सवाल आचार्य भगवन् ! बिजली से जन्म दिला पतंगे को घड़ी अगली छिपकली के मुख का निवाला बना दिया वक्त उसी सर्प की लपलपाती जिह्वाओं के, वशीभूत कर दिया छिपकली को और प्रकृति ओ ! अभी तुम न बाज आईं […]
सवाल आचार्य भगवन् ! बिजली से जन्म दिला पतंगे को घड़ी अगली छिपकली के मुख का निवाला बना दिया वक्त उसी सर्प की लपलपाती जिह्वाओं के, वशीभूत कर दिया छिपकली को और प्रकृति ओ ! अभी तुम न बाज आईं […]
सवाल आचार्य भगवन् ! दादी, नानी की किस्सों का मन्थन करने पर नवनीत बाहर निकलता है चीजें एक छोर से छुओ दूसरे नेक छोर से अनछुई रह जाती हैं इसलिये ‘के फैसले सही हों, न सहीं किसी दूसरे को, स्वयं […]
सवाल आचार्य भगवन् ! आजकल फास्ट-फूड, फस्ट फूट बनते जा रहे हैं, ऐसा क्यों ? और सुनते हैं बीमारियों घर के हैं ये, रोकिए इनके बढ़ते कदम गुरुजी नमोऽस्तु भगवन्, नमोऽस्तु भगवन्, नमोऽस्तु भगवन्, जवाब… लाजवाब सच भोजन भूसे से […]
सवाल आचार्य भगवन् ! किसी का दिल दुखाना अच्छा है क्या ? पर हा ! हाय ! जमा…ना चुभाता ही रहता है डंक नाजुक जो होता है दिल खूब गहरे धस के घाँव हो चलते हैं नमोऽस्तु भगवन्, नमोऽस्तु भगवन्, […]
सवाल आचार्य भगवन् ! आपके प्रवचन में तिल्ली के जैसा अतराता रहता है शब्द जमा…ना जमाना भगवन् ! एक बार ही पर्याप्त रहता है बोलना, लेकिन दोबारा बोल के क्या बतलाना चाहते हैं आप नमोऽस्तु भगवन्, नमोऽस्तु भगवन्, नमोऽस्तु भगवन्, […]
सवाल आचार्य भगवन् ! ये जीजी की पाँत तो खत्म ही नहीं होती है, हर साल आप दादा गुरुदेव ज्ञान सागर जी के समाधि दिवस पर प्रतिभा मण्डल का प्रवेश द्वार खोलते हैं जाने आप क्या समझाते हैं ‘कि भौतिकता […]
सवाल आचार्य भगवन् ! ‘अतिथि देवो भव’ ऐसा आप ही कहते है और भगवान् आगुंतकों के साथ आप थोड़ी सी भी व्यवहारिकता नहीं निभाते हैं ‘कि और कुछ नहीं तो बैठने के लिए ही कह दें ? नमोऽस्तु भगवन्, नमोऽस्तु […]
सवाल आचार्य भगवन् ! ऐसी वैसी नहीं, हिन्दी सवा शेर, हिन्दी की लाईन ( लॉयन ) इंग्लिश का शेर जो बब्बर है वो बरोब्बर है हहा ! ‘अंगरे’ जी छूना तो दूर, न देखना जी ‘ही’ न The मतलब ‘भी’ […]
सवाल आचार्य भगवन् ! जिनागम में आचार्य महाराज कोई भी हों ग्रन्थ समाप्ति पर एक ही भावना भाते हैं, बोधि-समाधि और प्रथमानुयोग को तो इसका निधान-खजाना ही कह दिया गया है, इनके बारे में बतलाईये ना गुरु जी ? नमोऽस्तु […]
सवाल आचार्य भगवन् ! तीर्थकर सर्वज्ञ, निर्ग्रन्थ जैसे दुकानदार अनेकांत, अहिंसा जैसा चोखा माल फिर भी देवों को छह, दह, नहीं चौदह अतिशय करने पड़े इतनी सारी अनुकूलता देनी पड़ी नाट्य शालाएँ, उपवन, और जाने क्या क्या ? ऐसा क्यों […]
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