भक्ता-मर-स्तोत्र ६८
जय हो तेरी,
नृप नाभि-नन्दन ।
मॉं-मरु तारक नयन ।
जय हो तेरी,
भक्त अमर सुरगन ।
भीतर अन्धर-हन ।
इक आदि अवलम्बन ।
जय हो तेरी
मॉं-मरु तारक नयन ।।१।।
शचि-पति पुण्य धन ।
सफल प्रस्तुति थवन ।।
चाहता मैं भी शरण ।
जय हो तेरी
मॉं-मरु तारक नयन ।।२।।
नुति पद-पीठ बुधजन ।
पत खोना, तव थवन ।
हित शश-जल शिशु गमन ।
जय हो तेरी
मॉं-मरु तारक नयन ।।३।।
कर आप गुण कथन ।
नत देव-गुरु नयन ।
कब तट-जल लय-पवन ।
जय हो तेरी
मॉं-मरु तारक नयन ।।४।।
बिन शक्ति हित थवन ।
धकेले भक्ति जबरन ।
शिशु हित रण सिंह हिरण ।
जय हो तेरी
मॉं-मरु तारक नयन ।।५।।
कृति-हित हास बुध-जन ।
ठेलती भक्ति तुम चरण ।
मधुर पिक हेत आम्र वन ।।
जय हो तेरी
मॉं-मरु तारक नयन ।।६।।
सुमर आप संस्तवन ।
चूर पाप तत्क्षण ।
तम अगम शूर दर्शन ।
जय हो तेरी
मॉं-मरु तारक नयन ।।७।।
बल तोर चोर-मन ।
होगा यह संस्तवन ।
मोति कमल जल कण ।
जय हो तेरी
मॉं-मरु तारक नयन ।।८।।
दूर निर्दोष थवन ।
जाप आप पाप-हन ।
नभ भान कमल विकसन ।
जय हो तेरी
मॉं-मरु तारक नयन ।।९।।
कर तुम गुण वर्णन ।
गुणि तुम भांत सुमन ।
इतर पारस रतन ।
जय हो तेरी
मॉं-मरु तारक नयन ।।१०।।
लें देख तुम्हें नयन ।
न रीझें फिर औरन ।
क्षीर और जल-कण ।
जय हो तेरी
मॉं-मरु तारक नयन ।।११।।
विरच तुम्हें, रज-कण ।
गुम कहीं दूर गगन ।
नूप-रूप त्रिभुवन ।
जय हो तेरी
मॉं-मरु तारक नयन ।।१२।।
हर सुर-नर अहि नयन ।
छवि उपमा जित वदन ।
शशि हहा ! पलाश दिन ।
जय हो तेरी
मॉं-मरु तारक नयन ।।१३।।
प्रभा चन्द्र पूरण ।
गुण लाँघें त्रिभुवन ।
भय कैसा, तुम शरण ।
जय हो तेरी
मॉं-मरु तारक नयन ।।१४।।
चपल सुर तिय नयन ।
आप अविचलित मन ।
मेरु ज्यों प्रलय पवन ।
जय हो तेरी
मॉं-मरु तारक नयन ।।१५।।
धूम बिन, झूम बिन ।
रोशन भुवन-भुवन ।
दीप अनबुझ पवन ।
जय हो तेरी
मॉं-मरु तारक नयन ।।१६।।
सुदूर राहु ग्रहण ।
दूर नूर ओट घन ।
सूरज दूर तपन ।
जय हो तेरी
मॉं-मरु तारक नयन ।।१७।।
अगम्य राहु वदन ।
अगम्य बाहुन घन ।
तम-हर शशि त्रिभुवन ।
जय हो तेरी
मॉं-मरु तारक नयन ।।१८।।
नाहक आवागमन ।
शशि रात-प्रात तरण ।
तमहर चन्द्र वदन ।
जय हो तेरी
मॉं-मरु तारक नयन ।।१९।।
पास आप ज्ञान-धन ।
पास अर-गुमान क्षण ।
छवि काँच कब रतन ।
जय हो तेरी
मॉं-मरु तारक नयन ।।२०।।
सराग देव दर्शन ।
न रहा वृथा भगवन् ।
हुआ तुम से मिलन ।
जय हो तेरी
मॉं-मरु तारक नयन ।।२१।।
भाँत न तुम त्रिभुवन ।
सुत जनें नारी जन ।
बस पूर्व सहस्र किरण ।
जय हो तेरी
मॉं-मरु तारक नयन ।।२२।।
लगे हाथ सु-मरण ।
लगे हाथ सुमरण ।
तम हर तरण-वरण ।
जय हो तेरी
मॉं-मरु तारक नयन ।।२३।।
निरसक वन-रोदन ।
संरक्षक गोधन ।
शिव, ब्रह्मा, मोहन ।
जय हो तेरी
मॉं-मरु तारक नयन ।।२४।।
बुद्ध वन्द्य बुध जन ।
रुद्र वन्द्य जन जन ।
पुरु प्रधान सज्जन ।
जय हो तेरी
मॉं-मरु तारक नयन ।।२५।।
एक मंगल करण ।
इक अमंगल हरण ।
अरिहंत सिद्ध श्रमण ।
जय हो तेरी
मॉं-मरु तारक नयन ।।२६।।
लिये दोष और चुन ।
शेष बचे रहे गुण ।
सब दौड़ आये शरण ।
जय हो तेरी
मॉं-मरु तारक नयन ।।२७।।
तर अशोक तर धन ।
देह वरन कंचन ।
मिहिर घन तिमिर हन ।
जय हो तेरी
मॉं-मरु तारक नयन ।।२८।।
रतनन सिंहासन ।
देह वरण सुवरण ।
उदित गिर उदय तरण ।
जय हो तेरी
मॉं-मरु तारक नयन ।।२९।।
ढ़ोरते देव गण ।
चामर मन भावन ।
सुबहो क्या साझंन ।
जय हो तेरी
मॉं-मरु तारक नयन ।।३०।।
छालर मोतियन ।
छत्रत्-त्रय लखन ।
आधिपत्य त्रिभुवन ।
जय हो तेरी
मॉं-मरु तारक नयन ।।३१।।
दिश् दिश् गगनॉंगन ।
जयति धर्म माहन ।
शब्द दुन्दुभी गहन ।
जय हो तेरी
मॉं-मरु तारक नयन ।।३२।।
मन्द मन्द पवन ।
गन्धोदक बर्षण ।
बरसा नन्द सुमन ।
जय हो तेरी
मॉं-मरु तारक नयन ।।३३।।
रवि कोटि बिन तपन ।
विजित भा-कुल भुवन ।
भा-वलय भव-दर्पण ।।
जय हो तेरी
मॉं-मरु तारक नयन ।।३४।।
ना अपवर्ग सपन ।
सुलभ स्वर्ग गमन ।
नयन दिव्य वचन ।
जय हो तेरी
मॉं-मरु तारक नयन ।।३५।।
नवल कवल सुवरण ।
अधर रखते चरण ।
रचें कमल सुरगण ।
जय हो तेरी
मॉं-मरु तारक नयन ।।३६।।
बैठ सुनें प्रवचन ।
सिंह नजदीक हिरण ।
अद्भुत सम-शरण ।
जय हो तेरी
मॉं-मरु तारक नयन ।।३७।।
भय क्रूर गज-रदन ।
दूर, लगता न क्षण ।
करते ही सुमरण ।
जय हो तेरी
मॉं-मरु तारक नयन ।।३८।।
भय क्रूर पंचानन ।
दूर, लगता न क्षण ।
करते ही सुमरण ।
जय हो तेरी
मॉं-मरु तारक नयन ।।३९।।
जग भखना दव-अगन ।
शमन, लगता न क्षण ।
करते ही सुमरण ।
जय हो तेरी
मॉं-मरु तारक नयन ।।४०।।
भय क्रूर विषधर फण ।
दूर, लगता न क्षण ।
करते ही सुमरण ।
जय हो तेरी
मॉं-मरु तारक नयन ।।४१।।
रक्त का प्यासा रण ।
हस्त, लगता न क्षण ।
करते ही सुमरण ।
जय हो तेरी
मॉं-मरु तारक नयन ।।४२।।
भय शत्रु आक्रमण ।
विलय, लगता न क्षण ।
करते ही सुमरण ।
जय हो तेरी
मॉं-मरु तारक नयन ।।४३।।
वडवानल भीषण ।
शमन, लगता न क्षण ।
करते ही सुमरण ।
जय हो तेरी
मॉं-मरु तारक नयन ।।४४।।
घिरा रोगों से तन ।
स्वस्थ्य, लगता न क्षण ।
करते ही सुमरण
जय हो तेरी
मॉं-मरु तारक नयन ।।४५।।
दृढ़ श्रृंखला बन्धन ।
खुला, लगता न क्षण ।
करते ही सुमरण ।
जय हो तेरी
मॉं-मरु तारक नयन ।।४६।।
कष्ट बाधा-विघन ।
नष्ट, लगता न क्षण ।
करते ही सुमरण ।
जय हो तेरी
मॉं-मरु तारक नयन ।।४७।।
गुण-माल, गुल-वरण ।
कर कण्ठ-आभरण ।
मान-तुंग, शिव गमन ।
जय हो तेरी
मॉं-मरु तारक नयन ।।४८।।
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