सवाल
आचार्य भगवन् !
गुस्सा सिर्फ छीनता ही छीनता है,
या फिर कुछ देता भी है
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
कौन इससा
क्या कुछ नहीं देता,
देने के नाम पर गुस्सा
कंपते हुए अधर देता है
उतार आंखों जहर देता है
लगा रिश्ते को नजर देता है
तन्हाईयों को खबर देता है
हा ! हाय !
गुस्से ने सिर्फ और सिर्फ छीना है
न अपना ही
सपना भी
हा ! हाय !
गुस्से ने सिर्फ और सिर्फ छीना है
न सुकून ही
नसों से खून भी
हा ! हाय !
गुस्से ने सिर्फ और सिर्फ छीना है
न दृग् नीर ही
वरन, वक्त कीमती
सो बिना बुलाया मेहमान गुस्सा
जैसी करेंगे खातिरदारी
वैसी निभायेगा दोस्ती यारी
देखिए,
मत भिड़िये
कपड़े होते है साफ
हम पढ़े ही कितने
स्वर ‘सुर’ पढ़े
हम पढ़े ही कितने
आ दाखिला लें कक्षा दूजी
ढ़ाई आखर पूँजी
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
Sharing is caring!