प्रद विभूत,
जयति जै माँ जिन मुखोद्-भूत ।।१।।
जिनवाणी द्यु अष्टम् भू सोपान,
आ करें, सो…पान ।।२।।
आदि जिनेशा !
राखी पत, राखिजो यूँ ही हमेशा ।।३।।
त्राहि माम् चन्द्र प्रभ जी,
अँखिंयाँ चिर-से भींजी ।।४।।
उलझन छू…मन्तर,
छू भगवन् शान्ति चरण ।।५।।
स्वामी ! सन्मति दो ‘कि इतनी
पाऊँ सम्पद् अपनी ।।६।।
गौतम नाम गणेश,
चालो सङ्ग ले आप देश ।।७।।
श्री जी शासन स्याद्वाद,
थामे यूँ ही रहना हाथ ।।८।।
प्रशमता धी हंस देने वाली,
भी…वाणी दीवाली ।।९।।
हो स्वानुभौ, तो स्वाध्याय,
देता कमा के खूब आय ।।१०।।
कोई लगाये है ज्ञानार्णव पार,
तो ‘नौ’ नौकार ।।११।।
अशुभ से ‘कि बच सकूँ
निर्ग्रन्थ ये ग्रन्थ रचूँ ।।१२।।
ग्रन्थ
साँचे जो ढ़ाले ज्ञान, दर्शन, चारित्र पन्थ ।।१३।।
लौकिक हित साधना,
सत्-साहित्य की विराधना ।।१४।।
न सिर्फ पन्ने ही ‘रे,
सद्-ग्रन्थ सच में पन्ने-हीरे ।।१५।।
कवि मिठाई के साथ,
दे दवाई दे, भाँत मात ।।१६।।
निकलते ही अहिंसा का ‘अ’ शास्त्र,
बनते शस्त्र ।।१७।।
शब्द पत्ती हैं, फूल हैं
पोथिंयों के भाव मूल हैं ।।१८।।
गागर छान न ‘कि सागर,
काफी ढ़ाई आखर ।।१९।।
रखे बिना दृग् नम,
बढ़ा सके न पग कलम ।।२०।।
अहिंसा स्वाती जल बिन्दु पा सीप पोथी,
हो मोती ।।२१।।
वो ग्रन्थ ग्रन्थी सा,
जिसे लिक्खा सिर्फ भरने खीसा ।।२२।।
स्व-पर हित से सहित जो,
एक सत् साहित्य वो ।।२३।।
है रास्ता जहाँ तक
करे पुस्तक ‘पुस्’ वहाँ तक ।।२४।।
कितने आब-पानी में हैं आप,
दे…बता किताब ।।२५।।
पेज
लगें ‘कि कवि हाथ, बढ़ती एज, इमेज ।।२६।।
सफा, कवि ले छू
दफा ‘एक’ तर्फा चलता जादू ।।२७।।
कागज कोरे तिल,
दे एक कवि और कालिख ।।२८।।
काल किसका मीत अपना,
साधो हित अपना ।।२९।।
झूठा.. संसार दिखावे का,
दिखावे आ…ओ अंगूठा ।।३०।।
भावना ‘वारा’
कचरा मन का दें निकाल सारा ।।३१।।
‘गुणी’ बारह भा बनाएँ,
आ भर पलक भायें ।।३२।।
क्यों चलना क्या ? अपने गाँव ना
‘नौ’-तीन भावना ।।३३।।
इन्द्रिय भोग ये हैं कैसे ?
तो मीठी छुरी के जैसे ।।१।।
वक्त पड़ता जो न रिसता,
ऐसा वो कौन रिश्ता ।।२।।
जनम,
मृत्यु के लिए भरा गया डग प्रथम ।।३।।
खोल पलक,
पलक पीछे जगत् पलक मींचे ।।४।।
ले अनित्यता ‘दाई’
पहले गोद में फिर माई ।।५।।
दे हर ‘घण्टा’ घर आवाज
‘कि ओ ! जागते रहो ।।६।।
लाख चौरासी कह रही जौन,
है अमर कौन ।।७।।
जाई ‘क्या साथ’ आई
हित जिसके पाप कमाई ।।८।।
सुनो ना, सिर्फ न टूटना,
छूटना भी ये खिलौना ।।९।।
गंगा की धार में गढ़ा खूटा,
पल पीछे हो झूठा ।।१०।।
‘अपना बन’ जगत् ने ठगा
कहे किसको सगा ।।११।।
भूल न,
डाल पे भले, मुस्कान ले साँझ फूल…ना ।।१२।।
इतराये क्यूँ,
इतर बने पल-पल पता तू ।।१३।।
बुुड़ोती दौड़ी दौड़ी,
‘आती है’ बुद्धि ‘री ! थोड़ी थोड़ी ।।१४।।
पलट पत्ता ह…रा,
रा… ह ले पीले पन की झट ।।१५।।
कोयले हीरे,
‘रक्खे रक्खे हो रहे’ कोयले ही ‘रे ।।१६।।
आ साँझ तरु घने
पखेरु सुब्हो चलते बने ।।१७।।
दिश् किस ओर
बिखर चले छोड़ हा ! पंख-मोर ।।१८।।
सुब्हो सबेरे आ बहुतरे,
बिदा साँझ सकारे ।।१९।।
सुब्हो तिलक ‘राज’
साँझ रोने की सुनी आवाज ।।२०।।
जमाना हँसे,
मकड़ी बने जाल अपने फँसे ।।२१।।
क्या खरीदी दे-के सोना चाँदी,
साँस का, विश्वास क्या ।।२२।।
भाई अस्थाई इन्द्र धनुष जैसे
रूप’ये पैसे ।।२३।।
नदी पानी लिये रवानी,
वैसी ही जिन्दगानी ।।२४।।
छीनी कीमती जिन्दगानी,
पानी ने दीनी कमती ।।२५।।
प्राणी सकल आयुर्बल,
समान अंजुली जल ।।२६।।
पुराना पट,
हा ! सिलते-सिलते ही चाले फट ।।२७।।
बादल कहे विघट,
करना सो कर लो झट ।।२८।।
एक मर्तबा फलने अकेले का,
पेड़ केले का ।।२९।।
न आने वाले नये,
अंगोपांग जो गये तो गये ।।३०।।
कहीं पाँखुड़ी तो गंध न,
गंध तो मकरन्द न ।।३१।।
हा ! गिन गिन,
‘जने’ अपने गई खा माँ ना…गिन ।।३२।।
सँभल रख पैय्या नादां,
दुरंगी दुनिया ज्यादा ।।३३।।
सल चेहरे आई,
न जाये, भले जाये भिजाई ।।३४।।
ठहर पल
जौवन हवा जैसे हवा-महल ।।३५।।
रक्खे ही रक्खे कपूर नाँई,
उम्र काफूर भाई ।।३६।।
रुपये-पैसे,
है और क्या ? पानी के बुल-बुले से ।।३७।।
है इन्द्रचाप-सा चपल,
यौवन ये तेज, बल |।३८।।
बदली, ‘समाँ’ बिजली चमकना,
‘जगत्-सपना’ |।३९।।
होते तलक निधन,
कमाते ही न रहो धन ।।४०।।
कही ना जाना है,
घूम फिरके वही आ जाना है ।।४१।।
शरण एक आत्मा,
दो परमात्मा तीन महात्मा ।।१।।
शरण
सिद्ध नन्त, अरिहन्त
मा…हन्त महन्त ।।२।।
सिवाय ‘एक’ मार्ग तीन रतन,
कौन शरण ।।३।।
सिवाय एक साँझ प्रतिक्रमण
कौन शरण ।।४।।
लाज नजर,
अकारण शरण आज नजर ।।५।।
जग जगना,
अकारण शरण मग नगना ।।६।।
अन्त समाधी,
अकारण शरण अनेकान्त धी ।।७।।
सत्संग अ’जि,
अकारण शरण निस्तरंग जी ।।८।।
व्यसन कुट्टी,
अकारण शरण वसन छुट्टी ।।९।।
दोनों भगवन्,
अकारण शरण तीनों श्रमण ।।१०।।
धर्म अहिंसा,
अकारण शरण अ, सि, आ, उ, सा ।।११।।
गुरु वयन,
अकारण शरण तर नयन ।।१२।।
भाव विनीत,
अकारण शरण स्वभाव प्रीत ।।१३।।
दया धरम,
अकारण शरण हया शरम ।।१४।।
कहे शर…न बना अब तक,
‘कि फना अन्तक ।।१५।।
कोई शरण तो श…शास्त्र,
र…राम, न…नग्न साधो ।।१६।।
कौन राम ?
‘र’ से रिषभ देव, ‘म’ से महावीर ।।१७।।
दुनिया बड़ी ‘दुख-मै’
छोटी ‘मीन’ बड़ी मुख में ।।१८।।
था पाना छाँव,
आया
आ…जाना जगत् धूप का गाँव ।।१९।।
प्यासा नदिंयाँ जिन्दिगिंयाँ पाकर,
यम-सागर ।।२०।।
कौन अपना ?
दूध-पानी सी देह भी दे साथ ना ।।२१।।
नाम मात्र के ‘अमर’
पल पल छीजे उमर ।।२२।।
‘रे करे कौन रक्षा,
सूूकरी मुख अपना बच्चा ।।२३।।
जात-वैरी भू देखते संग,
फिर क्या ? छिड़े जंग ।।२४।।
कौन सहाई,
अंधेरे, छू अपनी ही परछाई ।।२५।।
माला मुर्झाई,
दे…बता कैसे कहे हमें सहाई ।।२६।।
आग लेने के लिये आता,
काल न व्यौहार भाता ।।२७।।
आयु करम,
पहुँचाने तलक मंदिर यम ।।२८।।
घना शरणा,
सहजो निराकुलपना अपना ।।२९।।
शरण और क्या ?
एक अविक्षिप्त मन के सिवा ।।३०।।
मृग चेतन लग कँपने,
काल सिंह सामने ।।३१।।
हकीकत में
‘सिवा-आत्मा न कोई’ शाश्वत्-जगत्-में ।।३२।।
साथी सुख में जमाना
ले दुख में ढूढ़ बहाना ।।१।।
जे चहिये वो चहिये,
भौ-भ्रमण गाड़ी पहिये ।।२।।
बाँधे संसार की दम,
सम्मूर्च्छन एक जनम ।।३।।
जश्ने-काल ‘कि धरा-साई
जा… जीव आ धरा-जाई ।।४।।
आ एस कर रहे हैं,
जाना… कैसे कर रहे हैं ।।५।।
पुराना कौन नया,
काटा ‘कि साटा, पुनः आ गया ।।६।।
मयूरी पीकी, पी ‘कि आँसु,
विचित्र जहाँ जिज्ञासु ।।७।।
जीव ने सब-को ‘बनाया’,
लागे ‘कि काल ने खाया ।।८।।
ले चुका सब जगह जनम मैं,
त्रिभुवन में ।।९।।
ले लिया जन्म काल दोई,
न बचा समय कोई ।।१०।।
वय मय आ जा ग्रैवेयक तक
गया मैं छक ।।११।।
सिक्का ‘कि जेब जैसे,
बदले देह ये जीव वैसे ।।१२।।
हैं खड़े जहाँ ‘कि हम तने,
दफा-दफा दफने ।।१३।।
पा…पा कितने झुला चुके हाथ में,
न याद हमें ।।१४।।
जाने कितने पिता,
वर-से, बर्षे न अता-पता ।।१५।।
जाने कितनी माएँ,
बनी गाएँ ‘कि ना…गिन पायें ।।१६।।
जाने कितने भाई,
सहाई पाई-पाई लड़ाई ।।१७।।
मच्छ-राघो ‘कि ढ़के राखी,
इतनी बहना सखे ।।१८।।
जाने कितनी बुआ,
दी बद्दुआ भी, न ‘कि दुआ ही ।।१९।।
जाने कितने चाचा,
कञ्चन थमा, थमाया काँचा ।।२०।।
जाने कितनी चाची
नाचीज चीज न जानी साँची ।।२१।।
जाने कितने दादा,
जोड़ के तोड़ ‘कि चुके बादा ।।२२।।
जाने कितनी दादी
न दी खादी, दी गादी,
मैं ऽनादि ।।२३।।
जाने कितनी मा…सी,
पूर्ण…मा हो चुकी अमाँ-सी ।।२४।।
जाने कितनी मामी,
छोड़ ‘कि चुकीं अंगुली थामी ।।२५।।
पन-दो अस्त दोस्त बन,
दुनिया बनी दुश्मन ।।२६।।
अग्नि परीक्षा प्रसव,
अठ दश श्वासेक भव ।।२७।।
बहाने बीट पीपल पात,
‘आप’ लें बना बात ।।२८।।
छाँटा ‘कि पौधा बढ़ चला,
कम न भो ! कह चला ।।२९।।
खाकर खुद ठोकर, बेटी व्याहें,
ये कैसी माँ हैं ।।३०।।
सं समीचीन सार,
क्या छुआ ‘कि छू हुआ संसार ।।३१।।
अकेले जाता मैं, मिली माटी,
यही पे मिली माटी ।।१।।
चला चली का मेला,
दिन पीछे ए ! चल अकेला ।।२।।
यही पे यही का खो गया,
वो लाये जो क्या खो गया ।।३।।
लेख, लो देख जोड़ा न ‘जाता’
वही एक जो आता ।।४।।
जीम सकते
‘साथ-में’ जा न घर-जम सकते ।।५।।
गोरे हाथ ‘मै…ले’
पाता प्रतिफल जीव अकेले ।।६।।
करना ठीक था फरेब,
जो होती कफन जेब ।।७।।
वाउम्र तेरी मैं…ना…’री
मानी जब उम्र सिरानी ।।८।।
कह चला मैं एकाकी,
उड़ चला पिंजरे पाखी ।।९।।
एक ले चल एकला चल
जाना ही जब कल ।।१०।।
एक मैं, एक मेरी लाठी,
‘मानौ न दो’ जुदा माटी ।।११।।
रह सकता एक
‘कि चोटी छोटी जिन्दगी देख ।।१२।।
मुये अकेले जीव,
बीच झमेले खेद अतीव ।।१३।।
दिखा रहा ‘कि नट,
नया खेल, लो हो गया खेल ।।१४।।
यही ये जोड़ा भी जाना छोड़,
मत नाहक दौड़ ।।१५।।
जोड़ बेजोड़,
और तो सब जाना यही पे छोड़ ।।१६।।
आने जान की पगडंडी,
इक है, ‘री इकहरी ।।१७।।
ये खाये, पेट भरे उसका,
ऐसा देखा दृश्य क्या ।।१८।।
पड़ा छिलका केला
माने मेला था आया अकेला ।।१९।।
भला एकला हुये ‘दो नो’ ‘कि ग्यारह,
‘धी’ नो दो ग्यारा ।।२०।।
अब ‘कि तब लो गिरि मैं,
चिपकी ना…रियल में ।।१।।
हे ! कहे माटी पड़ी,
थी सन्धि बीच में मोटी बड़ी ।।२।।
जुदा जुदा है,
मृणमय, चिन्मय भावी ख़ुदा है ।।३।।
माटी में माटी को मिल जाना,
पाखी को उड़ जाना ।।४।।
साथी मोह…न धूल,
एक गिनाती फूलौर-शूल ।।५।।
भाई तुम, मैं बह…ना
जुदा जुदा आत्मा अपना ।।६।।
भिन्न कपड़ों से धूल,
सावन दे करा कबूल ।।७।।
विभूति शिवभूति
धी तुष-मास भिन्न अनूठी ।।८।।
ठकुराई ‘कि शिव पाई,
म…लाई पीछे ललाई ।।९।।
तलक हंस न ले देख,
लगते पानी दूधेक ।।१०।।
थी जुदा किट्ट कालिमा,
कह चली सोने अल्बिदा ।।११।।
जाना ‘कि पर-लोक सिवाय,
श्लोक आ देते ढ़ोक ।।१२।।
माँ रज शुक्र ‘शुक्र’ पा,
पाई देह इस फक्र क्या ।।१।।
इस चमड़ी के पीछे,
देखे आँखें दुनिया मीचे ।।२।।
मल झिरते नौ-द्वार,
देह ऐसी कैसा दुलार ।।३।।
तन मनाक् न चमड़ी,
‘रहती’ तो नाक सिकुड़ी ।।४।।
झील बाद में,
नैन दिन-रैन दे कीच हाथ में ।।५।।
भ्रम चम्पक फूल,
नाक थमाती रहती धूल ।।६।।
प्रात मोती ये दाँत
परत मैल मोटी दें हाथ ।।७।।
ईख चाखती
‘जुबाँ’ बोल कड़वे मुख राखती ।।८।।
करते साफ है,
जुबाँ तब उठा पाते आप है ।।९।।
और क्या सिवा खूनो-माँस
आ रहा देह जो रास ।।१०।।
मूँग-फली… है तली,
मन फिर भी भाई चुगली ।।११।।
‘जी श्वान मेल खाता,
खोज ही रोज ही मल लाता ।।१२।।
घाटी उतरा मीठा,
लौटा कभी तो बन के खट्टा ।।१३।।
साफ आप हो…ना,
कहे फिर फिर हाथों का धोना ।।१४।।
झाँका भी-तर,
दिखा मन का कद ओछा बेहद ।।१५।।
खूूब गोरा है किन्तु मन,
बगुले का कोयला है ।।१६।।
ठण्डी गर्मी या वर्षा…
देह फिरता है बचा बचा ।।१७।।
गंदा ‘कि दिखा नहीं,
लो भागा, मन परिन्दा-कागा ।।१८।।
लो धुलने के हुये,
वस्त्र क्या इस तन ने छुये ।।१९।।
मिलता फूल,
तन तलक क्षण मिलता धूल ।।२०।।
हरकते जी बचकानी,
छू होने को जिन्दगानी ।।२१।।
जाती उजली अंगुली,
कान हो…के आती गंदली ।।२२।।
सैलाबे इत्र कह रहा
बदबू से भरा जहाँ ।।२३।।
बने रहते श्याह
नाखू कहने लायक वाह ।।२४।।
रोगों की कौम
है भरी, रोम रोम आ भरते ओऽऽम् ।।२५।।
मने तो कैसे दीवाली,
मन स्याही जुबान काली ।।१।।
जर्रा दरार क्या मिली,
जल धार बह निकली ।।२।।
जरा भी छेद है ज्यादा खूब,
बेड़ा ‘कि जाता डूब ।।३।।
राखी आस्-रव,
कहे ‘कि मुझसे वो परेशाँ कब ।।४।।
पा खाद हवा पानी कृपा,
माटी का बीज पनपा ।।५।।
क्षण-क्षण ‘कि जोड़ते कण-कण
जुड़ता ‘मन’ ।।६।।
मिलते जैसे निमित्त,
परिणाम हो वैसे मित्र ।।७।।
दे…खो जीवन आप का,
भोग यानी फण साँप का ।।८।।
जकड़ा धूल ने कपड़ा…
बाहर था ही निकला ।।९।।
जल्द-ही जड़ें ले जमा,
वृक्ष विष पाताल आस्मां ।।१०।।
वक तपस्या
दे ज्यादा से ज्यादा तो बस मत्स्या ।।११।।
‘फनी’ गरल न बदला
काँचली बदल चला ।।१२।।
अभिनन्दन,
आस…रब, आस्रव अभी बंधन ।।१३।।
अमाँ ! पूर्ण माँ,
आस…रब, आस्रव अमा…पूर्ण ऽमाँ ।।१४।।
पानी उत्तारे,
आस…रब, आस्रव पानी उतारे ।।१५।।
नौ तर लाता,
आस…रब, आस्रव भौ भटकाता ।।१६।।
कछुआ यहाँ,
‘है बढ़ाये कदम’, खतरा वहाँ ।।१७।।
श्वभ्र अशुभ
‘भाव’ शुभ द्यु, सिद्धि दें शुद्ध-भाव ।।१८।।
वचन, तन,मन चपलता
दे…खो सफलता ।।१९।।
परम्परा से ‘शुक्रियाएँ’
परम पद दिलाएँ ।।२०।।
नाम अच्छा न यायावर,
‘रे चलते यारा घर ।।१।।
सम् समता से मण्डित,
वो संवर धर पंडित ।।२।।
मुड़ कहे सं…व…र
र…व…सम् कोई,
तो मैं जहाँ दोई ।।३।।
जगत् कछुआ विरला…
हस्त-गत संवर कला ।।४।।
झूठ मटकी लूट, दे खोल मुट्ठी,
समस्या छुट्टी ।।५।।
लागी लो डाट,
पन-डुबी ‘कि डुबी लागी वो घाट ।।६।।
नाम यूँ ही न कछुआ,
कखहरा दूजा ही छुआ ।।७।।
संकट हुई,
निज निकट हुई ‘कि छुई-मुई ।।८।।
हो एकासन
सामायिक अच्छी हो एक आसन ।।९।।
दी…सम्बर
पा जिसे कुछ नये का आना नम्बर ।।१०।।
संवर और क्या
तरतीब एक सलीके सिवा ।।११।।
सत्य है कहे मुड़ त…प
प…त राखना तो मुझसे जुड़ ।।१२।।
नह्वन गज,
सविपाक निर्जरा गुल कागज ।।१।।
डोर मथानी,
सविपाक निर्जरा लिक्खा ‘कि पानी ।।२।।
सागर मेह,
सविपाक निर्जरा वानर गेह ।।३।।
वारिस रोना,
सविपाक निर्जरा वारि-विलोना ।।४।।
साधो ! कहती-सी निर्जरा
आ निज नियर जरा ।।५।।
काल पहले पकाना फल डाल,
तो है ना पाल ।।६।।
मिटाया… लिखा-सिल,
पाल निर्जरा डाल….पेंसिल ।।७।।
देख नाम की,
डाल ‘निर्जरा’ पाल एक काम की ।।८।।
खम् निष्ठीवन,
डाल ‘निर्जरा’ पाल खुशबू पवन ।।९।।
सोने सुहाग,
अविपाक निर्जरा सुहानी फाग ।।१०।।
किस्से साहसी,
अविपाक निर्जरा हिस्से तापसी ।।११।।
समेटे काम,
अविपाक निर्जरा भेंटे मुकाम ।।१२।।
व्रत…घृत वत्
वहीं रहना दूध में पै तैरना ।।१३।।
है लोक वही का वही,
आते जाते ‘लोग’ बताते ।।१।।
लोक को छोड़ा,
काल ने और सब लोग को छेड़ा ।।२।।
आ गये
‘युग पुरुष’ ‘जुग जुग जिओ’ गा गये ।।३।।
समाई सिन्धु उठी लहर,
लोग नादि-अमर ।।४।।
लोक तब से,
आलोक, बीज तरु… लोग जब से ।।५।।
मिटने वाला न लोक,
मिटता वो उपजता जो ।।६।।
कहे ‘जग’ मैं रहा,
आ मुझे ठग ले कौन यहाँ ।।७।।
बहुरूपिया चीज हरिक,
नादि और अमिट ।।८।।
बाल न बाँका होने वाला,
लोक से काल भी हारा ।।९।।
ग्राम अपने घर शाम लागें,
वो भी जब भागें ।।१०।।
तिरे हाथ न एक सिन्धु,
विश्व में यूँ नेक सिन्धु ।।११।।
क्षितिज-छोर ए ! जी
पा सका कोई, न दौड़ के भी ।।१२।।
दूूर अपना घर,
नक्शे-विश्व न मिला शहर ।।१३।।
बच्चे बच्चे को स्वीकार,
‘दुनिया’ दो दूनी चार ।।१४।।
काल का जादू काला… छोड़ लोक
न किसपे चाला ।।१५।।
सिर कछुये पड़नी,
बुझक्कड़ ‘ला…ला’ धरणी ।।१६।।
करती किसी को दण्डौत,
तो सिर्फ लोक को मौत ।।१७।।
मेरा नहीं देह का बुलावा,
मृत्यु द्यु शिव नावा ।।१८।।
पाना निगोद इतर
इतर सा दुर्लभ माना ।।१।।
पहले से ही जहाँ इस था…वर मैं,
सुने हमें ।।२।।
बन के कोई
तो मैं गया हूँ तर…सा जहाँ दोई ।।३।।
कहे संज्ञी,
द्यु-शिव यात्रा में कोई तो वो मैं संगी ।।४।।
मुँह माँगी ले के रकम,
विक…ले…न…दिये हम ।।५।।
वो शावक
मैं उससे कुछ ज्यादा हूँ मैं श्रावक ।।६।।
खुश्बू नहीं तो, हो खुश्बू वाला फन
तब सु…मन ।।७।।
तब सुकुल,
मिटा दीवाल, पड़े बनना पुल ।।८।।
बगैैर आप विजय,
कब लागी हाथ विनय ।।९।।
पड़े जागना दिन रात,
यूँ ही न लगे श्री हाथ ।।१०।।
हर हुनर,
कराती तय एक लंबा सफर ।।११।।
होश जिसका यार हो
दुर्लभ वो होशियार जो ।।१२।।
न तरतीब आई,
जगह स्याही… सफेदी छाई ।।१३।।
खाने पड़ते थपेड़े जग हँसी,
होने साहसी ।।१४।।
बहुत कुछ देखा सीखा,
तब जा आया सलीका ।।१५।।
काक तालीय न्याय,
चौ…पाये से हैं पाये दो…पाये ।।१६।।
त्रस पर्याय,
‘दुर्लभ से दुर्लभ’ कृश कषाय ।।१७।।
जीवन साधो,
‘दुर्लभ से दुर्लभ’ जनम मानौ ।।१८।।
अहिंसा कुल,
‘दुर्लभ से दुर्लभ’ प्रशंसा पुुल ।।१९।।
देना पीछिका,
‘दुर्लभ से दुर्लभ’ लेना पीछिका ।।२०।।
चीरना चीर,
‘दुर्लभ से दुर्लभ’ लगना तीर ।।२१।।
वसुधा सखा,
‘दुर्लभ से दुर्लभ’ वसु वसुधा ।।२२।।
फन कछुआ,
‘दुर्लभ से दुर्लभ’ निस्पृह दुआ ।।२३।।
तर नयना,
‘दुर्लभ से दुर्लभ’ घर रहना ।।२४।।
सदाचरणा,
‘दुर्लभ से दुर्लभ’ सदा चलना ।।२५।।
प्रभु प्रसाद,
‘दुर्लभ से दुर्लभ’ माँ आशीर्वाद ।।२६।।
दिल दरिया,
‘दुर्लभ से दुर्लभ’ प्रांजल चर्या ।।२७।।
पूर्णायु पाना,
‘अंधे हाथ बटेर’ ऊँचा घराना ।।२८।।
रीझें मुश्किल से,
माँ जूं पुकारते जब दिल से ।।२९।।
उत्तम क्षमा
‘परम सद्धरम’ ओं नमो नमः ।।१।।
निस्पृह नेह,
‘परम सद्धरम’ निर्लिप्त गेह ।।२।।
उत्तम साँच,
‘परम सद्धरम’ रत्नेक काँच ।।३।।
उत्तम तप,
‘परम सद्धरम’ असि..सा जप ।।४।।
शरमो-हया,
‘परम सद्धरम’ दृग् नमो-दया ।।५।।
शौच उत्तम,
‘परम सद्धरम’ मोक्ष उद्यम ।।६।।
बुजुर्ग सेव,
‘परम सद्धरम’ दरिया जेब ।।७।।
मिलाना हाथ,
‘परम सद्धरम’ निभाना साथ ।।८।।
अहिंसा एक,
‘परम सद्धरम’ हंस विवेक ।।९।।
है बैठा कौन बाहर,
अपना दे…बता भी-तर ।।१०।।
भीतर चलो,
तपन बाहर क्यों नाहक जलो ।।११।।
तन प्रमाण,
ज्यादा न कम ज्ञान घन आतम ।।१२।।
स्त्री पुत्र मेरे,
धारणा यही रही लगवा फेरे ।।१३।।
कौन हार्दिक,
बाहिर जिस खातिर चेतन हा ! धिक् ।।१४।।
दीवाल की ओट हैं,
भीतर आत्म ज्योत है ।।१५।।
भागम ‘भाग’ तभी,
चीज अजीज बाहर अभी ।।१६।।
जो तू…सो मैं
जो मैं… सो तू
मैं ही ध्यान, ध्याता, ध्येय भी ।।१७।।
कम न ज्ञानी महिमा,
कर्मोदय ‘मानी’ मेहमाँ ।।१८।।
उतार वस्त्र और ओढ़े,
मरती है आत्मा थोड़े ।।१९।।
न और भोग छोड़ने सिवा,
भौ रोग की दवा ।।२०।।
देख लगड़ा अंधा चले,
पाल…ना भ्रम पग…ले ।।२१।।
अ, सि, आ, उ, सा
मंत्र अक्षर बना लेते खुद सा ।।२२।।
निरंंजन मैं निरा,
मेरा मरण न जन्म जरा ।।२३।।
अनंंत गुण समृद्ध सिद्ध,
जैसे वैसे मैं शुद्ध ।।२४।।
देहादि पर पदार्थ, मानो
आत्मा को आत्मा जानो ।।२५।।
भगवान् वही मैं, मैं वही भगवान्
रखना ध्यान ।।२६।।
शिकस्त कैसी फतह,
आत्मा हो तो सभी जगह ।।२७।।
न देव गेह में
विद्यमान देव-देव देह में ।।२८।।
वृक्ष बीज में,
भले न दीखे, आत्मा देह बीच में ।।२९।।
मोड़ा ‘के इच्छा मुख,
ले जन्म वही से सच्चा सुख ।।३०।।
न विचारो, न बोलो न चालो
आत्मा अपना पा…लो ।।३१।।
सम्यक् दर्शन सुवास,
पुष्प दान पूजा उपास ।।३२।।
सुपात्र दान
धीरे धीरे बना निर्वाण पात्र ।।३३।।
‘दिया’ आहार,
देर रह न पाता भौ-अंधकार ।।३४।।
तीर्थ यात्रा श्री जी प्रतिष्ठा से बचा धन
ना…गिन ।।३५।।
दान पूजा से बचा पैसा,
छू ना अंगार जैसा ।।३६।।
मुख न मोड़ा,
विषय सुख छोड़ा भी तो क्या छोड़ा ।।३७।।
हो कल फल पाना,
विषयासक्त हा ! परवाना ।।३८।।
हो कल फल पाना,
भोग विरक्त बोया भू दाना ।।३९।।
गुमान नाग,
छू मन्तर ग्रहण ज्ञान वैराग ।।४०।।
इन्द्रिय, मन
वाक् तन पाँव ‘कर’ मुण्डन सर ।।४१।।
ए ! मा…छी सुख लेश ना,
परिग्रह आसक्ति श्लेश्मा ।।४२।।
हो स्वानुभौ,
तो सम्यकत्व प्राप्त हो, तो समाप्त भौ ।।४३।।
ज्ञान से
शो…भा आत्मस्थ ग्रहस्थ की दया दान से ।।४४।।
खूब भीतर सुुख बाहर भागे जे,
अभागे वे ।।४५।।
नीर सम्यक्त्व, धो भी जाये वास…ना
चीर हींग ना ।।४६।।
भोग अनिच्छा से जोगी,
भोगे जैसे औषधी रोगी ।।४७।।
तर…ना साथ जिन मुद्रा,
यही तो कहे समुद्रा ।।४८।।
शुद्ध होने की प्रक्रिया
सुवर्ण वो सिद्ध होने की ।।४९।।
जिसने निज में गला डेरा,
पार उसका बेड़ा ।।५०।।
सोना आतम बोधी
अलावा माटी जिन्दगी खो…दी ।।५१।।
कहे शब्द,
प…’रिजन’ दिखा रहे अपना पन ।।५२।।
वक्त अपना विकथा साधो !
माटी मोल बिकता ।।५३।।
रुपये रूप…ये दिया वक्त
गया समझो मुफ्त ।।५४।।
कर्म की उठा पटक,
शठ सट, रहा झटक ।।५५।।
देखा ‘कि मुड़
य…ति, ति…य पने से जाता जुड़ ।।५६।।
विष विषय अन्दर,
पहले ही न ‘कि नन्तर ।।५७।।
गुण यानि ‘कि डोरी,
टूटे पतंग आ कोई लूटे ।।५८।।
छोड़ चाला, वो चक्री सुख,
कुछ तो छुआ निराला ।।५९।।
पोथी पढ़ना ही ना खाली,
जरुरी होती जुगाली ।।६०।।
कथनी एक करनी हुई,
पार तरणी हुई ।।६१।।
देह न आत्मा, आत्मा देह में
याद रखना हमें ।।६२।।
यति यानि ‘कि जाना रुक,
विषयों से मोड़ मुख ।।६३।।
बहुत थोड़ी विभूति पोथी,
स्वानुभूति अनोखी ।।६४।।
देह भी गेह ही
ऊपर से मठ छोड़ भी हट ।।६५।।
विकल्प पानी बिठानी रज,
स्वानु-भव सहज ।।६६।।
बुरा किसका भला,
खो…जा अभी में राम विरला ।।६७।।
चिन्मय ‘और’ मृणमय न जाना
सो आना जाना ।।६८।।
अग्नि में शंख
लगा गोता न खोता सु-वर्ण पंक ।।६९।।
सीपी में पड़ा मोति,
ले निकाल धी… वर तत्काल ।।७०।।
ओ रोको हा…’थी’ मन
उजाड़ न दे ये शील वन ।।७१।।
चुक न पाते भोग चुकते हम,
ए ! मन थम ।।७२।।
तोड़ पत्तिंयाँ,
मैंने कुछ अपना ही तोड़ लिया ।।७३।।
हम जैसे ही भावी भगवन्
पानी, पत्ती, पवन ।।७४।।
ती..रथ
बैठा मन, वाक्, तन नापें आ मुक्ति पथ ।।७५।।
गूँगे का गुड़
स्वानुभौ कहने न पूछने बढ़ ।।७६।।
तू खोजें जिसे मन्दर-मन्दर
वो तेरे अन्दर ।।७७।।
चिन्मय बीच मृणमय लकीर
चीर आ चीर ।।७८।।
हँसना आता,
नाभि कस्तूरी मृग हाँपता जाता ।।७९।।
रात्रि जागर बस… बस… बस…
न अस्थि में रस ।।८०।।
पास इन्द्रियों के गया मन,
लाया आवागमन ।।८१।।
सीना सुई दो मुख,
मोक्ष और विषय सुख ।।८२।।
मिले माणिक्य मेले
लपेट राखो खूब ताँको अकेले ।।८३।।
खोल खोल न दिखाओ रत्न देखो
देखते जाओ ।।८४।।
देह में आत्मा निर्मल,
भिन्न जल जैसे कमल ।।८५।।
दुग्ध घी, तेल तिल
हेम पाषाण देह भगवान् ।।८६।।
अग्नि लाठी में
शक्ति रूप से आत्मा तन माटी में ।।८७।।
जानन हारा मैं,
गोरा न काला मैं, हूँ निराला मैं ।।८८।।
बगैर आस्था
प्रभु पाहन, पोथी अनोखी कथा ।।८९।।
पार जहाज प्रेरित वायु,
बने धका आत्मा तू ।।९०।।
निराकुल न हुये
छू गुरुकुल कहो क्या छुये ।।९१।।
हुये, ‘हो रहे’ होंगे सिद्ध,
भावना ‘भा’ ये प्रसिद्ध ।।९२।।
भावना ये ‘भा’, ‘गये पा’ शिव धाम,
तिन्हें प्रणाम ।।९३।।
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