सिद्ध-चक्र मंडल विधान
तृतीय वलय
*श्री वर्धमान मंत्र*
ॐ
णमो भयवदो
वड्ढ-माणस्स
रि-सहस्स
जस्स चक्कम् जलन्तम् गच्छइ
आयासम् पायालम् लोयाणम् भूयाणम्
जूये वा, वि-वाये वा
रणंगणे वा, रायंगणे वा
थम्-भणे वा, मो-हणे वा
सव्व पाण, भूद, जीव, सत्ताणम्
अव-राजिदो भवदु
मे रक्ख-रक्ख स्वाहा
ते रक्ख-रक्ख स्वाहा
ते मे रक्ख-रक्ख स्वाहा ।।
नव देवता संस्तवन
करुणा क्षमा भण्डारी ।
जय नव-देवता थारी ।।
कर्मन घात घात अशेष ।
सुख, बल, ज्ञान, दर्श विशेष ।।
जिन अरिहन्त सुख-कारी ।
जय नव-देवता थारी ।।१।।
कर्म अघात घात समूल ।
सहजो नाव भव-जल कूल ।।
सिद्ध अनन्त दुख-हारी ।
जय नव-देवता थारी ।।२।।
चल शिव पथ चलाते और ।
मुनि सिर-मौंर भीतर गौर ।।
सार्थक सूर बलिहारी ।
जय नव-देवता थारी ।।३।।
भावी राधिका शिव-कन्त ।
पड़ते पढ़ाते सद्-ग्रन्थ ।
बहु श्रुत-वन्त गुण-धारी ।
जय नव-देवता थारी ।।४।।
फिर के ज्ञान, फिर के ध्यान ।
खुद से साधु सन्त महान ।।
मनके फिरें नवकारी ।
जय नव-देवता थारी ।।५।।
लख पर पीर दृग झिर नीर ।
बुध भिन म्यान, भिन शमशीर ।।
इक जिन धर्म शरणा’ री ।
जय नव-देवता थारी ।।६।।
जिन मुख विनिर्गत श्रुत-मात ।
ज्योत अखण्ड मण्डित स्यात् ।।
बस यह अमृत अर ना ‘री ।
जय नव-देवता थारी ।।७।।
विरत कलत्र, विरहित शस्त्र ।
अपगत इत्र, विरहित वस्त्र ।।
जिन प्रति बिम्ब मनहारी ।
जय नव-देवता थारी ।।८।।
ध्वज लहरे गगन निर्बाध ।
दश दिश् गूंज घंटा नाद ।।
जश जिन गृह अहिंसा ‘री ।
जय नव-देवता थारी ।।९।।
ॐ ह्रीं श्री नव देवता भगवन् !
अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
‘चमत्कार’
‘सिद्ध-चक्र नमस्कार’
हिस्से श्रद्धा भक्ति चमत्कार ।
गई न खाली, ‘सुंदर मैं न’ गुहार ॥
चमत्कार, चमत्कार, चमत्कार ।
नमस्कार नमस्कार नमस्कार ।
सिद्ध-चक्र मण्डल विधान को ।
सिद्ध-यंत्र करुणा निधान को ॥
स्वयं ‘सिद्ध’ मन्तर प्रधान को ।
नमस्कार नमस्कार नमस्कार ॥
बड़ी नाम सुर सुन्दर बहना ।
छोटी बहना सुन्दर मैना ।
पढ़ मत-शिव, सुख ‘वर’ सुर सुन्दर,
पढ़ आई मैना मत-जैना ॥
सुखी हमेशा, वस्तु स्वरूप विचार ।
हिस्से श्रद्धा भक्ति चमत्कार ॥ ०१ ॥
पिता कभी मैना से बोले ।
दिया तुझे ‘वर’ मन का गो ले ।
बोली मैना, भाग लिखे कल,
उदित हो भले होले-होले ॥
मेरा नहीं, आपका यह अधिकार ।
हिस्से श्रद्धा भक्ति चमत्कार ॥ ०२ ॥
लगा पिता को बात न मानी ।
लगती थोड़ी-सी अभिमानी ।
मेरा छोड़, भाग जश गाये,
मजा चखाने की हा ! ठानी ॥
और ब्याह दीनी कोढ़ी श्री पाल ।
हिस्से श्रद्धा भक्ति चमत्कार ॥ ०३ ॥
‘जमीं खिसकती’ ‘उड़ते तोते’ ।
बाद पिता पछताते, रोते ।
मैना कहे, निमित्त आप बस,
वहीं काटते, जो हम बोते ॥
करो विदा, पत-सेव खेव भव-पार ।
हिस्से श्रद्धा भक्ति चमत्कार ॥ ०४ ॥
मैना जिन दर्शन को चाली ।
दिखे विराजे मुनि अनगारी ।
राम कहानी कह चाली है,
चरणों में दृग धारा ढारी ॥
‘देव, शास्त्र, गुरु सिवा न विघ्न निवार ।
हिस्से श्रद्धा भक्ति चमत्कार ॥ ०५ ॥
कार्तिक, फागुन, मास अषाढा ।
सिद्ध यंत्र पर कर जल धारा ।
सिद्ध-चक्र मण्डल विधान रच,
पर्व अठाई, जप नवकारा ॥
छट चालेगा पाप-रात्रि अंधियार ।
हिस्से श्रद्धा भक्ति चमत्कार ॥ ०६ ॥
पहला ही, दिन दूर अखीरी ।
अश्रु खुशी ले आँख पनीली ।
कुष्ठ बदल, तन कामदेव सा,
बेड़ी कर्म निकाचित ढ़ीली ॥
दिग्-दिगंत ‘जय शील’ लगा जयकार ।
हिस्से श्रद्धा भक्ति चमत्कार ।
गई न खाली, ‘सुंदर मैं न’ गुहार ॥
चमत्कार, चमत्कार, चमत्कार ।
नमस्कार नमस्कार नमस्कार ।
सिद्ध-चक्र मण्डल विधान को ।
सिद्ध-यंत्र करुणा निधान को ॥
स्वयं ‘सिद्ध’ मन्तर प्रधान को ।
नमस्कार नमस्कार नमस्कार ॥ ०७ ॥
“पुष्पांजलिं क्षिपामि”
सिद्ध-चक्र मंडल विधान पूजन
जय जयकारा जय जयकारा ।
सिद्ध यंत्र को नमन हमारा ॥
आगे पीछे रेफ, मध्य सह,
बिन्दु हकारा ।
कमलाकृति-दल कर्णि पूर्व सिध,
स्वर दश चारा ॥
फिर कवर्ग, फिर चवर्ग नीचे ।
फिर टवर्ग, फिर तवर्ग पीछे ॥
फिर पवर्ग अंतस्थ-ऊष्म यूँ,
साथ अनाहत मन्तर न्यारा ।
अंत ह्रीम् बेढ्यो अति प्यारा ॥
मंत्र णमो अरिहंताणं मध,
पाँखन विस्तारा ।
सिद्ध यंत्र को नमन हमारा ।
जय जयकारा जय जयकारा ॥
ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं
श्री सिद्ध यंत्र
अत्र अवतर अवतरण संवौषट्
(इति आह्वानन)
अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ:
(इति स्थापनम्)
अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्
(इति सन्निधिकरणम्)
सिद्ध मंत्र आलापता,
असि-आ उसा प्रसिद्ध ।
सिद्ध यंत्र को थापता,
हित सरवारथ सिद्ध ॥
इति यन्त्रस्-थापनार्थं पुष्पांजलिं क्षिपेत्
पूजूँ स्वर्गा ।
हित अपवर्गा ।
दिश् ‘पूर्वर स्वर-चौदह वर्णा ॥१॥
ॐ ह्रीं अर्हं अ आ इ ई उ ऊ
ऋ ॠ ऌ ॡ ए ऐ ओ औ अं अः
अनाहत पराक्रमाय सिद्धाधिपतये नमः
पूर्व-दिशि अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।
पूजूँ स्वर्गा ।
हित अपवर्गा ।
दिश् आग्ने-यर, वर्ण कवर्गा ॥२॥
ॐ ह्रीं अर्हं क ख ग घ ङ
अनाहत पराक्रमाय सिद्धाधिपतये नमः
आग्नेय-दिशि अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।
पूजूँ स्वर्गा ।
हित अपवर्गा ।
दिश् दक्षिण-अर, वर्ण चवर्गा ॥३॥
ॐ ह्रीं अर्हं च छ ज झ ञ
अनाहत पराक्रमाय सिद्धाधिपतये नमः
दक्षिण-दिशि अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।
पूजूँ स्वर्गा ।
हित अपवर्गा ।
दिश् नैऋत्-त्यर, वर्ण टवर्गा ॥४॥
ॐ ह्रीं अर्हं ट ठ ड ढ ण
अनाहत पराक्रमाय सिद्धाधिपतये नमः
नैऋत्य-दिशि अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।
पूजूँ स्वर्गा ।
हित अपवर्गा ।
दिश् पश्चिम-अर, वर्ण तवर्गा ॥५॥
ॐ ह्रीं अर्हं त थ द ध न
अनाहत पराक्रमाय सिद्धाधिपतये नमः
पश्चिम-दिशि अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।
पूजूँ स्वर्गा ।
हित अपवर्गा ।
दिश् बायव्-व्यर वर्ण पवर्गा ॥६॥
ॐ ह्रीं अर्हं प फ ब भ म
अनाहत पराक्रमाय सिद्धाधिपतये नमः
वायव्य-दिशि अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।
पूजूँ स्वर्गा ।
हित अपवर्गा ।
दिश् उत्तर अंतस्थ सुवर्णा ॥७॥
ॐ ह्रीं अर्हं य र ल व
अनाहत पराक्रमाय सिद्धाधिपतये नमः
उत्तर-दिशि अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।
पूजूँ स्वर्गा ।
हित अपवर्गा ।
दिश् ईशा-नर ऊष्मक वर्णा ॥८॥
ॐ ह्रीं अर्हं श ष स ह
अनाहत पराक्रमाय सिद्धाधिपतये नमः
ईशान-दिशि अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।
अथ सिद्ध भक्ति कायोत्सर्ग
॥ प्राकृत पद्यानु-वाद ॥
॥ दोहा ॥
सिद्ध, ज्ञान, दर्शन-मयी,
जीव-घणा, अशरीर ।
अनाकार, साकार भी,
कुछ कम देह-अखीर ॥१॥
॥ चौपाई ॥
बंधोदय सत्-कर्म अराती ।
प्रकृति मूल-उत्तर संघाती ॥
मंगल-भूत अष्ट गुण-वन्ता ।
जल-संसार तीर अगणंता ॥२॥
सिद्धी-भूत निरंजन, नित्या ।
विकल कर्म विध-वस कृत-कृत्या ॥
सार्थ सिद्ध लोकाग्र निवासी ।
अष्टक प्रमुख शगुन गुण-राशी ॥३॥
नष्ट अष्ट मल-कर्म विशुद्धा ।
सिद्ध, बुद्ध नव-लब्धि समृद्धा ॥
शेखर-मुकुट भुवन-तिहुँ माथा ।
श्री-मद्-भट्टारक जग-त्राता ॥४॥
॥ दोहा ॥
गमना-गमन विमुक्त जे,
प्रकृति कर्म संघात ।
शाश्वत सुख संयुक्त वे,
सिद्ध विमुक्त-उपाध ॥५॥
॥ चौपाई ॥
मंगल-भूत दुभू पाताला ।
निर्मल परिणत बहती धारा ॥
दर्शन, अवगम, चारित सहिता ।
द्रव्य कर्म, नो-कर्म वि-रहिता ॥६॥
केवल दर्शन, चारित, ज्ञाना ।
निध-सम्यक्त्व, वीर्य-अप्रमाणा ॥
सूक्ष्म, अगुरुलघु, अव्या-बाधा ।
अवगाहन गुण अष्टक साधा ॥७॥
तप से सिद्ध, सिद्ध संयम से ।
नय से सिद्ध, सिद्ध अवगम से ॥
दर्शन, ज्ञान, सिद्ध आचरणा ।
हों प्रसन्न, वे तारण-तरणा ॥८॥
॥ दोहा ॥
कीना कायोत्सर्ग है,
भक्ति सिद्ध जिन नाथ ।
आलोचन उसका करूँ,
हाथ जोड़ नत माथ ॥९॥
॥ चौपाई ॥
भूषण-भू-वस, कल्मष-क्षीणा ।
चरित, ज्ञान, दर्शन समिचीना ॥
सिद्ध भूत, वर्तमान, भावी ।
नन्ता-नन्त काल अप्रभावी ॥१०॥
बुध-प्रतेक ! बुध-बोधित ! बुद्धा !।
बुध-अनेक, बुध-स्वयं ! विबुद्धा !॥
उनका पूजन, वन्दन करता ।
मन, वच, तन अभिनन्दन करता ॥११॥
कर्म क्षीण हो, दुख विलीन हो ।
संगत-साध, सुगति अधीन हो ॥
बोधि ‘निराकुल’ समाधि पाऊँ ।
धन ! जिन-गुण-सम्पद् पा जाऊँ ॥१२॥
“पुष्पांजलिं क्षिपामि”
अकृत्रिम जिनालय अर्घ्यं
आठ करोड़ लाख छप्पन ।
सन्त्यान्वे हजार धन ! धन ! ॥
इक्यासी ऊपर सौ चार ।
अखर जिनालय जय जयकार ॥
ॐ ह्रीं आठ करोड़, छप्पन लाख,
सन्त्यान्वे हजार, चार सौ इक्यासी
श्री अकृत्रिम जिनालयेभ्यो नमः
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
अकृत्रिम जिन बिम्ब अर्घ्यं
कोटिक नव सौ पच्चीसा ।
लाख तिरेपन सत-बीसा ॥
हजार, नव सौ अड़तालीस ।
नुति जिन-बिम्ब अखर निशिदीस ॥
ॐ ह्रीं नौ सौ पच्चीस करोड़,
तिरेपन लाख, सत्ताईस हजार,
नव सौ अड़तालीस
श्री अकृत्रिम जिन बिम्बेभ्यो नमः
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
तृतीय वलय पूजन
भूत-भविष्यत-वर्तमान के,
सिद्धों को वन्दन ।
सति मैना पति कोढ़ी काया,
खुद समान कंचन ॥
भले नाम सार्थक क…पड़ा ? ।
बाहर क्या निकला गंदला ।
किन्तु बात ना डरने की,
लग साबुन सोड़ा उजला ॥
यजन सिद्ध साबुन सोड़ा ।
बहुत न लगते ही थोड़ा ।
चेहरे सति पति श्रीपाला,
आया मंद हास दौड़ा ॥
नाम निधत्त निकाच कर्म का,
खुद ढीला बन्धन ।
भूत-भविष्यत-वर्तमान के,
सिद्धों को वन्दन ॥
ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं
सिद्ध परमेष्ठिन्
अत्र अवतर अवतरण संवौषट्
(इति आह्वानन)
अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ:
(इति स्थापनम्)
अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्
(इति सन्निधिकरणम्)
(पुष्पांजलिं क्षिपेत्)
जीव जल न कल बन जाऊँ ? ।
क्यूँ न जलन दिल विथलाऊँ ।
रहे सोचते न बस, हरस,
क्यूँ न सार्थ मैं ‘वन’ जाऊँ ॥
तभी चढ़ाऊँ जल नयनन ।
सति मैना पति कोढ़ी काया,
खुद समान कंचन ।
भूत-भविष्यत-वर्तमान के,
सिद्धों को वन्दन ॥
ॐ ह्रीं झ्वीं श्रीं अर्हं
अ सि आ उ सा
अप्-प्रति-चक्रे फट्
वि-चक्राय झ्रौं झ्रौं नमः
जलं निर्वपामीति स्वाहा ।
कल न जाऊँ बन मैं आगी ।
सोच यही तुम वैरागी ।
भव भव मुंह की खाई है,
कांधे पर दुनाल दागी ॥
तभी चढ़ाऊँ घिस चन्दन ।
सति मैना पति कोढ़ी काया,
खुद समान कंचन ।
भूत-भविष्यत-वर्तमान के,
सिद्धों को वन्दन ॥
ॐ ह्रीं झ्वीं श्रीं अर्हं
अ सि आ उ सा
अप्-प्रति-चक्रे फट्
वि-चक्राय झ्रौं झ्रौं नमः
चंदनं निर्वपामीति स्वाहा ।
कल न जाऊँ, बन जीव धरा ।
अप्प जगाया दीव त्वरा ।
करने जुटे जगत् सार्थक,
कुल पा लिया अतीव निरा ॥
तभी चढ़ाऊँ अक्षत कण ।
सति मैना पति कोढ़ी काया,
खुद समान कंचन ।
भूत-भविष्यत-वर्तमान के,
सिद्धों को वन्दन ॥
ॐ ह्रीं झ्वीं श्रीं अर्हं
अ सि आ उ सा
अप्-प्रति-चक्रे फट्
वि-चक्राय झ्रौं झ्रौं नमः
अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा ।
बनना कल न पड़े पवना ।
हिरणा बन न हुआ थमना ।
करुणा बिना न मोख सुरग,
साध नैन गंगा जमना ॥
भेंटूँ तभी पुष्प नंदन ।
सति मैना पति कोढ़ी काया,
खुद समान कंचन ।
भूत-भविष्यत-वर्तमान के,
सिद्धों को वन्दन ॥
ॐ ह्रीं झ्वीं श्रीं अर्हं
अ सि आ उ सा
अप्-प्रति-चक्रे फट्
वि-चक्राय झ्रौं झ्रौं नमः
पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा ।
बन न जाऊँ कल वनस्पती ।
दी विसार तुम अधस् मती ।
व्रति बन, रुके न चढ़ पैढ़ी,
छुआ गगन बन महत् व्रती ॥
तभी चढ़ाऊँ घृत व्यंजन ।
सति मैना पति कोढ़ी काया,
खुद समान कंचन ।
भूत-भविष्यत-वर्तमान के,
सिद्धों को वन्दन ॥
ॐ ह्रीं झ्वीं श्रीं अर्हं
अ सि आ उ सा
अप्-प्रति-चक्रे फट्
वि-चक्राय झ्रौं झ्रौं नमः
नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
भव न पाऊँ कल विकलत्रय ।
साधी मोक्षिक द्वार विनय ।
क्रमश: किये न युगपत् ही,
कर्म ध्यान अगनी में क्षय ॥
तभी भिंटाऊँ दीपक मण ।
सति मैना पति कोढ़ी काया,
खुद समान कंचन ।
भूत-भविष्यत-वर्तमान के,
सिद्धों को वन्दन ॥
ॐ ह्रीं झ्वीं श्रीं अर्हं
अ सि आ उ सा
अप्-प्रति-चक्रे फट्
वि-चक्राय झ्रौं झ्रौं नमः
दीपं निर्वपामीति स्वाहा ।
भव असंज्ञ, ना पाऊँ कल ।
कदम रख चले संभल संभल ।
डरे न, तुम ना घबड़ाये,
आया यम समेत दल बल ॥
तभी चढ़ाऊँ सुगंध अन ।
सति मैना पति कोढ़ी काया,
खुद समान कंचन ।
भूत-भविष्यत-वर्तमान के,
सिद्धों को वन्दन ॥
ॐ ह्रीं झ्वीं श्रीं अर्हं
अ सि आ उ सा
अप्-प्रति-चक्रे फट्
वि-चक्राय झ्रौं झ्रौं नमः
धूपं निर्वपामीति स्वाहा ।
रोम रोम में रोग बसे ।
झाँसे आप न भोग फँसे ।
देख एक बस दुखदाई,
धन बनते संयोग नशे ॥
तभी भिंटाऊँ फल उपवन ।
सति मैना पति कोढ़ी काया,
खुद समान कंचन ।
भूत-भविष्यत-वर्तमान के,
सिद्धों को वन्दन ॥
ॐ ह्रीं झ्वीं श्रीं अर्हं
अ सि आ उ सा
अप्-प्रति-चक्रे फट्
वि-चक्राय झ्रौं झ्रौं नमः
फलं निर्वपामीति स्वाहा ।
नरक न जाना पड़े कहीं ।
आप गलत मग बढ़े नहीं ।
बेंत बने, कुछ झुक चाले,
बरगद जैसे अड़े नहीं ॥
अर्घ तभी भेंटूँ भगवन् ।
सति मैना पति कोढ़ी काया,
खुद समान कंचन ।
भूत-भविष्यत-वर्तमान के,
सिद्धों को वन्दन ॥
ॐ ह्रीं झ्वीं श्रीं अर्हं
अ सि आ उ सा
अप्-प्रति-चक्रे फट्
वि-चक्राय झ्रौं झ्रौं नमः
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
बत्तीस मूल गुण अर्घ
मण खाकर तप आगी ।
धन ! झिलमिल बढ़भागी ॥
घी फिर न दूध बनता ।
त्यों थिर सुध चेतनता ॥
लो लगा मुझे पीछे ।
ले चलो मुझे खींचे ॥
उस देश जहाँ कोकिल ।
न लजाये माँ का दिल ॥ १ ॥
ॐ नमः
शुद्ध चेतना-यस्-स्वाहा ।
तम दीप तले देखा ।
जागृत किया विवेका ॥
मण दीपक बन चाले ।
नश मानस कृत काले ॥
लो लगा मुझे पीछे ।
ले चलो मुझे खींचे ॥
उस देश जहाँ मर्कट ।
ना हाथ फाँस ले घट ॥ २ ॥
ॐ नमः
शुद्ध ज्ञाना-यस्-स्वाहा ।
क्यों करनी नादानी ।
उठ चले लहर पानी ॥
मैत्री कंकर छोड़ी ।
निज चित्र दिखा ओ ‘री ॥
लो लगा मुझे पीछे ।
ले चलो मुझे खींचे ॥
उस देश जहाँ नागिन ।
कृत करे, न आये घिन ॥ ३ ॥
ॐ नमः
शुद्ध चिद्रूपा-यस्-स्वाहा ।
कब हेम जंग खाता ।
हो भले कीच नाता ॥
भीतर गहरे उतरे ।
साबुन बगैर निखरे ॥
लो लगा मुझे पीछे ।
ले चलो मुझे खींचे ॥
उस देश जहाँ मनुआ ।
अनुगाम वृत्ति कछुआ ॥ ४ ॥
ॐ नमः
शुद्ध स्वरूपा-यस्-स्वाहा ।
जब तक न स्वमुख दिखता ।
चाँदी सुनार घिसता ॥
रीझी तब शिव गौरी ।
रिश्ता न काम चोरी ॥
लो लगा मुझे पीछे ।
ले चलो मुझे खींचे ॥
उस देश जहाँ मकड़ी ।
बुन जाल न स्वपर चली ॥ ५ ॥
ॐ नमः
परम शुद्ध स्वरूप
भावा-यस्-स्वाहा ।
‘गिर’ दृग धारा नदिया ।
सागर बस छार दिया ॥
यह सोच अचल ठाड़े ।
अरि फोड़ ‘करम’ हारे ॥
लो लगा मुझे पीछे ।
ले चलो मुझे खींचे ॥
उस देश जहाँ मछली ।
शिशु निगल न बढ़ निकली ॥ ६ ॥
ॐ नमः
शुद्ध दृढ़ा-यस्-स्वाहा ।
छू चली केन्द्र रेखा ।
बनता ‘वृत’ अभिलेखा ॥
गुम फेरा निन्यानो ।
भगवान् बना ‘मानौ’ ॥
लो लगा मुझे पीछे ।
ले चलो मुझे खींचे ॥
उस देश जहाँ भँवरा ।
दल कमल न मृतक पड़ा ॥ ७ ॥
ॐ नमः
शुद्ध आवर्तका-यस्-स्वाहा ।
घृत तल-हट जा छोड़ा ।
कह हट ऊपर दौड़ा ॥
साथी न प्रश्न दल के ।
तुम बन चाले हल के ॥
लो लगा मुझे पीछे ।
ले चलो मुझे खींचे ॥
उस देश जहाँ हिरणा ।
सुन नाम थमे, हिल ना ॥ ८ ॥
ॐ नमः
शुद्ध स्वयम्-भवे-स्वाहा ।
कर इन्द्रिय सब वश में ।
लहु श्वेत बहा नस में ॥
ज्यों थिर मन वच काया ।
शिव आधिपत्य पाया ॥
लो लगा मुझे पीछे ।
ले चलो मुझे खींचे ॥
उस देश जहाँ दुखड़ा ।
रहता उखड़ा उखड़ा ॥ ९ ॥
ॐ नमः
शुद्ध योगा-यस्-स्वाहा ।
ध्यानाग्नि शुक्ल जारी ।
रज कर्म धुंधा चाली ॥
बन चला खरा सोना ।
धरनी न और जोना ॥
लो लगा मुझे पीछे ।
ले चलो मुझे खींचे ॥
उस देश जहाँ दानी ।
रत्ती भर न गुमानी ॥ १० ॥
ॐ नमः
शुद्ध जाता-यस्-स्वाहा ।
कोयला देह कारी ।
भज आतप उजियारी ॥
ना डरे, न घबड़ाये ।
धर संयम हर्षाये ॥
लो लगा मुझे पीछे ।
ले चलो मुझे खींचे ॥
उस देश जहाँ तोते ।
पिंजरे न बन्द होते ॥ ११ ॥
ॐ नमः
शुद्ध तपसे-स्वाहा ।
निर्मद शंकर न्यारे ।
नर्मद कंकर सारे ॥
नोकें कषाय घिस के ।
तुम जा पैठे धस के ॥
लो लगा मुझे पीछे ।
ले चलो मुझे खींचे ॥
उस देश जहाँ भाई ।
लड़ मरें न हित ‘पाई’ ॥ १२ ॥
ॐ नमः
शुद्ध मूर्तये-स्वाहा ।
दल कमल मृतक भँवरा ।
छोड़े प्रभाव गहरा ॥
नाभी मृण कस्तूरी ।
खामी-खुद, सुख-दूरी ॥
लो लगा मुझे पीछे ।
ले चलो मुझे खींचे ॥
उस देश जहाँ दीमक ।
भिड़ ना…गिन छीने हक़ ॥ १३ ॥
ॐ नमः
शुद्ध सुखा-यस्-स्वाहा ।
मा-तुष मा-रुष काफी ।
कर माफ, मांग माफी ॥
यह पौरुष सब सहना ।
मुख आप न कुछ कहना ॥
लो लगा मुझे पीछे ।
ले चलो मुझे खींचे ॥
उस देश जहाँ पथिका ।
खरगोश वत् न अटका ॥ १४ ॥
ॐ नमः
शुद्ध पौरुषा-यस्-स्वाहा ।
मिल रहतीं ज्योत दिया ।
तेरा मेरा न किया ॥
तुम ज्ञान शरीर निरा ।
जादू चलता न ‘जरा’ ॥
लो लगा मुझे पीछे ।
ले चलो मुझे खींचे ॥
उस देश जहाँ भेड़ें ।
सिंह वृत्ति जाप फेरें ॥ १५ ॥
ॐ नमः
शुद्ध शरीरा-यस्-स्वाहा ।
हुँकार एक भरनी ।
गो-खुर सी बैतरणी ॥
तुम एक साधना की ।
सब सधा, न कुछ बाकी ॥
लो लगा मुझे पीछे ।
ले चलो मुझे खींचे ॥
उस देश जहाँ मेंढक ।
बच ना…गिन, ले मैं…ढक ॥ १६ ॥
ॐ नमः
शुद्धप्-प्रमेया-यस्-स्वाहा ।
माटी तप, बन कलशी ।
जल धरे, न रह कल सी ॥
उपयोग शुद्ध कीना ।
ना उतरे, चढ़ ‘जीना’ ॥
लो लगा मुझे पीछे ।
ले चलो मुझे खींचे ॥
उस देश जहाँ बगुला ।
शिशु मीन रहा सहला ॥ १७ ॥
ॐ नमः
शुद्धो-पयोगा-यस्-स्वाहा ।
फण भोग एक-राशी ।
जल में मछली प्यासी ॥
सुन हँसे न, तुम चेते ।
फेंके परिग्रह जेते ॥
लो लगा मुझे पीछे ।
ले चलो मुझे खींचे ॥
उस देश जहाँ माटी ।
न चिलम, सुराह पाँती ॥ १८ ॥
ॐ नमः
शुद्ध भोगा-यस्-स्वाहा ।
सुन ‘नेक’ न तुम रीझे ।
पथ इक बढ़ दृग भींजे ॥
अर झाँप लिये नैना ।
झिर अमृत जु दिन रैना ॥
लो लगा मुझे पीछे ।
ले चलो मुझे खींचे ॥
उस देश जहाँ सींहा ।
लख छाह जल न खींजा ॥ १९ ॥
ॐ नमः
शुद्धा-वलोका-यस्-स्वाहा ।
जल बीज न फिर उगना ।
अलसा किसको ठगना ॥
नित जग जग इक साधा ।
दृग चार मुकत राधा ॥
लो लगा मुझे पीछे ।
ले चलो मुझे खींचे ॥
उस देश जहाँ पानी ।
नहिं बेच रहा प्राणी ॥ २० ॥
ॐ नमः
प्रज्वलित-शुक्ल ध्यान-
अग्नि-जिना-यस्-स्वाहा ।
सिध शब्द ज्यों निपाता ।
बुध ! स्वयंभू विधाता ! ॥
व्रत पाल ‘पाल’ सहसा ।
तट नाव, हृदय-हरषा ॥
लो लगा मुझे पीछे ।
ले चलो मुझे खींचे ॥
उस देश जहाँ माखी ।
पग-पर न श्लेष्म राखी ॥ २१ ॥
ॐ नमः
शुद्ध निपाता-यस्-स्वाहा ।
च्युत गर्भ, गर्व शंखा ।
इन्द्रिय गोपन पंथा ॥
अब शुद्ध गर्भ पाया ।
धरनी न और काया ॥
लो लगा मुझे पीछे ।
ले चलो मुझे खींचे ॥
उस देश जहाँ नागी ।
विष, फिर कॉंचुल त्यागी ॥ २२ ॥
ॐ नमः
शुद्ध गर्भा-यस्-स्वाहा ।
उर भक्त आ विराजे ।
बढ़ राजे महराजे ॥
सब देख देख ऊपर ।
नत माथ खड़े भूपर ॥
लो लगा मुझे पीछे ।
ले चलो मुझे खींचे ॥
उस देश जहाँ जलधी ।
खारा न बिन्दु भर भी ॥ २३ ॥
ॐ नमः
शुद्ध वासा-यस्-स्वाहा ।
नित ब्रह्म रमण भाया ।
आनंद और छाया ॥
मनु स्वर्ण सुवासा जी ।
हथियाई बा बाजी ॥
लो लगा मुझे पीछे ।
ले चलो मुझे खींचे ॥
उस देश जहाँ आँखें ।
लज्जा नरमी राखें ॥ २४ ॥
ॐ नमः
विशुद्ध परम वासा-यस्-स्वाहा ।
खुल गांठ, भाग जागा ।
कब टूक टूक धागा ॥
पद परमातम पाया ।
‘विध’ विध-विध विनशाया ॥
लो लगा मुझे पीछे ।
ले चलो मुझे खींचे ॥
उस देश जहाँ सिक्के ।
बोलें ना सिर चढ़ के ॥ २५ ॥
ॐ नमः
शुद्ध परमात्मने-स्वाहा ।
दृग् अन्दर भींजे हैं ।
गुण अनन्त रीझे हैं ॥
कण कण जग जान लिया ।
अनबन कब थान दिया ॥
लो लगा मुझे पीछे ।
ले चलो मुझे खींचे ॥
उस देश जहाँ माँ गो ।
ना भार, कहे माँगो ॥ २६ ॥
ॐ नमः
शुद्ध अनंता-यस्-स्वाहा ।
रस्ते बाधा दीखी ।
विधि अपना पानी की ॥
इक मार थपेड़ा फिर ।
अन्वर्थ नाम सा ‘गिर’ ॥
लो लगा मुझे पीछे ।
ले चलो मुझे खींचे ॥
उस देश जहाँ श्वाना ।
हड्डी का न दिवाना ॥ २७ ॥
ॐ नमः
विशुद्ध शांता-यस्-स्वाहा ।
क ?…पड़ा जान छोड़ा ।
मुँह, पीठ वहाँ मोड़ा ॥
पढ़ आत्म अखर ढाई ।
बढ़ आप्त डगर पाई ॥
लो लगा मुझे पीछे ।
ले चलो मुझे खींचे ॥
उस देश जहाँ लकड़ी ।
बन बेत न वृक्ष अरी ॥ २८ ॥
ॐ नमः
शुद्ध विदन्ता-यस्-स्वाहा ।
अभिमान पोत विघटी ।
संज्ञान ज्योत प्रकटी ॥
वधु मुक्ति झूम नाचे ।
जश पुरुषारथ वाँचे ॥
लो लगा मुझे पीछे ।
ले चलो मुझे खींचे ॥
उस देश जहाँ रसना ।
रीझे विषयन विष ना ॥ २९ ॥
ॐ नमः
शुद्ध ज्योतिर् जिना-यस्-स्वाहा ।
तुम विरद अगम वाणी ।
सहजो समरस-सानी ॥
निर्मान ! भाग जागा ।
निर्वाण हाथ लागा ॥
लो लगा मुझे पीछे ।
ले चलो मुझे खींचे ॥
उस देश जहाँ सोना ।
नित रहे याद, खोना ॥ ३० ॥
ॐ नमः
शुद्ध निर्वाणा-यस्-स्वाहा ।
दर्भासन तज दीना ।
टिक आप आप लीना ॥
गृह गर्भ वर्ज नारी ।
पट चला कर्ज भारी ॥
लो लगा मुझे पीछे ।
ले चलो मुझे खींचे ॥
उस देश जहाँ होरी ।
अनरव की न अहो ‘री ॥ ३१ ॥
ॐ नमः
शुद्ध संदर्भ गर्भा-यस्-स्वाहा ।
यूँ तो तुषार शीतल ।
फसलें भू-साई जल ॥
मन स्वप्न न अघ जागा ।
दुम दबा शत्रु भागा ॥
लो लगा मुझे पीछे ।
ले चलो मुझे खींचे ॥
उस देश जहाँ करुणा ।
हो हृदय हृदय गहना ॥ ३२ ॥
ॐ नमः
शुद्ध शांता-यस्-स्वाहा ।
महा अर्घ
दौड़ तुम भीतर आओ ।
और तुम भी तर आओ ॥
यही सिद्धों का कहना ।
अहो ! भाई, ओ ! बहना ॥
चोर अंजन से सीझे ।
दृग दया से क्या भींजे ॥
भूति-शिव विभूति पाई ।
‘मास तुष भिन’ लौ लाई ॥
पलट सुकुमाल न देखा ।
खिंची वन खूनी रेखा ॥
लोह आभूषण ताते ।
मोह ना तन, शिव नाते ॥
नहिं भेड़ हो, तुम शेर हो,
जर्रा दहाड़ लगाओ ।
और तुम भी तर आओ ॥
ॐ ह्रीं झ्वीं श्रीं अर्हं
अ सि आ उ सा
अप्-प्रति-चक्रे फट्
वि-चक्राय झ्रौं झ्रौं नमः
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
अष्टम वलय के
दो सौ इक्यावन से
चार सौ पचहत्तर तक
अर्घ
तुम्हें शक्र-इन्दर ।
रखे हृदय अन्दर ।
शक्रेष्-टाय नमः,
पाँत सिद्ध मन्तर ॥ २५१ ॥
ॐ नमः
शक्रेष्टा-यस्-स्वाहा ।
नृत्य ताण्डव रत इन्दर है ।
जन्म उत्सव गिर मन्दर है ।
इन्द्र-नृत्य-तृप्ति-काय नमः,
सिद्ध सरवारथ मन्तर है ॥ २५२ ॥
ॐ नमः
इन्द्र-नृत्य-तृप्ति-
का-यस्-स्वाहा ।
गृह प्रसूत ला इन्द्र थमाई ।
शचि इक भव अवतार कहाई ।
नमः श्री शची विस्-मापिताय,
सार्थ ‘परस’ तुम सुवर्ण-दाई ॥ २५३ ॥
ॐ नमः
शची-विस्मापिता-यस्-स्वाहा ।
तीर्थक शिशु माँ गोद थमाया ।
नाटक नाम आनन्द रचाया ।
शक्रा-रब्धा-नन्द-नृत्याय,
नमो नमः जप किसे न भाया ॥ २५४ ॥
ॐ नमः
शक्रा-रब्धा-नन्द-
नृत्या-यस्-स्वाहा ।
रैद-प्रभा-ऐश्वर्य निराला ।
पूर्ण मनोरथ मंत्र उचारा ।
रैद पूर्ण मनो-रथाय नमः,
बाल वैद्य जश वर्य विशाला ॥ २५५ ॥
ॐ नमः
रैद पूर्ण मनो-रथा-यस्-स्वाहा ।
आज्ञा हेत खड़ा चरणों में ।
इन्दर आने आभरणों में ।
आज्ञा-र्थीन्द्र कृता-सेवाय,
नम: वर्ण हट सब वरणों में ॥ २५६ ॥
ॐ नमः
आज्ञा-र्थीन्द्र-कृता-
सेवा-यस्-स्वाहा ।
धन्य ! करके सेवा ।
खड़े चरणन देवा ।
देव श्रेष्-ठाय नमः,
सातिशय पुन जेबा ॥ २५७ ॥
ॐ नमः
देव-श्रेष्ठा-यस्-स्वाहा ।
उद्यम रत मुक्ती ।
मुक्ताफल सूक्ति ।
शिवौद्य-माय नमः,
अचिन्त्-नीय शक्ती ॥ २५८ ॥
ॐ नमः शिवौद्यमा-यस्-स्वाहा ।
सारा जगत करे तुम पूजा ।
आप सिवा शिवनाथ न दूजा ।
जगत्-पूज्य शिव नाथाय नमः,
जा पाताल, स्वर्ग तक गूँजा ॥ २५९ ॥
ॐ नमः
जगत्पूज्य-
शिव-नाथा-यस्-स्वाहा ।
भाँत मृग हाँप के ।
राह विपिन नाप के ।
श्री स्वयं भुवे नमः,
आप गुरु आप के ॥ २६० ॥
ॐ नमः
स्वयंभुवे-स्वाहा ।
समशरण कुबेर रचाया है ।
भव भव पुण्योदय आया है ।
कुबेर रचितस्-थानाय नमः,
यह सुख प्रद मंत्र बताया है ॥ २६१ ॥
ॐ नमः
कुबेर-रचितस्-
थाना-यस्-स्वाहा ।
लक्ष्मी ज्ञान अनूठी ।
अन्त, बात यह झूठी ।
अनन्त श्री जुषे नमः,
जपा गलत लत छूटी ॥ २६२ ॥
ॐ नमः
अनन्त-श्री-जुषे-स्वाहा ।
ऋषि, मुनि, यति, अनगार रिझाते ।
साँझन साँझन ध्यान लगाते ।
श्री योगीश्वरार्-चिताय नमः,
जाप आप संगम बतलाते ॥ २६३ ॥
ॐ नमः
योगीश्वरार्-चिता-यस्-स्वाहा ।
ब्रह्म यानी आतम ।
बुद्ध ज्ञानी आगम ।
नमः ब्रह्म विदे,
जाप हानी मातम ॥ २६४ ॥
ॐ नमः
ब्रह्म-विदे-स्वाहा ।
तत्त्व रिख ब्रह्म सूर ।
आप जानें हजूर ।
ब्रह्म तत्त्वाय नमः,
जप, मिटत दुख ततूर ॥ २६५ ॥
ॐ नमः
ब्रह्म-तत्त्वा-यस्-स्वाहा ।
यज्ञ अहिंसा पत ।
सुविज्ञ हंसा-मत ।
नमः यज्ञ पतये,
रत विध्वंसा गत ॥ २६६ ॥
ॐ नमः
यज्ञ-पतये-स्वाहा ।
शिव विमुक्ति नामी ।
आप नाथ-स्वामी ।
शिव नाथाय नमः,
दिव ! अन्तर्यामी ! ॥ २६७ ॥
ॐ नमः
शिव-नाथा-यस्-स्वाहा ।
कृत करनी-धरनी ।
हट-तट वैतरनी ।
कृत्कृत्याय नमः,
साध ओ ! सुमरणी ॥ २६८ ॥
ॐ नमः
कृत-कृत्या-यस्-स्वाहा ।
अंग-अंक हो तुम ।
शून्य-यज्ञ हो गुम ।
यज्ञाङ्-गाय नमः,
‘संग’ द्वार हो यम ॥ २६९ ॥
ॐ नमः
यज्ञाङ्-गा-यस्-स्वाहा ।
अमरित वाणी ।
यम-जित प्राणी ।
अमृताय नमः,
रम श्रुत ज्ञानी ॥ २७० ॥
ॐ नमः
अमृता-यस्-स्वाहा ।
यज्ञ ध्यान-सित ।
प्रज्ञ ज्ञान-जित ।
यज्ञाय नमः,
विज्ञ गान रत ॥ २७१ ॥
ॐ नमः
यज्ञा-यस्-स्वाहा ।
हान वृद्धी षट्-गुण भाई ।
वस्तु उत्पादक जिन-राई ।
नमः श्री वस्तुत्-पा-दकाय,
जपत जप गुण-क्रम फलदाई ॥ २७२ ॥
ॐ नमः
वस्तुत्-पा-दका-यस्-स्वाहा ।
आप संस्तुति रत सौधरमा ।
दिये तुमने पछाड़ करमा ।
नमः श्री श्रीस्-तुतीश्वराय,
भगत जप, पावत शिव शरमा ॥ २७३ ॥
ॐ नमः
स्तुतीश्वरा-यस्-स्वाहा ।
भा…वन बारा ।
सावन धारा ।
भावाय नमः,
सा…धुन पारा ॥ २७४ ॥
ॐ नमः
भावा-यस्-स्वाहा ।
पत राखत ! त्राता ! ।
पत भारत नाता ।
नम: महा-पतये,
रत पावत साता ॥ २७५ ॥
ॐ नमः
महा-पतये-स्वाहा ।
यज्ञ प्राणी रक्षा ।
अज्ञ ध्यानी शिक्षा ।
महा-यज्ञाय नमः,
प्रज्ञ ! दानी ! दक्षा ! ॥ २७६ ॥
ॐ नमः
महा-यज्ञा-यस्-स्वाहा ।
यज्ञ रतन त्रय विधि बतलाते ।
सबसे आगे आप दिखाते ।
श्री श्री अग्र-या-जकाय नमः,
जपत मुकत मग विरहित काँटे ॥ २७७ ॥
ॐ नमः
अग्र-या-जका-यस्-स्वाहा ।
जगत्-जगत एक पूज ।
जयत जग अनेक गूँज ।
जगत्-पूज्याय नमः,
जपत जपत लेख दूज ॥ २७८ ॥
ॐ नमः
जगत्-पूज्या-यस्-स्वाहा ।
फेर द…या आखर ।
या…द स्व निशि वासर ।
दया-पराय नमः,
अब गुण रत्नाकर ॥ २७९ ॥
ॐ नमः
दया-परा-यस्-स्वाहा ।
अर्ह-योग पूजा ।
तुम सिवा न दूजा ।
पूज्यार्-हाय नमः,
जश दिश्-दश गूँजा ॥ २८० ॥
ॐ नमः
पूज्यार्-हा-यस्-स्वाहा ।
लोक इह-पर दोनों ।
तुम्हें इक पूज्य गिनो ।
नमः जग-दर्-चिताय,
धोक साँझन तीनों ॥ २८१ ॥
ॐ नमः
जग-दर्चिता-यस्-स्वाहा ।
हरि, ब्रह्मा, भोला-भण्डारी ।
थकत न करत प्रशंसा थारी ।
नमो नमः देवाधि-देवाय,
मैं भी चरणन आप पुजारी ॥ २८२ ॥
ॐ नमः
देवाधि-देवा-यस्-स्वाहा ।
शक्र आन भुवि शीष नवाता ।
फक्र मान, दिवि लौट न जाता ।
नमो नमः श्री शक्रार्-चिताय,
वक्र न बाल मंत्र जग त्राता ॥ २८३ ॥
ॐ नमः
शक्रार्-चिता-यस्-स्वाहा ।
बड़े बड़े शत देव ।
देव-देव रत सेव ।
नमः देव-देवाय,
जपत लगत तट खेव ॥ २८४ ॥
ॐ नमः
देव-देवा-यस्-स्वाहा ।
गुरूर उर झटका ।
धन ! गुरु पन प्रकटा ।
नमः जगद्-गुरवे,
मंत्र भव्य निकटा ॥ २८५ ॥
ॐ नमः
जगद्-गुरवे-स्वाहा ।
नृदेव ऋषि, मुनि, यति, अनगार ।
आप चरण ढारें दृग-धार ।
नमः देव संघा-चार्-याय,
जपत प्रमाण चुलुक संसार ॥ २८६ ॥
ॐ नमः
देव-संघा-चार्या-यस्-स्वाहा ।
भवि सरोज हित नन्द ।
छवि बढ़ पयोज-वृन्द ।
नमः पद्म-नन्दाय,
कवि कोविद रट मंत्र ॥ २८७ ॥
ॐ नमः
पद्म-नन्दा-यस्-स्वाहा ।
सार्थ ‘मार’ मारी ।
ध्वजा लहर चाली ।
जयध्-ध्वजाय नमः,
दृष्टि श्याह हारी ॥ २८८ ॥
ॐ नमः
जय-ध्वजा-यस्-स्वाहा ।
कोटि रवि भामण्डल ।
सोम छवि भामण्डल ।
नमः भामण्-डलिने,
‘जोग’ भवि भामण्डल ॥ २८९ ॥
ॐ नमः
भामण्डलिने-स्वाहा ।
ठाड़े बड़े देव बत्तीसा ।
चौषट चंवर लिये नत शीषा ।
नमः चतुः षष्ठी-चा-मराय,
मन्तर साध साध ! निशि दीसा ॥ २९० ॥
ॐ नमः
चतुःषष्ठी-
चामरा-यस्-स्वाहा ।
दुन्दुभ देव धरा, नभ गाजा ।
यहाँ विराजे सुधर्म राजा ।
नमः श्री श्री देव दुन्दुभिये,
जपत खुलत दिव शिव दरवाजा ॥ २९१ ॥
ॐ नमः
देव-दुन्-दुभिये-स्वाहा ।
लासानी वाणी कल्याणी ।
जाने भाषा पलटी खानी ।
नमो नमः श्री वाकस्-पष्टाय,
मंत्र विधायक ज्ञानी ध्यानी ॥ २९२ ॥
ॐ नमः
वाक्-स्पष्टा-यस्-स्वाहा ।
ऊपर अंगुल चार विराजे ।
घिरी पीठ राजे महराजे ।
नमः श्री श्री लब्धा-सानाय,
जपत विरद नभ धरती गाजे ॥ २९३ ॥
ॐ नमः
लब्धा-साना-यस्-स्वाहा ।
आया चन्दर साथ सितारी ।
करे छतर मिस सेव तुम्हारी ।
नमः श्री श्री छत्रत्-त्रयाय,
जपत भगत इक भव अवतारी ॥ २९४ ॥
ॐ नमः
छत्रत्-त्रया-यस्-स्वाहा ।
डण्ठल नीचे ऊपर पाँखें ।
वर्षा पुष्प देख धन ! आँखें ।
नमो नमः श्री पुष्प वृष्टये,
बनता मंत्र सुमर पत राखें ॥ २९५ ॥
ॐ नमः
पुष्प-वृष्टये-स्वाहा ।
नाम पा चला सार्थ अशोका ।
साख झुका पुनि पुनि दे ढोका ।
नमः श्री श्री दिव्या-शोकाय,
जपत सुदूर रहत कब मोखा ॥ २९६ ॥
ॐ नमः
दिव्या-शोका-यस्-स्वाहा ।
भले दूर से हो दिख जाना ।
सार्थक नामस्-थम्भित माना ।
नमः श्री श्री मानस्-थम्भाय,
सुमरण बिन पाईं गति नाना ॥ २९७ ॥
ॐ नमः
मानस्-थम्भा-यस्-स्वाहा ।
विरदावल गंधर्वा वाँचें ।
ले वीणा सुर देवी नाँचें ।
नमः श्री श्री सङ्गीतार्-हाय,
जप अमिताभ लाभ बिन जाँचें ॥ २९८ ॥
ॐ नमः
सङ्-गीतार्-हा-यस्-स्वाहा ।
झारी, कलशा, दर्पण, ठोना ।
छत्र, चँवर, ध्वज, व्यजन सलोना ।
नमः श्री श्री अष्ट मंगलाय,
खोने जोना मंत्र जपो ना ॥ २९९ ॥
ॐ नमः
अष्ट-मङ्-गला-यस्-स्वाहा ।
धर्म चक्र चलता है आगे ।
भक्ति दीप उर देखत जागे ।
नमः श्री तीर्थ चक्र-वर्तिने,
जप जपने वाले बढ़-भागे ॥ ३०० ॥
ॐ नमः
तीर्थ-चक्र-वर्तिने-स्वाहा ।
दर्शन अवगाढ़ा ।
निरसन भव कारा ।
नमः सु-दर्शनाय,
सुमरण भवि प्यारा ॥ ३०१ ॥
ॐ नमः
सु-दर्शना-यस्-स्वाहा ।
कर्ता मोख ।
हर्ता शोक ।
कर्त्रे नमः,
भरता धोक ॥ ३०२ ॥
ॐ नमः
कर्त्रे-स्वाहा ।
तीर्थ तारती धुन ।
कीर्त सारथी पुन ।
नमः तीर्थ मन्त्रे,
प्रीत भारती चुन ॥ ३०३ ॥
ॐ नमः
तीर्थ-मन्त्रे-स्वाहा ।
धर्म अहिंसा अद्भुत न्यारा ।
तीर्थ-घाट भव जलधि किनारा ।
नमो नमः धर्म तीर्थे-शाय,
पुनि पुनि कब ईश्वर अवतारा ॥ ३०४ ॥
ॐ नमः
धर्म-तीर्थे-शा-यस्-स्वाहा ।
दया क्षमा सद्-धर्म मसीहा ।
कूकर वृत्ति विधूत नृ-सींहा ।
नमो नमः धर्म तीर्थ-कराय,
साध निराकुल धन्य ! निरीहा ॥ ३०५ ॥
ॐ नमः
धर्म-तीर्थ-करा-यस्-स्वाहा ।
सत्य-अहिंसा धर्म प्रणेता ।
काम, क्रोध, मद, मोह विजेता ।
नमो नमः धर्म तीर्थ-युताय,
मन्तर नव जीवन संचेता ॥ ३०६ ॥
ॐ नमः
धर्म-तीर्थ-युता-यस्-स्वाहा ।
आ तीर्थंकर पाप मिटाते ।
चल पगडंडी दूब हटाते ।
नमः श्री धर्म तीर्थं-कराय,
जपो मेंटने भव-भव घाटे ॥ ३०७ ॥
ॐ नमः
धर्म-तीर्थङ्-करा-यस्-स्वाहा ।
धर्म धुरा धारण करते तुम ।
पीड़ा और चीख भरते तुम ।
नमो नमः तीर्थ प्रवर्-तकाय,
स्वप्न न मरण पूर्व मरते तुम ॥ ३०८ ॥
ॐ नमः
तीथप्-प्रवर्त्तका-यस्-स्वाहा ।
तीर्थ विधाता तुम्हीं ।
कीर्त प्रदाता तुम्हीं ।
नमः तीर्थ वे-धसे,
भीति विघाता तुम्हीं ॥ ३०९ ॥
ॐ नमः
तीर्थ-वेधसे-स्वाहा ।
हिरणा सींह सार्थ सम-शरणा ।
गंगा, जमुना दृग रग करुणा ।
नमो नमः तीर्थ विधा-यकाय,
सुमरत सुमरत हाथ सु…मरना ॥ ३१० ॥
ॐ नमः
तीर्थ-वि-धा-यका-यस्-स्वाहा ।
फीके तीर्थ और तुम आगे ।
हित सत् धर्म सुरक्षा जागे ।
नमः श्री सत्य तीर्थ-कराय,
जोड़ तोड़ते आप न धागे ॥ ३११ ॥
ॐ नमः
सत्य-तीर्थ-करा-यस्-स्वाहा ।
सेव्य आपका तीरथ बस ।
बढ़ पारस तुम कीरत जस ।
मंत्र तीर्थ सेव्याय नमः,
पेट-पाप का चीरत वश ॥ ३१२ ॥
ॐ नमः
तीर्थ-सेव्या-यस्-स्वाहा ।
तीर्थ आप बस तारत ।
प्रतिभारत ! निश्वारथ ! ।
तीर्थ ता-रकाय नमः,
साधत सिध-सरवारथ ॥ ३१३ ॥
ॐ नमः
तीर्थ-ता-रका-यस्-स्वाहा ।
ज्वर तरतम क्या ? स्वर कहता ।
तीरथ निर्मल जल बहता ।
नमः श्री सत्य वाक्या-धिपाय,
कब कहता, साधक सहता ॥ ३१४ ॥
ॐ नमः
सत्य-वाक्या-धिपा-यस्-स्वाहा ।
एक तीन जग स्वामी ।
शासन सत् अनुगामी ।
सत्य शा-सनाय नमः,
‘मन…तर’ अन्तर्यामी ॥ ३१५ ॥
ॐ नमः
सत्य-शा-सना-यस्-स्वाहा ।
शासन साँस प्रशान्ति दिलाता ।
कब झोली खाली लौटाता ।
नमो नमः अप्-प्रति-शा-सनाय,
साधक ज्ञाता-दृष्टा पाँता ॥ ३१६ ॥
ॐ नमः
अप्रति-शा-सना-यस्-स्वाहा ।
सार्थ शैल स्याद्-वाद ।
और गैल-बैल भाँत ।
स्याद्-वादिने नमः,
साध कर्म-जेल घात ॥ ३१७ ॥
ॐ नमः
स्याद्वादिने-स्वाहा ।
खिर सर्वांग रही वाणी ।
अरि अष्टांग कर्म हानी ।
नमो नमः दिव्यध्-ध्व-नये,
साध साध, ले दृग पानी ॥ ३१८ ॥
ॐ नमः
दिव्यध्-ध्व-नये-स्वाहा ।
सभा विवर्णित तत्त्व अनूठे ।
भाँत किसी भी सिद्ध न झूठे ।
नमो नमः अव्या-हतार्-थाय,
साधत भीतर झिरना फूटे ॥ ३१९ ॥
ॐ नमः
अव्या-हतार्-था-यस्-स्वाहा ।
वच पवित्र साँचे ।
देवत बिन याँचे ।
पुण्य वाचे नमः,
साध हिया नाँचे ॥ ३२० ॥
ॐ नमः
पुण्य-वाचे-स्वाहा ।
धुन तत्त्वार्थ गभीर ।
चीर-चीर सुन तीर ।
नमः अर्थ-वाचे,
साध शगुन दृग नीर ॥ ३२१ ॥
ॐ नमः
अर्थ-वाचे-स्वाहा ।
अर्ध मागधी भाषा न्यारी ।
सहज ले समझ जगती सारी ।
नमः अर्ध-मागधी-युक्त्ये,
झुलसे कर्म अग्नि जप जारी ॥ ३२२ ॥
ॐ नमः
अर्द्ध-मा-गधी-
युक्तये-स्वाहा ।
हितकारी बैना ।
झिरना ‘री नैना ।
नमः इष्ट वाचे,
बलिहारी जैना ॥ ३२३ ॥
ॐ नमः
इष्ट-वाचे-स्वाहा ।
सिक्के के दो पहलू होते ।
हुआ भुलाना उड़ते तोते ।
नमः श्री अने-कान्त दर्शिने,
‘ऽऽमरण संभालो’ आये रोते ॥ ३२४ ॥
ॐ नमः
अनेकान्त-
दर्शिने-स्वाहा ।
भज नेकान्त, विभज एकान्ता ।
सहज पिंनाई स्रज शिव-कान्ता ।
नमः श्री दुर्-नयान्-तकाय,
साध न मंजिल पहले श्रान्ता ॥ ३२५ ॥
ॐ नमः
दुर्-नयान्-
तका-यस्-स्वाहा ।
भेद चले एकान्त अँधेरा ।
गौर चन्द्रमा, भोर-सवेरा ।
नमः श्री एकान्त-ध्वांत भिदे,
साध टूक दो घेरा-फेरा ॥ ३२६ ॥
ॐ नमः
एकान्तध्-ध्वान्त-
भिदे-स्वाहा ।
चिच्-चिद्रूप अहा ! ।
तत्व स्वरूप कहा ।
नमः तत्त्व वाचे,
कीर्तिस-तूप महा ॥ ३२७ ॥
ॐ नमः
तत्त्व-वाचे-स्वाहा ।
मराल-सी धिया ।
निरालसी जिया ।
पृथक्-कृते नमः,
कमाल ‘भी-दिया’ ॥ ३२८ ॥
ॐ नमः
पृथक्-कृते-स्वाहा ।
ध्वजा लहराई स्यात्-कारा ।
श्वास ले शान्ति जगत सारा ।
नमः स्यात्-कार ध्वजा वाचे,
साध सरका सर का भार ॥ ३२९ ॥
ॐ नमः
स्यात्-कारध्-
ध्वजा-वाचे-स्वाहा ।
सूत काँचे ।
सूत्र साँचे ।
वाचे नमः,
पूत ‘वाँचे’ ॥ ३३० ॥
ॐ नमः
वाचे-स्वाहा ।
सार्थ नाम अक्षर माला ।
कोई न बनाने वाला ।
नमः अपौ-रुषेय ‘वाँचे’,
निखरे माणिक पड़ ज्वाला ॥ ३३१ ॥
ॐ नमः
अपौरु-षेय-वाचे-स्वाहा ।
तालु औष्ठ कब हिलते ।
वच सर्वांगन खिरते ।
नमः अच-लौष्ठ ‘वाचे’,
पाप भाव झिर गिरते ॥ ३३२ ॥
ॐ नमः
अचलोष्ठ-वाचे-स्वाहा ।
श्वास वत् प्राणी ! ।
शाश्वत रवानी ।
शाश्वताय नम:,
‘साध’ जिनवाणी ॥ ३३३ ॥
ॐ नमः
शाश्वता-यस्-स्वाहा ।
गत-विरोध चोखी ।
पोथी निध-मोखी ।
अविरुद्धाय नमः,
साधो मन रोकी ॥ ३३४ ॥
ॐ नमः
अविरुद्धा-यस्-स्वाहा ।
धन ! जिन-वाण सप्त भंगी ।
सिरपुर तक साथी संगी ।
नमः सप्त भंगी वाचे,
हा ! न साध जीवन तंगी ॥ ३३५ ॥
ॐ नमः
सप्त-भंगी-वाचे-स्वाहा ।
अवर्ण अनक्षरी ।
गिर-वाण-भी तरी ।
नमः अवर्ण गिरे,
चिर साध प्रीत ‘री ॥ ३३६ ॥
ॐ नमः
अवर्ण-गिरे-स्वाहा ।
सात-सौ लघु भाषा नामी ।
महा-भाषा अठ-दस स्वामी ।
सर्व-भाषामय गिरे नमः,
साध धन ! जिन गुण आसामी ॥ ३३७ ॥
ॐ नमः
सर्व-भाषामय-गिरे-स्वाहा ।
इक निमित्त स्वयंभुवा ।
गम्य शिशु, वृद्ध, युवा ।
नमः श्री व्यक्त गिरे,
हुआ काम, जप छुवा ॥ ३३८ ॥
ॐ नमः
व्यक्त-गिरे-स्वाहा ।
अमोघ राम ‘बाणा’ ।
चर्चित ही जहाना ।
नमः अमोघ-वाचे,
साध कथा-पुराणा ॥ ३३९ ॥
ॐ नमः
अमोघ-वाचे-स्वाहा ।
वच-अगोचर ! जश ध्रुव-तारा ।
आप वाणी अनंत धारा ।
अवाच्या-नन्त वाचे नमः
‘साध’ लो, ले मन अविकारा ॥ ३४० ॥
ॐ नमः
अवाच्या-नन्त-वाचे-स्वाहा ।
गुण अन-गणना ।
अगम्य वचना ।
नमः अवाचे,
अनन्य शरणा ॥ ३४१ ॥
ॐ नमः
अवाचे-स्वाहा ।
दोगला पन नाहीं ।
दो गला फन नाहीं ।
अद्वैत गिरे नमः,
दो गला मन स्याही ॥ ३४२ ॥
ॐ नमः
अद्वैत-गिरे-स्वाहा ।
सत्य खरी विरली ।
सूक्ति घुरी मिसरी ।
सूनृत गिरे नमः,
मुक्ति पुरी पगड़ी ॥ ३४३ ॥
ॐ नमः
सूनृत-गिरे-स्वाहा ।
नहीं सत्य भी, ना ही झूठी ।
अनुभय वच पंक्ति मुख फूटी ।
नमो नमः सत्यानु-भय गिरे,
साध साध जप एक अनूठी ॥ ३४४ ॥
ॐ नमः
सत्यानुभय-गिरे-स्वाहा ।
सोला वानी ।
सोना वाणी ।
सुगिरे नमः,
खो जा प्राणी ॥ ३४५ ॥
ॐ नमः
सुगिरे-स्वाहा ।
योजन तलक सुनाई देती ।
लोचन सजल, बिठाई खेती ।
नमो नमः योजना-व्यापि-गिरे,
मोहन तमस् विदाई लेती ॥ ३४६ ॥
ॐ नमः
योजन-व्यापि-
गिरे-स्वाहा ।
क्षीर नीर धवल धार ।
भी गभीर नवल न्यार ।
क्षीर-गौर गिरे नमः,
चीर चीर सजल पार ॥ ३४७ ॥
ॐ नमः
क्षीर-गौर-गिरे-स्वाहा ।
तीर्थ तारती, तत्त्व प्रकाशी ।
शीर्ष भारती, सत्य प्रभाषी ।
नमः श्री श्री तीर्थ तत्त्व गिरे,
कीर्त आरती, आर्त विनाशी ॥ ३४८ ॥
ॐ नमः
तीर्थ-तत्त्व-गिरे-स्वाहा ।
साधती अर्थ परम ।
सारथी स्वर्ग शिवम् ।
नमः परमार्थ गिरे,
भारती वर्य सुगम ॥ ३४९ ॥
ॐ नमः परमार्थ-
गिरे-स्वाहा ।
भव्य चाहे जितना सुन ले ।
न बस सुन ले, चुन ले, गुन ले ।
नमः भव्यै-कश्-श्रवण गिरे,
साध बनता सतिशय पुन ले ॥ ३५० ॥
ॐ नमः
भव्यै-कश्-
श्रवण-गिरे-स्वाहा ।
गो यानी गिर ।
दौ-हानी, झिर ।
सद्-गवे नमः,
भौ-पानी तिर ॥ ३५१ ॥
ॐ नमः
सद्गवे-स्वाहा ।
चित्र-विध अनेक ।
हंस सुध विवेक ।
चित्र गवे नमः,
साध निध प्रतेक ॥ ३५२ ॥
ॐ नमः
चित्र-गवे-स्वाहा ।
साधती परमारथ ।
सारथी धर्मा रथ ।
नमः परमार्थ गवे,
भारती निश्वारथ ॥ ३५३ ॥
ॐ नमः
परमार्थ-गवे-स्वाहा ।
मन अशान्ति हरती ।
क्षान्त, दान्त करती ।
प्रशांत गवे नमः,
माथ कान्ति भरती ॥ ३५४ ॥
ॐ नमः
प्रशान्त-गवे-स्वाहा ।
प्रश्न बाद खिरती ।
जश्न हाथ करती ।
प्राश्निक गिरे नमः,
विघ्न बाध हरती ॥ ३५५ ॥
ॐ नमः
प्राश्निक-गिरे-स्वाहा ।
याज्य पूजन जोगा ।
भाज्य कूँजन गो…गा ।
नमः याज्यश्-श्रुतये,
राज्य-भू बिन रोगा ॥ ३५६ ॥
ॐ नमः
याज्यश्-श्रुतये-स्वाहा ।
समव-शरण छाई ।
करण-करण आई ।
वाणी कल्याणी ।
वो माँ जिनवाणी ।
सुश्-श्रुतये नमः,
सो श्रुति कहलाई ॥ ३५७ ॥
ॐ नमः
सुश्-श्रुतये-स्वाहा ।
सद्-शास्तर सूत्तर ।
मण-दीप अनुत्तर ।
महा श्रुतये नमः,
माँ श्रुत धन ! पुत्तर ॥ ३५८ ॥
ॐ नमः
महा-श्रुतये-स्वाहा ।
अहिंसा, दया, क्षमा ।
वस्तु स्वरूप धरमा ।
नमः धर्मश्-श्रुतये,
क्षमाद धर्म परमा ॥ ३५९ ॥
ॐ नमः
धर्मश्-श्रुतये-स्वाहा ।
स्वाम श्रुत धारा ।
काम उद्धारा ।
श्रुत-पतये नमः,
शाम श्रृंगारा ॥ ३६० ॥
ॐ नमः
श्रुत-पतये-स्वाहा ।
धृत धारणहार ।
श्रुत तारणहार ।
श्रुत धृताय नमः,
मृत वारणहार ॥ ३६१ ॥
ॐ नमः श्रुत-धृता-यस्-स्वाहा ।
ध्रुव ध्रुव-तारे सी ।
श्रुति अपने जैसी ।
नमः ध्रुवश्-श्रुतये,
पाँत इक हितैषी ॥ ३६२ ॥
ॐ नमः ध्रुवश्-श्रुतये-स्वाहा ।
हेत निर्वाण बस आपकी देशना ।
केत निर्वाण जश राग ना, द्वेष ना ।
नमः निर्वाण मार्गो-पदे-शकाय ई,
मंत्र के जाप से, पाप कुम्हलाय ‘री ॥ ३६३ ॥
ॐ नमः
निर्वाण-मार्गो-
पदे-शका-यस्-स्वाहा ।
हेत श्रावक श्रमण आपकी देशना ।
मोक्ष का मार्ग केवल नगन भेष ना ।
नमः यतिश्-श्रावक मार्ग-दे-शकाय ई,
मंत्र के जाप से, उपशमित कषाय ‘री ॥ ३६४ ॥
ॐ नमः
यतिश्-श्रावक-मार्ग-
दे-शका-यस्-स्वाहा ।
तत्त्व मार्ग लिया देख ।
सत्य-मार्ग ‘दिया’ एक ।
नमः तत्त्व मार्ग दृशे,
भव्य मार्ग ‘जिया’ लेख ॥ ३६५ ॥
ॐ नमः
तत्त्व-मार्ग-दृशे-स्वाहा ।
तत्त्व यथार्थ भिन्न जड़ चेतन ।
तन सराय, शिल सिद्ध निकेतन ।
श्री श्री सार तत्त्व यथार्थाय,
नमः साध परमार्थ सचेतन ॥ ३६६ ॥
ॐ नमः
सार-तत्त्व-
यथार्था-यस्-स्वाहा ।
इक न अनेका पाथर नौका ।
धोखे वाली आप ना नौका ।
नमः परमोत्तम तीर्थ कृताय,
नौका काँधे लहरन मोखा ॥ ३६७ ॥
ॐ नमः
परमोत्तम-तीर्थ-
कृता-यस्-स्वाहा ।
ज्ञाता दृष्टा ।
सृष्टि न सृष्टा ।
नमः दृष्टाय,
त्राता शिष्टा ॥ ३६८ ॥
ॐ नमः
दृष्टा-यस्-स्वाहा ।
वाक्-वाणी अधिपत ।
राख पानी अरि-हत ।
नमः वाग्मीश्वराय,
लाख प्राणी तरि तट ॥ ३६९ ॥
ॐ नमः
वाग्मीश्वरा-यस्-स्वाहा ।
सत्य अहिंसा ! मत हंसा ।
और प्रशंसा ! मद ध्वंसा ।
श्री धर्म शा-सनाय नमः,
वंशी वंशा रट मनसा ॥ ३७० ॥
ॐ नमः
धर्म शा-सना-यस्-स्वाहा ।
दया धरम उपदेशक ।
क्षमा परम निर्देशक ।
धर्म-दे-शकाय नमः,
धरा कुटुम्-वत् बेशक ॥ ३७१ ॥
ॐ नमः
धर्म-दे-शका-यस्-स्वाहा ।
बाण सी वाणी ना ।
अर्थ समझा सीना ।
नमः वागीश्व-राय,
जाप बिन क्या जीना ॥ ३७२ ॥
ॐ नमः वागीश्वरा-यस्-स्वाहा ।
जरा, जाई, मरणा ।
धरासाई ‘करणा’ ।
त्रयी नाथाय नमः,
पुरा-साईं तरणा ॥ ३७३ ॥
ॐ नमः
त्रयी-नाथा-यस्-स्वाहा ।
माया, मिथ्या चूर निदान ।
पाणी-पातृ पात्र निर्वाण ।
नमः श्री श्री त्रि-भंगी-शाय,
मन्तर रट उस तट जलयान ॥ ३७४ ॥
ॐ नमः
त्रि-भङ्-गी-शा-यस्-स्वाहा ।
गिरा-वाणी दूजी ।
धरा छानी, गूँजी ।
नमः गिरां-पतये,
मंत्र ध्यानी पूँजी ॥ ३७५ ॥
ॐ नमः
गिरां-पतये-स्वाहा ।
सभी अंग द्वादश ।
ढले रंग पारस ।
नम: सिद्धाङ्-गाय,
जपा संग साहस ॥ ३७६ ॥
ॐ नमः
सिद्धाङ्-गा-यस्-स्वाहा ।
तुम वाङ्-मय-वाणी रवि भाँती ।
गुम मिथ्यातम रूप अराती ।
नमः श्री श्री सिद्ध वाङ्-मयाय,
कल्पद्-द्रुम मन ! जप दिन राती ॥ ३७७ ॥
ॐ नमः सिद्ध-
वाङ्-मया-यस्-स्वाहा ।
सिध पुरुषारथ ।
पथ निश्वारथ ।
सिद्धाय नमः,
रट प्रतिभारत ॥ ३७८ ॥
ॐ नमः
सिद्धा-यस्-स्वाहा ।
सर्वभौम शासन है ।
स्वागत अनुशासन है ।
नमः सिद्ध शा-सनाय,
सिध यदि थिर आसन है ॥ ३७९ ॥
ॐ नमः
सिद्ध-शा-सना-यस्-स्वाहा ।
‘अन्त-छोर हैं सिद्ध’ वही तो ।
कहलाया सिद्धांत मही दो ।
श्री जगत् प्रसिद्ध-सिद्धां-ताय,
नमः सिद्ध सवार्थ यही भो ! ॥ ३८० ॥
ॐ नमः
जगत्-प्रसिद्ध-
सिद्धांता-यस्-स्वाहा ।
‘सि’ बीजाक्षर खुद जैसा ।
मन्त्र त्राता ना ऐसा ।
नमः श्री सिद्ध-मन्त्राय,
निरत जप रहो हमेशा ॥ ३८१ ॥
ॐ नमः
सिद्ध-मन्त्रा-यस्-स्वाहा ।
तुम्हें वचन सिद्धी ।
दूर विषय गृद्धी ।
नमः सिद्ध वाचे,
मंत्र प्रद विशुद्धी ॥ ३८२ ॥
ॐ नमः
सिद्ध-वाचे-यस्-स्वाहा ।
शुचि-पावन बोल ।
तारण अनमोल ।
शुचि-वाचे नमः,
दृग सावन मोर ॥ ३८३ ॥
ॐ नमः
शुचि-वाचे-स्वाहा ।
शुचि रुचि ब्रम रमणा ।
स्रव-द्रव भ्रम क्षरणा ।
शुचिश्-श्रवसे नमः,
दृग जुग नम करुणा ॥ ३८४ ॥
ॐ नमः
शुचिश्-श्रवसे-स्वाहा ।
बिना कहा, भी जाना ।
जिना कहाँ न बता ना ? ।
नमः निरुक्-तोक्-ताय,
बनता जपो सुजाना ॥ ३८५ ॥
ॐ नमः
निरुक्-तोक्-ता-यस्-स्वाहा ।
मानो तंत्र किया ।
वशीभूत दुनिया ।
नमः तंत्र कृते,
बालो मंत्र ‘दिया’ ॥ ३८६ ॥
ॐ नमः
तन्त्र-कृते-स्वाहा ।
मान आय नि-निश्चय न्याया ।
न्याय अचिन्त्य, अनिन्द्य रचाया ।
नमः श्री श्री न्याय-शास्त्र-कृते,
सुमरत कृश-तर बने कषाया ॥ ३८७ ॥
ॐ नमः
न्याय-शास्त्र-कृते-स्वाहा ।
जगत जगत श्रेष्ठ हो ।
यत-अरहत ज्येष्ट हो ।
जगज्-ज्येष्-ठाय नमः,
रत, पथ-परमेष्ठ हो ॥ ३८८ ॥
ॐ नमः
जगज्-ज्येष्ठा-यस्-स्वाहा ।
पल प्रत्येक हट अमृत चाखें ।
नाम अमृत-भुज् बगलें झाँकें ।
नमो नमः अपूर्वा-नन्दाय,
सुबहो साँझ साध पत राखें ॥ ३८९ ॥
ॐ नमः
अपूर्वा-नन्दा-यस्-स्वाहा ।
कवि श्रुत-कार नमें ।
रवि श्रुत-सार रमें ।
नमः कवीन्-द्राय,
भवि ! श्रुत-धार थमें ॥ ३९० ॥
ॐ नमः
कवीन्द्रा-यस्-स्वाहा ।
अष्टक अरि नाशा ।
इष्ट तुमरि भाषा ।
नमः महेष्-टाय,
दृष्टि टकिक नासा ॥ ३९१ ॥
ॐ नमः
महेष्टा-यस्-स्वाहा ।
खुशियाँ और लुटाना आता ।
कहे आप भक्तों का ताँता ।
नमो नमः महा-नन्द-दात्रे,
एक निराकुल सौख्य प्रदाता ॥ ३९२ ॥
ॐ नमः
महा-नन्द-दात्रे-स्वाहा ।
क…बीता क्या ? लिखना ।
हुआ त्रिकाल झलकना ।
नमः श्री कवीश्वराय,
जप मन ! विसरा गणना ॥ ३९३ ॥
ॐ नमः
कवीश्वरा-यस्-स्वाहा ।
बाजती दुन्दुभि कहती ।
आप इक ईश्वर जगती ।
नमः दुन्-दुभीश्वराय,
हृदय धुन गुन-गुन करती ॥ ३९४ ॥
ॐ नमः
दुन्-दुभीश्वरा-यस्-स्वाहा ।
इन्दर सर झुका खड़ा ।
चन्दर नख बना जड़ा ।
त्रि-भुवन-नाथाय नमः,
मन्तर जप लाभ बड़ा ॥ ३९५ ॥
ॐ नमः
त्रि-भुवन-नाथा-यस्-स्वाहा ।
नहीं कोई जिसका ।
ख्याल रखते उसका ।
महा-नाथाय नम:,
मंत्र प्रिय ना किसका ॥ ३९६ ॥
ॐ नमः
महा-नाथा-यस्-स्वाहा ।
पर को पर जाना ।
निज को निज माना ।
पर-दृष्टे नमः,
जप सुख मन-माना ॥ ३९७ ॥
ॐ नमः
पर-दृष्टे-स्वाहा ।
पलटा आखर जग ।
स्वाभिमान-गज रग ।
नमः जगत्-पतये,
साध साध डग-डग ॥ ३९८ ॥
ॐ नमः
जगत्-पतये-स्वाहा ।
दरिया नामी ।
दुनिया स्वामी ।
नमः स्वामिने,
हरिया खामी ॥ ३९९ ॥
ॐ नमः
स्वामिने-स्वाहा ।
मोख भर्ता ।
शोक हर्ता ।
भर्त्रे नमः,
सौख कर्ता ॥ ४०० ॥
ॐ नमः
भर्त्रे-स्वाहा ।
ऋषि, मुनि, यति, अनगार सहारे ।
‘मैं हूँ ना’ इक कहने वाले ।
श्री चतुर्-विध-संघा-धि-पतये,
नमः, साध मिटते दुख सारे ॥ ४०१ ॥
ॐ नमः
चतुर्-विध-संघा-धि-
पतये-स्वाहा ।
आपका, है विभव, आपके भाँत ही ।
समशरण, सींह बैठे, हिरण साथ ही ।
नमः अद्-द्वितीय-विश्व-धा-रकाय ई,
मंत्र के, जाप से, दर्द-दुख विलाय ‘री ॥ ४०२ ॥
ॐ नमः
अद्वितीय-वि-भव-
धा-रका-यस्-स्वाहा ।
प्रभुता जागी ।
जड़ता भागी ।
प्र-भवे नमः,
रट बढ़-भागी ॥ ४०३ ॥
ॐ नमः
प्र-भवे-स्वाहा ।
आपकी, शक्ति है, आपके भाँत ही ।
ज्ञान उपयोग, दर्शन एक साथ ही ।
नमः अद्-द्वितीय-शक्ति-धा-रकाय ई,
मंत्र के, जाप से, आत तट दिखाय ‘री ॥ ४०४ ॥
ॐ नमः
अद्वितीय-शक्ति-
धा-रका-यस्-स्वाहा ।
बड़ी बड़ी हस्ती ।
आप चरण लसती ।
अधीश्वराय नमः,
जपा पार किश्ती ॥ ४०५ ॥
ॐ नमः
अधीश्वरा-यस्-स्वाहा ।
जगत् तीन, धन ! अधीन ।
नमः अधीशाय,
वाक्-मनस् काय
रहो लीन, साँझ तीन ॥ ४०६ ॥
ॐ नमः
अधीशा-यस्-स्वाहा ।
शक्र, खगेन्द्र, नागेन्द्र, नरेन्द्र ।
खड़े सेवा जुग पाद जिनेन्द्र ।
नमः श्री श्री सर्वा-धी-शाय,
जप मन ! परिधि से आने केन्द्र ॥ ४०७ ॥
ॐ नमः
सर्वा-धीशा-यस्-स्वाहा ।
उर वसी न माया ।
उवर्शी हराया ।
अधी-शित्रे नमः,
उर ऋषी समाया ॥ ४०८ ॥
ॐ नमः
अधी-शित्रे-स्वाहा ।
अहिंसा धर्म बाग-डोरी ।
कितबिया पढ़ राखी कोरी ।
नमः श्री धर्म-तीर्थ-कर्त्रे,
जपो मन ! और काम छोड़ी ॥ ४०९ ॥
ॐ नमः
धर्म-तीर्थ-कर्ते-स्वाहा ।
सार्थ निरापद ! निर्-आपद हो ।
सहज निराकुल ! प्रतिभा रत हो ।
नमः श्री पूर्ण-पदप्-प्राप्ताय,
जपो जाप मन ! गत-स्वारथ हो ॥ ४१० ॥
ॐ नमः
पूर्ण-पदप्-
प्राप्ता-यस्-स्वाहा ।
चाहे जिसको अपना लेते ।
चाहे जिसकी नौ खे देते ।
नमः श्री त्रि-लोका-धि-पतये,
फिर सुमरूँ, नभ तारे जेते ॥ ४११ ॥
ॐ नमः
त्रि-लोकाधि-पतये-स्वाहा ।
मुख भी-स्वर निकले ।
तुम ईश्वर विरले ।
नमः ईश्वराय,
साध जलधि तर ले ॥ ४१२ ॥
ॐ नमः
ईश्वरा-यस्-स्वाहा ।
ईश विदेहा ।
निस्पृह नेहा ।
नमः ई-शाय,
साध स्व-गेहा ॥ ४१३ ॥
ॐ नमः
ईशा-यस्-स्वाहा ।
आज्ञा अभंग ।
आ…ज्ञा नि-संग ।
इन्द्राय नमः,
रट प्रद उमंग ॥ ४१४ ॥
ॐ नमः
इन्द्रा-यस्-स्वाहा ।
उत्-उद्यम कर तम विघटाया ।
लोक लोक उत्तम पद पाया ।
नमः श्री श्री त्रिलोकोत्-तमाय,
सिमरत देर न ठहरत माया ॥ ४१५ ॥
ॐ नमः
त्रि-लोकोत्-तमा-यस्-स्वाहा ।
भुवि-स्वामी पद ।
दिवि स्वामी नत ।
अधि-भुवे नमः,
भवि ! स्वामी रट ॥ ४१६ ॥
ॐ नमः
अधि-भुवे-स्वाहा ।
धार महाव्रत तुम ।
लोक माथ कुम-कुम ।
महेश्वराय नमः,
सुमरत लोक कुटुम ॥ ४१७ ॥
ॐ नमः
महेश्वरा-यस्-स्वाहा ।
जागृत निशि-दीस ।
जगत्-जगत् ईश ।
नमः महेशाय,
साध विनत शीष ॥ ४१८ ॥
ॐ नमः
महेशा-यस्-स्वाहा ।
परम-उत्कृष्ट थान ।
यानि ईश्वर प्रधान ।
नमः परमेश्वराय,
साध जब तलक प्राण ॥ ४१९ ॥
ॐ नमः
परमेश्वरा-यस्-स्वाहा ।
व्रत उनीसता गुम ।
महा ईशिता तुम ।
नमः महे-शित्रे,
सुमरण कल्पद्-द्रुम ॥ ४२० ॥
ॐ नमः
महे-शित्रे-स्वाहा ।
देव रहें आधीन ।
जल तुम, दुनिया मीन ।
अधि-देवाय नमः,
साधो साँझन तीन ॥ ४२१ ॥
ॐ नमः
अधि-देवा-यस्-स्वाहा ।
हरि-हर आदिक देव ।
खड़े विनत हित सेव ।
नमः महा-देवाय,
सुमरण साध सदैव ॥ ४२२ ॥
ॐ नमः
महा-देवा-यस्-स्वाहा ।
देव उपाधी ।
रेव-दृगा-धी ।
नमः देवाय,
साध समाधी ॥ ४२३ ॥
ॐ नमः
देवा-यस्-स्वाहा ।
लेखा भौन-भौन ईश्वर हो ।
देखा कोन-कोन भीतर हो ।
नमः श्री श्री त्रि-भुवनेश्वराय,
सुमरो मन ! कुछ हट ही तर हो ॥ ४२४ ॥
ॐ नमः
त्रि-भुवनेश्वरा-यस्-स्वाहा ।
पात्र विश्वास तुम ।
मात्र इक आश तुम ।
विश्वे-शाय नमः,
साध, भव पाश गुम ॥ ४२५ ॥
ॐ नमः
विश्वे-शा-यस्-स्वाहा ।
भूत-प्राणी हित साधा ।
कूट वाणी न अराधा ।
विश्व भूतेशाय नमः,
साध रानी शिव राधा ॥ ४२६ ॥
ॐ नमः
विश्व-भूतेशा-यस्-स्वाहा ।
न विष…वास प्राणी ! ।
विश्व आश मानी ।
नमः विश्व-पतये,
साध राख पानी ॥ ४२७ ॥
ॐ नमः
विश्व-पतये-स्वाहा ।
विश्व कब रचे पचे ।
बना मन अश्व बचे ।
नमः विश्वेश्-श्वराय,
साध इति..हास रचे ॥ ४२८ ॥
ॐ नमः
विश्वेश्वरा-यस्-स्वाहा ।
राज बना राख ।
राज पना ‘नाक’ ।
अधि-राजे नम:,
साध मना ! साख ॥ ४२९ ॥
ॐ नमः
अधि-राजे-स्वाहा ।
शोक पीछे छोड़ा ।
लोक पीछे दौड़ा ।
नम: लोकेश्-श्वराय,
ढोक पीछे जोड़ा ॥ ४३० ॥
ॐ नमः
लोकेश्वरा-यस्-स्वाहा ।
रखी लोक लाजा ।
सखी ! लोक नाजा ।
नमः लोक-पतये,
लिखी ढोक आ…जा ॥ ४३१ ॥
ॐ नमः
लोक-पतये-स्वाहा ।
रोक-टोक ना किया ।
लोक-लोक साथिया ।
लोक-नाथाय नमः,
ढोक, मोख पा लिया ॥ ४३२ ॥
ॐ नमः
लोक-नाथा-यस्-स्वाहा ।
रग रग दया क्षमा ।
डग डग जया रमा ।
साध साध जग-मग,
जग-पूज्याय नमः ॥ ४३३ ॥
ॐ नमः
जग-पूज्या-यस्-स्वाहा ।
ऊरध गामी ! गुण आसामी ! ।
लोक अधो, मध, ऊरध स्वामी ! ।
नमः श्री श्री त्रिलोक-नाथाय,
साधत साधक दिव-शिव नामी ॥ ४३४ ॥
ॐ नमः
त्रि-लोक-नाथा-यस्-स्वाहा ।
चोखे परिणामा ।
पहुँचे शिव-धामा ।
लोकेशाय नमः,
साधो निष्कामा ॥ ४३५ ॥
ॐ नमः
लोकेशा-यस्-स्वाहा ।
लगन आतम लागी ।
सदन शिव बढ़भागी ।
जगन्-नाथाय नमः,
साध क्षण क्षण जागी ॥ ४३६ ॥
ॐ नमः
जगन्-नाथा-यस्-स्वाहा ।
जगत् तीन इक प्रभो ! ।
मद विलीन इक विभो ! ।
जगत्-प्र-भवे नमः,
आत्म लीन साध भो ! ॥ ४३७ ॥
ॐ नमः
जगत्-प्रभवे-स्वाहा ।
मित्र लोक लोक ।
मन पवित्र ढोक ।
नमः पवित्राय,
जप सचित्त मोख ॥ ४३८ ॥
ॐ नमः
पवित्रा-यस्-स्वाहा ।
धन ! क्रम-कदम रोक चाले ।
पर-तरफी बढ़ने काले ।
श्री श्री पराक्रमाय नमः,
‘खोते’ मनसूबे काले ॥ ४३९ ॥
ॐ नमः
पराक्रमा-यस्-स्वाहा ।
खास ‘औ गोत्तर ।
वास लोकोत्तर ।
परत्-त्राय नमः,
साध मोहोत्तर ॥ ४४० ॥
ॐ नमः
परत्-त्रा-यस्-स्वाहा ।
ऊर्ध्व रेता ।
अक्ष जेता ।
नमः जेत्रे,
जप सचेता ॥ ४४१ ॥
ॐ नमः
जैत्रे-स्वाहा ।
विष्णु, महेशा ।
जिष्णु, जिनेशा ।
नमः जिष्णवे,
साध हमेशा ॥ ४४२ ॥
ॐ नमः
जिष्णवे-स्वाहा ।
श्री-समो-शरणी ।
तरी वैतरणी ।
नमः श्री कर्-त्रे,
सार्थक सुमरणी ॥ ४४३ ॥
ॐ नमः
कर्-त्रे-स्वाहा ।
जगत् नश्वर छूटा ।
अमृत निर्झर फूटा ।
नमः अ-विनश्-श्वराय,
साध मन्तर नूठा ॥ ४४४ ॥
ॐ नमः
अ-विनश्वरा-यस्-स्वाहा ।
हट प्रभाव वाले ।
गत-तनाव न्यारे ।
प्रभ विष्णवे नमः,
रत, स्वभाव पाले ॥ ४४५ ॥
ॐ नमः
प्र-भविष्णवे-स्वाहा ।
भ्राज्-तेज नूरी ।
इष्णु आश-पूरी ।
भ्रा-जिष्णवे नमः,
सिवा जग-ततूरी ॥ ४४६ ॥
ॐ नमः
भ्रा-जिष्णवे-स्वाहा ।
प्रभु-प्रभाव भू…अन ।
इष्णु आश पूरण ।
प्र-भूष्णवे नमः,
साध विगत दूषण ॥ ४४७ ॥
ॐ नमः
प्र-भूष्णवे-स्वाहा ।
भा स्वयं समेता ।
भान प्रभा क्रेता ।
स्वयं प्रभाय नमः,
साध अख विजेता ॥ ४४८ ॥
ॐ नमः
स्वयं-प्रभा-यस्-स्वाहा ।
नोंक झोंक दूरी ।
झोरिन् कस्तूरी ।
लोक जिते नमः,
साध आश पूरी ॥ ४४९ ॥
ॐ नमः
लोक-जिते-स्वाहा ।
राख विश्व प्रीत ।
विश्व लिया जीत ।
विश्व जिते नमः,
साध नित्य मीत ! ॥ ४५० ॥
ॐ नमः
विश्व-जिते-स्वाहा ।
शत्रु कहाँ कोई ।
मित्र ‘जहां-दोई’ ।
नमः विश्व जेत्रै,
जप, न समय खोई ॥ ४५१ ॥
ॐ नमः
विश्व-जेत्रे-स्वाहा ।
स्व यानी कि कल ।
वि-विगलित प्रतिपल ।
विश्व-विजिते नमः,
साध, आँख ले जल ॥ ४५२ ॥
ॐ नमः
विश्व-वि-जिते-स्वाहा ।
तुम सार्थ जगत जित्वर सहोश ।
सत्वर प्रसन्न तुम आशुतोष ।
नमः श्री श्री विश्व जित्-त्वराय,
साधो बनता अभिजित कषाय ॥ ४५३ ॥
ॐ नमः
विश्व-जित्वरा-यस्-स्वाहा ।
जगत विजेता तुम ।
विरत प्रणेता तुम ।
नमः जगज्-जेत्रे,
रति मति द्वैता गुम ॥ ४५४ ॥
ॐ नमः
जगज्-जेत्रे-स्वाहा ।
जीत लिया जग सभी ।
प्रीत हिया हट बही ।
जगज्-जिष्णवे नमः,
गीत-जिया ! रट यही ॥ ४५५ ॥
ॐ नमः
जगज्-जिष्णवे-स्वाहा ।
दृष्टि एक क्या आप उठाते ।
बिगड़े काम स्वयं बन जाते ।
नमो नमः श्री जगन्-नेत्राय,
मन्त्र अखर यह किन्हें न भाते ॥ ४५६ ॥
ॐ नमः
जगन्-नेत्रा-यस्-स्वाहा ।
राग द्वेष जीता ।
सजग ! न भय भीता ।
नमः जगज्-जयिने,
साध साध गीता ॥ ४५७ ॥
ॐ नमः
जगज्-जयिने-स्वाहा ।
तभी से जागे ।
सभी से आगे ।
नमः अग्-ग्रण्ये,
साध बिन नाँगे ॥ ४५८ ॥
ॐ नमः
अग्रण्ये-स्वाहा ।
सोचते बुरा नहीं ।
कौन है जुड़ा नहीं ।
दया-मूर्-तये नमः,
साध, यम सगा नहीं ॥ ४५९ ॥
ॐ नमः
दया-मूर्तये-स्वाहा ।
नेता त्रिभुवन के ।
जेता चितवन के ।
नमः जगन् नेत्रे,
क्रेता सद्गुण के ॥ ४६० ॥
ॐ नमः
जगन्-नेत्रे-स्वाहा ।
खड़े झुका माथा ।
रुद्ध, हरि, विधाता ।
अधीश्-श्वराय नमः,
साधो ! दिन-राता ॥ ४६१ ॥
ॐ नमः
अधीश्वरा-यस्-स्वाहा ।
करुणा सब पर करते ।
नयना भर कर रखते ।
धर्म-ना-यकाय नमः,
साधो सन्त सुमरते ॥ ४६२ ॥
ॐ नमः
धर्म-ना-यका-यस्-स्वाहा ।
रींझ चलीं रिद्धी ।
सींझ चलीं सिद्धी ।
ऋद्धी-शाय नमः,
साध रख विशुद्धी ॥ ४६३ ॥
ॐ नमः
ऋद्धीशा-यस्-स्वाहा ।
दे विभूत आत्म धन ! ।
नाथ भूत-प्राणियन ।
भूत-नाथाय नमः,
साध्य-भूत साधु-जन ॥ ४६४ ॥
ॐ नमः
भूत-नाथा-यस्-स्वाहा ।
स्वाम भूत-प्राणी ।
सौंप सूत्र वाणी ।
नमः भूत-भर्-त्रे,
जप, ले दृग पानी ॥ ४६५ ॥
ॐ नमः
भूत-भर्त्रे-स्वाहा ।
सुवर्ण पातर यत ।
दूध शेरनी सत् ।
नमः जगत्-पात्रे,
साध साध अरहत ॥ ४६६ ॥
ॐ नमः
जगत्-पात्रे-स्वाहा ।
सार्थक ‘गिर’ श्वासा ।
शक्र चक्र दासा ।
अतुल बलाय नमः,
राख दृष्टि नासा ॥ ४६७ ॥
ॐ नमः
अतुल-बला-यस्-स्वाहा ।
दया करुणा ।
क्षमा करना ।
वृषाय नमः,
नित् सुमरना ॥ ४६८ ॥
ॐ नमः
वृषा-यस्-स्वाहा ।
सार्थ लगें ग्रह, ‘परि’ चहूँ-ओरा ।
आ वन यौवन परिग्रह छोड़ा ।
श्री परिग्-ग्रहत्-त्यागी-जिनाय,
नमः, साध लो सुख बेजोड़ा ॥ ४६९ ॥
ॐ नमः
परिग्रहत्-त्यागी-
जिना-यस्-स्वाहा ।
मुख निकले वचन ।
मंत्र जाते बन ।
मंत्र-कृते नमः,
बने साधो मन ! ॥ ४७० ॥
ॐ नमः
मन्त्र-कृते-स्वाहा ।
एक सौ आठ लखन ।
सार्थ नव सौ व्यंजन ।
नमः शुभ-लक्षणाय,
साध मन, काय, वचन ॥ ४७१ ॥
ॐ नमः
शुभ-लक्षणा-यस्-स्वाहा ।
अक्ष यानि आँखें कीं वश में ।
इक निष्पक्ष ख्यात दिश् दश में ।
नमः श्री श्री लोकाध्यक्षाय,
लो लहरा मन्तर नस नस में ॥ ४७२ ॥
ॐ नमः
लोकाध्यक्षा-यस्-स्वाहा ।
झुकें किसके आगे ।
बैठ क़द नभ लागे ।
दुरो-धृष्टाय नमः,
भक्त हम बढ़-भागे ॥ ४७३ ॥
ॐ नमः
दुरो-धृष्टा-यस्-स्वाहा ।
धीर सिन्धु जल न्हवन ! ।
आप बन्धु भविक-जन ।
भव्य-बन्धवे नमः,
साध सही तनिक मन ! ॥ ४७४ ॥
ॐ नमः
भव्य-बन्धवे-स्वाहा ।
निरस्त-अस्त अठ-करम ।
समस्त हस्त-गत धरम ।
निरस्त-कर्माय नम:,
प्रशस्त चित्त रट अरम् ॥ ४७५ ॥
ॐ नमः
निरस्त-का-यस्-स्वाहा ।
महा अर्घ
वन्दे तद्-गुण लब्-धये ।
जल, गंधाक्षत, फुलझड़ी ।
थाली घृत व्यंजन भरी ।
दीवा, सुरभी, फल नये ।
भेंटूँ चरण सिद्ध भगवन् ।
वन्दे तद्-गुण लब्-धये ।
हेत अखीर समाध मरण ।
पूजूँ चरण सिद्ध भगवन् ।
ॐ ह्रीं झ्वीं श्रीं अर्हं
अ सि आ उ सा
अप्-प्रति-चक्रे फट्
वि-चक्राय झ्रौं झ्रौं नमः
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
जाप
अ सि आ उ सा
नम:
(मंत्र का 108 जाप करें।)
जयमाला
सोन पाथर, सोन जैसे ।
गौण पामर, जोन वैसे ॥
कोष-सद्गुण दोष हन्ता ।
जय जयन्ता, सिद्ध नन्ता ॥१॥
फल शुभाशुभ ‘कर्म’ भागी ।
जीव शिव ‘अरि-हत’ विरागी ॥
धौव्य, व्यय, उत्पाद वन्ता ।
जय जयन्ता, सिद्ध नन्ता ॥२॥
ज्ञान, दृग, वृत भज कटारीं ।
विभज कर्मन-प्रकृति सारीं ॥
प्रमुख अष्टक गुण अनन्ता ।
जय जयन्ता, सिद्ध नन्ता ॥३॥
देखते युगपत् जगत् हैं ।
लेख जे पल-प्रत जगत हैं ॥
ज्योत हतप्रभ सूर चन्दा ।
जय जयन्ता, सिद्ध नन्ता ॥४॥
समय लागा मोख लागे ।
विलय रागा, मोह भागे ॥
राधिका शिव धाम कन्ता ।
जय जयन्ता, सिद्ध नन्ता ॥५॥
दोष अठ-दश एक नाहीं ।
समाये सब एक माहीं ॥
ज्योत ज्योत प्रवेश सन्धा ।
जय जयन्ता, सिद्ध नन्ता ॥६॥
सुख निराकुल आप जैसा ।
पट चिरा संताप कैसा ॥
शक्र, चक्र न यूँ अनन्दा ।
जय जयन्ता, सिद्ध नन्ता ॥७॥
व्यर्थ शैय्या, नींद टूटी ।
निरामय, जड़ व्यर्थ बूटी ॥
अशुचि कब, विरथा सुगन्धा ।
जय जयन्ता, सिद्ध नन्ता ॥८॥
चरित, तप, नय सिद्ध नाना ।
भूत भावी वर्तमाना ॥
साध सु…मरण सकूँ अन्ता ।
जय जयन्ता, सिद्ध नन्ता ॥९॥
लाभ रत्नत्रय भगत हो ।
कर्म क्षय, क्षय दुख, सुगत हो ॥
मुझे रख लो भक्त पंक्ता ।
जय जयन्ता, सिद्ध नन्ता ॥१०॥
ॐ ह्रीं झ्वीं श्रीं अर्हं
अ सि आ उ सा
अप्-प्रति-चक्रे फट्
वि-चक्राय झ्रौं झ्रौं नमः
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
*श्री सरसुति-मंत्र*
ॐ ह्रीम्
अर्हन् मुख कमल-वासिनि
पापात्म क्षयंकरि
श्रुत-ज्ञान
ज्वाला सहस्र प्रज्-ज्वलिते
सरस्वति !
मत् पापम् हन हन दह दह
क्षाम् क्षीम् क्षम् क्षौम् क्षः
क्षीरवर-धवले
अ-मृत-संभवे
वम् वम् हूम् फट् स्वाहा
मम सन्-निधि-करणे
मम सन्-निधि-करणे
मम सन्-निधि-करणे ।
ॐ ह्रीं जिन मुखोद्-भूत्यै
श्री सरस्वति-देव्यै
अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
*विसर्जन पाठ*
अञ्जन को पार किया ।
चन्दन को तार दिया ।।
नहिं तोर दया का पार ।
नागों का हार किया ।। १ ।।
धूली-चन्दन-बावन ।
की शूली सिंहासन ।।
धरणेन्द्र देवी-पद्मा ।
मामूली अहि-नागिन ।। २ ।।
अग्नि ‘सर’ नीर किया ।
भगिनी ‘सर’ चीर किया ।।
नहिं तोर दया का पार ।
केशर महावीर किया ।। ३ ।।
बन पड़ीं भूल से भूल ।
कृपया कर दो निर्मूल ।।
बिन कारण तारण हार ।
नहिं तोर दया का पार ।। ४ ।।
( निम्न श्लोक पढ़कर विसर्जन करना चाहिये )
=दोहा=
बस आता, अब धारता,
ईश आशिका शीश ।
कृपा ‘निराकुल’ आपकी,
बनी रहे निशि-दीस ।।
( यहाँ पर नौ बार णमोकार मंत्र जपना चाहिये)
आरती
आओ भक्ता आओ ‘रे ।
अपना भाग जगाओ ‘रे ।
दीवा घृत भर लाओ ‘रे ।
सिद्ध चक्र मण्डल विधान की ।
सिद्ध यन्त्र करुणा निधान की ।।
आरति कर हरषाओ ‘रे ।
आओ भक्ता आओ ‘रे ।।
दुखियारिन रानी मैना ।
चैन-करार न दिन-रैना ।
देख-देख पति की पीड़ा,
बस ढोले पानी नैना ।।१।।
जा पहुंची जिन मन्दरिया ।
दिखे साधु जिन मन-दरिया ।
मिल चाला कोई अपना,
झल चाला नयनन दरिया ।।२।।
अपना पुण्य करो गाढ़ा ।
मुनि बोले अशीष म्हारा ।
धारा सिद्ध-यंत्र ढारो,
कार्तिक, फागुन, आसाढ़ा ।।३।।
आया पर्व अठाई है ।
पूजन सिद्ध रचाई है ।
गन्धोदक ले सिर माथे,
कर्म निकाच विदाई है ।।४।।
पापोदय पलटी खाया ।
काम-देव कंचन काया ।
गूँजा ‘सति मैना सुन्दर’,
धरती-अम्बर जयकारा ।।५।।
मोती नयन झिराओ ‘रे ।
श्रद्धा सुमन चढ़ाओ ‘रे ।
मिलकर कीरति गाओ ‘रे ।
सिद्ध चक्र मण्डल विधान की ।
सिद्ध यन्त्र करुणा निधान की ।।
आरति कर हरषाओ ‘रे ।
अपना भाग जगाओ ‘रे ।।६।।
सर्व-विघ्न-शान्ति मंत्र
नमोर्-ऽहते भग-वते
प्र(क्)-क्षी-णाशेष दोष कल्-मषाय
दिव्य तेजो मूर्-तये
श्री शान्ति-नाथाय शान्ति-कराय
सर्व विघ्न(प्) प्र-णा-शनाय
सर्व रोगाप मृत्यु वि-ना-शनाय
सर्व पर कृच्-छु(द्)-द्रो-प(द्)-द्रव वि-ना-शनाय
सर्वा-रिष्ट शान्ति-कराय
ॐ ह्राम् ह्रीम् ह्रूम् ह्रौम् ह्रः
अ, सि, आ, उ, सा नमः
मम सर्व विघ्न शान्तिम्
कुरु कुरु
मम सर्व रोगाप-मृत्यु शान्तिम्
कुरु कुरु
मम सर्व पर कृच्-
छु(द्)-द्रो-प(द्)-द्रव शान्तिम्
कुरु कुरु
मम सर्वा-रिष्ट-शान्तिम्
कुरु कुरु
मे तुष्टिम् पुष्टिम् च कुरु कुरु
ते तुष्टिम् पुष्टिम् च कुरु कुरु
ते मे तुष्टिम् पुष्टिम् च कुरु कुरु
स्वाहा, स्वाहा, स्वाहा
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