भव मानव व्यर्थ गवाया ।
कर्ता बन के क्या पाया ।।
ज्ञाता दृष्टा रहना था ।
क्या कहना ? सब सहना था ।।
बरसा दृग नीर बहाया ।
कर्ता बन के क्या पाया ।। 1 ।।
मन मानी करे हमेशा ।
मन चंचल बन्दर जैसा ।।
श्रुत वृक्ष न उसे रमाया ।
कर्ता बन के क्या पाया ।। 2 ।।
वनिता बेड़ी, घर कारा ।
दे पुत्र चिता मुख ज्वाला ।।
गुम देख अंधेरा साया ।
कर्ता बन के क्या पाया ।। 3 ।।
जोड़ा रह गया यहीं पे ।
पंछी उड गया कहीं पे ।।
यम बिना बुलाये आया ।
कर्ता बन के क्या पाया ।। 4 ।।
दीमक ने जहमत झेली ।
आ सर्प करे अठखेली ।।
कर्मों ने नाँच नचाया ।
कर्ता बन के क्या पाया ।। 5 ।।
दें चुभन फूल के गुच्छे ।
मुख नागिन अपने बच्चे ।।
निज, पता न कौन पराया ।
कर्ता बन के क्या पाया ।। 6 ।।
पैसा कब हाथ टिका है ।
अक्षर जो भाग लिखा है ।।
क्यों सिर दिवाल दे आया ।
कर्ता बन के क्या पाया ।। 7 ।।
कब अपना नाक अगारे ।
सब सपना पीठ पछारे ।।
नित् गले बर्फ सी काया ।
कर्ता बन के क्या पाया ।। 8 ।।
अपने जाले मृत मकड़ी ।
अलि कमल न भेदे लकड़ी ।।
दर कदम बिछी है माया ।
कर्ता बन के क्या पाया ।। 9।।
कर्ता बन के क्या पाया ।
भव मानव व्यर्थ गवाया ।।
सब करना धरना छोड़ो ।
मन सामायिक से जोड़ो ।।
आओ ओ ! चेतन राया,
बेदाग चुनरिया ओढ़ो ।।1।।
गिनती न खतम होनी है ।
जोड़ी माया खोनी है ।।
मन खाई कभी न भरनी ।
पड़नी सिर अपने करनी ।।2।।
इक बाद दूसरा बंगला ।
हित अगले, जाना पगला ।।
‘रे पगले ! पग ला पीछे ।
ऊपर जाना या नीचे ।।3।।
जल कहाँ ? रेत यह चमके,
थम चलो, मृग न अब दोड़ो ।।
आओ ओ ! चेतन राया,
बेदाग चुनरिया ओढ़ो ।।4।।
विषयों में विष लहराये ।
चश्मा क्या हटा, दिखाये ।।
कर देती मुश्किल जीना ।
छोड़े भी लत जाती ना ।।5।।
हैं भोग रोग ही दूजे ।
स्वर आर्त चींख ये गूंजे ।।
‘रे ! पगले, पग ला रस्ते ।
रोते जाना या हँसते ।।6।।
छिल चले मसूड़े श्वाना,
हड्डी रस ना भ्रम तोड़ो ।।
आओ ओ ! चेतन राया,
बेदाग चुनरिया ओढ़ो ।।7।।
बच्चे घर रेत बनाते ।
दे लाते, मिटा घर आते ।।
पर लगते शिशु पंछी ने ।
आकाश हवाले कीने ।।8।।
हम आश लगाये बैठे ।
सुख देंगें मेरे बेटे ।।
‘रे पगले, पग ला अन्दर ।
है सुख का जहाँ समन्दर ।।9।।
घट भूत न बन्दर मामा,
भर ली मुट्टी वह खोलो ।।
आओ ओ ! चेतन राया,
बेदाग चुनरिया ओढ़ो ।।10।।
बगले को मछली प्यारी ।
फिर भूख, ध्यान तैयारी ।।
अपने सा हंस निराला ।
मण मोती चुगने वाला ।।11।।
वह दवा भस्म मुक्ता की ।
फिर लगे न भूख कदापि ।
‘रे पगले ! पग लो लौटा,
बस भटका रहा मुखौटा ।।12।।
भव मानस अबकी पाया,
मुख मीन-मेख से मोड़ो ।।
आओ ओ ! चेतन राया,
बेदाग चुनरिया ओढ़ो ।।13।।
सब करना धरना छोड़ो ।
मन सामायिक से जोड़ो ।।
आओ ओ ! चेतन राया,
बेदाग चुनरिया ओढ़ो ।।14।।
भला बुरा कुछ भी न बोलना ।
बनती कोशिश कुछ न सोचना ।।
यह साँची सामायिक साधो !
रख हाथों पर हाथ बैठना ।। 1।।
प्रद संक्लेश द्वेष मत रखना ।
आग सरीखा राग न करना ।।
यह साँची सामायिक साधो !
मोह-मया से बच के चलना ।।2।।
छीने बोध क्रोध मत करना ।
रावण हान, मान से वचना ।।
यह साँची सामायिक साधो !
दलदल लालच लोभ संभलना ।।3।।
ठग जग भ्रमे, न बनना छलिया ।
पाप हाथ रँग उभरे करिया ।।
यह साँची सामायिक साधो !
छुकते ही भर चली गगरिया ।।4।।
स्वयं जिओ दो औरन जीने ।
गम खा लो, है गुस्सा पीने ।।
यह साँची सामायिक साधो !
रिश्ते उधड़े लागो सीने ।।5।।
छिने जुवान झूठ मुंह मोड़ो ।
नेह तिजोड़ी, चोरी छोड़ो ।।
यह साँची सामायिक साधो !
पर गोरी से दृग मत जोड़ो ।।6।।
आगे नाक न कुछ भी अपना ।
पीछे पीठ न कुछ भी अपना ।।
यह साँची सामायिक साधो !
बाहर देह देहरी सपना ।।7।।
कहा पराया धन बच्ची को ।
बच्चा देता मुख अगनी को ।।
यह साँची सामायिक साधो !
देना साथ न कल पत्नी को ।।8।।
देह गेह रोगों का सुनते ।
भोगी हाथ मलें, सिर धुनते ।।
यह साँची सामायिक साधो !
जोड तोड़ में समता चुनते ।।9।।
जुड़ पंछी निश प्रात बिछुड़ना ।
छुपा शब्द जो…वन क्या पढ़ना ।।
यह साँची सामायिक साधो !
रहना धरती धरे, न उड़ना ।।10।।
गम खाना है ।
नम जाना है ।
रम जाना है, निज आतम में ।
सामायिक में ।।1।।
चुप रहना है ।
सब सहना है ।
बस बहना है, विधि धारन में ।।
सामायिक में ।
रम जाना है, निज आतम में ।।2।।
शान्त बैठना ।
निज निकेतना ।
आंख टेकना, नाक पे हमें ।।
सामायिक में ।
रम जाना है, निज आतम में ।।3।।
जप नवकारा ।
ना सिर भारा ।
जानन हारा, हूँ केवल मैं ।।
सामायिक में ।
रम जाना है, निज आतम में ।।4।।
आत्म साधना ।
निजा-राधना ।
सदा जागना, अन्तर् मन में ।।
सामायिक में ।
रम जाना है, निज आतम में ।।5।।
मन वश करना ।
अनबन नशना ।
सुनना रस… ना, विष विषयन में ।।
सामायिक में ।
रम जाना है, निज आतम में ।।6।।
साथ विछुड़ना ।
झांकी जुड़ना ।
पाँखी उड़ना, दिश विदिशन में ।।
सामायिक में ।
रम जाना है, निज आतम में ।।7।।
तजना ममता ।
भजना समता ।
जोगी रमता, विरला जग में ।।
सामायिक में ।
रम जाना है, निज आतम में ।।8।।
तीर्थ वन्दना ।
कीर्त चन्दना ।
प्रीत स्यंदना, शिव सुरगन में ।।
सामायिक में ।
रम जाना है, निज आतम में ।।9।।
धर्म अहिंसा ।
वक न प्रशंसा ।
बनना हंसा, मानस जनमे ।।
सामायिक में ।
रम जाना है, निज आतम में ।।10।।
काग न धोना ।
जाग न खोना ।
सुगंध सोना, रहना घर में ।।
सामायिक में ।
रम जाना है, निज आतम में ।।11।।
सामायिक की परिभाषा ।
नहिं कठिन, है बड़ी आसां ।।
हा ! रागी द्वेषी बँधता ।
सामायिक यानी समता ।।1।।
माटी का उगाल सोना ।
‘रे’ काहे पागल होना ।।
वैसे भी हम माटी के ।
सन्तों की परिपाटी के ।।
वशि ममता प्राणी भ्रमता ।
सामायिक यानी समता ।।2।।
बन चले कोयले हीरे ।
कल पुनः कोयले ही ‘रे ।।
ले समय करवटें सुनते ।
क्यों ? धुन अपनी न धुनते ।।
रत्ती न जहाँ आकुलता ।
सामायिक यानी समता ।।3।।
म-कान नहीं है जिसका ।
रिश्ता क्या अपना उसका ।।
जोवन वन गये गये बन ।
बस उनका जीवन धन धन ।।
जल बहता जोगी रमता ।
सामायिक यानी समता ।।4।।
लो मूँद, खोल पल पलकें ।
भीतर गुण अनन्त झलकें ।।
क्यों गाने जड़ के गाने ।
टिकना क्यों काल बहाने ।।
‘रे काय.. रता कायरता ।
सामायिक यानी समता ।।5।।
चलती ‘गाड़ी’ कहलाती ।
झूठों के झूठे साथी ।।
संगत का असर अनूठा ।
सत जीते हारे झूठा ।।
क्यूँ बनना कर्ता धर्ता ।
सामायिक यानी समता ।।6।।
नासा क्या नाक टिकाई ।
मन भागम-भाग विलाई ।।
मृग नाभि यथा कस्तूरी ।
ज्यादा न स्वयं से दूरी ।।
मटका झुकते ही भरता ।
सामायिक यानी समता ।।7।।
वन भवन काँच इक कंचन ।
धूली इक चूरी चंदन ।।
इक भाँत प्रशंसा गाली ।
अनरव इक भाँत दिवाली ।।
वे श्रमण, चरण आदरता ।
सामायिक यानी समता ।।8।।
खोया, क्या खोया अपना ।
इक रात प्रात इक सपना ।।
मैं हूँ अखण्ड अविनाशी ।
वो मीन न, जो जल प्यासी ।।
निज सिवा कहाँ समरसता ।
सामायिक यानी समता ।।9।।
कुछ गहरे और उतरते हैं ।
आओ सामायिक करते हैं ।।
लहराये ज्ञान समन्दर है ।
जो भी अपना सो अन्दर है ।।1।।
मुख राम कटार बगल रखती ।
साधे दुनिया बगला भगती ।।
जोबन वन रस्ता धरते हैं ।
आओ सामायिक करते हैं ।।2।।
आते क्या लेकर आते हैं ।
जाते क्या लेकर जाते हैं ।।
जल बुदबुद भांत विखरते हैं ।
आओ सामायिक करते हैं ।।3।।
रूपया पैसा बंगला गाड़ी ।
धंधा-पानी, खेती बाड़ी ।।
यमराज तुला कब तुलते हैं ।
आओ सामायिक करते हैं ।।4।।
पत्नी, बच्चे, भगिनी, भाई ।
यह ! वैरी, मित्र, पिता, माई ।।
पंछी से सुबह विछुड़ते है ।
आओ सामायिक करते हैं ।।5।।
इक क्षमा स्वभाव हमारा है ।
उबला पानी उड़ चाला है ।।
पल ज्ञाता दृष्टा रहते हैं ।
आओ सामायिक करते हैं ।।6।।
कर मान दशानन पाताला ।
झुक बेत गगन छूने चाला ।।
कुछ नाक बचा कर रखते है ।
आओ सामायिक करते हैं ।।7।।
माँ या मैं रहूँ कहे माया ।
जाले मकड़ी खुद मृत काया ।।
तिर्यंच जोन से बचते हैं ।
आओ सामायिक करते हैं ।।8।।
मांखी गुड़ गीले फँस तड़फे ।
लालच जानी दुश्मन बढ़के ।।
श्रुत रुचि शुचि धर्म सुमरते हैं ।
आओ सामायिक करते हैं ।।9।।
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