सवाल
आचार्य भगवन् !
पीछी मोर पंखों की ही क्यों रखते हैं आप
पीछिका परिवर्तन क्या कहता है हमसे
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
अपना,
कुछ
कुछ-कुछ
बहुत-कुछ
धीरे-धीरे सब-कुछ
गवा देती है
भोला
मुँह बोला अपना
‘अपना’
छोटा-सा भी जीव वह,
उसे जिन्दगी औ’ जाँ देती है
यह पिच्छी है
और कोमलता तो,
इतनी रखती है
‘के को ? मलता वो
क्या नौ-जबॉं
या दाँत हवा,
है जिसके हाथ अभी सिर्फ जुबाँ,
उसकी आँखों से भी,
सहजो-निराकुलता के साथ
निकलती है
कोमलता तो इतनी रखती है
यह पिच्छी है
कोई,
जहाँ दोई,
सत्य-शिव-सुन्दर
यदि धरती है
तो ये ही
सत्य क्योंकि,
समझ-भार
सहज बन उदार
समझ-धार
अपनी यह पाँखें
देता छोड़
स्वयं मोर
यानि ‘कि सत्य, अहिंसा निर्दोष पलती है
शिव चूँकि,
न सिर्फ भुक्ति की
वरन मुक्ति की राहें
आसान करती है
और सुन्दर तो इतनी है
‘के देखती ही
क्या आँखें
अन्तर्मन-भी हरती है
यह पिच्छी है।
पीछिका परिवर्तन
ग्रामीण बोलेंगें
पीछिका ‘पर’…वर…तन
गा ‘मीर’ बोलेंगें
पीछिका परब…रतन
यानि ‘कि
पाने रतन-त्रय चूल
सीढ़ी पिच्छिका पर्व अमूल
पैरों की अंगुली
‘अगूठा लगा लगा’
लो भाग जगा
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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