पूजन आचार्य श्री समय सागर जी
मुनि श्री निराकुल सागर जी द्वारा विरचित
दैगम्बर साधु निराला ।
बस पीछि कमण्डलु वाला ॥
जो सबके आँसू पोंछे ।
जो भला सभी का सोचे ।
नभ में गूंजे जयकारा ॥
बस पीछि कमण्डलु वाला ।
दैगम्बर साधु निराला ।।स्थापना।।
चल पाँव पाँव आते हैं ।
तरु भाँत छाँव छाते हैं ॥
है कुछ कुछ मां के जैसे ।
कमती जिन आगे पैसे ।।
छोडूं चरणन जल धारा ।
बस पीछि कमण्डलु वाला ।
दैगम्बर साधु निराला ।।जलं।।
है मैत्री जिनकी हर से ।
मन देख गुणी जन हरसे ।।
कब क्षोभ बुद्धि हीनों पे ।
करते करुणा दीनों पे ।
भेंटूॅं रस चन्दन प्याला ।।
बस पीछि कमण्डलु वाला ।
दैगम्बर साधु निराला ।।चन्दनं।।
हित और पनीले ले नयना ।
कोकिल मिसरी से वयना ।।
ले मार तरंगें मन की ।
नित् करूँ वन्दना उनकी ।।
भेंटूॅं अक्षत भर पारा ।
बस पीछि कमण्डलु वाला ।
दैगम्बर साधु निराला ।।अक्षतं।।
हैं झुकी झुकी सी आँखें ।
आँखों में लज्जा राखें ।।
क्या सुना शून विनु पानी ।
दरिया सी चुनी रवानी ।
भेंटूॅं दिव पुष्प पिटारा ।।
बस पीछि कमण्डलु वाला ।
दैगम्बर साधु निराला ।।पुष्पं।।
जो पी लेते हैं गुस्सा ।
कोई न और है इन सा ।।
गम खाना आया जिनको ।
धन ! साधु नमन शत उनको ।।
भेंटूॅं घृत नेवज माला ।।
बस पीछि कमण्डलु वाला ।
दैगम्बर साधु निराला ।।नैवेद्यं।।
चल रहे बिना वैशाखी ।
ना करते नहीं, न हाँ की ।।
बस देखो कहते रहते ।
कब कहते सहते रहते ।।
भेटूँ मणि दीप विशाला ।
बस पीछि कमण्डलु वाला ।
दैगम्बर साधु निराला ।।दीपं।।
है सिर पे भार न जिनके ।
बच्चे से सच्चे मन के ।।
मनके नवकार सुहाते ।
रट ‘मरहम बनें लगाते ।।
भेंटूॅं घट सुगंध न्यारा ।।
बस पीछि कमण्डलु वाला ।
दैगम्बर साधु निराला ।।धूपं।।
बदले में कुछ ना चाहें ।
आसाँ कर देते राहें ।।
बाहें पसार के राखीं ।
छव दूज दया दृग् जाकीं ।
भेंटूॅं श्री फल मनहारा ।।
बस पीछि कमण्डलु वाला ।
दैगम्बर साधु निराला ।।फलं।।
पल बरसा तरु तल ठाड़े ।
ग्रीषम गिर आसन माड़े ।।
जब चाली शीत लहर है ।
ओढ़ा धीरज कम्बल है ।।
भेंटूॅं मैं तुम्हें तुम्हारा ।।
बस पीछि कमण्डलु वाला ।
दैगम्बर साधु निराला ।।अर्घ्यं।।
जयमाला
*दोहा*
मां महात्मा परमात्मा,
भव मानव आधार ।
एक भले गुरु खोजते,
गुरु बिन जीवन भार ॥
समय सार के सार,
समय सागर जी गुरुदेवा ।
करुणा के अवतार,
समय सागर जी गुरुदेवा ।।
पिता मलप्पा जिनके,
जिनकी श्री मंती माता ।
शरद पूर्णिमा जनम,
सदलगा से जिनका नाता ।।
इनके महावीर विद्याधर,
अनन्त इक भाई ।
शान्ता स्वर्गा बहिन,
नयन पुर-परिजन सुखदाई ।।
गुण के अनन्त भण्डार,
समय सागर जी गुरुदेवा ।
समय सार के सार,
समय सागर जी गुरुदेवा ।।१।।
कच काले चिकने घुँघराले,
चम्पक सी नासा ।
मृग दृग उन्नत माथ हिमालय,
दूजी परिभाषा ।।
शंखावर्त गला कटि केशरि,
होंठ बिम्ब फल से ।
गोल कपोल बोल कोयलिया,
तन कंचन विलसे ।।
सत् शिव सुंदर न्यार ।
समय सागर जी गुरुदेवा ।
समय सार के सार,
समय सागर जी गुरुदेवा ।।२।।
सिद्धोसि बुद्धोसि यह मां,
लोरी सींझ चली ।
विद्याधर क्या निकले,
पकड़ी सबने मोक्ष गली ।।
गये महावीरा क्या मुड़ कर,
वापिस न आये ।।
सप्तम प्रतिमा धारी,
ब्रह्मचारी तुम कहलाए ।।
रक्खें कदम संभाल,
समय सागर जी गुरुदेवा ।
समय सार के सार,
समय सागर जी गुरुदेवा ।।३।।
मार्ग शीर्ष सित पक्ष आपने,
ली क्षुल्लक दीक्षा ।
पा प्रवेश कुल गुरु गुरुकुल ली,
अध्यातम शिक्षा ।।
नाम समय सागर जी पाया,
छव जनमन हारी ।
नैनागिर में से ऐलक दीक्षा,
धूम मची भारी ।।
कलि विरत निरतचार,
समय सागर जी गुरुदेवा ।
समय सार के सार,
समय सागर जी गुरुदेवा ।।४।।
सन् अस्सी में मार्च द्रोणगिर,
मुनि दीक्षा पाई ।
चर्या काल चतुर्थ देख मन,
श्री गुरु हरषाई ।।
पीछि कमण्डल पोथी इक,
दृग नाक टिकाया है ।
विद्या गुरु ने पद निर्यापक,
तभी बिठाया है ।।
गूँजी जय जय कार,
समय सागर जी गुरुदेवा ।
समय सार के सार,
समय सागर जी गुरुदेवा ।।५।।
शांति, वीर, शिव, ज्ञान सूर्य इक,
विद्या इक तुम हो ।
मिथ्यातम दो मेंट हमारा,
कोटि नमन तुमको ।।
सहज निराकुल बनूँ आप सा,
केवल अभिलाषा ।
मन्शा पूर्ण आप, न बस,
आशा दृढ़ विश्वासा ।।
महिमा अगम अपार,
समय सागर जी गुरुदेवा ।
समय सार के सार,
समय सागर जी गुरुदेवा ।।६।।
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।
*दोहा*
काले गोरे हाथ ले,
कल करनी जग कूच ।
स्वर्ण मोक्ष का मार्ग आ,
ले श्री गुरु से पूछ ।।१।।
बड़ी आपकी पनडुबी,
कमती म्हारो भार ।
करुणा कर गुरुदेव जी,
बिठा, लो लगा पार ।।२।।
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