सवाल
आचार्य भगवन् !
किस मुँह से कहूँ
‘के कल रात नन्हे मुन्हें बच्चों के लिये
कहानिंयाँ सुना रहा था मैं
मेरी बच्ची के भी बच्चे आये हुये थे घर पर
उनमें से एक बच्चे ने मुझसे पूछा
नाना जी हमारे इस गाँव का नाम
‘आरोन’ क्यूँ पड़ा
भगवन् !
मैं जबाब न दे पाया
था ही नहीं मेरे पास
तब मैंने बच्चे से कहा
बेटा आज नहीं कल दूँगा जबाव
तुम्हारे इस सवाल का
आज तो बहुत रात हो चली है
चलो सुबह होने से पहले
उठकरके हम सभी को मिलकर
सूरज दादा का भी जो जगाना है
भगवन् !
आप तो अन्तर्यामी हैं
प्रभो !
क्यूँ कहते हैं हमारे ग्राम को आरोन
भगवन् !
कृपया मदद कीजियेगा मेरी
और अधिक न करते हुये देरी
नमोस्तु भगवन् !
नमोस्तु भगवन् !
नमोस्तु भगवन् !
जवाब…
लाजवाब
सुनिये
लगता है आप दिमाग से सोच रहे हैं
वैसे उलझन सुलझाना दिल को भी
न सिर्फ खूब
बखूब आता है
सुनते हैं, दिल का तीसरी आँख से नाता है
सिर्फ एक नहीं नेक अर्थ हैं आपके ग्राम के
नाम के
पहला अर्थ
देवशास्त्र गुरु से संबंध रखता है
और सहजो एक भी है
‘आ’ मतलब आगम ग्रन्थ
‘र’ मतलब रिषभ
‘ओ’ मतलब और भी महावीर पर्यन्त भगवन्त
एवं ‘न’ मतलब नगन दिगम्बर सन्त महन्त
है ना अद्भुत अर्थ
अब दूसरा अर्थ सुनियेगा
जो पञ्च परमेष्ठी वाचक है
हूबहू ओम् के जैसा
आईये देखते हैं
‘आ’ से आचार्य परमेष्ठी
‘अ’ से अक्षर, अशरीरी सिद्ध परमेष्ठी
सो आ और अ मिलाने से बना दीर्घ आ
अब अर मतलब अरहन्त परमेष्ठी
सो आ और अर मिलाने से बना आर
अब ‘उ’ मतलब उपाध्याय परमेष्ठी
सो आर और उसकी उ मिलाने से बना आरो
और ‘न’ मतलब नगन सन्त महन्त
सो सार्थ नाम बन चला आरोन
सच
दूसरी शाला की दूसरी ही कक्षा में
पढ़े होते हैं बुजुर्ग
पता है कुछ ज्यादा नहीं
सिर्फ ढ़ाई अक्षर
सो कुल मिलाकर
सहजो-निराकुल अर्थ हुआ आपके ग्राम का
‘के यहाँ के रहवासी
देवशास्त्र गुरु पर गहरी श्रद्धा रखने वाले हैं
पञ्च परमेष्ठी के उपासक हैं
बड़े ही निराले है
खूब जानते हैं
माँ की कूख से धरा वसुन्धरा पर
आ…रोना हुआ था
‘के चला चली के समय
हाँ हाँ अब आप अपने ग्राम के
आखर पलट लीजिये
समाधान मिल जायेगा
आ…रो…न
न…रो…आ
मतलब
अपनी इस आत्मा को मत रुलाना
‘के समय रहते यम से,
नियम से, संयम से
हाथ मिलाने अपने
और पूरे करना पुरु-पुरखों के द्वारा देखे सपने
यदि आप पूछते है कैसे ?
तो चलते फिरते सुमरण करके
हाँ हाँ चलते-चलते सु….मरण करके
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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