पार्श्वनाथ
लघु-चालीसा
=दोहा=
भक्ति दीप आ बालते,
पार्श्व नाथ भगवान् ।
तम ज्यों का त्यों है घना,
दे लाठी सम्मान ।।
हटके ‘भी’तर एक सुकून ।
प्रभु-पारस इक मंशा पून ।।
करें भक्त को आप समान ।
बढ़-पारस-‘मण’ कीरत वान ।।१।।
कल्मष पाप मेघ-घन माल ।
प्रभु-पारस पवमान कराल ।।
पाप कोटि-भव तुंग-पहाड़ ।
दर्श पार्श्व-प्रभु वज्र प्रहार ।।२।।
हाजिर सुनते ही आवाज ।
‘आशुतोष’ प्रभु-पारस आज ।।
दें प्रभु बिन माँगे दिन-रैन ।
पीछे विरख-कल्प-सुर-धेन ।।३।।
महिमा प्रभु पारस अभिषेक ।
जागृत पय-पानीय विवेक ।।
प्रभु-पारस दर बाली ज्योत ।
प्रकटित ज्ञान-भीतरी स्रोत ।।४।।
‘पार्श्व’ दिव्य-वसु-मंगल भेंट ।
संकट ‘सर्व’ अमंगल मेंट ।।
विरची पूजा पारस द्वार ।
बिन पतवार-पोत उस पार ।।५।।
चरणन पार्श्व चढ़ाया नीर ।
बढ़ा जा रहा द्रोपदी चीर ।।
चन्दन चर्च ‘पार्श्व’-पद-मूल ।
सिंहासन में बदली शूल ।।६।।
रखा ‘पार्श्व’ पद धान-पिटार ।
पाँव लगे खुल पड़े किवाड़ ।।
पाँखुड़ि भेंट ‘पार्श्व’ भगवान ।
मेंढ़क सहसा जन्म विमान ।।७।।
रख पकवान ‘पार्श्व’-प्रभु-दोर ।
बना निरंजन अंजन-चोर ।।
भेंट ‘पार्श्व’-प्रभु दीप-सलील ।
अग्नि कुण्ड बन चाला झील ।।८।।
‘पार्श्व’-देहरी खेई धूप ।
नागिन-नाग अधो-जग भूप ।।
रख दरबार ‘पार्श्व’ फल-थाल ।
नाग बना फूलों की माल ।।९।।
प्रभु-पारस महतारी गोद ।
‘सहज-निराकुल’ गुजर समोद ।।
कहूँ कहाँ तक तुम गुण-नेक ।
मौन-शरण, चरणन सिर-टेक ।।१०।।
=दोहा=
और न मेरा तुम सिवा,
कोई तीन जहान ।
लाज हमारी राखिजो,
पार्श्व नाथ भगवान् ।।
Sharing is caring!