सवाल
आचार्य भगवन् !
अब तो पचपन का हो चला हूँ,
जल्दी ही हार मान जाता हूँ
थक चालता है मन मेरा,
कदम चलने के बाद ही अब तो
मैं क्या करूँ
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
सुनो,
उड़ान भरने का काम मन का
किसने कहा ? मन पचपन का
यह गुणा-भाग तो तन का
भाग-दौड़ का काम मन का
थको मत
साहिल के आने से पहले थमो मत
पिंजरे में रहते-रहते तोता,
पंखों का हुनर खो बैठता
पता झरने लगले पंख
गगना न छुआ
एक अरसे से,
जो उड़ना न हुआ
वैसे नहीं किसी से कम
हारा मन, ‘के हार जाते हम
सो जानवी
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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