अनन्तनाथ
लघु चालीसा
‘दोहा’
श्री-फल हाथों का लिया,
कर लाखों का काम ।
पर दुख कातर ! हे प्रभो,
जिनवर नन्त प्रणाम ।।
आश तुम, विश्वास तुम ।
आती जाती श्वास तुम ।।
तुम न रहते हो खपा ।
सदा बरषाते कृपा ।।
रह के आस पास तुम ।
आश तुम विश्वास तुम ।।१।।
भागवत गीता श्रुती ।
कह रही सीता सती ।।
छुआ क्या अनुराग तुम ।
कमल पानी, आग गुम ।।२।।
आश तुम, विश्वास तुम ।
आती जाती श्वास तुम ।।
तुम न रहते हो खपा ।
सदा बरषाते कृपा ।।
रह के आस पास तुम ।
आश तुम विश्वास तुम ।।३।।
साथिया ओमाकृति ।
कह रही सोमा सती ।।
छुआ क्या अनुराग तुम ।
फूल माला, नाग गुम ।।४।।
आश तुम, विश्वास तुम ।
आती जाती श्वास तुम ।।
तुम न रहते हो खपा ।
सदा बरषाते कृपा ।।
रह के आस पास तुम ।
आश तुम विश्वास तुम ।।५।।
परणत पनीली व्रती ।
कह रही नीली सती ।।
छुआ क्या अनुराग तुम ।
खुला द्वारा, दाग गुम ।।६।।
आश तुम, विश्वास तुम ।
आती जाती श्वास तुम ।।
तुम न रहते हो खपा ।
सदा बरषाते कृपा ।।
रह के आस पास तुम ।
आश तुम विश्वास तुम ।।७।।
साधु सन्तन संगती ।
कह रही अंजन सती ।।
छुआ क्या अनुराग तुम ।
वज्र अंग चिराग मम ।।८।।
आश तुम, विश्वास तुम ।
आती जाती श्वास तुम ।।
तुम न रहते हो खपा ।
सदा बरषाते कृपा ।।
रह के आस पास तुम ।
आश तुम विश्वास तुम ।।९।।
हुआ ये अनुराग तुम ।
करे भागमभाग गुम ।
बना बिगड़े काम दे ।
‘निराकुल’ शिव धाम दे ।।१०।।
=दोहा=
और न मर्जी, बस यही,
अर्जी देवन देव ।
‘सिर-सहजो’ यूँ ही कृपा,
रखना बना सदैव ।।
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