(४१)
‘मुझसे हाई… को ?’
*बौराई हवा पश्चिम है
चुनरी है तो दम है*
‘मेरे साथ क…वीता’
*अद्भुत संख्या है ‘दो’
कुछ मिलता जुलता सा
नामकरण कराया
बुजुर्गों से दावानल ने अपना
‘दौ’
बुझाना मुश्किल हो जाता है
जल जंगल राख हो जाता है
राखता दम इतनी
दम है ही कितनी रहने में अकेले
सुनते हैं
केले एक बार ही देते हैं फल
जुगल अलबेले
चुन’री*
‘सुन लीजिए ना, क… हानी ?’
*एक बार
की बात है
दो बच्चे आपस में बात कर रहे थे
‘के फलाना फलाना बच्चा
रंग बदलू गिरगिट जैसा है
ये शब्द
पास में ही पत्थर के छुपे हुए
एक गिरगिट ने सुन लिये
और उदास सा चेहरा ले करके
माँ के पास चला आता है
तब माँ ने कहा
‘कि क्या बात है ?
तब वह बोला
माँ आज से मैं
रंग बदलने का त्याग करना चाहता हूँ
यह मानव गाली की जगह
रंग बदलू कह करके पुकारते हैं
माँ बोली बेटा
यदि मानव रंग बदले तो गाली है
लेकिन हमारे लिए तो
भगवान् के द्वारा दी यह खूबी है
यह हमारा बचाव करती है
वरना हम जनमते ही
अपने दुश्मनों के हाथ लग जाते
बेटा लोगों की बातों में आकर
बिना सोचे समझे फैसले लेने से पहले
सभी पहलुओं से
चीजों को देख परख लेना चाहिए
गिरगिट ने कहा
जी माँ*
‘मैं सिख… लाती’
*हर चीज का
अपना अपना माहात्म्य है
बस नाक पर रखा चश्मा
उतारकर देखने की जरूरत है*
(४२)
‘मुझसे हाई… को ?’
*रास्ते का लूट से भी वास्ता
चुन’री चलता रास्ता*
‘मेरे साथ क…वीता’
*बड़ा अद्भुत शब्द है
रास्ता च’लता
औरों के होंगे ‘पाव’
लता इसमें अपवाद
बड़े लम्बे इसके पाँव
भर डग
इसने नाप लिया जग
पल पलक बाद
‘और ‘च’ का पेट बड़ा बहुत
है ही बहुचर्चित
यानि ‘कि
‘हुनर ‘न सिर्फ ‘च’ का ही
लता का भी ‘हुनर’ राखता
चलता रास्ता
चुन ‘री*
‘सुन लीजिए ना, क… हानी ?’
*एक लम्बू नाम का सर्प था,
अपने दोस्तों के साथ
खेल-कूद कर रहा था
तभी एक दोस्त बोला
बिल में मुख से तो सभी प्रवेश करते हैं
ऐसा कोई जाबांज है
जो पूँछ की तरफ से
बिल में प्रवेश पा सके
दूसरे दोस्त ने
लम्बू सर्प के लिए
चने के झाड़ पर चढ़ाते हुए कहा ‘कि
हम सब में
यह अपने नाम के अनुरूप
सबसे लम्बा है
यह काम तो इसके बाँये हाथ का खेल है
बातों में आकर लम्बू सर्प
पूँछ की तरफ से
जैसे की प्रवेश करता है
चूँकि बिल वह मोटू चूहे का था
उसने लम्बू सर्प की पूँछ को
जोर से ताकत लगाकर
मुँह में भर लिखा,
साँप भागा
लेकिन उसकी पूँछ
चूहे के मुँह में ही रह गई
घर पहुँचा तो माँ ने पूछा
पूँछ कटी देखकर
बेटा,
क्या नेवले को छका करके आ रहा है ?
जब सिर नीचा देखा,
तब माँ बोली
बेटा उल्टा-सीधा नहीं
रास्ता सीधा-सीधा चलना अच्छा होता है*
‘मैं सिख… लाती’
*हमें हमेशा सोच समझ कर
कदम उठाने चाहिए*
(४३)
‘मुझसे हाई… को ?’
*बिना ‘तार’
दृग् सितार नम
चुन’री सरगम*
‘मेरे साथ क…वीता’
*अरे
खुदबखुद ही तो रहा पुकार
शब्द सितार
‘सि’… तार
ढ़ीले ढ़ीले
न तरंग जैसे
न ही तंग ऐसे
‘के टूट चलें
चालो
अब निकालो सरगम
सीताराम सीताराम सीताराम कहिये
जाहि विधि राखें राम ताहि विधि रहिये
करके भीतर आँख नम
पा लो
और पालो*
‘सुन लीजिए ना, क… हानी ?’
*एक बड़ी सी गुफा के
एक बेजोड़ से बिल में,
एक मणि वाला नाग रहता था
एक सपेरे ने एक बार देख लिया
‘कि
बड़ी कीमती मणि इसके पास है,
लेकिन दाब नहीं लग पा रहा था
एक दिन खुशी की कोई बात रही होगी
वह मणि वाला नाग
गुफा के बीचोंबीच
मणि के उजाले में
मदहोश होकर नाँच रहा था
और ऐसा मस्त हुआ नाँच में
‘के कब गुफा में अंधेरा छा गया
उसे पता ही नहीं लग सका
सपेरा नदारद हो चुका था
मणि को छुपा के ले जाने में कामयाब
वह बड़ा खुश था
और नाग
अपना सब कुछ लुट जाने के कारण
बहुत दुखी था
वह सोचता है
क्यों ? मैंने सजगता न रखी
भगवान् की दी हुई
नायाब एक छोटी सी चीच में
सुरक्षित भगवान् तक न पहुँचा पाया
अब उसके दरबार में जाकर
क्या मुँह दिखलाऊँगा
पर अब क्या ?
भले थम नहीं रहा आँखों का पानी*
‘मैं सिख… लाती’
*जरा सी भी मदहोशी
होश उड़ाने के लिए काफी है
इसलिए
जगते रहो
जब तक जगत् अहो*
(४४)
‘मुझसे हाई… को ?’
*सीख ‘कछु…आ’
नख-शिख अपना
रखना छुपा*
‘मेरे साथ क…वीता’
*दूर मुख
कछुआ
नख भी बाहर-‘खोल’ लेता है
तो खतरा मोल लगे है
खड़ा लील जाने
ऊपर चील
तो नीचे कोन कोन
कौन जाने
सिवा राम
सिया-राम जप ‘रे मनुमा
तू भीतर आ
तू भी तर आ…*
‘सुन लीजिए ना, क… हानी ?’
*एक प्रिंसीपल
दूसरे स्कूल गये हैं
वहाँ के प्रिंसीपल से मिलने के लिये
स्कूल के प्रिंसीपल ने
अपने बच्चों की प्रशंसा के
खूब पुल बाँधे
आगन्तुक प्रिंसीपल के मन में
बच्चों की परीक्षा लेने के भाव हुए
उन्होंने सभी बच्चों को बुलाया
और बच्चों से कहा
बेटा आप लोगों को
हीरे का चित्र बनाना है
प्रिंसीपल सर ने
पहले स्वयं बना करके दिखाया
फिर बच्चों से कहा
आप भी बना करके दिखाईये
बच्चों ने वह चित्र
आकरके बोर्ड पर हूबहू बना दिया
अब प्रिंसीपल सर बोलते हैं
‘के मैं बनाकरके नहीं बताऊँगा
आप के लिये खुद ही
कोहेनूर हीरे का चित्र बनाना है
बच्चे कुछ देर सोचते रहे
फिर उनके बीच से
एक बच्चा उठा
और उसने
ब्लेकबोर्ड पर चित्र बनाना शुरू किया
उसने बंद मुट्ठी बना दी
सर के पूछने पर
‘के यह क्या बना दिया आपने
तब वह बच्चा बोलता है
सर हमनें
देखा तो नहीं है कोहिनूर हीरे को
पर उसके बारे में सुना जरूर है
‘कि वह अनमोल है
और हमारे प्रिंसीपल सर ने बतलाया है
‘कि खुली मुट्टी खाक की
और बन्द मुट्ठी लाख की
इसलिए मैंने
चूँकि अनमोल कोहिनूर बनाना था
तो बन्द मुट्ठी का चित्र बना दिया
मेहमान प्रिंसीपल सर ने
उस प्रत्युत्पन्नमति
सहजू नाम के बच्चे की
पीठ थपथपाई
और उसे खूब आशीर्वाद दिया*
‘मैं सिख… लाती’
*दिमाग का चिराग
जब जब जगा है
अनोखी रोशनी हुए बिना
नहीं रही है*
(४५)
‘मुझसे हाई… को ?’
*गहरे
पानी कितने
मछरी
दे-बता चुनरी*
‘मेरे साथ क…वीता’
*वे विरले
जो गा हरे राम
जा कुछ गहरे रहते हैं
इतिहास सुनहरे कहते हैं
बड़ी मछरिया जितनी
रखती ‘सत’ धिया उतनी
जा गहरे उतरी पानी में
वह संयमित मनमानी में
जागती रही
चूँकि घर ही भेदी मौजूद
मिटाने पे तुले जो
अपने अपनों का ही बजूद
चुन’री
सोच गहरी*
‘सुन लीजिए ना, क… हानी ?’
*एक सपेरे का बच्चा
अपने पापा के साथ
साँप पकड़ने गया
तब जाता हुआ एक साँप दिखा
‘कि आँखों से ओझल हो गया
लेकिन बच्चे ने कुछ हटके जो देखा,
उस सर्प के पास बड़ी बड़ी मूँछें थी
वह पापा से बोला
ऐसा सर्प तो मैंने पहली बार देख है
पापा बोले
बेटा
सर्प को पवनभुक् भी कहते हैं
ये वो सर्पराज हैं
जो अपने बिल में
संतोष के साथ रहते हैं
ज्यादा आपाधापी इन्हें पसंद नहीं
सावधानी के साथ शिकार करके
फिरके आकरके अपनी बामी में
सुरक्षित आ बैठ चलते हैं
और दुनिया के लोग तो कहते बस हैं
हवा खा रहे हैं
पर खाते रहते है चुगली
इसलिए
इन साँपों का नाम पवनभुक् सार्थक है
यानि ‘कि बड़े बुजुर्ग हैं यह उम्र में
यहाँ तक पहुँच पाना
सबके बस की बात नहीं
चील ऊपर से नज़र गढ़ाये है
मोर चौतरफा मुँह बाये है
नेवले भी कम नहीं हैं
लेकिन इतने चौकन्ने है यह
‘के किसी की दाल ही नहीं गल पाती है
और हाँ
यह मानवों जैसे
मूँछों पर ताव जो नहीं देते हैं
किसी का दाब लगे भी तो कैसे
‘बेटा’ यह
सर्प के साथ-साथ सिर्फ हैं
यानि ‘कि अँगुलिंंयों पर गिनने लायक*
‘मैं सिख… लाती’
*हमारी नादानी ही हमारी
जिन्दगानी की दुश्मन है*
(४६)
‘मुझसे हाई… को ?’
*जाके पश्चिम
न लौट पाया
हुआ सूरज गुम*
‘मेरे साथ क…वीता’
*सिवाय शाम
न कुछ और पश्चिम के नाम
सुबहो
और
शुभ हो
दूर… सूर
सूरज भी
यात्रा प्रारंभ करता पूरब से
क्या हमें नहीं बनना अपूरब से
प्रभू…रब से,
यही विनन्ती
हो सभी की सूरज जैसी मति
अथ इति*
‘सुन लीजिए ना, क… हानी ?’
*एक लोमड़ी
विदेश से पढ़ लिख के आई डॉक्टरी
हेल्थकेयर खोल लिया
बड़े-बड़े स्लोगन लिख करके रख लिये
“सलाह लेने के कोई पैसे नहीं लगते”
“मुफ्त दवाएँ
कम्पनी का प्रचार
आपका फायदा”
आदि आदि
तभी पास से एक सेही निकला
उसने उसे बुलाकर कहा
क्यों ? भाई
कुछ थके बुझे से लग रहे हो,
सेही बोला नहीं भाई
मैं तो तन्दुरुस्त हूँ
तब डॉक्टर ने कहा
इन बालों के कारण
आपका चेहरा दिखता ही नहीं है
इन बालों का बोझ
कुछ कम करवा लो ना
सेही बोला
नहीं
सिंह जैसे भी
जो भले जंगल के राजा हैं
लेकिन कारण यही मेरे बाल
‘के मेरा बाल भी बाँका नहीं रह पाते हैं
हम लोग इन्हें
काँटे के माफिक खड़े कर लेते हैं
तब वह डॉक्टर लोमड़ी बोली
बस मुँह के कुछ बाल
अलग कराते ही आप
दुनिया के सबसे सुन्दर शख्स बन चालेंगे
हा हाय !
क्यों बातों में आ चलते हैं लोगबाग
आ गया सेही भी बातों में
मुँह के बाल मुड़वा लिये
रास्ते में
सिर मुड़वाते ही ओले पड़े
कहावत चरितार्थ हुई
शेर तो नहीं था
शेर का बच्चा था
अब सेही काँटे बना खड़े तो करे
पर मुँह वाली जगह नहीं ढ़क पाई
शेर के बच्चे ने एक झपट्टा मारा
लेकिन किस्मत अच्छी रही
बाल बाल बच गया सेही
तभी माँ ने आवाज लगाई
शेर का बच्चा
दौड़ता हुआ माँ के पास चला आया
पर सेही पछता रहा है
घर में ही रह रहा है
बाल आने का इंतजार है उसे*
‘मैं सिख… लाती’
*अपनी बुद्धि जिस किसी के पास
गिरवी नहीं रख आना चाहिये*
(४७)
‘मुझसे हाई… को ?’
*नर वानर बीच*
खींचे लकीर
‘लाज’ अचीज*
‘मेरे साथ क…वीता’
*चौपाये अगर
अपने पैरों पर खड़े हो चलें
तो
दोपायों को छकाते हैं
चूँकि वह भी
मुख से ही पानी पीते
खाना खाते हैं
आँख बन्द करके सोते
और सपनों मे खो जाते हैं
‘के ऊँट पहाड़ के नीचे आय
है यदि कोई उपाय
तो बस
लाजो-हया-शरम
‘के लहर-लहर लहर सका
दोपायों का फतही परचम*
‘सुन लीजिए ना, क… हानी ?’
*एक सासू माँ
कक्षा दूसरी पढ़ी हुई थी
दूसरी ही शाला में
अपने बहरानी के
गर्भ संस्कार के समय
उसने
उसे एक पौधा रोपने के लिए कहा
बहुरानी ने अपने हाथों से रोपा
एक एक करने नौ पौधे हो चले
बहुरानी को आज बच्ची हुई
उस सासू माँ ने
जिस पौधे का रोपण कराया था
उसी पौधे के नाम पर बच्ची का
नामकरण कर दिया लाजवन्ती
धीरे-धीरे वह बड़ी हुई
स्कूल में सबसे होशियार छात्रा थी वह
कभी किसी ने उसको
अपने आँख पूरी खोले हुए नहीं देखा
जब देखा तब झुकी ही मिली थी
उसकीं नजरें
होगी
जरूरत होगी
बड़ी जरूरत होगी घोड़ी को
साईवान अर्थात् आई लगाम की
पर यह लाजवन्ती तो
यहाँ वहाँ देखती ही नहीं थी
तभी तो
बगलें झाँकना उसे
आता ही नहीं था
आज अपनी दादी की लाजो
कलेक्टर बन के आई है
लेकिन अभी भी नींची नजरों के साथ
साक्षात् देवी अवतार की लगती है*
‘मैं सिख… लाती’
*लोग क्यों नहीं समझते है
‘कि पलकें पल के लिये खोलना है
यदि जीवन में रस सफलता घोलना है*
(४८)
‘मुझसे हाई… को ?’
*माना
जल से कल
पर लाज से आज
संभल*
‘मेरे साथ क…वीता’
*कल तो फिर आता है
करो पहले आज की बात
‘के लाज से आज
और तो और
कहो तो कहूँ
एक राज की बात
‘के लाज बिना
अब ना
दिशा खोती
अब-तक की ही दशा होती
सच
लाज भीतरी ज्योति*
‘सुन लीजिए ना, क… हानी ?’
*बात बहुत पुराने समय की है
एक बच्चा दीपावली के समय
बाज़ार से दीया, तेल, बाती, माचिस
खरीद करके ला रहा था
के तभी उसे
कुछ आदिवासिंयों ने किडनैप कर लिया
और अपने ठिकाने पर आकर
उस बच्चे की खाना तलाशी ली
अभी तक
यह सब उन्होेंने देखा जो नहीं था
उन्होेंने पुछा क्या है यह सब
बच्चे ने
सरल हृदय से कहा
यह अंधेरे का दुश्मन है
आप लोग इसे जगा करके
अंधियारे से निजात पा सकते हैं
आदिवासिंयों ने कहा
‘कि
तुम यदि हमें
दीया जगाना सिखला दोगे
तो हम तुम्हारे लिए
तुम्हारे घर सुरक्षित भिजवा देगे
बच्चे ने सिखला दी रोशनी करनी
आदिवासी लोग उसे
उसके घर छोड़कर आ गये
अब अपने कबीले में आकर
दीये में तेल डालकर माचिस लगाई
रोशनी हो चली
पर यह क्या आदिवासिंयों के बच्चे
जो अभी अभी सो करके उठे थे
वह दीपक का तेज प्रकाश
सहन नहीं होने से
अपनी आँखें मिचमिचाने लगे
तो उनके पापा लोगों ने
वह दीया एक कांच के जार से ढक दिया
तब बच्चे बड़े खुश हुए
लेकिन वह दीपक बुझ चला
तब आकाशवाणी हुई
दीया, तेल, बाती, माचिस
के अलावा
हवा भी चाहिए रोशनी के लिए*
‘मैं सिख… लाती’
*कुछ चीजें दिखाई नहीं देतीं हैं
पर बहुत जरूरी रहतीं हैं
हमें हमेशा साथ रखनी चाहिए*
(४९)
‘मुझसे हाई… को ?’
*दीया जीवेत
शरद् कोटिक-कोट
चुनरी ओट*
‘मेरे साथ क…वीता’
*आँखों को मिले
ओट, हाथों की
तो दूर का साफ-साफ दिख जाता है
कच्चे घड़ों को मिले
ओट हाथों की
तो खोट ‘करना-मुआफ’
. इन शब्दों से जोड़ती नाता है
ऐसी-वैसी नहीं ओट
पा दीपक इसका सपोट
आँधिंयों से भी लड़-भिड़ आता है
सो राखने ‘भी’तर ज्योत
आ… चुन’ री ओट*
‘सुन लीजिए ना, क… हानी ?’
*दीवाल की ही नहीं,
एक सुन्दर सी घड़ी,
घर को भी शोभा बढ़ाती थी
पर जाने एक दिन क्या हुआ
मन ही मन सोचने लगी,
कितने भारी हो तुम, काँच
तुम्हारे अन्दर खूबी ही क्या है,
जब सी भी खरोंच तुम
जिन्दगी भर सर-पर लिये घूमते हो
तुम्हारी जरा सी भी किराँच
लहुलुहान कर देती है हाथों को
मुझे अब तुम्हारी कोई जरूरत नहीं है
बस फिर क्या,
तेज-हवा से दोस्ती करके
घड़ी ने स्वयं गिरना स्वीकार कर लिया,
और काँच को गिरा कर
छार-छार कर दिया
घड़ी भी गिरने से टूट गई,
लेकिन उस बड़े घर के एक सेवक ने
उसे कुछ जोड़ तोड़ कर
फिर से यथा-स्थान लगा दिया
घड़ी कराह तो रही थी,
लेकिन बड़ी खुश थी,
‘के जो चाहती थी मैं,
वह इच्छा पूरी हुई
पर यह क्या ?
अब वही हवा
काँटों को कंपन देने लगी
धूल आकर
उसके सिर पर सवार होने लगी
एक बार
उस बड़े घर के मालिक की नजर
उस पर पड़ी
उसने उतार कर उस घड़ी के लिए
कबाड़े वाले एक व्यक्ति के लिए बेच दिया*
‘मैं सिख… लाती’
*कोई भी निर्णय लेने से पहले
आगे पीछे सोच समझ लेना चाहिये*
(५०)
‘मुझसे हाई… को ?’
*आश
विश्वास
भरोसे का दूसरा नाम
चुन’री*
‘मेरे साथ क…वीता’
*मुश्किल से मुश्किल
मंजिल भी होती सहज आसाँ
वह आशा
वि-विशेष श्वास
वह विश्वास
ग्रामीण जो बोलेंगे
तो बोलेंगे
जे की वजह से खाली भी जेब
लगे भरो सो
भरोसो वो
ऐसो वैसो ना’री
चुन’री*
‘सुन लीजिए ना, क… हानी ?’
*एक छोटा सा बच्चा था
माँ की गोद में खेलता रहता था
बड़ा सुन्दर जो था
जो भी उसे देखता
छुये बिना नहीं रहता था
और जैसे ही उसे कोई गोद में उठाता
तो वह रोने लगता था
और यही बच्चा
अपनी माँ के आसपास
घण्टों खेलता रहता था
माँ जब भी जीने से उपर आती
तो इसे एक हाथ से पकड़कर
उठा के ला सकती थी
यह नहीं रोता था
माँ इसके हाथों को
अपने हाथों की अँगुलिंयों में
फँसाकर गोल-गोल घुमाती थी
तब इसे बड़ा अच्छा लगता था
माँ इसे हवा में उछाल देती थी
यह कहकर
‘कि अब मैं नहीं झेलूँगी
पर वह बच्चा
खिलखिलाता रहता
न डरता था
न ही रोता था
नीचे जमीन पर बच्चा
आज तक नहीं
गिर पाया
माँ ने उसे बीच में ही संभाल लिया
सच
अद्भुत होता है माँ बेटे का रिश्ता
सारे रिश्ते
आहिस्ते आहिस्ते रिसते
सिर्फ इसे छोड़ कर
सब रिश्तों से
पूरे के पूरे नौ महीने बड़ा जो रहता है*
‘मैं सिख… लाती’
*परमात्मा ने पीछे
महात्मा ने आगे पीछे
लगा रखी माँ
कुछ तो बात होगी*
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