(४१)
भैय्या !
आप किसी
एक व्यापार को पकड़िये तो
देखिए ना
व्यापार शब्द आगे नहीं पीछे
पार शब्द लगाकर के कुछ कह रहा है
‘के जैसे आम का पेड़ लगाते ही
फल नहीं देने लगता है
पहले बच्चा ‘मनु’…हार चले
अर्थात् मनुज हार चले
ऐसी मनुहार भेंट में लेता है
फिर फल तो खास देता है
लेकिन तादाद आम देता है
बस जुड़े रहिये
पीछे मत हटिये
व्यापार
पार लगा देगा नैय्या
(४२)
देखियेगा
शब्द है स…फल…ता
लेकिन थोड़ी सी जल्दी में जो रहते हम
सफल्ता बोलते हैं
सो ‘ल’ हलन्त हो जाता है
और संस्कृत में
आधे अक्षर दो बार बोले जाते हैं
सो नया सार्थक शब्द बनता है
सफल…लता
बस सफल होने का एक यही कीमिया है
लता के जैसे
बेली के जैसे
दीवाल का सहारा मिलते ही
दीवाल से कुछ गर्दन उठा कर के
अपना सिर जा आसमान से टिकाना
(४३)
हमारा आपका मन
एक आईने के अलावा कुछ और नहीं है
हाँ… हाँ…
जिसके सामने खड़े हुये हैं हम
सो
दुनाली दागना दो बन्द कर
मन के कांधे पर बिठा कर
वरना सु…मरण के वक्त
हासिल आई शून
यही मन रह रहकर
कह जायेगा
हमारे कान के पास आकरके
शरारतें हमारी
और शरारतें तो फिर भी ठीक है
साजिशें हमारी
हा ! हहा !
(४४)
मन हमारा एक सबसे करीबी दोस्त है
और दोस्तों को मजाक करने की
आदत जो होती है
सो मन जब
तेरे मेरे से वास्ते वाला
टेड़ा मेड़ा रास्ता पकड़ाये
तो एक दफा ‘सीरियस मूड’ में
अच्छे से पूछ लेना
‘के अय ! मेरे मन
क्या सही कह रहा है तू
यकीन मानिये
हमारा मन तुरंत कह चलेगा
मैं तो मजाक कर रहा था
देखिए
तब मन की खबर मत लीजिये
अपने मन को एक खबर दीजिये
‘के अय ! मेरे प्यारे मन
गलत रास्तों पर यू-टर्न नहीं होते
और रास्ता बड़ा सकरा होता है
मतलब लौटना नहीं होता
हाँ हाँ
चार काँधों पर
लेटना तो हो सकता है
(४५)
जीत और ओर देखत नहीं
जी तोड़ मेहनत करने से मिलती है
फिर मेहनताना लगता है जो हाथ
वह भले ‘आना’ हो
एक अजीबो-गरीब
सुकून से
कराता है हमारी मुलाकात
सच उसकी रहमत के संग
अपनी मेहनत हो
तो आता ही आता रंग
जीवन में
हाँ हाँ
हों भले हम
राम-लखन से वन में
(४६)
अपने बच्चे का हक जो छीन रहे हैं
‘मुखाग्नि देने का’
अरे ! मुख अग्नि
जीते जी
खुद ही तो ले रहे हैं
बीड़ी सिगरेट पी करके
अब बच्चे यदि छोड़ छाड़कर
दूर चले जायें
भरपूर ‘हेट’ करें
तो ऐतराज कैसा
जैसे को तैसा
यह तो अकाट्य सत्य है
सच
बुरा भला कुछ और नहीं
हमारा ही भव-पूर्व कृत्य है
(४७)
बात थोड़ी सी सीक्रेट है
यदि पच सकें तो बतलाऊॅं
खूब मुँह लगा लेना सिगरेट
पर ध्यान रखना
सी…ग्रेड़ यदि पीछे पड़ गया
तो मंजिल से सिर्फ दो कदम पीछे नहीं
नौ दश कदम पीछे ले जाकर के छोड़ देगा
‘S’ डबल ‘e’ भी ‘सी’ होता है
इसलिये ‘एस’ ऐसे मत करना
‘के केस-पैसे तो जायें ही जायें
और साँझ तलक हम
अपने घर
अपने देश भी न लग पायें
(४८)
‘खुल जा सिम सिम’
बस इतना कहने से काम नहीं बनता है
सुनते हैं
छड़ी भी घुमानी पड़ती है
हां ! हां !
बड़े बुजुर्गों की दुआ
भक्ति
ईश्वरीय शक्ति की ओर
झुका हुआ मन भी जरूरी है
पर साथ साथ जरूरी है
न सिर्फ कदम का बढ़ाना
बल्कि दर कदम आगे बढ़ते जाना
‘खजाने’ का रास्ता
‘ख…जाने’ का रास्ता है
‘ख’ मतलब आकाश मार्ग
मतलब
रास्ता बनाना पड़ता है
(४९)
न सिर्फ कॉंटे ही
बातें भी चुभतीं हैं
दिल को भारी कर जातीं हैं
सुनो तो
नासूर बन कर रह जातीं हैं
रह रह कर याद आतीं हैं
न सिर्फ आँखें नम कर जातीं हैं
आंखों में ललाई भर आतीं हैं
सो
सबसे भली चुप
(५०)
प्रकृति की
प्रत्येक कृति
‘प्र’ मतलब प्रकृष्ट है
शरीर का कोई भी अंग
नाहक नहीं बनाया प्रकृति ने
आँखों पर दी हुईं पलकें
कहती हैं
मुझे पल के लिए खोलिये
कम नहीं नजर
जर मतलब बुढ़ापा
हां हां !
बुढ़ापे से रहित हैं
ये नजरें
किसी से भी
चाहे जब कभी लग जातीं हैं
फिर
फिर क्या ?
जा पहुँचती है वह चीज
बेधड़क, बेदस्तक हमारे दिल तक
इसलिए आँख
अय ! मन मेरे
बनती कोशिश राख
(५१)
आता होगा
बुढ़ापा आता होगा
शरीर के किसी पार्ट को पहले
किसी को बाद
पर जाने किस स्कूल में
कौन सी आर्ट सीखी है
यथा नाम तथा गुण जुबान
मरते मर जाती है
पर इस के लिए बुढ़ौती छू भी
नहीं पाती है
लगता है 32 पहरों में रहने का
असर हैं ये
सच मर्याद
‘के मरने तलक
रखी चाहिये हमें याद
(५२)
सुनो तो,
खौफ मत रक्खो
खौफ से आँखें चार क्या होती हैं
खुशियाँ खपा हो जाती हैं
एक शब्द और है
हौंसला
जो
खोया हुआ होश…ला देता है
बनती कोशिश
हौंसला रक्खो
और बढ़ाये हुये एक कदम के पीछे
दूसरा रक्खो
(५३)
उफनते दूध पर
शान्ति धारा करते ही
उबाल बैठने लगता है
सो जब क्रोध का उफान आये
तब अपने मन से कहना
इस मामले में अपनी गलती कितनी है
यदि मन कहे कुछ भी नहीं
तो अपने आप से कहना
सुनो तो
पगड़ण्ड़ी छोड़ कर
मुशाफिर का रोड़ पर आना भी
छोटी नहीं
बड़ी मोटी भूल है
शब्द ही कर रहा है
रो…ड
ड…रो
यहाँ गाड़ी चलती है
मतलब माया
राम जाने,
कैसे गाड़ने के बाद भी चलती है
(५४)
महँगे-मँहगे तोहफे देने की,
होगी
किसी और को जरूरत होगी
पर माँ तो कहती है
बेटा मैं तो ‘तोह-पे’ अपनी जान छिड़कती हूँ
तुझे क्या तोहफा दूॅं
तेरे बिना
मेरे अपने इस जीवन की
है कोई कल्पना ही ना
सच
दिये दो प्रशंसा के बोल
बड़े मँहगे तोहफे से अनमोल
(५५)
छोटी से छोटी ही नहीं
देख लेना
बड़ी से बड़ी भी गाय
मक्खी-मच्छर के द्वारा
परेशान करने पर
कान से भगायेगी
पूँछ से हटायेगी
और अति हो चली
तो अपना सिर हिलाकर कहेगी
‘रे बस भी करो
थोड़ा बहुत मजाक अच्छा होता है
लेकिन कभी भी मुँह न बायेगी
उनकी जान लेने के लिये
है ही नहीं उसकी
इतनी कषाय
तभी तो सारी दुनिया जश ‘गाय’
और किसी से कुत्ता कह मत देना
जो निर्बल मक्खी-मच्छर के लिए भी
लात दिखाय
पैंने नुकीले दॉंतों के बीच दबाय
हा ! हहा ! तीव्र कषाय
(५६)
यदि कामयाबी
कुछ जल्दी ही हाथ लग जाए
तो गली गली
नुकड़-नुकड़
कदम दर कदम
यह कहते हुए
खूब लोगबाग मिल जायेंगे
‘के
लग चला है तुक्का इनका
‘रे सुन
अय ! मेरे मन
कड़ी मेहनत की मिशाल बनना
पर हाँ …
कामयाबी पाने में
ज्यादा देर भी मत करना
वरना लोग मुग्गा कहेंगे
(५७)
अपने होठों से
एक सफेद चॉक पकड़कर
यदि कोई कुछ लिख रहा है
तो एक छोटा सा बच्चा भी
सहज ही समझ सकता है
‘के इनके पास हाथ नहीं हैं
और लिखते वक्त
कुछ-कुछ कालापन रह जाये
तो समझना
किसी गीले वोर्ड पर लिक्खा जा रहा है
उस चॉक के द्वारा
मतलब
लिक्खा न लिक्खा एक जैसा
‘रे भाई
सिगरेट मुँह से लगा कर के क्यूॅं फूॅंकना
अपनी कड़ी मेहनत से कमाया रुपया-पैसा
(५८)
कॉलर और कफ खाते हैं मैल
रगड़ रगड कर शर्ट अपनी
अपने समय,
अपने सोड़ा-साबुन और
अपने पानी पर
पानी मत फेरना
कान पकड़ना
भूल होते ही
आगे से नहीं करने के वादे के साथ
‘रे सुन
अय ! मेरे मन
अपराध बोध से मत भरे रहना
नई सुबह के साथ
नई जिन्दगी ले हाथ
रचना इतिहास
‘के अब होवे इति…हास
(५९)
उससे आगे
मत निकलना
मत निकलना इससे आगे
होड़ में नहीं
दौड़ में विश्वास रखना
कल हम जहाँ थे
पल पहले हम जहाँ थे
बस वहीं मत रहना
और हां !
ना ही कोल्हू के बैल बनना
‘रे सुन
अय ! मेरे मन
पा मंजिल
आज नहीं तो कल
जरूर कहलायेंगे हम बड़भागे
(६०)
मंजिल मिलने से पहले
चैन की नींद
मतलब
बची खुची भी
मंजिल मिलने की अब
अय ! मेरे साहसी मन
तुम खो ही देना उम्मीद
रात दिन एक करना पड़ता है
तब सपने का ‘स’ सरकता है
फिर ऐड़ी चोटी का जोर लगाकर के
‘स’ के बाद आये ‘ह’ को हटाना पड़ता है
तब कहीं जाकर के
पुन: वर्ण माला का पहला
स्वर ‘अ’ आकर सपना
अपना करता है
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