आद भरत बाहुबल
लघु चालीसा
‘दोहा’
सुमरण सु-मरण सा कहा,
आ लें दो पल साध ।
हो चाले यूँ ही नहीं,
मरण अखीर समाध ।।
मन से था किया बस याद ।
मन की हुई पूर्ण मुराद ।।
करुणा दया अवतारी ।
महिमा प्रभु पुरु न्यारी ।।१।।
बदली सरोवर में आग ।
सुलटा भाग निशि जल त्याग ।।
सर्वग काल-कलि ग्वाला ।
हितु रघु सोन पर वाला ।।२।।
मन से था किया बस याद ।
मन की हुई पूर्ण मुराद ।।
करुणा दया अवतारी ।
महिमा प्रभु पुरु न्यारी ।।३।।
लग पग खुले वज्र कपाट ।
मेंढ़क स्वर्ग सुर सम्राट ।।
धागे चीर नभ आगे ।
अहि, कपि, नकुल तट लागे ।।४।।
मन से था किया बस याद ।
मन की हुई पूर्ण मुराद ।।
करुणा दया अवतारी ।
महिमा प्रभु पुरु न्यारी ।।५।।
अन्जन बाल वज्जर अंग ।
बन्धन बाल चन्दन भंग ।।
अंजन चोर नभ गामी ।
नागिन नाग जग स्वामी ।।६।।
मन से था किया बस याद ।
मन की हुई पूर्ण मुराद ।।
करुणा दया अवतारी ।
महिमा प्रभु पुरु न्यारी ।।७।।
बदली सिंहासन में शूल ।
थे घट नाग, निकले फूल ।।
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