भक्ता-मर-स्तोत्र १२८
हाई…को ?
श्री पुरु-देव प्रणाम ।
आदि माँझी नौ शिव धाम ।।१।।
श्री पुरु-देव प्रणाम ।
भिंटावन-हार मुकाम ।।२।।
श्री पुरु-देव प्रणाम ।
भींगे भींगे दृग् आठों याम ।।३।।
श्री पुरु-देव प्रणाम ।
‘माप’ हॉंप द्यु-गुरु नाम ।।४।।
श्री पुरु-देव प्रणाम ।
मनचाही नाम ईनाम ।।५।।
श्री पुरु-देव प्रणाम ।
वक्त आप भक्तों के नाम ।।६।।
श्री पुरु-देव प्रणाम ।
‘ताप-पाप’ काम तमाम ।।७।।
श्री पुरु-देव प्रणाम ।
कल्प तरु अरु गो काम ।।८।।
श्री पुरु-देव प्रणाम ।
जपा, बना बिगड़ा-काम ।।९।।
श्री पुरु-देव प्रणाम ।
दें बदल भाग निर्दाम ।।१०।।
श्री पुरु-देव प्रणाम ।
नूप रूप नैनाभिराम ।।११।।
श्री पुरु-देव प्रणाम ।
चाम, जुदा मृदा अंजाम ।।१२।।
श्री पुरु-देव प्रणाम ।
मुख मुख शगुन नाम ।।१३।।
श्री पुरु-देव प्रणाम ।
लाँघें गुण लोक तमाम ।।१४।।
श्री पुरु-देव प्रणाम ।
अविचल चित् जित काम ।।१५।।
श्री पुरु-देव प्रणाम ।
द्वीप तले न तम नाम ।।१६।।
श्री पुरु-देव प्रणाम ।
सूर, दूर सुदूर घाम ।।१७।।
श्री पुरु-देव प्रणाम ।
चाँद, झाँप न घनश्याम ।।१८।।
श्री पुरु-देव प्रणाम ।
चन्द्र-भान सुबहो शाम ।।१९।।
श्री पुरु-देव प्रणाम ।
हुआ भेद विज्ञान नाम ।।२०।।
श्री पुरु-देव प्रणाम ।
आत्म राम दौड़ विराम ।।२१।।
श्री पुरु-देव प्रणाम ।
करे सेवा माँ की द्यु-धाम ।।२२।।
श्री पुरु-देव प्रणाम ।
भक्त नाम अखीर शाम ।।२३।।
श्री पुरु-देव प्रणाम ।
अष्टाधिक सहस्र नाम ।।२४।।
श्री पुरु-देव प्रणाम ।
ब्रह्मा, विष्णु, शिव निष्काम ।।२५।।
श्री पुरु-देव प्रणाम ।
सत्यम्, शिवम्, सुन्दरम् नाम ।।२६।।
श्री पुरु-देव प्रणाम ।
एक गुण-शगुन धाम ।।२७।।
श्री पुरु-देव प्रणाम ।
लो अशोक सार्थक नाम ।।२८।।
श्री पुरु-देव प्रणाम ।
सिंहासन तीरथ धाम ।।२९।।
श्री पुरु-देव प्रणाम ।
चामर चौ-साठ ललाम ।।३०।।
श्री पुरु-देव प्रणाम ।
त्रिछतर विहर घाम ।।३१।।
श्री पुरु-देव प्रणाम ।
भेरी दया धर्म पयाम ।।३२।।
श्री पुरु-देव प्रणाम ।
वर्षा पुष्पों की अविराम ।।३३।।
श्री पुरु-देव प्रणाम ।
भा-मण्डल भा एक ठाम ।।३४।।
श्री पुरु-देव प्रणाम ।
करे वाणी ‘भी’ कृतकाम ।।३५।।
श्री पुरु-देव प्रणाम ।
पद्म दिव्य दिवि-आराम ।।३६।।
श्री पुरु-देव प्रणाम ।
सभा और भा शाम-शाम ।।३७।।
श्री पुरु-देव प्रणाम ।
हाथी यम साथी त्राहि माम् ।।३८।।
श्री पुरु-देव प्रणाम ।
सिंह ने आ घेरा त्राहि माम् ।।३९।।
श्री पुरु-देव प्रणाम ।
त्राहि माम् धू धू जले ग्राम ।।४०।।
श्री पुरु-देव प्रणाम ।
सिर्फ सर्प-दमनी-नाम ।।४१।।
श्री पुरु-देव प्रणाम ।
दे लिखा जै नाम संग्राम ।।४२।।
श्री पुरु-देव प्रणाम ।
मनसूबे वैरी नाकाम ।।४३।।
श्री पुरु-देव प्रणाम ।
मैं भँवर लो हाथ थाम ।।४४।।
श्री पुरु-देव प्रणाम ।
जान लेवा रोग त्राहि माम् ।।४५।।
श्री पुरु-देव प्रणाम ।
जपा दफा माया तमाम ।।४६।।
श्री पुरु-देव प्रणाम ।
स्मृति-शेष भय तमाम ।।४७।।
श्री पुरु-देव प्रणाम ।
दौड़ मान-तुंग विराम ।।४८।।
भक्ता-मर-स्तोत्र १२९
हाई…को ?
तेरा, मैं शुक्र गुजार ।
आदि एक खेवनहार ।।१।।
तेरा, मैं शुक्र गुजार ।
‘कला गला’ एक आधार ।।२।।
तेरा, मैं शुक्र गुजार ।
पत जगत् राखनहार ।।३।।
तेरा, मैं शुक्र गुजार ।
गुण सिन्धु अपरम्पार ।।४।।
तेरा, मैं शुक्र गुजार ।
माशूमन ठेलन-हार ।।५।।
तेरा, मैं शुक्र गुजार ।
अवतार पाछी बयार ।।६।।
तेरा, मैं शुक्र गुजार ।
छार-छार पाप पहाड़ ।।७।।
तेरा, मैं शुक्र गुजार ।
करतार नागिन हार ।।८।।
तेरा, मैं शुक्र गुजार ।
अपहार ‘ही’ अंधकार ।।९।।
तेरा, मैं शुक्र गुजार ।
और काम-गो अवतार ।।१०।।
तेरा, मैं शुक्र गुजार ।
जन-जन नयन हार ।।११।।
तेरा, मैं शुक्र गुजार ।
नूप रूप एकाधिकार ।।१२।।
तेरा, मैं शुक्र गुजार ।
मुख चन्द्र ऽमा शर्मसार ।।१३।।
तेरा, मैं शुक्र गुजार ।
गुण गिन-भुवन पार ।।१४।।
तेरा, मैं शुक्र गुजार ।
बन पाई न बेड़ी नार ।।१५।।
तेरा, मैं शुक्र गुजार ।
दीया तले न अंधकार ।।१६।।
तेरा, मैं शुक्र गुजार ।
ताप दूर शूर संसार ।।१७।।
तेरा, मैं शुक्र गुजार ।
और चॉंद सदाबहार ।।१८।।
तेरा, मैं शुक्र गुजार ।
सिर रवि-शशि न भार ।।१९।।
तेरा, मैं शुक्र गुजार ।
और भेद ज्ञान आगार ।।२०।।
तेरा, मैं शुक्र गुजार ।
कृपा और मोर उद्धार ।।२१।।
तेरा, मैं शुक्र गुजार ।
धन्य कोख माँ करतार ।।२२।।
तेरा, मैं शुक्र गुजार ।
मृत्युंजय मुक्ति भर्तार ।।२३।।
तेरा, मैं शुक्र गुजार ।
ब्रह्मा, विष्णु, काम संहार ।।२४।।
तेरा, मैं शुक्र गुजार ।
बुद्ध, रुद्र, श्रद्धा आधार ।।२५।।
तेरा, मैं शुक्र गुजार ।
प्र’सिद्ध, श्री जी अनगार ।।२६।।
तेरा, मैं शुक्र गुजार ।
जोड़ गुण ले गुणकार ।।२७।।
तेरा, मैं शुक्र गुजार ।
छायादार अशोक झाड़ ।।२८।।
तेरा, मैं शुक्र गुजार ।
सिंहासन न धरा भार ।।२९।।
तेरा, मैं शुक्र गुजार ।
स’चऽमर देवता चार ।।३०।।
तेरा, मैं शुक्र गुजार ।
छत्र झोली चाँद सितार ।।३१।।
तेरा, मैं शुक्र गुजार ।
भेरी ‘और ही’ किरदार ।।३२।।
तेरा, मैं शुक्र गुजार ।
वर्षा पुष्प मन्द बयार ।।३३।।
तेरा, मैं शुक्र गुजार ।
भा-मण्डल भा बेसुमार ।।३४।।
तेरा, मैं शुक्र गुजार ।
धुनि दिव्य दिव्योपहार ।।३५।।
तेरा, मैं शुक्र गुजार ।
भू कमल स्वर्ण श्रृंगार ।।३६।।
तेरा, मैं शुक्र गुजार ।
वाघ छाग ‘भी’ सभागार ।।३७।।
तेरा, मैं शुक्र गुजार ।
डाले हाथी आ गले हार ।।३८।।
तेरा, मैं शुक्र गुजार ।
दहाड़ न पाई बिगाड़ ।।३९।।
तेरा, मैं शुक्र गुजार ।
हरतार ‘दौ’ हाहाकार ।।४०।।
तेरा, मैं शुक्र गुजार ।
न छू पाई साँप फुस्कार ।।४१।।
तेरा, मैं शुक्र गुजार ।
पर्दा किये रहती हार ।।४२।।
तेरा, मैं शुक्र गुजार ।
खाली जाता न मेरा वार ।।४३।।
तेरा, मैं शुक्र गुजार ।
पार बिना ही पतवार ।।४४।।
तेरा, मैं शुक्र गुजार ।
है काँधे न रोगों का भार ।।४५।।
तेरा, मैं शुक्र गुजार ।
निवार हा ! भै कारागार ।।४६।।
तेरा, मैं शुक्र गुजार ।
भय हुईं न आँखें चार ।।४७।।
तेरा, मैं शुक्र गुजार ।
उपकार पे उपकार ।।४८।।
भक्ता-मर-स्तोत्र १३०
हाई…को ?
वर्षा दो कृपा मुझ पर ।
छुवाया आदि अम्बर ।।१।।
वर्षा दो कृपा मुझ पर ।
पा गया ‘पर’ इन्दर ।।२।।
वर्षा दो कृपा मुझ पर ।
अक्षर सुर टक्कर ।।३।।
वर्षा दो कृपा मुझ पर ।
अपार गुण सागर ।।४।।
वर्षा दो कृपा मुझ पर ।
अपर भक्त वत्सल ।।५।।
वर्षा दो कृपा मुझ पर ।
राखन-हार खबर ।।६।।
वर्षा दो कृपा मुझ पर ।
विहर पाप अन्धर ।।७।।
वर्षा दो कृपा मुझ पर ।
पांवन चन्दन घर ।।८।।
वर्षा दो कृपा मुझ पर ।
मुकाम नाम सुमर ।।९।।
वर्षा दो कृपा मुझ पर ।
शंकर, रेवा कंकर ।।१०।।
वर्षा दो कृपा मुझ पर ।
त्रिजग दृग् दृग् विहर ।।११।।
वर्षा दो कृपा मुझ पर ।
अपूर्व व अनुत्तर ।।१२।।
वर्षा दो कृपा मुझ पर ।
आन…न और भू पर ।।१३।।
वर्षा दो कृपा मुझ पर ।
शगुन गुण निकर ।।१४।।
वर्षा दो कृपा मुझ पर ।
उवर्शी उर बाहर ।।१५।।
वर्षा दो कृपा मुझ पर ।
दीपक ज्योति अक्षर ।।१६।।
वर्षा दो कृपा मुझ पर ।
सुदूर राहु नजर ।।१७।।
वर्षा दो कृपा मुझ पर ।
चन्द्रमा अमा अम्बर ।।१८।।
वर्षा दो कृपा मुझ पर ।
इतर भान चन्दर ।।१९।।
वर्षा दो कृपा मुझ पर ।
केवल ज्ञान ‘इतर’ ।।२०।।
वर्षा दो कृपा मुझ पर ।
औ’ दर आप आदर ।।२१।।
वर्षा दो कृपा मुझ पर ।
सुत सत् शिव सुन्दर ।।२२।।
वर्षा दो कृपा मुझ पर ।
मृत्युंजै अजरामर ।।२३।।
वर्षा दो कृपा मुझ पर ।
अनेक एक ईश्वर ।।२४।।
वर्षा दो कृपा मुझ पर ।
अखर, हर, शंकर ।।२५।।
वर्षा दो कृपा मुझ पर ।
अ, सि, सा मंगलकर ।।२६।।
वर्षा दो कृपा मुझ पर ।
सद्गुण एक आगर ।।२७।।
वर्षा दो कृपा मुझ पर ।
ध्यानस्थ अशोक तर ।।२८।।
वर्षा दो कृपा मुझ पर ।
आसन सींह सुनर ।।२९।।
वर्षा दो कृपा मुझ पर ।
सुर चौंषठ चॅंवर ।।३०।।
वर्षा दो कृपा मुझ पर ।
अधर तीन छतर ।।३१।।
वर्षा दो कृपा मुझ पर ।
गम्भीर दुन्दुभि स्वर ।।३२।।
वर्षा दो कृपा मुझ पर ।
द्यु-पुष्प वर्षा ‘अखर’ ।।३३।।
वर्षा दो कृपा मुझ पर ।
भावृत्त भा मनहर ।।३४।।
वर्षा दो कृपा मुझ पर ।
ई-स्वर ‘भी अनक्षर ।।३५।।
वर्षा दो कृपा मुझ पर ।
पंकज पांवन तर ।।३६।।
वर्षा दो कृपा मुझ पर ।
देशना ढ़ाई आखर ।।३७।।
वर्षा दो कृपा मुझ पर ।
उजाड़े कुंज कुंजर ।।३८।।
वर्षा दो कृपा मुझ पर ।
केशरी दृग् भयंकर ।।३९।।
वर्षा दो कृपा मुझ पर ।
भखने द्यु दौ तत्पर ।।४०।।
वर्षा दो कृपा मुझ पर ।
आ रहा काल लहर ।।४१।।
वर्षा दो कृपा मुझ पर ।
लोहू की होली समर ।।४२।।
वर्षा दो कृपा मुझ पर ।
ढ़ा रहा शत्रु कहर ।।४३।।
वर्षा दो कृपा मुझ पर ।
आ फँसी नौका भँवर ।।४४।।
वर्षा दो कृपा मुझ पर ।
जाँ लेवा रोग उदर ।।४५।।
वर्षा दो कृपा मुझ पर ।
बन्धन हा ! बहिरन्तर ।।४६।।
वर्षा दो कृपा मुझ पर ।
हहा ! दृग् तरेरे डर ।।४७।।
वर्षा दो कृपा मुझ पर ।
दो वर दर्शन पुनर् ।।४८।।
भक्ता-मर-स्तोत्र १३१
हाई…को ?
जय माँ मरु-नन्दन ।
आदि एक अवलम्बन ।।१।।
जय माँ मरु-नन्दन ।
रसी-मसी एक शरण ।।२।।
जय माँ मरु-नन्दन ।
एक शिशु मंसा-पूरण ।।३।।
जय माँ मरु-नन्दन ।
अनगिन गुण सदन ।।४।।
जय माँ मरु-नन्दन ।
‘रे निर्बल के बल धन ! ।।५।।
जय माँ मरु-नन्दन ।
खेवटिया धाम हँसन ।।६।।
जय माँ मरु-नन्दन ।
एक पाप धी निकन्दन ।।७।।
जय माँ मरु-नन्दन ।
करतार धूल चन्दन ।।८।।
जय माँ मरु-नन्दन ।
दाता-गाथा दूर स्तवन ।।९।।
जय माँ मरु-नन्दन ।
दातृ एक स्वानुभुवन ।।१०।।
जय माँ मरु-नन्दन ।
अपहर मन-नयन ।।११।।
जय माँ मरु-नन्दन ।
सत् शिव सुन्दर तन ।।१२।।
जय माँ मरु-नन्दन ।
‘मुख’ और मृग-लांछन ।।१३।।
जय माँ मरु-नन्दन ।
पार गुण-गण भुवन ।।१४।।
जय माँ मरु-नन्दन ।
पार, नार कटाक्ष रण ।।१५।।
जय माँ मरु-नन्दन ।
दीप गत गम्य पवन ।।१६।।
जय माँ मरु-नन्दन ।
और शूर, दूर तपन ।।१७।।
जय माँ मरु-नन्दन ।
निष्कलंक शशि पूरण ।।१८।।
जय माँ मरु-नन्दन ।
छवि शशि रवि हरण ।।१९।।
जय माँ मरु-नन्दन ।
ज्ञान आन अवतरण ।।२०।।
जय माँ मरु-नन्दन ।
भटकन छोर चरण ।।२१।।
जय माँ मरु-नन्दन ।
करतार मॉं जन्म धन ।।२२।।
जय माँ मरु-नन्दन ।
सार्थवाह शिव स्यन्दन ।।२३।।
जय माँ मरु-नन्दन ।
धरा कहे यही गगन ।।२४।।
जय माँ मरु-नन्दन ।
मृत्युंजय पन्थ शरण ।।२५।।
जय माँ मरु-नन्दन ।
निर्ग्रन्थन सार ग्रन्थन ।।२६।।
जय माँ मरु-नन्दन ।
जोड़े गुन, तोड़ औ’गुन ।।२७।।
जय माँ मरु-नन्दन ।
सार्थ तर अशोक धन ! ।।२८।।
जय माँ मरु-नन्दन ।
सिंहासन तन कंचन ।।२९।।
जय माँ मरु-नन्दन ।
छेड़ें ढुरा चामर धुन ।।३०।।
जय माँ मरु-नन्दन ।
एक छत्र राज लखन ।।३१।।
जय माँ मरु-नन्दन ।
भेरी नम घन गर्जन ।।३२।।
जय माँ मरु-नन्दन ।
वर्षा पुष्प, मन्द पवन ।।३३।।
जय माँ मरु-नन्दन ।
भा-मण्डल आश किरण ।।३४।।
जय माँ मरु-नन्दन ।
धुनि दिव्य दिव्य नयन ।।३५।।
जय माँ मरु-नन्दन ।
तर-पाद-पद्म कंचन ।।३६।।
जय माँ मरु-नन्दन ।
कीर्त तीर्थ समशरण ।।३७।।
जय माँ मरु-नन्दन ।
भै उत्पाती हाथी भंजन ।।३८।।
जय माँ मरु-नन्दन ।
सिंह क्रूर भै विभंजन ।।३९।।
जय माँ मरु-नन्दन ।
मंत्र हन वन-अगन ।।४०।।
जय माँ मरु-नन्दन ।
मंत्र सर्प वशीकरण ।।४१।।
जय माँ मरु-नन्दन ।
मंत्र पर चक्र स्तंभन ।।४२।।
जय माँ मरु-नन्दन ।
एक मंत्र शत्रुता हन ।।४३।।
जय माँ मरु-नन्दन ।
करतार पार करण ।।४४।।
जय माँ मरु-नन्दन ।
रोग-रोग-ए- संजीवन ।।४५।।
जय माँ मरु-नन्दन ।
विभंजन भक्त बन्धन ।।४६।।
जय माँ मरु-नन्दन ।
विध्वंसक कष्ट विघन ।।४७।।
जय माँ मरु-नन्दन ।
मुनि मान-तुंग शरण ।।४८।।
भक्ता-मर-स्तोत्र १३२
हाई…को ?
सिर्फेक तेरा आसरा ।
अवतार प्रथम धरा ।।१।।
सिर्फेक तेरा आसरा ।
इन्द्र कहीं, मैं वहीं खड़ा ।।२।।
सिर्फेक तेरा आसरा ।
हूँ अभी मैं नौसीखा जरा ।।३।।
सिर्फेक तेरा आसरा ।
खोदे नख द्यु-गुरु धरा ।।४।।
सिर्फेक तेरा आसरा ।
तव स्तव थाह सागरा ।।५।।
सिर्फेक तेरा आसरा ।
करे भक्ति तेरी बाबरा ।।६।।
सिर्फेक तेरा आसरा ।
भाँत वज्र पाप कंदरा ।।७।।
सिर्फेक तेरा आसरा ।
ये थुति ‘के छुये अम्बरा ।।८।।
सिर्फेक तेरा आसरा ।
काफी कथा व्यथा निर्जरा ।।९।।
सिर्फेक तेरा आसरा ।
सार्थ नाम ‘कि वसुन्धरा ।।१०।।
सिर्फेक तेरा आसरा ।
दृग् जा टिकें ऐसा चेहरा ।।११।।
सिर्फेक तेरा आसरा ।
कोहनूर नूर पिछला ।।१२।।
सिर्फेक तेरा आसरा ।
न चाँद का ऐसा मुखड़ा ।।१३।।
सिर्फेक तेरा आसरा ।
गुण पार डग क्या ‘धरा’ ।।१४।।
सिर्फेक तेरा आसरा ।
जेय हाव-भाव अप्सरा ।।१५।।
सिर्फेक तेरा आसरा ।
‘दीप सिन्धु’ ज्योत अक्षरा ।।१६।।
सिर्फेक तेरा आसरा ।
राह राहु न रोक खड़ा ।।१७।।
सिर्फेक तेरा आसरा ।
अविरल अमृत झिरा ।।१८।।
सिर्फेक तेरा आसरा ।
चन्द्र-भान भार उतरा ।।१९।।
सिर्फेक तेरा आसरा ।
झिर फूटी ज्ञान केवला ।।२०।।
सिर्फेक तेरा आसरा ।
दर-दर राग श्रृंखला ।।२१।।
सिर्फेक तेरा आसरा ।
सूर पूर्व माँ अनुत्तरा ।।२२।।
सिर्फेक तेरा आसरा ।
मूर्ति सत्य शिव सुन्दरा ।।२३।।
सिर्फेक तेरा आसरा ।
जित जन्म मरण जरा ।।२४।।
सिर्फेक तेरा आसरा ।
ब्रह्मा, विष्णु, शिव शंकरा ।।२५।।
सिर्फेक तेरा आसरा ।
अर्हन्, सिद्ध, त्रि-दिगम्बरा ।।२६।।
सिर्फेक तेरा आसरा ।
अवगुण न तिल भरा ।।२७।।
सिर्फेक तेरा आसरा ।
सार्थ नाम अशोक मिला ।।२८।।
सिर्फेक तेरा आसरा ।
सिंहासन दृग् मनहरा ।।२९।।
सिर्फेक तेरा आसरा ।
चौंर कोर दृग् नमतरा ।।३०।।
सिर्फेक तेरा आसरा ।
छत्र चाँद, तारे झालरा ।।३१।।
सिर्फेक तेरा आसरा ।
बाजे यहाँ पाठ दूसरा ।।३२।।
सिर्फेक तेरा आसरा ।
झिर गुल-नन्द मंजुला ।।३३।।
सिर्फेक तेरा आसरा ।
भा-मण्डल सौ-भाग जुड़ा ।।३४।।
सिर्फेक तेरा आसरा ।
धन ! सुर’भी अनक्षरा ।।३५।।
सिर्फेक तेरा आसरा ।
सार्थ पाद पदम तरा ।।३६।।
सिर्फेक तेरा आसरा ।
समशर्ण मृग नाहरा ।।३७।।
सिर्फेक तेरा आसरा ।
मदाशक्त क्रूर कुंजरा ।।३८।।
सिर्फेक तेरा आसरा ।
सींह भर छलॉंग बढ़ा ।।३९।।
सिर्फेक तेरा आसरा ।
जंगल धू धू कर जला ।।४०।।
सिर्फेक तेरा आसरा ।
नाग लोहू आँख उतरा ।।४१।।
सिर्फेक तेरा आसरा ।
चक् व्यूह संग्राम छिड़ा ।।४२।।
सिर्फेक तेरा आसरा ।
प्रतिद्वन्दी दहाड़ चला ।।४३।।
सिर्फेक तेरा आसरा ।
सिन्धु जल जन्तु पहरा ।।४४।।
सिर्फेक तेरा आसरा ।
जोग रोग जां लेवा जुड़ा ।।४५।।
सिर्फेक तेरा आसरा ।
तन नख-शिख जकड़ा ।।४६।।
सिर्फेक तेरा आसरा ।
भै हाथ धो के पीछे पड़ा ।।४७।।
सिर्फेक तेरा आसरा ।
कृतिकार श्री भक्ता-मरा ।।४८।।
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