५।।
निष्कंप पर्श नागन ।
परिशुद्ध हृदय आंगन ।।
निर्भीक नगन भेषा ।
जय जयतु गोम्मटेशा ।।६।।
दृग स्वच्छ निज विहारी ।
शल भरत प्रति विडारी ।।
मन विगत राग द्वेषा ।
जय जयतु गोम्मटेशा ।।७।।
इक वर्ष तक उवासा ।
खड़गासन दृग नासा ।।
रट ‘निराकुल’ स्वदेशा,
जय जयतु गोम्मटेशा ।।८।।
।। कर्मदली जय बाहुबली ।।
नासा चम्प प्रसून ।
मुखड़ा चन्दा पून ।
अंखियां कमल कली ।
कर्मदली जय बाहुबली ।।१।।
मण जल कान्त कपोल ।
छुये कंध कन लोल ।।
धन ! भुज तुण्ड-करी ।
कर्मदली जय बाहुबली ।।२।।
कण्ठ शंख आवर्त ।
मध्य कहाँ भू मर्त्य ।।
काँधे मेरु गिरी ।
कर्मदली जय बाहुबली ।।३।।
शाश्वत प्रद संतोष ।
बुध बुध सद्गुण कोश ।।
छव गिर विंध्य निरी ।
कर्मदली जय बाहुबली ।।४।।
मिला कल्पतरु लोक ।
इन्द्र शतक रत ढ़ोक ।।
चढ़ी तन बल्लरी ।
कर्मदली जय बाहुबली ।।५।।
विषधर पर्श अकम्प ।
निलय विनय अनुकम्प ।।
नगन, न भीति पली ।
कर्मदली जय बाहुबली ।।६।।
दोष मूल निर्मूल ।
रखी न आशा भूल ।।
शल भरत बढ़ चली ।
कर्मदली जय बाहुबली ।।७।।
एक वर्ष उपवास ।
समता रख विश्वास ।।
सुख ‘निराकुल’ गली ।
कर्मदली जय बाहुबली ।।८।।
।। बाहुबली जय नन्द सुनन्दा ।।
नासा आगे चम्पक फीका ।।
दृग जुग पांखुरि पद्म सरीखा ।
मुख निष्कलंक पूनम चन्दा ।
बाहुबली जय नन्द सुनन्दा ।।१।।
कर्ण लोल बढ़ काँधे छूते ।
बाहु-दण्ड गज-तुण्ड अनूठे ।।
गोल कपोल रतन जल कन्ता ।
बाहुबली जय नन्द सुनन्दा ।।२।।
कण्ठ, शंख कुछ कुछ वैसा है ।
मध्य भाग अपने जैसा है ।।
गिर उत्तुंग हिमालय कंधा ।
बाहुबली जय नन्द सुनन्दा ।।३।।
नभ जयकार विंध्य गिर गूंजे ।
बुधजन बीच शिखा-मण दूजे ।।
शश समान जग प्रद-आनन्दा ।
बाहुबली जय नन्द सुनन्दा ।।४।।
चढ़ तन लता गगन बतियाती ।
भविजन पंक्ति कल्पतरु भांती ।।
खड़े भक्त बनकर शत इन्द्रा ।
बाहुबली जय नन्द सुनन्दा ।।५।।
नगन, न भीत, हृदय अनुकंपा ।
विषधर अठखेली निष्कंपा ।।
विषयन झंपा-पात न संधा ।
बाहुबली जय नन्द सुनन्दा ।।६।।
सौख न वांछा, परिणत जागी ।
निर्गत दोष-मूल, वैरागी ।।
निशल भरत प्रति स्वर्ण सुगंधा ।
बाहुबली जय नन्द सुनन्दा ।।७।।
मुक्त उपाध, धाम-धन रीते ।
युक्त समाध, मोह मद जीते ।।
अनशन एक वर्ष पर्यन्ता ।
बाहुबली जय नन्द सुनन्दा ।।८।।
वन्दना वन्दना,
बाहुबली भगवान ।
करुणा दया निधान ।।
वन्दना वन्दना
नील कमल दृगवान् ।
फुल्वा चम्पक घ्राण ।।
मुख पून चन्द ना ।
वन्दना वन्दना ।।१।।
भुज गज-तुण्ड समान ।
झूमें काँधे कान ।।
गाल, जल कन्त ना ।
वन्दना वन्दना ।।२।।
कंध हिम-गिर प्रमाण ।
मध्य भाग छविमान ।।
कण्ठ, वृत-शंख ना ।
वन्दना वन्दना ।।३।।
गिर विंध्य स्वाभिमान ।
संतोष-कर जहान ।।
सु‘वरण’ सुगंध ना ।
वन्दना वन्दना ।।४।।
तन वल्लरी निधान ।
भविक कल्प बिरवान ।।
सुख इन्द्र वृन्द ना ।
वन्दना वन्दना ।।५।।
नगन, पर न भय थान ।
अविचल सर्पाद प्राण ।।
मन, वसन संध ना ।
वन्दना वन्दना ।।६।।
दृग नत, गत अरमान ।
दोष मूल अवसान ।।
भरत प्रति शल्य ना ।
वन्दना वन्दना ।।७।।
कब उपाध सम्मान ।
गत मद मोह वितान ।।
वर्ष मुख अन्न ना ।
वन्दना वन्दना ।।८।।
।। स्वामी गोम्मटेश जगनामी ।।
कुछ कुछ नील कमल दल अंखियॉं ।।
मुख चन्द्रा बतियाती सखियाँ ।।
घ्राण पुष्प चम्पक अभिरामी ।
स्वामी गोम्मटेश जगनामी ।।१।।
मणि जल कान्त कपोल अनूठे ।
कर्ण-लोल चल काँधे छूते ।।
बाहु दण्ड गज-तुण्ड ललामी ।
स्वामी गोम्मटेश जगनामी ।।२।।
तुंग हिमालय कंध विशाला ।
कण्ठ शंख आवर्तों वाला ।।
मनहर मध्य भाग शिवगामी ।
स्वामी गोम्मटेश जगनामी ।।३।।
शश पूनम संतोष प्रदाता ।
गिर विंध्याचल भाग विधाता ।।
सुमन शिखामणि ! अन्तर्यामी ।
स्वामी गोम्मटेश जगनामी ।।४।।
महा शरीर लतावन घेरा ।
मान कल्प तरु भविक बसेरा ।।
खड़ा विनत अधिपति दिवधामी ।
स्वामी गोम्मटेश जगनामी ।।५।।
तन पर सर्प रेंगते ऐसे ।
ढुले शिखर से पानी जैसे ।।
दैगम्बर निर्भय निष्कामी ।
स्वामी गोम्मटेश जगनामी ।।६।।
भ्रात भरत प्रति शल्य न राखी ।
आश न रख, बस नासा ताँकी ।।
वांछा सौख्य न, दोष न खामी ।
स्वामी गोम्मटेश जगनामी ।।७।।
गत उपाध, मद मोहन हन्ता ।
अनशन एक वर्ष पर्यन्ता ।।
एक ‘निराकुल’ सुख आसामी ।
स्वामी गोम्मटेश जगनामी ।।८।।
।। मम गोमटेश प्रभु वन्दन ।।
दृग नील कमल दल जैसी ।
मुख छव चन्दा कब वैसी ।।
चम्पक नासा, तन चन्दन ।
मम गोमटेश प्रभु वन्दन ।।१।।
मनु कपोल मण जल कन्ता ।
जुग कर्ण छू रहे कंधा ।।
छत घन, भुज-तुण्ड गयंदन ।
मम गोमटेश प्रभु वन्दन ।।२।।
छव कण्ठ शंख कुछ वैसा ।
कद कंध हिमालय जैसा ।।
कटि भाग गर्व सिंह खण्डन ।
मम गोमटेश प्रभु वन्दन ।।३।।
नर नाग देवता तीरथ ।
पर्वत विंध्याचल कीरत ।।
शश पून सुकून अबन्धन ।
मम गोमटेश प्रभु वन्दन ।।४।।
तन लिपटी लता बताते ।
भवि सुरतरु मान रिझाते ।।
सुर जजें पुष्प वन नन्दन ।
मम गोमटेश प्रभु वन्दन ।।५।।
कब कँपें सर्प आ छूते ।
तन मन वच वस्त्र अछूते ।।
भय मुक्त पंक्ति निर्ग्रन्थन ।
मम गोमटेश प्रभु वन्दन ।।६।।
हन मूल दोष, बिन आशा ।
वांछा न सौख्य दृग नाशा ।।
शल भंजन भरत निरंजन ।
मम गोमटेश प्रभु वन्दन ।।७।।
उर-वसी ‘निराकुल’ समता ।
धन धाम विवर्जित ममता ।।
उपवास वर्ष पर्यन्तन ।
मम गोमटेश प्रभु वन्दन ।।८।।
।। जय गोम्मटेश, जय गोम्मटेश ।।
दुखड़ा मोचन ।
मुखड़ा मोहन ।
हिरणा लोचन ।
चम्पक नासा, घुंघराल केश ।
जय गोम्मटेश, जय गोम्मटेश ।।१।।
बादल छतरी ।
भुज तुण्ड करी ।
जल-कान्त मणी ।
गल, कर्ण कंध लग छव विशेष ।
जय गोम्मटेश, जय गोम्मटेश ।।२।।
मानो हिमाल ।
काँधे विशाल ।
रवि कोटि भाल ।
शंखी सुकण्ठ, सिंह कटि प्रदेश ।
जय गोम्मटेश, जय गोम्मटेश ।।३।।
जश विन्ध्याचल ।
दृश अकृत नकल ।
शश पूर्ण अमल ।
संतोष-कार, इक जग अशेष ।
जय गोम्मटेश, जय गोम्मटेश ।।४।।
तन लिप्त लता ।
तरु कल्प पता ।
धन ! धन ! समता ।
नत विनत खड़ा, चरणन सुरेश ।
जय गोम्मटेश, जय गोम्मटेश ।।५।।
सर्पाद जीव ।
निष्कंप दीव ! ।
शुचितर अतीव ।।
भयभीत न, यद्यपि नगन भेष ।
जय गोम्मटेश, जय गोम्मटेश ।।६।।
हत दोष मूल ।
रवि सुख अमूल ।
प्रति क्रमण भूल ।
निःशल्य भरत, गत राग-द्वेष ।
जय गोम्मटेश, जय गोम्मटेश ।।७।।
गत धन निवास ।
मद मोह ह्रास ।
बर्षिक उपास ।।
जा लगे ‘निराकुल’ सौख्य देश ।
जय गोम्मटेश, जय गोम्मटेश ।।८।।
।। गोम्मटेश जय, गोम्मटेश जय,
गोम्मटेश भगवान् ।।
शश समान ।
मुख विधान ।
चम्प घ्राण ।
कमल नैन ।
सकल जैन, आन वान शान ।
गोम्मटेश जय, गोम्मटेश जय,
गोम्मटेश भगवान् ।।१।।
बाहु दण्ड ।
हस्ति तुण्ड ।
जल सुकन्त ।
मणी कपोल ।
कर्ण लोल, छुयें कंध आन ।
गोम्मटेश जय, गोम्मटेश जय,
गोम्मटेश भगवान् ।।२।।
शंख और ।
कण्ठ गौर ।
मध्य छोर ।
अर विशाल ।
हिम पहाड़, कंध खुद समान ।
गोम्मटेश जय, गोम्मटेश जय,
गोम्मटेश भगवान् ।।३।।
अचल विंध्य ।
जश अमंद ।
पूर्ण चन्द्र ।
दातृ दीन ।
लोक तीन, बुध समान भान ।
गोम्मटेश जय, गोम्मटेश जय,
गोम्मटेश भगवान् ।।४।।
महा देह ।
लता गेह ।
जन विदेह ।
कल्प वृक्ष ।
सहस अक्ष, निरत विरद गान ।
गोम्मटेश जय, गोम्मटेश जय,
गोम्मटेश भगवान् ।।५।।
विगत शस्त्र ।
विरत वस्त्र ।
भय निरस्त ।
सानु-कम्प ।
मन अकम्प, पर्श विषधरान ।
गोम्मटेश जय, गोम्मटेश जय,
गोम्मटेश भगवान् ।।६।।
भरत मल्ल ।
विगत शल्य ।
दुरित दल्ल ।
जगत मित्र ।
दृग पवित्र, रति न सुख विमान ।
गोम्मटेश जय, गोम्मटेश जय,
गोम्मटेश भगवान् ।।७।।
गत उपाध ।
मद विराध ।
रत समाध ।
अमिट लेख ।
वर्ष एक थित, उपास ठान ।
गोम्मटेश जय, गोम्मटेश जय,
गोम्मटेश भगवान् ।।८।।
।। जयतु जय जय गोम्मटेश्वर ।।
कमल आंखें ।
बगल झाँके ।
घ्राण, मुख लख चम्प चन्दर ।
जयतु जय जय गोम्मटेश्वर ।।१।।
बाहु भाती ।
तुण्ड हाथी ।
कान्त जल-गल कर्ण सुन्दर ।
जयतु जय जय गोम्मटेश्वर ।।२।।
शंख दूजा ।
कण्ठ गूंजा ।
मध्य निश्चल कंध गिरवर ।
जयतु जय जय गोम्मटेश्वर ।।३।
सभा इन्द्रा ।
प्रभा विंध्या ।
चाँद पूनम संतोषकर ।
जयतु जय जय गोम्मटेश्वर ।।४।।
बेल बूटे ।
तरु अनूठे ।
खड़े सवनिय स्वर्ग इन्द्रर ।
जयतु जय जय गोम्मटेश्वर ।।५।।
साँप विछुआ ।
काँप न छुआ ।
विशुध भय रिक्त दैगम्बर ।
जयतु जय जय गोम्मटेश्वर ।।६।।
दृष्टि नासा ।
नष्ट आशा ।।
भरत प्रति गत शल्य अन्तर् ।
जयतु जय जय गोम्मटेश्वर ।।७।।
तज उपाधी ।
भज समाधी ।
साध अनशन इक बरस भर ।
जयतु जय जय गोम्मटेश्वर ।।८।।
।। जय गोम्मट स्वामी जय ।।
चन्द्र मुख छव चन्द्रिका ।
पुष्प चम्पक नासिका ।।
दल नील कमल दृग द्वय ।
जय गोम्मट स्वामी जय ।।१।।
कपोल जल कान्त मणी ।
पर्सित कंध सुकर्णी ।।
भुज-दण्ड सम तुण्ड-गय ।
जय गोम्मट स्वामी जय ।।२।।
निश्चल दूज सिंह कटी ।
कण्ठ दिव शंखावर्ती ।।
कंध उतुंग हिमालय ।
जय गोम्मट स्वामी जय ।।३।।
तृप्तकर शश पूर्णिमा ।
सभ बुद शिखा-मण समा ।।
गिर विंध्य विरद अक्षय ।
जय गोम्मट स्वामी जय ।।४।।
कल्पतरु ही दूसरा ।
महा तन लतावन घिरा ।।
शत इन्द्र खड़े सविनय ।
जय गोम्मट स्वामी जय ।।५।।
रत अठखेल विषधरा ।
न कंपायमान जरा ।।
दिगम्बर तदपि निर्भय ।
जय गोम्मट स्वामी जय ।।६।।
इष्ट नासा नजरिया ।
नष्ट आशा डगरिया ।।
भरत प्रति निशल्य हृदय ।
जय गोम्मट स्वामी जय ।।७।।
डग-डग नाप पथ दया ।
डग-मग मोह मद मया ।।
उपवास वर्ष अतिशय ।
जय गोम्मट स्वामी जय ।।८।।
।। प्रभु गोम्मटेश मोरे ।।
नासा गुल चम्पक सी ।
अंखिया दल पंकज सी ।।
मुख शशि पीछे छोड़े ।
प्रभु गोम्मटेश मोरे ।।१।।
जल कान्त मण कपोला ।
कन-पार्श्व कंध डोला ।।
गज तुण्ड भुजा दो ‘रे ।
प्रभु गोम्मटेश मोरे ।।२।।
छव कण्ठ शंख भांती ।
काँधे हिमगिर साथी ।।
कटि केशरि देखो ‘रे ।
प्रभु गोम्मटेश मोरे ।।३।।
शश पून जग हितैषी ।
करुणा न जगत् ऐसी ।।
जश विंध्य गिर बटोरे ।
प्रभु गोम्मटेश मोरे ।।४।।
तन लिप्त बेल-बूटे ।
अर कल्पतर अनूठे ।।
सुर खड़े हाथ जोड़े ।
प्रभु गोम्मटेश मोरे ।।५।।
निस्कंप पर्श नागी ।
निर्भीक वस्त्र त्यागी ।।
डाले न आश डोरे ।
प्रभु गोम्मटेश मोरे ।।६।।
गत शल भरत विदेहा ।
शिव सुख न स्वर्ग नेहा ।।
गत राग-द्वेष कोरे ।
प्रभु गोम्मटेश मोरे ।।७।।
रख दृग अपलक नासा ।
इक बर्ष तक उपासा ।।
सुख ‘निराकुल’ बहो ‘रे ।
प्रभु गोम्मटेश मोरे ।।८।।
गोम्मटेश देवा, जय जय गोम्मटेश देवा ।
मिल कर हम सब करें आरती
अहर्निश सदैवा ।।
चंपक घ्राण, कमल दल, आंखें ।
लख मुख निशिपति बगलें झाँकें ।।
देख पराई पीर बन चलीं,
आँख गंग रेवा ।
गोम्मटेश देवा, जय जय गोम्मटेश देवा ।।१।।
पार्श्व भाग कन कांधे छूते ।
उज्जवल भुज गज-तुण्ड अनूठे ।।
मणि जल-कान्त कपोल बहाने,
करे आप सेवा ।
गोम्मटेश देवा, जय जय गोम्मटेश देवा ।।२।।
कण्ठ शंख आवर्तों वाला ।
कंधे हिमगिरि तुंग विशाला ।।
जगजम ज्योतित पूर्ण चन्द्रमा,
द्योतित स्वयमेवा ।
गोम्मटेश देवा, जय जय गोम्मटेश देवा ।।३।।
भाग शिखर विंध्याचल जागा ।
हाथ शिखर मणि बुधजन लागा ।।
दर्शनीय मध भाग विनिश्चल,
पुण्य पूर्व जेबा ।
गोम्मटेश देवा, जय जय गोम्मटेश देवा ।।४।।
देह लताओं ने बढ़ घेरी ।
मान कल्पतर दें भवि फेरी ।।
खड़े चरण में इन्द्र नाग नर,
लिये पुष्प, मेवा ।
गोम्मटेश देवा, जय जय गोम्मटेश देवा ।।५।।
दैगम्बर आडम्बर रीते ।
रंच न भीत, मोह मद जीते ।।
बिच्छू सांप करें अठखेली,
नाहिं कांप लेवा ।
गोम्मटेश देवा, जय जय गोम्मटेश देवा ।।६।।
चाह न स्वर्ग, न शिव अभिलाषा ।
दोष ना एक, टेक दृग नासा ।।
हुये निशल्य भरत भाई प्रति,
तट लागी खेवा ।
गोम्मटेश देवा, जय जय गोम्मटेश देवा ।।७।।
धन उपवास वर्ष पर्यन्ता ।
साध समाध चतुष्टय वन्ता ।।
भरे उड़ान सुख ‘निराकुल’ पुर,
और इक परेवा ।
गोम्मटेश देवा, जय जय गोम्मटेश देवा ।।८।।
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